शरीर में अत्यधिक वसा के जमने पर मोटापा घेर लेता है। मोटापा खासतौर पर पेट, ठोड़ी के नीचे, जांघों और नितंबों पर होता है। मोटापा यानि ओबेसिटी अपने आप में कोई रोग नहीं है लेकिन ये कई खतरनाक रोगों का कारण जरूर है। मोटापे का असर व्यक्ति की आयु पर भी पड़ता है एवं इसके कारण कई अन्य रोग जैसे कि हाइपरटेंशन, डायबिटीज, स्ट्रोक और कुछ प्रकार के कैंसर होने का भी खतरा रहता है। पुरुषों में 30 या इससे ज्यादा और महिलाओं में 28.6 या इससे ज्यादा बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) का स्तर मोटापे का संकेत देता है।
आयुर्वेद में ओबेसिटी या स्थौल्य का समग्र उपचार संभव है। कुछ आयर्वेदिक जड़ी बूटियों जैसे शिलाजीत, हरीतकी और मुस्ता का उपयोग मोटापे के इलाज में किया जाता है। आयुर्वेद में वजन को नियंत्रित एवं शरीर को डिटॉक्सिफाई (सफाई) करने के लिए रुक्ष-उष्ण (सूखे और गर्म गुणों से युक्त जड़ी बूटियां) बस्ती (एनिमा) का प्रयोग किया जाता है। इसमें जड़ी बूटियों को गर्म कर रेचक (दस्त के लिए) के रूप में दी जाती हैं ताकि शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है। अतिरिक्त वसा को घटाने और मांसपेशियों को मजबूती देने में कुछ योगासन और मुद्राएं जैसे कि कोबरा, मत्स्य, ऊंट और गाय की मुद्रा मदद करती हैं।
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- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मोटापा - Ayurveda ke anusar Motapa
- मोटापे का आयुर्वेदिक इलाज - Motape ka ayurvedic upchar
- मोटापे की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Obesity ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार ओबेसिटी में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Motapa kam karne ke liye kya kare kya na kare
- मोटापे की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Obesity ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- ओबेसिटी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Motape ki ayurvedic dawa ke side effects
- मोटापे की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Motape ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मोटापा - Ayurveda ke anusar Motapa
आयुर्वेद में अधिक वजन को स्थौल्य कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष में असंतुलन (वात, पित्त और कफ), मल, अग्नि और स्त्रोतास (परिसयंचरण नाडियां) के कारण स्थौल्य या मोटापा होता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में स्थौल्य को मेदोरोग (मेद धातु का रोग जिसमें शरीर में मौजूद फैट शामिल हो) बताया गया है। इसके कारण वसा और चयापचय ऊतकों में दिक्कत आती है। प्रणाली के कार्य में असंतुलन आने पर ऊतकों में कुछ बदलाव होते हैं जिससे अपने आप ही वजन बढ़ने लगता है।
(और पढ़ें - वजन कम करने के उपाय)
आयुर्वेद की दृष्टि से वजन बढ़ना एक चक्रीय प्रक्रिया है। उपरोक्त कारकों में असंतुलन के कारण जीवनशैली और आहार से संबंधित गलत आदतें पड़ने लगती हैं जिससे पाचन अग्नि कमजोर हो जाती है। इसकी वजह से आगे चलकर विषाक्त पदार्थ बढ़ने लगते हैं और संचार स्त्रोतास में रुकावट एवं ऊतकों के निर्माण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। इस चक्र की वजह से कफ दोष, वात ऊर्जा और मेद धातु में असंतुलन होता है। आयुर्वेद में शरीर से अमा (विषाक्त पदार्थों को निकालने), भोजन संबंधित आदतों में सुधार, पाचन तंत्र को मजबूती देने और तनाव का स्तर घटाने के लिए विभिन्न जड़ी बूटियों और औषधियों का उल्लेख किया गया है।
(और पढ़ें - 4 भारतीय आहार जो हैं गुणों की खान)
मोटापे का आयुर्वेदिक इलाज - Motape ka ayurvedic upchar
- बस्ती
- आचार्य चरक के अनुसार रोग के संपूर्ण या अर्ध (आधे) उपचार के रूप में बस्ती का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से शरीर से अतिरिक्त वात को बाहर निकाला जाता है। वात प्रधान दोष के कारण हुए रोगों के इलाज में प्रमुख तौर पर इस चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता है।
