शरीर में कई जटिल अंग होते हैं जिनका अपना विशेष कार्य होता है जिसके लिए ये अंग विभन्न कोशिकाओं का इस्‍तेमाल करते हैं। पिछले कई सालों में वैज्ञानिकों ने इनमें से अधिकांश कोशिकाओं के कार्य का पता लगा लिया है और यह समझा है इनमें से सिर्फ 20 प्रतिशत ही मस्तिष्‍क का होता है।

संरचनात्‍मक रूप से मस्तिष्‍क कई अलग-अलग तरह की कोशिकाओं से बना है जिनमें से एक न्‍यूरोग्‍लिआ या ग्‍लियल कोशिकाएं हैं। नसों की कोशिकाओं यानि न्‍यूरॉन्‍स के कार्य को सुरक्षा देने, पोषण और ऑक्‍सीजन लाने और इन्‍हें अपनी जगह पर बनाए रखने का काम ये ग्‍लिअल कोशिकाएं करती हैं। ये होमियोस्‍टैसिस को बनाए रखने के लिए भी जिम्‍मेदार होती हैं।

मस्तिष्‍क या रीढ़ की हड्डी की ग्‍लियल कोशिकाओं में होने वाले ट्यूमरों को ग्लियोमा कहते हैं। ग्लियोमा न सिर्फ मस्तिष्‍क के कार्य को प्रभावित कर सकता है बल्कि यह जानलेना भी हो सकता है।

ये कितने गंभीर हैं या कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, इसी पर पता चलता है कि ग्‍लिअल कोशिकाओं का ट्यूमर किस प्रकार का है। किसी भी उम्र के व्‍यक्‍ति में यह परेशानी हो सकती है लेकिन वयस्‍कों को यह ज्‍यादा प्रभावित करती है। ये मस्तिष्‍क के तत्‍वों के अंदर बढ़ते हैं और मस्तिष्‍क के नॉर्मल ऊतक के साथ मिल जाते हैं। ग्लियोमा को इंट्रा-एक्‍सिअल ट्यूमर भी कहते हैं।

  1. ग्लियोमा के प्रकार
  2. ग्लियोमा के लक्षण
  3. ग्‍लियोमा के कारण और जोखिम कारक
  4. ग्‍लियोमा का निदान
  5. ग्‍लियोमा का इलाज
  6. ग्‍लियोमा सर्जरी के बाद देखभाल
  7. सारांश

ग्‍लिअल कोशिकाओं के तीन प्रकार होते हैं जो ट्यूमर में बदल सकते हैं और इसी के आधार पर इन ट्यूमर का वर्गीकरण किया जाता है। इनमें से कुछ हैं :

  • एस्‍ट्रोसाइटोमा : कोशिकाओं में शुरू होने वाले ट्यूमर को एस्‍ट्रोसाइट्स कहते हैं जो नसों की कोशिकाओं को सपोर्ट करते हैं। ये तेजी से बढ़ सकते हैं या धीरे बढ़ते हैं। ये कितने गंभीर हैं, इसी के आधार पर इलाज तय किया जाता है।
  • ओलिगोडेंड्रोग्लियोमा : मस्तिष्‍क और रीढ़ की हड्डी के अंदर की कोशिकओं से बढ़ने वाले ट्यूमर को ओलिगोडेंड्रोग्लियोमा कहते हैं। ये नसों की कोशिकाओं को सुरक्षा देने वाला तत्‍व बनाते हैं। इसमें अक्‍सर सर्जरी से ट्यूमर को निकाला जाता है।
  • ग्‍लिओब्‍लास्‍टोमा : सबसे आम और गंभीर प्रकार का ग्लियोमा, ग्‍लिओब्‍लास्‍टोमा है जो कि वयस्‍कों में ज्‍यादा देखा जाता है। इसका कोई इलाज नहीं है।
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किस प्रकार का और किस जगह ट्यूमर हुआ है, इसी के हिसाब से लक्षण दिख सकते हैं। इसके निम्‍न आम लक्षण हैं :

ग्‍लियोमा होने के किसी भी कारण के बारे में जानकारी नहीं है। कुछ कारकों की वजह से यह बीमारी विकसित हो सकती है, जैसे कि :

