भगन्दर फिस्टुला को फिस्टुला-इन-एनो के रूप में भी जाना जाता है। यह गुदा वाले हिस्से से जुड़ी एक असामान्य दिक्कत है। यह एनल कैनल (गुदा नलिका) और गुदा के पास की त्वचा के बीच विकसित होता है। आमतौर पर यह स्थिति गुदा संक्रमण के कारण उत्पन्न होती है, जिसमें गुदा वाले हिस्से में मवाद (फोड़ा) का संचय होता है। यह मवाद नलिका के माध्यम से बाहर निकलता रहता है।

गुदा के अंदर कई ग्रंथियां मौजूद हैं। इन ग्रंथियों में से एक के ब्लॉक (अवरुद्ध) होने पर फोड़े की समस्या हो सकती है। लगभग 50 प्रतिशत भगन्दर की समस्या इन फोड़े-फुन्सियों के वजह से होती है। दुर्लभ मामलों में फिस्टुला क्रोन्स डिसीज, टीबी (क्षय रोग, तपेदिक), आघात (चोट), यौन संचारित रोगों या कैंसर जैसी अन्य प्रक्रियाओं के कारण हो सकता है।

एक पैथोलॉजिकल अध्ययन के अनुसार, आमतौर पर भगन्दर (फिस्टुला) का खतरा 31 से 60 वर्ष की महिलाओं में ज्यादा होता है। भगन्दर (फिस्टुला) के लक्षणों में मवाद आना, दर्द, बेचैनी और आसपास की त्वचा में जलन शामिल है। आमतौर पर यह अपने आप ठीक नहीं होता है, इसे ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है।

हालांकि, यह सर्जरी पर्मानेंट इलाज नहीं है, लेकिन यदि अच्छे से अपने खानपान और जीवनशैली का ख्याल रखा जाए तो इसे दोबारा ट्रिगर होने से रोका जा सकता है।

यदि एक बड़ी मात्रा में मांसपेशी को काटने की आवश्यकता होती है, तो ऐसे में एक से ज्यादा सर्जरी की जरूरत हो सकती है।

हाल के वर्षों में, भगन्दर (फिस्टुला) के उपचार के लिए सर्जरी से ज्यादा दवाइयों का सहारा लिया जा रहा है, क्योंकि सर्जरी के जरिए गुदा के आंतरिक हिस्से को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचता है, जिससे गुदा के कार्य में असंयमिता का जोखिम बढ़ जाता है।

होम्योपैथी में भगन्दर (फिस्टुला) के इलाज के लिए गैर-सर्जिकल विकल्प मौजूद है, लेकिन यह दवाइयां प्रमाणित दवाइयों की तरह निर्धारित नहीं की जाती हैं। होम्योपैथिक दवाइयां किसी व्यक्ति में मौजूद बीमारी के लक्षण, शारीरिक और मानसिक व नैदानिक स्थिति के आधार पर दी जाती हैं।

जब इन दवाइयों को किसी योग्य चिकित्सक के निर्दशों के अनुसार सही खुराक में लिया जाता है, तो ये उपाय व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करता है, जिससे उसका शरीर बीमारी से लड़ने के योग्य हो जाता है। इसलिए होम्योपैथी को एनल (गुदा) फिस्टुला के लिए सुरक्षित और प्रभावी तरीका माना जाता है। आमतौर पर एनल फिस्टुला के लिए उपयोग किए जाने वाले कुछ उपचारों में बेर्बेरिस वल्गेरिस, सिलिकिया, कॉस्टिकम और हाइड्रैस्टिस कैनाडेंसिस शामिल हैं।

  1. भगन्दर (फिस्टुला) के लिए होम्योपैथी दवाएं - Homeopathic medicines for anal fistula in Hindi
  2. होम्योपैथी के अनुसार एनल फिस्टुला के लिए आहार और जीवन शैली में बदलाव - Dietary and lifestyle changes for anal fistula as per homeopathy in Hindi
  3. एनल फिस्टुला के लिए होम्योपैथिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं - How effective are homeopathic medicines and treatments for anal fistula in Hindi
  4. साइड इफेक्ट्स और होम्योपैथिक दवा के जोखिम और एनल फिस्टुला के लिए उपचार - Side effects and risks of homeopathic medicine and treatment for anal fistula in Hindi
  5. भगन्दर के होम्योपैथिक उपचार से संबंधित टिप्स - Fistula ki Homeopathic upchar se sambandhit tips

