हाल ही में हर्ड इम्यूनिटी, कोविड-19 से बचने के लिए गैर-औषधीय तरीके जैसे- मास्क पहनना और हाथों की सफाई का ध्यान रखना और वैक्सीन और एंटीवायरल दवाइयों के विकास जैसे मुद्दों पर काफी बातें हो रही हैं। सच्चाई ये है कि ये सभी सुझाव उन्हीं बातों पर निर्भर करते हैं जो हम महामारी के बारे में अब तक जानते हैं।
महामारी बैक्टीरियल इंफेक्शन (उदाहरण- ब्यूबानिक प्लेग) की वजह से हुई हो या वायरल इंफेक्शन (उदाहरण- इन्फ्लूएंजा, स्वाइन फ्लू, इबोला वायरस और अब कोविड-19) की वजह से, महामारी के बारे में जानकारी ही सबसे बड़ी ताकत है। यह जानना बेहद जरूरी है कि बीमारी कैसे फैलती है, यह शरीर को कैसे संक्रमित करती है, बीमारी के किन लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है, बीमारी की जांच कैसे की जाती है और आखिर में बीमारी का प्रबंधन कैसे होगा, इलाज कैसे होगा और इससे बचने का तरीका क्या है।
- महामारी को खत्म कैसे करना है इसके पहले कदम में बीमारी के मध्य में जो रोगाणु है उसके बारे में हर एक जानकारी इक्ट्ठा करना जरूरी है।
- दूसरा कदम है एक मजबूत रणनीति बनाकर पहले कदम के आधार पर लोगों की जांच और इलाज करना। बीमारी के आधार पर इसमें थोड़ा बहुत फेरबदल हो सकता है।
महामारी को खत्म करने का आजमाया और परखा हुआ तरीका कौन-कौन सा है, इस बारे में हम आपको बता रहे हैं:
1. हर्ड इम्यूनिटी बनाना
हर्ड इम्यूनिटी को हासिल करने का दो तरीका है- वैक्सीन के जरिए या फिर प्राकृतिक रूप से, जैसे-जैसे मरीज बीमारी से ठीक होते जाते हैं। वैक्सीन के जरिए हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने का तरीका बेहद संक्रामक बीमारियों जैसे- चेचक और खसरा में पूरी तरह से सफल रहा है। वैक्सीन की गैर-मौजूदगी में हर्ड इम्यूनिटी प्राकृतिक तरीके से हासिल की जाती है जब बड़ी संख्या में लोग बीमारी से उबरते हैं तो उनमें उस बीमारी के प्रति इम्यूनिटी विकसित हो जाती है। हालांकि, इस तरीके की वजह से गंभीर बीमारी औऱ यहां तक की मौत के आंकड़े भी काफी बढ़ सकते हैं।
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मार्च 2020 में यूके की सरकार की काफी आलोचना हुई थी जब उन्होंने ये सुझाव दिया था कि लोगों को बीमार होने देना चाहिए ताकि वे कोविड-19 के खिलाफ प्राकृतिक रूप से इम्यूनिटी विकसित कर पाएं। इसके पीछे मकसद ये था कि अगर पर्याप्त संख्या में युवा कोविड-19 से संक्रमित होंगे- युवाओं में इस श्वास संबंधी बीमारी के हल्के लक्षण दिखते हैं, बुजुर्गों और लंबे समय से किसी और बीमारी से पीड़ित लोगों की तुलना में- तो युवा इस वायरस से इम्यून हो जाएंगे और वे पूरी आबादी को हर्ड या सामूहिक इम्यूनिटी दे पाएंगे जिससे महामारी का अंत हो जाएगा। भारत में भी, कुछ एक्सपर्ट्स ने यह सुझाव दिया था कि बेहद कम आर्थिक नुकसान के साथ कोविड-19 के इस संकट से निपटने का एक ही जवाब है और वो है हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता।
दुर्भाग्यवश, किसी नए वायरस के मामले में हर्ड इम्यूनिटी की गारंटी नहीं दी जा सकती। कोविड-19 के मामले में प्राप्त की गई इम्यूनिटी को लेकर काफी बहस चल रही है। वैज्ञानिक अब भी इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि जिन लोगों को कोविड-19 की बीमारी एक बार हो जाती है वे उसके खिलाफ इम्यूनिटी तो विकसित कर लेते हैं, लेकिन यह इम्यूनिटी कितने दिन तक बनी रहती है और क्या ये लोग इसी वायरस के किसी दूसरे स्ट्रेन के जरिए दोबारा संक्रमित हो सकते हैं?
हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने का सबसे सुरक्षित तरीका वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण है। जुलाई 2020 के मध्य तक दुनियाभर में कोविड-19 के करीब 70 से ज्यादा वैक्सीन कैंडिडेंट्स थे और इनमें से कई ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल स्टेज में थे। इनमें से 2 वैक्सीन कैंडिडेट- कोवैक्सीन और जाइकोव-डी को भारत में विकसित किया गया है।
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2. रोगाणु के साथ रहना सीख लें
1918 के एच1एन1 इन्फ्लूएंजा महामारी प्रकोप ने शुरुआत में बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित किया। चिकित्सा इतिहासकारों की मानें तो उस वक्त लोगों को वायरल बीमारियों के बारे में ज्यादा पता नहीं था और इसलिए लोगों को बीमारी के साथ रहना सीखना पड़ा। करीब 2 साल बाद वायरस कम खतरनाक हो गया और उसने हर साल दर साल वापस आना शुरू किया लेकिन पहले जितना नुकसान नहीं हुआ।
वायरस-विज्ञानी अब ये जानते हैं कि कुछ वायरस जैसे ही अपना नयापन खोते हैं, इंसान का शरीर भी उन वायरस से होने वाले इंफेक्शन से लड़ना और उसके अनुसार खुद को बदलना सीख लेता है। यह भी एक तरीका है जिससे महामारी को खत्म किया जा सकता है। (हालांकि यह सभी तरह के वायरस के लिए सही नहीं है और एचआईवी इसका एक उदाहरण है। वायरस इतनी जल्दी अपना रूप बदलता है कि वैज्ञानिक इतने सालों बाद भी इस इंफेक्शन के खिलाफ सफल वैक्सीन विकसित नहीं कर पाए हैं)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में कहा कि दुनियाभर के लोगों को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के साथ रहना सीख लेना चाहिए। लेकिन आप जितना सोच रहे हैं यह उतना कठोर नहीं है। वायरस का जीवित रहना आंशिक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि हम- इंसान- वायरस को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं और आंशिक रूप से इस बात पर कि वायरस को उपयोग करने के लिए कौन से अवसर मिल रहे हैं। इनमें से सिर्फ पहला भाग है जो हमारे कंट्रोल में है।
अगर हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सामाजिक दूरी को बनाकर रखें, हाथों की सफाई का पूरा ध्यान रखें और कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए जरूरी ऐहतियाती कदम उठाएं- दूसरे शब्दों में कहें तो अगर हम वायरस के साथ रहना सीख लें- तो वायरस को अपने लिए वाहक नहीं मिलेगा जिसके जरिए इस महामारी का जल्द से जल्द अंत हो जाएगा।
(सामाजिक दूरी इंसानों के बीच के संपर्क को सीमित कर देती है- अगर इंसानों के बीच संपर्क सीमित हो जाएगा तो इंसान से इंसान के बीच बीमारी के फैलने का सिलसिला भी सीमित हो जाएगा। वायरस को जीवित रहने के लिए मेजबान (होस्ट) की जरूरत होती है और सक्षम होस्ट की गैरमौजूदगी में वायरस बेजान हो जाते हैं)
3. मामलों का पता लगाएं, मरीज को आइसोलेट करें, संपर्क में आए लोगों को क्वारंटीन करें, रोगाणु को घेरें
