मुंह से बदबू आना एक सामान्‍य समस्‍या है। मुंह से संबंधित या अन्‍य कई तरह की समस्‍याओं की वजह से मुंह से बदबू आने की शिकायत हो सकती है। हालांकि, आंकड़ों के अनुसार मुख संबंधित रोग की वजह से 90 प्रतिशत लोग मुंह से दुर्गंध आने की शिकायत करते हैं।

आयुर्वे‍दिक ग्रंथों में मुखस्‍वास्‍थ्‍य या मौखिक स्वच्छता को लेकर कोई विशेष अध्‍याय नहीं है। आयुर्वेद में मुंह के स्‍वास्‍थ्‍य के महत्‍व के अंतर्गत अपनी दिनचर्या में दांतों की सफाई जैसे कि प्रतिसारण (दांतों और मसूड़ों की मालिश) और दंतधावन (दांतों को ब्रश करना) की आदत अपनाने की सलाह दी गई है।

(और पढ़ें – ब्रश करने का सही तरीका)

मुंह से बदबू आने की समस्‍या के इलाज के तौर पर आयुर्वेद में कवल और गण्डूष चिकित्‍सा की सलाह दी जाती है। इसके लिए दालचीनी, इलायची और लौंग जैसी जड़ी बूटियों से दंत स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार तथा मुंह की बदबू का इलाज किया जाता है। आयुर्वेदिक मिश्रण जैसे कि त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) चूर्ण का इस्‍तेमाल मुंह की बदबू कम करने और मुंह से संबंधित समस्‍याओं (जैसे कि मसूड़ों से खून आना) के इलाज में किया जाता है। मसूड़ों से खून आने की वजह से भी सांसों से दुर्गंध आने लगती है। रोज गरारे, मंजन और दांतों की सफाई करने से मुंह की बदबू को दूर किया जा सकता है। 

(और पढ़ें – पायरिया के घरेलू उपाय)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मुंह की बदबू - Ayurveda ke anusar Muh me Badbu
  2. मुंह की बदबू का आयुर्वेदिक उपचार - Muh me badboo ka ayurvedic ilaj
  3. मुंह से बदबू आने की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Muh me Badbu ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार मुंह से बदबू आने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Muh me Badbu door karne ke liye kya kare kya na kare
  5. मुंह की बदबू दूर करने में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Muh me Badbu ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. मुंह की बदबू की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Muh me Badbu ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. मुंह की बदबू की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Muh me Badbu ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
मुंह की बदबू की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में मुंह की बदबू को मुखदुर्गंधी कहा गया है। मुंह से संबंधित या अन्‍य कई कारणों जैसे कि बैक्‍टीरियल संक्रमण, मसूड़ों के किसी रोग – जिंजीवाइटिस (मसूड़ों की सूजन), मुंह की सफाई न करने, जीईआरडी, टॉन्सिलाइटिस, मुंह में सूखापन, मुंह या नाक का कैंसर और नाक, फेफड़ों या गले में संक्रमण की वजह से मुंह से बदबू आने लगती है। डायबिटीज और ऑटोइम्‍यून रोग (प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर में मौजूद ऊतकों या पदार्थों को रोगजनक समझ बैठती है) जैसे कि स्जोग्रेन सिंड्रोम (प्रतिरक्षा प्रणाली बैक्टीरिया या वायरस पर हमला करने की बजाय स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगती है) की वजह से भी मुंह से बदबू आ सकती है।

डायबिटीज से बचने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट का उपयोग करे।और अपने जीवन को स्वस्थ बनाये।

आयुर्वेद के अनुसार शरीर की प्रमुख प्रक्रियाएं जैसे कि पाचन की शुरुआत मुंह से ही होती है इसलिए मुंह की नियमित सफाई करना बहुत जरूरी है। ओरल कैविटी में जिह्वा (जीभ), कंठ (गले), दंत (दांतों), ओष्‍ठ (होंठ), सरवसर (मुंह की अंदरूनी श्‍लेष्‍मा) और दंतमूल (मसूड़े) शामिल हैं।

(और पढ़ें – दांत साफ करने का सही तरीका)

