भगंदर (फिस्टुला) में मलद्वार या गुदा के आसपास फोड़े हो जाते हैं जिनमें पस पड़ जाती और ये संक्रमित भी होते हैं। भगंदर से पीडित लगभग 90 प्रतिशत लोगों को गुदा के आंतरिक ऊत्तकों में गंभीर संक्रमण के कारण फोड़े-फुंसी हो जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, भगंदर को फिस्टुला भी कहा जाता है और इसके लक्षणों में भग (पेरिनिअम: गुदा और अंडकोष के बीच का भाग), बस्ती (पेल्विस) और गुदा (गुदा नलिका) में गंभीर दर्द शामिल है। पेरिनिअल क्षेत्र में पीडिका या फोड़े-फुंसी होने पर उनमें पस पड़ जाती है और अगर समय पर इनका इलाज ना किया जाए तो येे भगंदर का रूप ले सकते हैं।
भगंदर एक मध्यम रोगमार्ग बीमारी (शरीर के आंतरिक और मध्यम मार्ग में होने वाली बीमारी) है और आयर्वेद में इसे अष्ट महागद (आठ असाध्य रोगों) के अंतर्गत शामिल किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि इस बीमारी का इलाज करना काफी मुश्किल है। भगंदर के इलाज में क्षार सूत्र (बिना चीर-फाड़ किए औषधि युक्त धागे से उपचार) सफल आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है।
आयुर्वेद में भगंदर के इलाज के लिए आरग्वध, हरीतकी (हरड़) और त्रिफला (आंवला, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) जैसी कुछ जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। संपूर्ण सेहत में सुधार और फोड़ों को ठीक करने के लिए जड़ी-बूटियों के साथ विभिन्न हर्बल मिश्रण जैसे आरोग्यवर्धिनी वटी, त्रिफला गुग्गुल और अभ्यारिष्ट का उपयोग भी किया जाता है।
अपने आहार में फल-सब्जियों को शामिल करें और चलने, बाहर खेलने जैसी शारीरिक गतिविधियों को कम कर जीवनशैली में कुछ आवश्यक बदलाव कर भगंदर को नियंत्रित किया जा सकता है।
(और पढ़ें - भगंदर का उपचार)