- बस्ती कर्म में आंत की पूरी सफाई के लिए जड़ी बूटियों एवं इनसे बने शक्तिवर्द्धकों (टॉनिक) को एनिमा के रूप में दिया जाता है।
- बस्ती में शरीर से बलगम के साथ-साथ विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं। ये अतिरिक्त वात को हटाती है और पाचन क्रिया में सुधार लाने में मदद करती है। (और पढ़ें - पाचन क्रिया सुधारने का तरीका)
- ओबेसिटी में बस्ती कर्म के लिए हरीतकी, आमलकी, मुस्ता, गुडूची और विभीतकी का इस्तेमाल किया जाता है। एनिमा के रूप में इस्तेमाल करने से पहले इन जड़ी बूटियों को गर्म किया जाता है।
- लेखन बस्ती से शरीर से वसा को कम किया जाता है। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त मल, दोष और धातुओं को सुखाकर शरीर को क्षीण किया जाता है और इस प्रकार यह चिकित्सा मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए लाभकारी विकल्प है। इस चिकित्सा में शामिल होने वाली जड़ी बूटियां और औषधियां ऊतक कोशिकाओं को साफ करती हैं और तंत्र में असंतुलित हुई चीज़ों को साफ करती हैं।
- ओबेसिटी में आयुर्वेदिक मिश्रणों में से एक अस्थापन बस्ती भी है। इन जड़ी बूटियों में शिलाजीत, हिंगु (हींग), हरीतकी और आमलकी शामिल है। लेखन बस्ती में इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में कटु (तीखा), तिक्त (खट्टा), रुक्ष (रूखा) और तीक्ष्ण (चुभनेवाले) गुण होते हैं। ये चिकित्सा बेरिएट्रिक सर्जरी का एक प्रभावी विकल्प है।
- उद्वर्तन (पाउडर मालिश)
- कई रोगों के इलाज के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक उद्वर्तन की सलाह देते हैं जिसमें मोटापा भी शामिल है। इस प्रक्रिया में वसा और कफ को कम, शक्ति को बढ़ाया एवं त्वचा को स्वस्थ किया जाता है। इससे हाथ-पैरों में स्थिरता आती है। इसलिए मुद्रा से संबंधित समस्याओं के इलाज के लिए ये चिकित्सा उत्तम है। (और पढ़ें - त्वचा को स्वस्थ रखने के उपाय)
- उद्वर्तन प्रक्रिया स्थौल्य से ग्रस्त लोगों के लिए लाभकारी है क्योंकि ये बढ़े हुए वात को शांत, बदबू को दूर और बहुत ज्यादा पसीना आने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। (और पढ़ें - ज्यादा पसीना आना रोकने के घरेलू उपाय)
- वमन
- वमन कर्म में औषधीयों से उल्टी करवाई जाती है। इसमें नियमित रूप से नाडियों से बलगम को निकाला जाता है और शरीर खासतौर से पेट एवं छाती से अमा को साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया से फेफड़ों से संबंधित विकारों जैसे कि टीबी और अस्थमा, त्वचा रोगों जैसे कि सोरायसिस और मेटाबोलिक विकारों जैसे कि डायबिटीज से राहत मिलती है।
- वमन का प्रयोग मिर्गी, बवासीर, गर्दन में अकड़न, फोड़े और मोटापे के लिए किया जाता है।
- वमन के लिए दो प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है – पहली, उल्टी लाने वाली जड़ी बूटियां जैसे कि मुलेठी और नमक का पानी एवं दूसरी, उल्टी के लिए दी गई जड़ी बूटियों के प्रभाव को बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां जैसे कि नीम और आमलकी।
- विरेचन
- विरेचन पंचकर्म थेरेपी में से एक है। इस प्रक्रिया में घृतकुमारी, रूबर्ब और सेन्ना जैसी जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से रेचक करवाया जाता है जिससे मूत्राशय एवं लिवर की सफाई तथा शरीर से अतिरिक्त पित्त को बाहर निकाला जाता है। ये प्रक्रिया अत्यधिक पित्त से संबंधित समस्याओं और अन्य रोगों जैसे कि पेचिश, फोड़े, फूड पाइजनिंग, पुराना बुखार, किडनी स्टोन, मोटापा एवं कब्ज के इलाज में मदद करती है। (और पढ़ें - बुखार का आयुर्वेदिक इलाज)
- मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति के लिए त्रिफला क्वाथ (100 मि.ली) के साथ अरंडी का तेल (लगभग 40 मि.ली), विरेचन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे आम दवाओं में से एक है।
- रसायन