बेर्बेरिस वल्गेरिस
सामान्य नाम :
बरबेरी
लक्षण : बेर्बेरिस वल्गेरिस उन लोगों में अच्छा असर दिखाता है, जो ज्यादा दर्द को सहन नहीं कर पाते हैं। इस उपाय से लाभान्वित होने वाले रोगियों के लक्षणों में अचानक परिवर्तन दिखाई देता है, जैसे रेडिएटिंग पेन या भूख न लगना। रेडिएटिंग पेन का मतलब किसी एक जगह से दर्द शुरू होना, लेकिन तंत्रिका मार्ग के जरिए दूसरे स्थान पर भी दर्द का कारण बनना होता है। यह निम्नलिखित लक्षणों को भी ठीक करने में असरदार है :

  • पेशाब करने में दर्द (और पढ़ें - पेशाब में दर्द और जलन के घरेलू उपाय)
  • बार-बार मल पारित करने की इच्छा
  • गुदा और पेरिनेम (महिलाओं में गुदा और योनी के बीच और पुरुषों में गुदा और अंडकोष के बीच का हिस्सा) में दर्द और जलन
  • पुरुष में अंडकोष में दर्द और जलन महसूस करना
  • गुदा के आसपास की त्वचा का फटना

कॉस्टिकम
सामान्य नाम :
हैनिमैन टिंक्चुरा एक्रिस साइन काली
लक्षण : इस उपाय का उपयोग मुख्य रूप से मांसपेशियों और रेशेदार ऊतकों में दर्द के उपचार के लिए किया जाता है। यह कमजोरी जैसी दिक्कत को भी ठीक करने में प्रभावी है, जिसकी वजह से लकवा की समस्या हो सकती है। निम्न लक्षणों को अनुभव करने वाले मरीजों को इस उपाय से फायदा होता है :

  • सख्त (हार्ड) मल होना, जो चिकना या बलगमयुक्त होता है
  • मलाशय का आंशिक रूप से लकवाग्रस्त होना 
  • मल त्याग करते समय तनाव महसूस होना
  • मलाशय में जलन के साथ दर्द होना
  • पाइल्स (बवासीर)

यह लक्षण ठंडे मौसम में, शुष्क, ठंडी हवा के संपर्क में आने पर खराब हो जाते हैं, जबकि बरसात और नम मौसम में इन लक्षणों में सुधार होता है।

सिलिकिया टेरा
सामान्य नाम :
सिलिका, प्योर फ्लिन्ट (सिलिकिया)
लक्षण : इस उपाय का उपयोग फोड़े, ऐंठन, मिर्गी और पेट फूलने जैसी समस्या के लिए किया जाता है। इसके अलावा निम्नलिखित लक्षणों को भी ठीक करने के लिए सिलिकिया का प्रयोग किया जाता है :

  • सभी प्रकार के फिस्टुला जैसे एनल फिस्टुला, स्तनों में फिस्टुला अल्सर और फोड़ा
  • वे सभी बीमारियां, जिनमें मवाद बनता है
  • मलाशय में चुभन वाला दर्द
  • बवासीर

यह लक्षण ठंड के मौसम में, सुबह के समय, लेटने और प्रभावित हिस्से को धोने में बढ़ जाते हैं। हालांकि, गर्म मौसम और नम मौसम में इन आराम मिलता है।

हाइड्रैस्टिस कैनाडेंसिस
सामान्य नाम :
गोल्डन सील (हाइड्रैस्टिस)
लक्षण : हाइड्रैस्टिस उन बुजुर्ग रोगियों में सबसे अच्छा काम करता है, जो जल्दी थक जाते हैं। यह श्लेष्मा झिल्ली (आंत और अन्य अंगों की अंदरूनी परत) पर काम करता है और बलगम से जुड़ी स्थिति को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस उपाय से लाभान्वित होने वाले रोगियों को निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव होता है जैसे:

