एक तरफ जहां एंटीबायोटिक्स को उन जादुई दवाओं के रूप में जाना जाता है जो हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें नुकसान पहुंचाने वाले रोगाणुओं से लड़ने में हमारी मदद करती हैं, वहीं दूसरी तरफ स्वीडेन के कैरोलिन्स्का इंस्टिट्यूट और अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक स्टडी की मानें तो एंटीबायोटिक दवाओं का सिर्फ एक कोर्स आंतों में सूजन (अल्सरेटिव कोलाइटिस) और क्रोहन्स डिजीज जैसे इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) के खतरे को दोगुना तक बढ़ा सकता है।
इस नई स्टडी के मुताबिक, जीवनभर में आपने कितनी बार एंटीबायोटिक्स का सेवन किया है उसके आधार पर आपको इन्फ्लेमेटरी बीमारियां होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसका कारण ये है कि- संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया के साथ-साथ एंटीबायोटिक्स, विशेषकर ब्रॉड-बेस्ड एंटीबायोटिक्स, हमारे शरीर में और उस पर रहने वाले सहायक और फायदेमंद बैक्टीरिया को भी नुकसान पहुंचाती है। ब्रॉड-बेस्ड एंटीबायोटिक्स वे हैं जो विभिन्न प्रकार के रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ सकते हैं और डॉक्टरों द्वारा सबसे ज्यादा प्रिस्क्राइब भी किए जाते हैं।
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हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने आईबीडी और एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के बीच लिंक होने की बात कही है। लेकिन कैरोलिन्स्का इंस्टिट्यूट और हार्वर्ड की यह स्टडी जिसमें करीब 24 हजार नए आईबीडी मरीजों और करीब 1 लाख 45 हजार कंट्रोल्ड प्रतिभागियों को शामिल किया गया- अपने तरह की पहली स्टडी है जिसमें आईबीडी और एंटीबायोटिक इस्तेमाल के बीच संबंध को इतने बड़े स्तर पर दिखाया गया है। इस स्टडी के नतीजों को द लांसेट गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी नाम की पत्रिका में 17 अगस्त 2020 को प्रकाशित किया गया।