आयुर्वेदिक ग्रंथों में मुंह से आ रही बदबू को कम, मुखरोग (मुंह से संबंधित रोग) और मुख स्‍वास्‍थ्‍य के लिए विभिन्‍न चिकित्‍साओं जैसे कि गण्डूष और कवल (तेल को मुंह में डालना या गरारे करना), प्रतिसारण, जिह्वा निर्लेखन (जीभ की सफाई) और दंतधावन को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। 

  • दंतपवन/दातुन 
    • मुंह से संबंधित किसी भी बीमारी से बचने और मुंह को साफ रखने के लिए रोज सुबह एंव खाना खाने के बाद दातुन करने की सलाह दी जाती है। मुलायम, पत्तेरहित पौधे के तने से दातुन कर सकते हैं।
    • इस प्रक्रिया के लिए तने का एक सिर मसलकर चबाना होता है और फिर उससे दांतों पर मंजन (ब्रश) करना होता है। मंजन के बाद जीभ की सफाई के लिए तने के दूसरे हिस्‍से का प्रयोग कर सकते हैं। (और पढ़ें – जीभ में सूजन के लक्षण)
    • आचार्य सुश्रुत के अनुसार दतंपवन के लिए इस्‍तेमाल होने वाली दातुन में कड़वे, तीखे और कसैले गुण होने चाहिए। दातुन की मोटाई आपकी छोटी ऊंगली जितनी ही होनी चाहिए और दातुन का तना लगभग 9 ईंच लंबा होना चाहिए।
    • दंतपवन और दातुन के लिए नीम, यष्टिमधु (मुलेठी), निर्गुण्डी, अर्जुन तथा करंज जैसी जड़ी बूटियों के ताजे तने के इस्‍तेमाल की सलाह दी जाती है।
    • दातुन के लिए गुग्‍गुल, पिप्‍पली और विभीतकी की टहनियों का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है।
    • इस तरह दांतों एवं मुंह में जमे मैल (टार्टर) और प्‍लाक से छुटकारा मिलता है और जिंजीवाइटिस, कैविटी एवं मसूड़ों से संबंधित रोगों के खतरे को कम कर मुंह की बदबू का इलाज एवं इससे बचाव किया जाता है। (और पढ़ें – दांत पर मैल जमने का कारण)
    • मंजन (ब्रशिंग) से मुंह की बदबू से छुटकारा पाने के साथ-साथ जीभ और दांतों से मैल भी साफ होता है। इस तरह खाने के प्रति रूचि भी बढ़ती है।
       
  • जिह्वा निरलेखन
    • जिह्वा निरलेखन में दंतपवन के बाद जीभ की सफाई की जाती है।
    • इस प्रक्रिया में जीभ की सफाई के लिए धातु जैसे कि तांबा, सोना या चांदी या औषधीय पेड़ की शाखा से बनी जिह्वा निरलेखन का प्रयोग बेहतर रहता है।
    • इस कर्म से अग्नि (पाचन अग्‍नि) में सुधार आता है और पाचन तंत्र उत्तेजित होता है।
    • ये मुंह से बैक्‍टीरिया को साफ करता है जोकि मुंह से बदबू आने का एक बड़ा कारण है।
    • जिह्वा निरलेखन मुंह के स्‍वाद को बढ़ाता है और जीभ के रिफ्लेक्‍स बिंदुओं को उत्तेजित करता है एवं पाचक एंजाइम्‍स के स्राव को बढ़ाता है। ये पाचन में सुधार लाता है जिससे मुंह की बदबू से छुटकारा मिलता है। (और पढ़ें – मुंह का स्वाद कैसे ठीक करे)
       