कैल्केरिया फॉस्फोरिका
सामान्य नाम :
फॉस्फेट ऑफ लाइम
लक्षण : यह उपाय उन लोगों के लिए निर्धारित है, जिन्हें एनल फिस्टुला के साथ छाती में हल्का दर्द होता है। इस उपाय से लाभान्वित होने वाले मरीजों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं :

  • भूलने की प्रवृत्ति
  • पाचन शक्ति कमजोर होना
  • सुन्न हो जाना व ऐसा महसूस होना जैसे कुछ रेंग रहा हो
  • सख्त मल आना, जिसके चलते ब्लीडिंग हो सकती है
  • गंदी महक के साथ गर्म व अनडाइजेस्ट (खाना सही से न पचना) मल त्यागना

लक्षण ठंड और नम स्थितियों में खराब हो जाते हैं और शुष्क और गर्म मौसम में इनमें सुधार होने लगता है।

नाइट्रिकम एसिडम
सामान्य नाम :
नाइट्रिक एसिड
लक्षण : यह उन रोगियों में सबसे अधिक प्रभावी है जो सांवले रंग के हैं और आधी उम्र पार कर चुके हैं। इस उपाय से निम्नलिखित लक्षणों को ठीक किया जा सकता हैं :

  • चीरा या फटना
  • कब्ज
  • मल पास करते समय दर्द होना
  • चिड़चिड़ापन
  • आंत से ब्लीडिंग
  • मल पास करने के बाद तेज दर्द, जो घंटों तक रह सकता है
  • पसीना, पेशाब और मल से तेज दुर्गंध आना

शाम और रात के समय में यह लक्षण बिगड़ जाते हैं। लेकिन, गाड़ी में सवारी करते समय इन लक्षणों में सुधार होता है।

स्टैफिसैग्रिया
सामान्य नाम :
स्टैवेसैक्रे
लक्षण : स्टैफिसैग्रिया का उपयोग जीनिटो-यूरिनरी स्थितियों (जननांग प्रणाली का विकार) को ठीक करने के लिए किया जाता है। यह ऐसे संवेदनशील व्यक्तियों में अच्छी तरह से काम करता है, जो आसानी से नाराज होते हैं। वे निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं :

  • धंसी हुई आंखें और आंख की बिलनी
  • क्रोध करने पर पेट दर्द संबंधी दिक्कत होना
  • मसूड़ों से खून आना और दांतों का काला पड़ना
  • कब्ज
  • बच्चों के पेट में गैस व सूजन
  • बवासीर

यह लक्षण प्रभावित हिस्से को छूने पर, तंबाकू का उपयोग करने पर और यौन गतिविधियां बढ़ने पर खराब हो जाते हैं। रात में आराम करने और नाश्ता करने के बाद लक्षण बेहतर होते हैं।

थुजा ओकिडेंटलिस
सामान्य नाम :
आर्बर वाइटे
लक्षण : इस उपाय से जिन्हें फायदा होता है उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके पेट में कुछ हलचल हो रही है। थुजा ओकिडेंटलिस त्वचा, जठरांत्र संबंधी मार्ग और जननांग प्रणाली विकार वाले लोगों पर अच्छा असर करता है। यह निम्नलिखित लक्षणों का इलाज करने में भी मदद कर सकता है :

  • आंखों में दर्द
  • गंभीर रूप से सिरदर्द होना, मुख्य रूप से बाईं तरफ
  • स्क्लेरा (आंख का सफेद हिस्सा) की सूजन
  • क्रोनिक डायरिया (लंबे समय से दस्त की समस्या), नाश्ता करने के बाद स्थिति खराब हो जाना
  • भूख में कमी
  • पेट फूलना
  • एनल फिशर
  • मलाशय में तेज दर्द व कब्ज
  • बवासीर
  • गुदा में दर्द और जलन

यह लक्षण रात में, नम हवा में, बिस्तर से निकलने वाली गर्मी से, कॉफी का सेवन करने पर और नाश्ते के बाद खराब हो जाते हैं। इन सभी शिकायतों में तब सुधार होने लगता है जब रोगी बाईं करवट लेकर लेटता है।