- रसायन औषधियों से शरीर को ऊर्जा दी जाती है और व्यक्ति की आयु को बढ़ाया जाता है। इस प्रकार शरीर के ऊतकों और कोशिकाओं में सुधार लाया जाता है। मोटापे के कारण शरीर में ऐसे बदलाव होने लगते हैं जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और शक्तिवर्द्धक वजन को नियंत्रित करने का उत्तम उपाय हैं।
- विभिन्न दोष पर रसायन जड़ी बूटियों का असर अलग होता है और इनमें से कुछ जड़ी बूटियों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।
- कृमिनाशक (आंतों में कीड़ों पर काम करती हैं लेकिन उन्हें नष्ट नहीं करती हैं)
- विषैली (पेट के कीड़ों को मारने वाली) (और पढ़ें - पेट में कीड़े हो जाए तो क्या करना चाहिए)
- घाव भरने वाली (इन जड़ी बूटियों में शांतिदायक, संकुचक और सूजन से राहत देने वाले गुण होते हैं)
- मोटापे के लिए रसायन के तौर पर इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में आमलकी, विडंग, शिलाजीत शामिल हैं। वजन को कम करने के लिए इनका इस्तेमाल अकेले या किसी अन्य जड़ी बूटी के साथ मिलाकर कर सकते हैं।
मोटापे की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Obesity ki ayurvedic dawa aur aushadhi
मोटापे के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- शिलाजीत
- शिलाजीत को त्रिदोष की स्थिति में प्रतिरक्षा बढ़ाने के प्रभाव और ऊर्जा प्रदान करने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक पुस्तकों में शिलाजीत को वात शक्तिवर्द्धक और कामोत्तेजक भी कहा गया है। (और पढ़ें - कामोत्तेजना बढ़ाने के घरेलू उपाय)
- ये प्रमुख तौर पर किडनी पर कार्य करती है लेकिन पीलिया, मासिक धर्म से जुड़े विकार, पित्ताशय की पथरी, अस्थमा, हड्डी टूटने, यौन दुर्बलता, बवासीर, एडिमा और मोटापे के इलाज में भी मदद करती है। (और पढ़ें - यौन शक्ति कम होने के कारण)
- शिलाजीत पाउडर और दूध के काढ़े जैसे विभिन्न रूपों में उपलब्ध है।
Urjas शिलाजीत कैप्सूल आपको प्राकृतिक शक्ति से भरपूर बनाए रखने में मदद करता है। इसका नियमित सेवन स्ट्रेंथ, एनर्जी और ऊर्जा को बढ़ाकर आपके जीवन को नई ऊर्जा से भर देगा, ताकि आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकें।
- कटुकी
- कटुकी में माइक्रोबियलरोधी, कैंसररोधी, अल्सररोधी और रोगाणुरोधी गुण होते हैं। ये लिवर, ह्रदय और किडनी के नेफ्रॉन (गुर्दे की कार्यात्मक इकाई) एवं शरीर में रोग पैदा करने वाले बदलावों को रोकती है। कटुकी बुखार, मलेरिया, लिवर विकारों, अस्थमा, सांप के काटने और मोटापे जैसे कई रोगों के इलाज में मदद करती है।
- कटुकी में माइक्रोबियलरोधी, कैंसररोधी, अल्सररोधी और रोगाणुरोधी गुण होते हैं। ये लिवर, ह्रदय और किडनी के नेफ्रॉन (गुर्दे की कार्यात्मक इकाई) एवं शरीर में रोग पैदा करने वाले बदलावों को रोकती है। कटुकी बुखार, मलेरिया, लिवर विकारों, अस्थमा, सांप के काटने और मोटापे जैसे कई रोगों के इलाज में मदद करती है।
- हरीतकी
- आयुर्वेद में हरीतकी को शक्तिवर्द्धक, रेचक (मल निष्कासन की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले), कफ निस्सारक (बलगफ साफ करने वाले), संकुचक (ऊतकों को संकुचित करने वाले) और ऊर्जादायक जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। ये श्वसन, स्त्री प्रजनन प्रणाली, उत्सर्जन प्रणाली और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
- हरीतकी का इस्तेमाल विभिन्न रोगों जैसे कि बवासीर, मसूड़ों में छाले, लिवर विकारों, पेट फूलने, अस्थमा, गले में खराश, एडिमा, खुजली और मोटापे के इलाज में किया जाता है। वात दोष वाले व्यक्ति में त्वचा पर जले के निशान और घाव को भी ठीक करने में हरीतकी मदद करती है।
- हरीतकी गरारे, काढ़े, पेस्ट और पाउडर के रूप में उपलब्ध है।
- विडंग
- विडंग को कृमिघ्न (कीड़ों को नष्ट करने वाले) गुणों के लिए जाना जाता है। ये आंतों से कीड़ों को साफ करने में असरकारी है। इस पौधे के फल से शरीर में शुष्कता लाता है। इसका स्वाद हल्का सा तीखा होता है एवं ये आसानी से पच जाती है। इस पौधे से शरीर में गर्मी लाई जाती है।