  • गण्डूष और कवल
    • आयुर्वेद में मुंह की सफाई के लिए गण्डूष और कवल को श्रेष्‍ठ माना गया है।
    • गण्डूष प्रक्रिया में औषधीय तरल से मुंह को पूरी तरह से भर दिया जाता है। इसके बाद व्‍यक्‍ति को नेत्रों (आंखों) या नास (नाक) से स्राव होने तक तरल को मुंह में ही रखने के लिए कहा जाता है।
    • कवल प्रक्रिया में औषधीय पेस्‍ट या तरल की विशेष खुराक खाने को दी जाती है। व्‍यक्‍ति को इस दवा को निश्चित समय तक मुंह में घुमाना होता है और फिर इसे बाहर थूक देना होता है।
    • गुनगुने पानी, औषधीय घी (क्लैरिफाइड मक्‍खन), शहद, तेल या दूध का इस्‍तेमाल गण्डूष और कवल के लिए किया जाता है।
    • पथ्यस्यत (मैल के जमने की वजह से आई बदबू), उपकुश (मसूड़े फूलना) और शीतदा (मसूडों से खून आना) के इलाज में मुस्‍ता, अर्जुन और हरीतकी, औषधीय घी का इस्‍तेमाल कवल के रूप में किया जाता है।
    • अगर रोज़ गण्डूष किया जाए तो इससे सूजन, मुखवेरस्‍य (मुंह में गंदा स्‍वाद), जद्य (चमकहीन) और दुर्गंध (बदबू) भी कम होती है। तेल से गण्डूष करने पर मुंह में सूखापन, दंतशूल (दांतों में दर्द), उष्‍ठस्‍फुतन (फटे होंठ), दंत हर्ष (संवेदनशीलता) और दंतक्षय (दांतों का टूटना) की समस्‍या नहीं होती है। (और पढ़ें – फटे होंठ के घरेलू उपाय)
    • गण्डूष से तुष्टि (ताजगी का अहसास होना), इंद्रिय प्रसाद (इंद्रियों के स्‍वस्‍थ होने का अहसास) और वक्‍त्रलघुत (मुंह में हल्‍कापन) में सुधार आता है। 
       
  • प्रतिसारण
    • इस प्रक्रिया में पाउडर या पेस्‍ट के साथ तेल या शहद से दांतों और मसूड़ों की हल्‍की मालिश की जाती है। (और पढ़ें – मालिश करने की विधि)
    • इससे दांतों में जमा मैल और प्‍लाक साफ होता है एवं दांतों को स्‍वस्‍थ बनाए रखने में मदद मिलती है।
    • त्रिफला, त्रिकुट (तीन कषाय- पिप्‍पली, शुंथि (सोंठ), और मारीच (काली मिर्च) का मिश्रण) और त्रिजात (तीन मसाले) का इस्‍तेमाल प्रतिसारण चिकित्‍सा के लिए किया जाता है।

मुंह में बदबू के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • दालचीनी
    • त्‍वाक या दालचीनी संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाले) और सुगंधक जड़ी बूटी है जिसका स्‍वाद तीखा, गर्म और मीठा है।
    • दालचीनी अस्थि मज्जा, प्‍लाज्‍मा और नसों के ऊतकों पर कार्य करती है।
    • इस पेड़ी की छाल में फंगलरोधी और जीवाणुरोधी तत्‍व होते हैं जो इसे मुंह की बदबू के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
    • इसमें वायुनाशक (पेट फूलने से राहत देने वाले), शांतिदायक (सूजन से राहत देने वाले), पाचक, उत्तेजक, रोगाणुरोधक और कफ निस्‍सारक गुण मौजूद हैं। ये सब गुण मिलकर मुंह के बदबू के प्रमुख कारण जठरांत्र संबंधित समस्‍याओं को ठीक करने में मदद करते हैं। (और पढ़ें – पाचन क्रिया कैसे सुधारे)
    • मुंह की बदबू के अलावा दालचीनी अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि जी मितली, दांतों में दर्द, मांसपेशियों में खिंचाव, उल्‍टी, मासिक धर्म में दर्द और कमजोर पाचन से भी राहत दिलाती है।
    • आप दालचीनी के अर्क या काढ़े से गरारे कर सकते हैं या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार भी इसे ले सकते हैं।
       