कार्बो वेजीटेबिलिस
सामान्य नाम :
वेजीटेबल चारकोल
लक्षण : कार्बो वेजीटेबिलिस ऐसे आलसी व सुस्त लोगों के लिए निर्धारित किया जाता है, जो अधिक वजन वाले या मोटे होते हैं। ये मरीज घर की सभी खिड़कियों को खोलकर रखना पसंद करते हैं। यह निम्नलिखित लक्षणों में कारगर है :

  • सिर में खुजलीबाल गिरना
  • अचानक याददाश्त कम होना
  • सिर भारी लगना
  • पेट में दर्द जो धीरे धीरे छाती की तरफ फैलता है
  • नाक और मसूड़ों से ब्लीडिंग
  • पेट में भोजन सड़ने के कारण पाचन शक्ति धीमी होना
  • टाइट कपड़े पहनने में दिक्कत
  • पेट बढ़ना या फूलना
  • मलाशय में खुजली और जलन
  • गुदा में जलन
  • मल त्यागने के बाद बवासीर वाला दर्द होना

यह लक्षण ठंडे भोजन, कॉफी, मक्खन या शराब का सेवन करने, शाम और रात के समय, नम और गर्म मौसम में बिगड़ जाते हैं। जबकि ठंडे वातावरण में डकार आने के बाद इन लक्षणों में होता है।

काली कार्बोनिकम
सामान्य नाम :
कार्बोनेट ऑफ पोटेशियम (काली कार्बोनिकम)
लक्षण : इस उपाय का उपयोग अवसाद, शरीर के किसी भी हिस्से में ठंड और दर्द के इलाज के लिए किया जाता है। काली कार्बोनिकम निम्नलिखित लक्षणों को ठीक करने में मददगार है :

  • लगातार ऐसा महसूस करना मानो पेट में पानी भरा हो
  • गैगिंग, पेट फूलना और मतली की स्थिति, लेटने पर इन लक्षणों में सुधार होता है
  • ठंडी हवा के संपर्क में आने पर सिरदर्द
  • गुदा के चारों ओर खुजली और फोड़े
  • बवासीर
  • गंभीर रूप से बाल गिरना व सूखे बाल
  • सख्त मल आना, जिसे निकालने में मुश्किल होती है
  • मलाशय और गुदा में जलन

ठंड के मौसम में, सुबह में लगभग 3 बजे और बाईं तरफ लेटने से यह लक्षण बदतर हो जाते हैं, जबकि वे गर्म मौसम में, दिन के समय और चलने-फिरने से बेहतर होते हैं।

पेओनिया ऑफिसिनैलिस
सामान्य नाम :
पिओनी (पेओनिया)
लक्षण : पेओनिया ऑफिसिनैलिस का उपयोग मलाशय के अल्सर होने की स्थिति में किया जाता है। जिन रोगियों को इस उपाय से लाभ होता है वे बहुत घबरा जाते हैं और चलते समय चक्कर का अनुभव करते हैं। इसके अलावा उनमें निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई देते हैं :

  • गुदा में सूजन और खुजली
  • बुरे सपने आना
  • गुदा में जलन के साथ दस्त
  • त्वचा पर फोड़े
  • वैरिकोज वींस (नसों का असामान्य रूप से बढ़ना, ज्यादातर ऐसा पैरों या टांगों में होता है)
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डॉक्टर होम्योपैथिक उपचारों के प्रभावों को बढ़ावा देने के लिए कुछ आहार और जीवन शैली संशोधनों की सलाह देते हैं। इसके अलावा कुछ खाद्य पदार्थों के सेवन से बचने की भी सिफारिश की जाती है, क्योंकि वे होम्योपैथिक दवाओं के चिकित्सीय गुणों को प्रभावित कर सकते हैं।

होम्योपैथिक दवाएं प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती हैं, यह अत्यंत घुलनशील रूप में होती हैं ताकि इनका कोई दुष्प्रभाव न पड़े। जीवन शैली और आहार का इन दवाओं पर असर पड़ता है। इसे रोकने के लिए, होम्योपैथिक चिकित्सक रोगियों की जीवनशैली में निम्नलिखित संशोधन करने की सलाह दे सकते हैं :