  • फैमिली हिस्‍ट्री : कुछ जीन वेरिएशनों का संबंध ग्लियोमा से देखा गया है। हालांकि, इन वेरिएशनों और ब्रेन ट्यूमरों में संबंध की पुष्टि करने के लिए और रिसर्च किए जाने की जरूरत है। अनुवांशिक रूप से ग्‍लियोमा के होने की संभावना बहुत ही कम है लेकिन अगर परिवार में किसी को यह बीमारी है, तो आपमें भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
  • उम्र : किसी भी उम्र में ब्रेन ट्यूमर हो सकता है। हालांकि, ग्‍लियोमा 40 से 65 साल के लोगों में ज्‍यादा देखा जाता है। बच्‍चों में कुछ प्रकार के ग्‍लियोमा ज्‍यादा आम हैं। अगर आपकी ग्‍लियोमा की फैमिली हिस्‍ट्री है और आपको उपरोक्‍त लक्षण दिख रहे हैं, तो मेडिकल चेकअप करवा लें।
  • रेडिएशन का संपर्क : कुछ लोगों का काम ही ऐसा होता है कि उन्‍हें रेडिएशन के संपर्क में आना पड़ता है। जब कोई व्‍यक्‍ति आइनाइजिंग रेडिएशन के संपर्क में आता है, तब ब्रेन ट्यूमर का जोखिम बढ़ जाता है। कैंसर के इलाज के लिए इस्‍तेमाल होने वाली रेडिएशन थेरेपी में आइनाइजिंग रेडिएशन होती है। एटोमिक बॉम्‍ब से निकलने वाली रेडिएशनों से भी ऐसा होता है।
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ग्‍लियोमा के कुछ लक्षण, कई बीमारियों और स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से मिलते-जुलते हैं, इसलिए अगर लक्षण ठीक नहीं हो रहे हैं तो आपको डॉक्‍टर को दिखाना चाहिए। यदि न्‍यूरोलॉजिस्‍ट को ब्रेन कैंसर दिखता है, तो वो निम्‍न सलाह दे सकते हैं।

  • न्‍यूरोलॉजिकल एग्‍जाम : डॉक्‍टर नजर, को-ऑर्डिनेशन, ताकत, सुननु की क्षमता, संतुलन और रिफ्लेक्‍सेस चेक कर सकते हैं। इनमें से किसी एक या ज्‍यादा में विसंगति होने पर, डॉक्‍टर को पता चल सकता है कि मस्तिष्‍क के किस हिस्‍से में ट्यूमर है।
  • इमेजिंग टेस्‍ट : अक्‍सर ब्रेन ट्यूमर का पता लगाने के लिए एमआरआई किया जाता है। कई बार मस्तिष्‍क के ऊतक में फर्क देखने के लिए एमआरआई स्‍टडी के दौरान डाई इंजेक्‍ट की जाती हैं। इससे डॉक्‍टर को ट्यूमर के बारे में काफी कुछ पता चलता है और इसके बाद वो सही ट्रीटमेंट प्‍लान बनाते हैं। एमआरआई के अलावा पोसिट्रोन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) और सीटी स्‍कैन भी होता है।
  • बायोप्‍सी : ब्रेन ट्यूमर का पता लगाने के लिए बायोप्‍सी भी की जाती है। बायोप्‍सी में जो पता चलता है, उसी के आधार पर स्‍पेशलिस्‍ट जानते हैं कि ब्रेन ट्यूमर किस स्‍टेज पर है और कितना बढ़ चुका है।

हर मरीज के लिए ट्रीटमेंट प्‍लान अलग होता है जो कि उसकी उम्र और ट्यूमर के प्रकार, स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति और उसके चयन पर निर्भर करता है। ग्‍लियोमा के इलाज के कुछ विकल्‍प हैं :

  • सर्जरी : ट्यूमर और आसपास के ऊतकों के बीच में आसानी से फर्क पता चल जाता है इसलिए सर्जरी से इसे आसानी से निकाला जा सकता है। हालांकि, अगर ग्‍लियोमा मस्तिष्‍क के संवेदनश्‍रील हिस्‍सों के आसपास है, तो सर्जरी करना जोखिमभरा हो सकता है। इसलिए ट्यूमर को कम करने के लिए ग्‍लियोमा के कुछ हिस्‍से को निकाला जाता है और बाकी को कीमोथेरेपी और रेडिएशन से ठीक किया जाता है। कुछ हिस्‍सा निकालने से भी लक्षण कम होने में मदद मिल सकती है।
  • रेडिऐशन थेरेपी : इसमें हाई एनर्जी बीम का इस्‍तेमाल होता है। आमतौर पर एक्‍स-रे वाले एनर्जी बीम का उपयोग किया जाता है लेकिन अन्‍य प्रकार के एनर्जी बीम भी इस्‍तेमाल हो सकते हैं।
    कई प्रकार की बीम रेडिएशन होती हैं जिनका अब ग्‍लियोमा के इलाज के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है। ग्‍लियोमा के प्रकार, इसके साइज और यह कितना बढ़ चुका है, इस पर ट्रीटमेंट निर्भर करता है। स्‍पेशलिस्‍ट को इस बात का ध्‍यान रखना होता है कि रेडिएशन कुछ समय के लिए ही दी जाए वरना साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि सिरदर्द, मतली और सिर में खुजली हो सकती है। बार-बार ट्यूमर होने के साथ संवेदनशील हिस्‍सों में ट्यूमर होने के लिए रेडिएशन को सबसे सही ट्रीटमेंट माना जाता है।

स्‍टेरिओटैक्टिक रेडियोथेरेपी क्‍या है?