  • इलायची
    • एला या इलायची पाचन में सुधार लाने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक है। जठरांत्र प्रणाली के अलावा इलायची तंत्रिका, श्‍वसन और परिसंचरण तंत्र पर भी कार्य करती है।
    • इलायची तीखी, गर्म और स्‍वाद में मीठी होती है।
    • ये डकार, जी मितली, दस्‍त और पेट से जुड़ी परेशानियों को कम करती है। इस प्रकार ये जीईआरडी के कारण आ रही मुंह की बदबू के इलाज में असरकारी है। (और पढ़ें – खट्टी डकार का इलाज)
    • आप इलायची के अर्क या काढ़े से गरारे कर सकते हैं। दूध के काढ़े या पाउडर में मिलाकर इसे पी सकते हैं या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • नीम
    • निम्‍बा या नीम का स्‍वाद कड़वा होता है एवं इसमें संकुचक और शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं।
    • ये श्‍वसन, परिसंचरण, पाचक और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है।
    • इसमें वायरसरोधी, दर्द निवारक, कृमिनाशक (कीड़ों को मारने वाले) और रक्‍तशोधक (खून साफ) गुण होते हैं जोकि इसे पीलिया, मोटापे, सिफलिस, सूजन और मलेरिया जैसे कई रोगों के इलाज में उपयोगी बनाती है। (और पढ़ें – खून को साफ करने वाले आहार)
    • नीम एक प्राकृतिक एंटीमाइक्रोबियल है। दातुन के रूप में नीम का इस्‍तेमाल करने पर मुंह को साफ रखने में मदद मिलती है, इस प्रकार सांस की दुर्गंध की समस्‍या से राहत मिलती है।
    • आप नीम को अर्क, औषधीय तेल या घी, काढ़े, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • हल्‍दी
    • हरिद्रा या हल्‍दी में उत्तेजक, कृमिनाशक, एंटीबायोटिक, सुगंधक और कृमिनाशक गुण होते हैं। ये मूत्र, परिसंचरण और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये पीलिया, इंफ्लामेट्री बाउल सिंड्रोम, डायबिटीज, अल्‍सरेटिव कोलाइटिस, सोरायसिस और आंखों में दर्द जैसी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को ठीक करने में मदद करती है। (और पढ़ें – पीलिया का आयुर्वेदिक उपचार)
    • हल्‍दी एक उत्तम औषधि है जिसका इस्‍तेमाल मोच, घाव और चोट के इलाज में किया जाता है।
    • प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और जीवाणुरोधी जड़ी बूटी होने के कारण हल्‍दी दांतों की समस्‍याओं जैसे कि जिंजीवाइटिस, दांतों में कीड़ें, सांस की दुर्गंध और लिचेन प्‍लैनस (चकत्ते) के इलाज में असरकारी है।
    • हल्‍दी से मसूड़ों की मालिश करने पर दांतों में दर्द और सूजन कम होती है।
       
  • तिल
    • तिल में ऊर्जादायक और पोषक गुण होते हैं। ये प्रजनन, श्‍वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये बवासीर, डिस्मेनोरिया (मासिक धर्म में दर्द), कब्‍ज, जलन, गोनोरिया, पेचिश, आंखों में दिक्‍कत और एमेनोरिया (माहवारी न आना) के इलाज में भी उपयोगी है।
    • तिल के तेल से गण्डूष पर फटे होंठों, मुंह की बदबू, दांतों में कीड़े और गला सूखने से राहत मिलती है।
    • आप तिल को काढ़े, औषधीय तेल, पाउडर, पेस्‍ट के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

मुंह की बदबू के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • त्रिफला चूर्ण
    • त्रिफला चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसे आमलकी, हरीतकी और विभीतकी से तैयार किया गया है। ये सभी जड़ी बूटियां विटामिन सी, लिनोलिक एसिड, फ्रुक्टोज और स्‍टीयरिक एसिड से युक्‍त हैं। इस वजह से मुंह की बदबू के इलाज में त्रिफला चूर्ण एक बेहतरीन औषधि है।
    • इस चूर्ण में मौजूद विटामिन सी एंटीजन के कारण हुए रोग के खिलाफ एंटीबॉडी (शरीर में प्रवेश करने वाले किसी जीवाणु या विष के प्रभाव को रोकने वाले) बनाने के लिए उत्तेजित कर प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार लाने में मदद करता है। (और पढ़ें – रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ)
    • इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्‍सीडेंट और रोगाणुरोधक गुण होते हैं जो इसे दांतों से संबंधित कई प्रकार की समस्‍याओं जैसे कि मुंह में छाले, दांतों में कीड़े, मसूड़ों से खून आना और मुंह की बदबू के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें – दांत खराब होने के कारण)
       