- विडंग कफ और वात दोष को साफ करता है। इसमें विष को खत्म करने वाले गुण होते हैं। ये जड़ी बूटी कई रोगों जैसे कि कब्ज, मोटापा, भूख में कमी, पेट दर्द और पेट फूलने की समस्या से राहत पाने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
- आप खाने से पहले गुनगुने पानी के साथ विडंग चूर्ण या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- मुस्ता
- मुस्ता में गठिया-रोधी, संकुचक, फंगल-रोधी, कामोत्तेजक, सूजन कम करने वाले और परजीवी-रोधी गुण पाए जाते हैं। ये परिसंचरण, स्त्री प्रजनन प्रणाली और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
- मुस्ता का इस्तेमाल विभिन्न रोगों जैसे कि दौरे पड़ने, स्तन कैंसर, डिप्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, मल में खून आना, भूख में कमी, ठंड और घबराहट के इलाज में किया जाता है। ये अग्नाशय, लिवर और तिल्ली के कार्य में सुधार लाती है। (और पढ़ें - तिल्ली रोग क्या है)
- मुस्ता काढ़े और पाउडर के रूप में उपलब्ध है। आप खाने से पहले गुनगुने पानी के साथ मुस्ता चूर्ण या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
मोटापे के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- त्रिफला
- त्रिफला एक हर्बल मिश्रण है जिसमें आमलकी, विभीतकी और हरीतकी की एक समान मात्रा मौजूद होती है।
- ये आयुर्वेद में सबसे अधिक बार इस्तेमाल होने वाली औषधियों में से एक है। इसे ऑक्सीकरण-रोधी, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, लिवर को सुरक्षा देने और कोलेस्ट्रोल को कम करने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। त्रिफला ट्यूमर को कम और लिवर के कार्य को बेहतर करने में मदद करती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए क्या करें)
- ये ऐंठन, मोटापे, सिस्टमिक स्केलेरोसिस (विभिन्न ऊतकों में कोलाजन और प्रोटीन का अत्यधिक उत्पादन), इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम, दस्त और उल्टी के इलाज में उपयोगी है। ये जी मितली, कब्ज और पेट फूलने की समस्या से राहत दिलाती है।
- आप खाने से पहले गुनगुने पानी के साथ त्रिफला चूर्ण या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। इसके अलावा त्रिफला को गुग्गुल के साथ गोली के रूप में भी उपलब्ध है।
- अभ्यारिष्ट
- ये एक हर्बल मिश्रण है जिसे विडंग, हरीतकी, द्राक्ष (अंगूर) और अन्य सामग्रियों के खमीरीकृत मिश्रण से बनाया गया है।
- ये औषधि कब्ज को दूर, अग्निमांद्य का इलाज (पाचन अग्नि को कम) और शरीर से अमा को बाहर निकालती है। ये चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाती है इसलिए अभ्यारिष्ट अतिरिक्त वसा को हटाकर मोटापे को ठीक तरह से नियंत्रित करने में मददगार है।
- आप अभ्यारिष्ट को पानी के साथ या चिकित्सक के अनुसार ले सकते हैं।
- मेदोहर गुग्गुल
- मेदोहर गुग्गुल एक हर्बल मिश्रण है जिसे आमलकी, चित्रक, शुंथि (सोंठ), विभीतकी, विडंग, हरीतकी, मुस्ता और मारीच (काली मिर्च) से तैयार किया गया है।
- मेदोहर गुग्गुल शरीर से अतिरिक्त मेद (मोटापे) को हटाती है और पसीना लाने की प्रक्रिया में सुधार लाती है। इस प्रकार ये वजन घटाने में मदद करती है। ये अतिरिक्त वसा को भी कम करती है और हड्डियों को पोषण प्रदान करती है। (और पढ़ें - हड्डियों को कैसे मजबूत करे)
- आप मेदोहर गुग्गुल को गर्म पानी के साथ या चिकित्सक के अनुसार ले सकते हैं।
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार ओबेसिटी में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Motapa kam karne ke liye kya kare kya na kare
क्या करें
- नियमित समय के अंतराल पर स्वस्थ और ताजे खाद्य पदार्थ खाएं।
- उच्च फाइबर और लो फैट डाइट लें। (और पढ़ें - फाइबर वाले आहार)
- प्रचुर मात्रा में फल और सब्जियों का सेवन करें।
- रोज़ हल्का व्यायाम जरूर करें। (और पढ़ें - वजन घटाने के लिए कब करें व्यायाम)
