पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)और डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में कार्डियवस्कुलर यानी हृदय संबंधी रोग, श्वसन रोग, टाइप 2 डायबिटीज, किसी तरह की दुर्घटना, आत्महत्या और अन्य कारणों से समय से पहले मृत्यु का खतरा 4 गुना अधिक होता है, उन महिलाओं की तुलना में जिन्हें डिप्रेशन या तनाव की कोई समस्या नहीं होती या फिर जो किसी तरह के ट्रॉमा का सामना नहीं करती हैं। अमेरिका के हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एक लॉन्ग टर्म स्टडी हुई है जिसमें यह बात सामने आयी है।
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मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एक दूसरे से जुड़े हैं
डिपार्टमेंट ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ की सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट और इस स्टडी की लीड ऑथर एन्ड्रिया रॉबर्ट्स कहती हैं, "इस स्टडी में लंबी आयु की जांच की गई- एक तरह से सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य का परिणाम- और स्टडी के नतीजे हमारी समझ और ज्ञान को और मजबूत करते हैं कि मानसिक सेहत और शारीरिक स्वास्थ्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। मौजूदा समय में कोविड-19 महामारी के दौरान यह बात विशेष रूप से उभरकर सामने आयी है। इस दौरान अमेरिका के ही नहीं बल्कि दुनियाभर के कई लोग असामान्य तनाव का सामना कर रहे हैं और साथ ही साथ उनके सामाजिक संबंधों में भी कमी आयी है। सामाजिक संबंध हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक शक्तिशाली सुरक्षात्मक कवच का काम करते हैं।"
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जामा नेटवर्क ओपन जर्नल में प्रकाशित की गई स्टडी
यह अपने तरह की पहली स्टडी है जिसमें सिविलियन यानी गैर-सैनिक महिलाओं की एक बड़ी आबादी में पीटीएसडी और डिप्रेशन के एक ही समय पर एक साथ होने की बात कही गई है। इस स्टडी को 4 दिसंबर 2020 को जामा नेटवर्क ओपन नाम के जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित किया या है। इससे पहले पीटीएसडी और डिप्रेशन पर जो स्टडी हुई थी उसमें सेना में मौजूद पुरुषों पर मुख्य रूप से फोकस किया गया था।
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50 हजार महिलाओं को स्टडी में किया गया शामिल
ऐन्ड्रिया रॉबर्ट्स और उनके सहयोगियों ने 43 साल से 64 साल के बीच की करीब 50 हजार महिलाओं का अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं में पीटीएसडी और डिप्रेशन के लक्षणों का लेवल बहुत अधिक था उनमें स्टडी के 9 साल की अवधि के दौरान मृत्यु के सभी प्रमुख कारणों के जरिए मौत का खतरा 4 गुना अधिक था, उन महिलाओं की तुलना में जिन्हें डिप्रेशन की समस्या नहीं थी या फिर जिन्होंने किसी भी तरह के सदमे या मानसिक आघात से जुड़ी घटनाओं का अनुभव नहीं किया था।
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शरीर पर स्ट्रेस हार्मोन का असर है सबसे अहम फैक्टर
शोधकर्ताओं ने इस बात की भी जांच की कि क्या स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम कारक जैसे धूम्रपान, एक्सरसाइज और मोटापा जैसी चीजें और पीटीएसडी, डिप्रेशन और समय से पहले मृत्यु के बीच कोई संबंध हो सकता है। लेकिन इन फैक्टर्स का इसमें अपेक्षाकृत बेहद छोटे हिस्सा ही देखने को मिला। स्टडी के नतीजे यह सुझाव देते हैं कि कई और फैक्टर्स जैसे- शरीर पर स्ट्रेस हार्मोन का असर, पीटीएसडी और डिप्रेशन जैसी बीमारियों से पीड़ित महिलाओं में जल्दी मृत्यु के जोखिम को बढ़ा सकता है। शोधकर्ताओं की मानें तो जिन महिलाओं में इन दोनों बीमारियों के लक्षण दिखते हैं उनमें पीटीएसडी और डिप्रेशन दोनों का इलाज होना चाहिए तभी उनके बढ़े हुए मृत्यु दर के खतरे को कम किया जा सकता है।
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भावनात्मक सेहत की हम सभी करते हैं उपेक्षा
डिपार्टमेंट ऑफ एपिडेमियोलॉजी और डिपार्टमेंट ऑफ सोशल एंड बिहेवियरल साइंसेज में साइकायट्रिक एपिडेमियोलॉजी की प्रोफेसर और इस स्टडी की सीनियर ऑथर कैरेस्टन कोएनेन कहती हैं, "स्टडी के ये नतीजे आगे इस बात के सबूत देते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक सेहत का आधार है और उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण भी, साथ ही हमारे अस्तित्व के लिए भी। लेकिन हम सभी अक्सर अपने भावनात्मक कल्याण की खतरनाक स्तर तक उपेक्षा करते हैं।"
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