  • कुमार भरण रस
    • कुमार भरण रस को अदरक, वच, अश्‍वगंधा, यष्टिमधु, पिप्‍पली, आमलकी और अन्‍य हर्बल सामग्रियों के साथ रजत, प्रवाल और सुवर्ण (सोना) की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) से तैयार किया गया है।
    • इसके बाद उपरोक्‍त सामग्रियों को ब्राह्मी, तुलसी या गुडूची के रस में मिलाकर बनाया जाता है।
    • लंबे समय से टॉन्सिलाइटिस की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर कुमार भरण रस असरकारी है। इस रोग की वजह से मुंह से बदबू आ सकती है।
       
  • नागरादि क्‍वाथ
    • नागरादि क्‍वाथ एक हर्बल मिश्रण है जिसे मुस्‍ता, त्रिफला और शुंथि से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि प्रमुख रूप से जिंजीवाइटिस, दांतों से संबंधित रोगों में मुंह की बदबू के इलाज में इस्‍तेमाल की जाती है।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

(और पढ़ें – मुंह के छाले का होम्योपैथिक इलाज)

क्‍या करें

  • मुंह की सफाई के लिए नियमित दंतधवन, जिह्वा निर्लेखन, कवल और गण्डूष करें और मुंह से गंदगी को साफ करें।

क्‍या न करें

  • धूम्रपान की वजह से मसूड़ों से संबंधित रोग होने का खतरा बढ़ जाता है और इसकी वजह से मुंह में सूखापन भी हो सकता है इसलिए धूम्रपान करने से बचें। (और पढ़ें – धूम्रपान छोड़ने के उपाय)

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में ऐसे 20 प्रतिभागियों को शामिल किया गया जिन्‍हें दांतों में संवेदनशीलता, मुंह में बदबू, मसूड़ों से खून आना और दांत हिलने की समस्‍या थी। इन्‍हें 1 महीने तक माउथवॉश के लिए त्रिफला के काढे के साथ दिन में तीन बार त्रिफला चूर्ण दिया गया। सभी प्रतिभागियों ने लक्षणों में सुधार की बात कही। इस अध्‍ययन से ये बात साबित हो गई कि आयुर्वेदिक मिश्रण से मुंह के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार लाया जा सकता है।

(और पढ़ें – दांत मजबूत करने का तरीका)

कुमार भरण रस के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था जिसमें लंबे समय से टॉन्सिलाइटिस की बीमारी से ग्रस्‍त बच्‍चों पर इस औषधि के प्रभाव को देखा गया। इस अध्‍ययन के दौरान लंबे समय से टॉन्सिलाइटिस की बीमारी से ग्रस्‍त 16 बच्‍चों को 30 दिनों तक रोज़ दिन में एक बार कुमार भरण रस की 500 मि.ग्राम मात्रा दी गई। लगभग 50 प्रतिशत बच्‍चों ने मुंह की बदबू की समस्‍या से राहत मिलने की बात कही।

(और पढ़ें – टॉन्सिलाइटिस का घरेलू उपचार)

जनरल ऑफ क्‍लीनिकल पेरिटोडोंटोलोजी में प्रकाशित एक अध्‍ययन के अनुसार जीभ की सफाई करने से जीभ पर जमी परत हटती है और बैक्‍टीरिया कम होता है जिससे स्‍वाद महसूस करने की क्षमता में सुधार आता है। जीभ पर जमी परत के घटने पर बैक्‍ट‍ीरिया बनाने वाला पदार्थ कम होने लगता है जिससे अपने आप ही बैक्‍टीरिया का विकास रूक जाता है।  