छोटे हिस्‍से में कैंसर की कोशिकाओं को मारने के लिए कैलकुलेट की गई मात्रा में ही तेज रेडिएशन दी जाती है। जब कई कारणों जैसे कि स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति, किस हिस्‍से में है आदि की वजह से सर्जरी नहीं की जा सके, तब डॉक्‍टर यह तकनीक अपनाते हैं।

स्‍टेरिओटैक्टिक रेडियोथेरेपी दिक्‍कत का पता लगाने की बहुत ही ज्‍यादा सटीक प्रक्रिया है। इसमें कहीं कट लगाना नहीं पड़ता है।

  • कीमोथेरेपी : कैंसरकारी कोशिकाओं या ट्यूमर को मारने के लिए दवाओं के इस्‍तेमाल को कीमोथेरेपी कहा जाता है। इस तरह की थेरेपी में नस में सुई लगाकर या गोली के रूप में दवाएं दी जाती हैं। ज्‍यादातर मामलों में रेडिएशन थेरेपी के साथ कीमोथेरेपी की जाती है। ग्‍लियोमा के लिए टेमोजोलोमाइड गोली के रूप में दी जाती है। कीमोथेरेपी के कुछ आम दुष्‍प्रभाव हैं जैसे कि बाल झड़ना, थकान, बुखार और कमजोरी
  • दवा : कीमो और रेडिएशन थेरेपी से होने वाले साइड इफेक्‍ट्स को कंट्रोल करने के लिए डॉक्‍टर कुछ दवाएं लिखते हैं। कुछ स्‍टेरॉइड्स भी लिख सकते हैं जो कि सूजन और जलन को कम करने में मदद करेगी। इससे आगे मस्तिष्‍क के प्रभावित हिस्‍से में दबाव कम होता है। ग्‍लियोमा का आम लक्षण दौरे पड़ना है। इस लक्षण को कंट्रोल करने के लिए दवा लिखी जाती है।

मेडिकल ट्रीटमेंट से ये लंबी चलने वाली बीमारी खत्‍म नहीं होती है। जब सर्जरी या इलाज के दौरान शारीरिक और भावनात्‍मक ट्रामा से गुजरना पड़ता है, जब पहले की तरह नॉर्मल लाइफ में वापिस आने में समय लग सकता है। मस्तिष्‍क में ग्‍लियोमा होने पर निम्‍न स्थितियों में व्‍यक्‍ति को रिहैबिलिटेशन की जरूरत पड़ सकती है।

  • यदि बोलने में दिक्‍कत हो रही है तो स्पीच थेरेपी दी जाती है।
  • मांसपेशियों की ताकत कम हो सकती है। इसके लिए फिजियोथेरेपी दी जाती है।
  • ऑक्‍यूपेशनल थेरेपी में रोजमर्रा के कामों में मदद कर के मरीज को ठीक करने की कोशिश की जाती है।
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ज्‍यादातर प्रमुख ब्रेन ट्यूमरों की तरह ग्‍लियोमा के कारण का पता नहीं चल पाया है। हालांकि, मेडिकल साइंस दिन-ब-दिन तरक्‍की कर रही है और शोधकर्ता इलाज की नई तकनीकों और ड्रग टायल लेकर आ रहे हैं।

यदि आपको यहां बताए गए लक्षण दिख रहे हैं, तो न्‍यूरोलॉजिस्‍ट को दिखाएं। कैंसर चाहे कहीं भी हो, सही समय पर इसका पता चल जाए तो इलाज में काफी मदद मिलती है।

संदर्भ

  1. PENFIELD W. THE CLASSIFICATION OF GLIOMAS AND NEUROGLIA CELL TYPES Arch NeurPsych. 1931;26(4):745–753
  2. Tews DS Cell death and oxidative stress in gliomas Neuropathology and Applied Neurobiology, 01 Aug 1999, 25(4):272-284
  3. Kwan H Cho, Walter A Hall, Bruce J Gerbi, Patrick D Higgins, Warren A McGuire, H.Brent Clark Single dose versus fractionated stereotactic radiotherapy for recurrent high-grade gliomas International Journal of Radiation Oncology,Biology,Physics Volume 45, Issue 5, 1 December 1999, Pages 1133-1141
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