भारत में कोरोना वायरस (सीओवीआईडी-19) के मरीजों की संख्या 75 हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ देर पहले यह जानकारी दी। इससे पहले गुरुवार को सरकार के अधिकारियों ने कर्नाटक में कोरोना वायरस से पहले व्यक्ति की मौत की पुष्टि की थी। उन्होंने बताया कि मंगलवार को हैदराबाद से कर्नाटक के कलबुर्गी लौटते समय जिस 76 वर्षीय व्यक्ति की मौत हुई, उसमें सीओवीआईडी-19 पाया गया है।

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स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश के 13 राज्यों में कोरोना वायरस के 75 मामलों की पुष्टि हुई है। इनमें 57 भारतीय और 17 विदेशी नागरिक हैं। सरकार ने बताया कि केरल में 17, महाराष्ट्र में 11, उत्तर प्रदेश में दस, दिल्ली में छह, कर्नाटक में पांच और लद्दाख में तीन मामलों के अलावा राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और आंध्र प्रदेश में एक-एक भारतीय नागरिक कोरोना वायरस से पीड़ित पाया गया है। वहीं, 17 विदेशी नागरिकों में से 14 का हरियाणा, दो का राजस्थान और एक मरीज का उत्तर प्रदेश में इलाज किया जा रहा है। इस बीच सरकार ने बयान जारी कर लोगों से कहा कि उन्हें अभी डरने की जरूरत नहीं है।

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सरकार ने क्यों कहा, डरने की जरूरत नहीं?
यह सही है कि देश में कोरोना वायरस के मामले अचानक बढ़े हैं और एक व्यक्ति की मौत भी हुई है। लेकिन इनसे जुड़े कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जो बताते हैं कि भारत में संकटपूर्ण स्थिति अभी भी पैदा नहीं हुई है। इसे समझने के लिए पहले यह जानने की जरूरत है कि भारत में कोरोना वायरस के मामले किस प्रकार से सामने आए हैं। 

देश में सीओवीआईडी-19 के 75 मरीजों में से 17 विदेशी हैं। लेकिन जिन भारतीयों में कोरोना वायरस पाया गया है, उनके संक्रमित होने के पीछे भी विदेशी लिंक शामिल है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ज्यादातर भारतीय मरीज हाल ही में यूरोप और मिडिल ईस्ट से आए हैं जहां कोरोना वायरस का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इन मरीजों के जरिये कोरोना उन लोगों में फैला जो बार-बार उनके संपर्क में आए। यानी पीड़ितों के परिवार के सदस्य और अन्य रिश्तेदार। यहां उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अधिकारी ने भी कहा था कि भारतीयों को कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां इसके संक्रमण के मामले विदेशी यात्राओं से जुड़े हुए हैं।

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यही वजह है कि सरकार ने भी साफ किया है कि कोरोना वायरस को लेकर लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। उसने कहा कि देश में कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हुआ है, यानी यह एक व्यक्ति या समूह से अन्य व्यक्तियों या समूहों में नहीं फैला है। इसके साथ सरकार ने लोगों से अपील की है कि उन्हें वायरस से डरने की नहीं, बल्कि सावधानियां बरतने की जरूरत है।

कर्नाटक में कैसे हुए मरीज की मौत?
अब बात करते हैं कर्नाटक में कोरोना वायरस से हुई पहली मौत की। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, यह पीड़ित भी कुछ दिन पहले मिडिल ईस्ट से लौटा था। बीती 29 फरवरी को सऊदी अरब से लौटने के बाद पीड़ित ने सबसे पहले अस्थमा और हाइपरटेंशन की शिकायत की थी। फिर छह मार्च को कलबुर्गी जिला स्थित अपने रिश्तेदार के घर पर उसने बुखार और खांसी की शिकायत की। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि नौ मार्च को पीड़ित की हालत ज्यादा बिगड़ गई जिसके बाद उसे एक निजी अस्पताल में दिखाया गया। वहां से उसके कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीज होने की खबर आई।

मामला सामने आने के बाद जिले के एक सरकारी अस्पताल ने पीड़ित का ब्लड सैंपल लिया और जांच के लिए उसे बैंगलोर मेडिकल कॉलेज भेज दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने एक बयान में बताया है कि जांच के परिणाम आने से पहले ही मरीज के साथ आए लोगों ने उसे अस्पताल से ले जानी की जिद की। मंत्रालय के मुताबिक, इसके चलते मरीज को मेडिकल सलाह दिए जाने के बावजूद डिस्चार्ज करना पड़ा। इसके बाद पीड़ित के करीबी लोग उसे हैदराबाद के निजी अस्पताल ले गए।

इस दौरान कलबुर्गी के जिला अधिकारियों ने पीड़ित के रिश्तेदारों से अपील की कि वे उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराएं। लेकिन उन्होंने कथित रूप से इससे इनकार कर दिया। वे जिले के स्वास्थ्य अधिकारी को जानकारी दिए बिना ही पीड़ित को हैदराबाद ले गए। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि बाद में हैदराबाद के निजी अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद कर्नाटक के सरकारी अस्पताल में भर्ती होने के लिए लौटते समय रास्ते में ही मरीज की मौत हो गई। मीडिया में आई इस जानकारी के बाद दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली, बुजुर्ग मृतक पहले से बीमार था, जिसके चलते उसकी हालत जल्दी बिगड़ गई। दूसरा, उसके करीबी लोगों ने कथित रूप से इलाज को लेकर सरकारी अधिकारियों के साथ सहयोग नहीं किया। ये तमाम बातें इसी ओर इशारा करती हैं कि भारत में लोगों को कोरोना वायरस को लेकर डरने से ज्यादा, सचेत रहने की जरूरत है।

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