वैज्ञानिकों की मानें तो यह रणनीति सार्स महामारी के संदर्भ में कई वजहों से कारगर साबित हुई थी। पहला- मरीजों में बुखार और सांस लेने में तकलीफ के बेहद स्पष्ट लक्षण नजर आते थे। दूसरा- रोग के व्यापक प्रसार को रोकने के लिए, अधिकारियों ने रोगियों को और उनके संपर्कों को जल्दी और पर्याप्त रूप से पहचानने, उनका परीक्षण करने और उन्हें दूसरों से अलग करने में सफलता हासिल की थी। यही वजह है कि वे बीमारी के प्रकोप को हांगकांग और टोरंटो तक सीमित रखने में सक्षम हुए थे।
4. वैक्सीन बनायी जाए फिर चाहे वह कुछ समय के लिए ही इम्यूनिटी क्यों न दे
वायरस अपना रूप बदलते रहते हैं। (म्यूटेट) यही वजह है कि अब तक हमारे पास सामान्य सर्दी-जुकाम या फ्लू का कोई इलाज मौजूद नहीं है। कम से कम फ्लू के मामले में WHO हर साल दुनियाभर में एक वैक्सीन रिलीज करता है जो वायरस के उस स्ट्रेन के मुताबिक होती है जो उस साल संक्रमण फैला रहा होता है। सार्स-सीओवी-2 जैसे नए वायरस के मामले में अगर ऐसी वैक्सीन भी बन जाए जो एक बड़े समूह के लोगों को कुछ दिनों के लिए इम्यूनिटी प्रदान करती हो तो बीमारी के फैलने के चेन को तोड़ने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।
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5. हड़बड़ी न दिखाएं, WHO क्या कह रहा है इस पर ध्यान दें
हाल ही में कुछ देशों ने स्कूलों को औऱ कई दूसरी सार्वजनिक जगहों को दोबारा खोलने की कोशिश की लेकिन जब कोविड-19 के मामले फिर से बढ़ने शुरू हुए तो इन जगहों को बंद करना पड़ा। अगर कोई एक चीज है जिसे हमें इस बीमारी से दूर ले जाना चाहिए, तो वह है इंसान का कोविड-19 से पहले वाले जीवन को हासिल करने के लिए बेचैन और व्याकुल होना। ऐसा करने की कोशिश से महामारी के अंत में और देरी होगी।
इसके अलावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े वैज्ञानिक इस महामारी की शुरुआत से यह कहते आ रहे हैं कि सामुदायिक भागीदारी इसमें महत्वपूर्ण है। यह उन सबूतों पर आधारित है कि गैर-चिकित्सीय तरीके जैसे- मास्क पहनना, भीड़-भाड़ का हिस्सा न बनना, शारीरिक दूरी बनाकर रखना और हाथों की सफाई का ध्यान रखना बेहतर तरीके से काम करते हैं जब इसमें पूरे समुदाय की हिस्सेदारी होती है। जैसे-जैसे महामारी आगे बढ़ती जाएगी यह आम लोगों के संकल्प और बीमारी से बचाव के इन तरीकों के पालन करने की उनकी क्षमता का भी परीक्षण करेगी।
विशेषज्ञों ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन करना और कुचलना यह दृष्टिकोण भी वैश्विक दुनिया में महामारी को समाप्त करने का एक और उपकरण है। ऐसा करना क्यों जरूरी है क्योंकि- सार्स-सीओवी-2 सभी देशों को एक समान रूप से और एक साथ प्रभावित नहीं कर रहा है। चीन के बाद कोविड-19 दक्षिण कोरिया जैसे देशों में फैला। उसके बाद यूरोपीय देश जैसे स्पेन और इटली दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देश थे। इसके तुरंत बाद अमेरिका और यूके का नंबर आया और अब ब्राजिल, भारत, पाकिस्तान और रूस संक्रमित मरीजों के मामले में काफी आगे निकलते दिख रहे हैं।
जब तक कि हम सभी देशों में इस बीमारी को पूरी तरह से हरा नहीं देते तब तक महामारी को सही अर्थों में खत्म नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह वापस आ सकती है- 1918 का इन्फ्लूएंजा तीन अलग-अलग तरह से वापस आया था।