- मानसिक क्षमता को बढ़ाने के लिए अपने दिमाग को सक्रिय रखने का प्रयास करें। (और पढ़ें - दिमाग तेज करने के घरेलू नुस्खे)
- वजन कम करने के लिए खुद को प्रोत्साहित एवं प्रेरित करते रहें।
- रात को जागने का समय धीरे-धीरे बढाते रहें।
क्या न करें
- दिन के समय न सोएं। (और पढ़ें - दिन में सोने से क्या होता है)
- दूध से बने उत्पाद और अन्य मीठे, बासी एवं भारी खाद्य पदार्थ न खाएं।
- डिब्बाबंद, तला हुआ और पैकेटबंद खाना खाने से बचें।
- ज्यादा खाने से बचें। (और पढ़ें - ज्यादा खाना खाने के नुकसान)
- थका देने वाली जीवनशैली से दूर रहें।
- शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा आराम न करें।
मोटापे की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Obesity ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक चिकित्सकीय अध्ययन में मोटापे से ग्रस्त 10 प्रतिभागियों को लेखन बस्ती चिकित्सा दी गई। इस अध्ययन के दौरान सभी प्रतिभागियों की जांघ, छाती और बाजू एवं पेट से फैट कम हुआ। त्रिफला चूर्ण से उद्वर्तन और लेखन बस्ती के साथ औषधि खाना, मोटापे को नियंत्रित करने में असरकारी साबित हुआ है।
अन्य अध्ययन में मोटापे से ग्रस्त 60 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। इन प्रतिभागियों पर मेदोहर गुग्गुल ने सकारात्मक प्रभाव दिखाते हुए वजन और मोटापे के अन्य लक्षणों को कम किया। इससे बीएमआई भी कम हुआ।
(और पढ़ें - मोटापा कम करने के उपाय)
ओबेसिटी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Motape ki ayurvedic dawa ke side effects
आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में लिए गए अधिकतर आयुर्वेदिक उपचार सुरक्षित होते हैं। हालांकि, गलत तरीके या मात्रा में लेने पर इनके भी कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। उपरोक्त औषधियों और उपचारों के निम्न हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं:
- गर्भवती महिलाओं और वात के कारण मोटापे से ग्रस्त हुए लोगों को वमन कर्म नहीं लेना चाहिए। वृद्ध और कमजोर व्यक्ति को वमन की सलाह नहीं दी जाती है। इसके अलावा जिन लोगों को उल्टी करने में दिक्कत या छाती में दर्द, थकान, कमजोर पाचन अग्नि, छाले, बवासीर, कब्ज और किसी भी प्रकार के जठरांत्र विकारों से ग्रस्त व्यक्ति को वमन नहीं लेना चाहिए। नियमित सेक्स, बहुत ज्यादा पढ़ाई या व्यायाम करने के बाद वमन चिकित्सा लेना सही नहीं रहता है। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
- कब्ज और अत्यधिक वात वाले व्यक्ति को मुस्ता का प्रयोग नहीं करना चाहिए। (और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)
मोटापे की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Motape ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
व्यायाम की कमी, खराब जीवनशैली और खानपान की गलत आदतों की वजह से होने वाला मोटापा एक आम स्वास्थ्य समस्या है। मोटापे के इलाज के लिए आयुर्वेद में शरीर और मन के बीच संतुलन लाकर खानपान की आदतों एवं जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाए जाते हैं। मोटापे की अंग्रेजी दवाओं के कुछ हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं लेकिन आयुर्वेदिक औषधियों आौर जड़ी बूटियों का प्रयोग मोटापे के इलाज में पूरी तरह से सुरक्षित है।
(और पढ़ें - सोते हुए भी हो सकता है ऐसे वजन कम)
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संदर्भ
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- Jeyashanthy Murugakumar. An Ayurvedic approach to Obesity. [internet]
- Ministry of AYUSH, Govt. of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines. [Internet]
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- Harshitha Kumari et al. Medohara and Lekhaniya dravyas (anti-obesity and hypolipidemic drugs) in Ayurvedic classics: A critical review. Ayu. 2013 Jan-Mar; 34(1): 11–16. PMID: 24049399