क्या करना चाहिए

  • एक्टिव जीवन शैली बनाए रखें और स्वस्थ भोजन करें
  • खुद की व आसपास की साफ सफाई बनाए रखें।
  • रोजाना व्यायाम करें या अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि शामिल करें।

क्या नहीं करना चाहिए

  • औषधीय पदार्थों के साथ कॉफी, ​हर्बल टी और बियर या शराब जैसे पेय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये होम्योपैथिक दवाओं के असर को प्रभावित कर सकती हैं।
  • अत्यधिक गर्म कमरे, गर्म मौसम व ऊनी और टाइट कपड़े न पहनें
  • अत्यधिक सोच विचार से बचना चाहिए

(और पढ़ें - भगन्दर की आयुर्वेदिक दवा और इलाज)

होम्योपैथिक ट्रीटमेंट में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी मानसिक, शारीरिक, नैदानिक और बीमारी के लक्षणों के अनुसार दवाइयां दी जाती हैं। इसी वजह से भले दो व्यक्तियों में एक जैसी बीमारी हो, लेकिन दोनों की दवाइयां अलग-अलग होती हैं। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि गुदा फिस्टुला के इलाज के लिए होम्योपैथिक उपचार का उपयोग किया जा सकता है।

भारत में किए गए अध्ययन से पता चला है कि एनल फिस्टुला में होम्योपैथी सकारात्मक असर करती है। इस अध्ययन में एक ऐसी अविवाहित महिला को शामिल किया गया था, जिसने एनल फिस्टुला से छुटकारा पाने के लिए तीन बार ऑपरेशन कराया, लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी।

महिला को सिलिकोसिस और मिरिस्टिका सेबिफेरा जैसे होम्योपैथिक उपचार दिए गए थे, जो रात में सोने से पहले साप्ताहिक रूप से लिया जाता है। उपचार के चार महीनों के भीतर, रोगी के प्रभावित हिस्से में सुधार पाया गया और उसे मल पारित करने के दौरान दर्द का अनुभव नहीं हुआ।

(और पढ़ें - भगंदर के घरेलू उपाय)

होम्योपैथिक उपचार का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इन दवाओं का या तो न्यूनतम या फिर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। इन उपायों को सभी आयु वर्ग के रोगियों के लिए सुरक्षित माना जाता है और इन्हें प्रमाणित दवाओं के साथ भी लिया जा सकता है। कोई भी उपाय करने से पहले किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श करना सबसे अच्छा है।

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आमतौर पर एनल फिस्टुला फोड़े के कारण विकसित होता है और पारंपरिक रूप से सर्जरी के साथ इलाज किया जाता है। लेकिन होम्योपैथी में इसे बिना सर्जरी के भी ठीक किया जा सकता है। होम्योपैथी उपचार का उद्देश्य रोगी के लक्षणों में केवल सुधार करना नहीं है, बल्कि यह बीमारी को जड़ से खत्म करने पर फोकस करता है।

अध्ययन से पता चलता है कि व्यक्तिगत होम्योपैथिक उपचार एनल फिस्टुला का सुरक्षित और प्रभावी ढंग से इलाज कर सकते हैं, ऐसे में सर्जरी की आवश्यकता नहीं है और दर्द और रोजमर्रा की परेशानी से स्थायी राहत मिल सकती है। उपचार के सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के लिए योग्य चिकित्सक के पास जाएं और उसके दिशानिर्देशों का पालन करें।

संदर्भ

  1. Cleveland Clinic. [Internet]. Cleveland, Ohio. Anal Fistula
  2. Department of Surgery. Anal Fistula. University of California San Francisco; [internet]
  3. William Boericke. Homoeopathic Materia Medica. Kessinger Publishing: Médi-T 1999, Volume 1
  4. British Homeopathic Association. Is homeopathy safe?. London; [Internet]
  5. National Center for Complementary and Integrative Health [Internet]. Bethesda (MD): U.S. Department of Health and Human Services; Homeopathy
  6. Dutta Abhijit. A Case of Anal Fistula Treated by Individualized Homoeopathic Medicine. ijms. 2019; 7: 1-3.
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