  • हृदय रोगों, चेहरे पर लकवे, मुंह में अल्‍सर और कान, नाक, गले एवं आंखों से संबंधित विकार के उपचार के रूप दंत पवन का वर्णन नहीं किया गया है। इन रोगों में दांतों की सफाई के लिए जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल मुलायम एवं बारीक पाउडर के रूप में किया जाता है।
  • अत्‍यधिक पित्त और ब्‍लीडिंग संबंधित किसी विकार से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को दालचीनी का सेवन नहीं करना चाहिए। (और पढ़ें – ब्लीडिंग रोकने के लिए क्या करना चाहिए)
  • इलायची की वजह से अल्‍सर हो सकता है।
  • कमजोर शरीर वाले व्‍यक्‍ति को नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए। (और पढ़ें – कमजोरी कैसे दूर करे)
  • गर्भवती महिलाओं को तिल की अधिक खुराक नहीं लेनी चाहिए क्‍योंकि इसकी वजह से गर्भपात हो सकता है। मोटापे और बढ़े हुए पित्त दोष से परेशान व्‍यक्‍ति को तिल के सेवन से बचना चाहिए।

(और पढ़ें – मुंह से बदबू आने पर क्या करें)

मुंह से बदबू आना एक ऐसी समस्‍या है जिसकी वजह से काफी शर्म महसूस होती है। ये मुंह से संबंधित या किसी अन्‍य बीमारी का लक्षण भी हो सकता है। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों से दांतों को मजबूत कर, दांतों में जमे बैक्‍टीरिया को साफ, मसूड़ों की सेहत में सुधार और मुंह की सेहत को बेहतर कर मुंह से बदबू आने की समस्‍या को कम किया जाता है।

(और पढ़ें – मुंह की बदबू का घरेलू उपाय)

आयुर्वेदिक उपचार लेने के साथ रोज़ ब्रश, फ्लॉसिंग, जीभ की सफाई और दांतों की पूरी तरह से सफाई करने वाली प्रक्रियाओं की मदद से मुंह को स्‍वस्‍थ्‍य बनाने एवं ताजी सांस पाने में मदद मिलती है। ये दांतों से संबंधित रोगों से बचाने और दांतों को साफ बनाए रखने में भी मदद करते हैं। 

(और पढ़ें – मुंह के छाले दूर करने के घरेलू उपाय)

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Gunjan Garg. et al. Ayurvedic Approach in Oral Health and Hygiene: A Review. International Journal of Ayurveda and Pharma Research. Vol 4. Issue 5.
  2. Krithi Amai. et al. Critical Analysis of Role of Kavala and Gandusha in the Management of Halitosis. Jour. of Ayurveda & Holistic Medicine . Volume-IV, Issue-II.
  3. Sanae Akkaoui , Oum keltoum Ennibi. Use of traditional plants in management of halitosis in a Moroccan population. Journal of Intercultural Ethnopharmacology. Vol 6.
  4. Dr. Shibam Chatterjee. et al. Triphala - An Indigenous Ayurvedic Mouthwash As An Anti-Inflammatory Agent - A Clinical Study. J Nepal Soc Perio Oral Implantol. 2017;1(2):60-4. Vol. 1.
  5. Cleveland Clinic. [Internet]. Euclid Avenue, Cleveland, Ohio, United States; Bad Breath (Halitosis): Possible Causes.
  6. Swami Sadashiva Tirtha. Ayurveda encyclopedia. Sat Yuga Press, 2007. 657 pages.
  7. Nilesh Arjun Torwane. et al. Role of Ayurveda in management of oral health. Pharmacogn Rev. 2014 Jan-Jun; 8(15): 16–21. PMID: 24600192.
  8. Dr.Lahari Buggapati. Herbs in Dentistry. International Journal of Pharmaceutical Science Invention. Volume 5. Issue 6. October 2016.
  9. Asokan S. Oil pulling therapy. Indian J Dent Res [serial online] 2008 [cited 2019 Jul 12];19:169.
  10. Shailaja Uppinakudru. et al. Effect of Kumarabharana rasa on chronic tonsillitis in children: A pilot clinical study. International Journal of Research in Ayurveda and Pharmacy 4(2):153-157
  11. Rajshree Unadkat. et al. Clinical efficacy of "Bhadra Mustadi Paste" and "Nagaradi Kwatha Gandusha" in Shitada (Gingivitis). An International Quarterly Journal of Research in Ayurveda.
  12. Quirynen M. et al. Impact of tongue cleansers on microbial load and taste.. J Clin Periodontol. 2004 Jul;31(7):506-10. PMID: 15191584
ऐप पर पढ़ें