ट्रूनैट क्या है?
ट्रूनैट एक रैपिड मोलेक्यूलर एसे यानी परीक्षण या जांच है जिसे भारत की गोवा बेस्ड कंपनी मोलबियो डायग्नोस्टिक्स ने विकसित किया है और उसका रिसर्च और डिवेलपमेंट बेंग्लुरू बेस्ड बिग टेक लैब्स ने किया है। ट्रूनैट एक पॉइंट ऑफ केयर टेस्ट है जिसमें चिप बेस्ड रियल टाइम पीसीआर टेस्ट (कोविड-19 का पता लगाने में भी इस टेस्ट का इस्तेमाल होता है) का इस्तेमाल होता है जिसमें व्यक्ति के शरीर में माइक्रोबियल न्यूक्लिइक एसिड (डीएनए/आरएनए) की मात्रा कितनी है इसका पता लगाया जाता है जिससे बीमारी को जल्द से जल्द डायग्नोज करने में मदद मिलती है।

ट्रूनैट मशीन को बैटरी के जरिए ऑपरेट किया जाता है और महज 1 घंटे के अंदर मशीन नतीजे दे देती है। इस मशीन का इस्तेमाल कर स्वास्थ्य कर्मचारी टेस्ट के आंकड़े या नतीजों को ईमेल या एसएमएस भी कर सकते हैं ताकि इलाज को जल्द से जल्द शुरू किया जा सके। ट्रूनैट टेस्ट बेहद संवेदनशील और विशिष्ट होता है। ट्रूनैट टेस्ट के बारे में सभी जरूरी बातें यहां जानें।

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  1. ट्रूनैट का इस्तेमाल किसके लिए किया जाता है?
  2. ट्रूनैट टेस्ट की तैयारी कैसे की जाती है?
  3. कैसे किया जाता है ट्रूनैट टेस्ट?
  4. ट्रूनैट टेस्ट के नतीजों का क्या मतलब है?
टीबी और कोविड-19 के लिए ट्रूनैट टेस्ट के डॉक्टर

टीबी टेस्टिंग के लिए ट्रूनैट
शुरुआत में ट्रूनैट का विकास ट्यूबरकोलोसिस यानी टीबी रोग की पहचान करने के लिए किया गया था और मरीजों में रिफामपिसिन-प्रतिरोधक टीबी की पहचान करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन रियल-टाइम पीसीआर का इस्तेमाल करती है ताकि व्यक्ति के शरीर में मौजूद तरल पदार्थों में टीबी पैदा करने वाले बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियरम ट्यूबरकोलोसिस के डीएनए की मौजूदगी का पता लगाया जा सके।

साथ ही इस मशीन की मदद से रिफामपिसिन-प्रतिरोधक टीबी की मौजूदगी का भी पता लगाया जाता है। इसके लिए किए जाने वाले टेस्ट को ट्रूनैट एमटीबी-आरआईएफ डीएक्स कहते हैं। रिफामपिसिन एक एंटीबायोटिक है जिसका इस्तेमाल कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में किया जाता है जिसमें टीबी भी शामिल है। रिफामपिसिन-प्रतिरोधक टीबी का बैक्टीरिया, मरीज को रिफामपिसिन दिए जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है इसलिए इस तरह के टीबी के इलाज के मरीजों को अलग-अलग दवाइयों की जरूरत होती है। ऐसा करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर गलत एंटीबायोटिक्स से मरीज का इलाज किया जाए तो बैक्टीरिया का दवाइयों की तरफ प्रतिरोध और ज्यादा बढ़ जाएगा। आज के आधुनिक दवाइयों के जमाने में एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस या प्रतिरोध एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है।

(और पढ़ें : एंटीबायोटिक दवा लेने से पहले इन बातों का रखें ध्यान)

मोलबियो डायग्नोस्टिक्स ने टीबी के लिए 2 और ट्रूनैट टेस्ट विकसित किए हैं जिनका नाम- ट्रूनैट टीएम एमटीबी और ट्रूनैट टीएम एमटीबी प्लस है जिसकी मदद से शरीर में पल्मोनरी यानी फेफड़ों में और एक्सट्रापल्मोनरी सीक्रिशन (ईपीटीबी नमूना) में टीबी बैक्टीरिया की मात्रा का पता लगाया जाता है। ईपीटीबी नमूने में सेरेब्रोस्पाइनल तरल पदार्थ (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी), प्लूरल तरल पदार्थ (फेफड़ों को कवर करने वाले लेयर), साइनोवियल तरल पदार्थ (जोड़ों में से) और लसीका पर्व (लिम्फ नोड्स) में मौजूद तरल पदार्थ भी शामिल है।

दिसंबर 2019 में ट्रूनैट टीबी टेस्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से स्वीकृति मिल गई थी ताकि सक्रिय टीबी और रिफामपिसिन-प्रतिरोधक टीबी को डायग्नोज किया जा सके। WHO की तरफ से स्वीकृत किए बाकी के रैपिड टीबी टेस्ट एक्सपर्ट एमटीबी/आरआईएफ की तरह ट्रूनैट को काम करने के लिए ठंडे वातावरण की जरूरत नहीं होती। मौजूदा समय में दुनियाभर के लिए परेशानी का सबब बन चुकी कोविड-19 बीमारी का पता लगाने के लिए भी ट्रूनैट का इस्तेमाल किया जाता है। 

कोविड-19 टेस्टिंग के लिए ट्रूनैट का इस्तेमाल
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ICMR ने अप्रैल 2020 में कोविड-19 के डायग्नोसिस के लिए ट्रूनैट के इस्तेमाल को विधिमान्य कर दिया था और मई 2020 में आईसीएमआर ने ट्रूनैट-बीटा सीओवी को स्वीकृति भी दे दी थी ताकि कोविड-19 की स्क्रीनिंग और प्रमाणित करने वाली टेस्टिंग की जा सके। 

(और पढ़ें : टीबी के मरीजों को कोविड-19 से बचाने के लिए क्या करना चाहिए, जानें)

द कोविड-19 ट्रूनैट, ट्रूनैट सार्स-सीओवी-2 और ट्रूनैट-बीटा सीओवी टेस्ट में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 वायरस जिसकी वजह से कोविड-19 बीमारी होती है उसके आरएनए की पहचान की जाती है। इन टेस्ट्स में ओरोफैरिंजिल (मुंह के) या नेजोफैरिंजिल (नाक के) स्वैब का सैंपल लिया जाता है ताकि कोरोना वायरस इंफेक्शन की पहचान की जा सके।

चूंकि कोरोना वायरस एक आरएनए वायरस है इसलिए आरटी-पीसीआर टेस्ट में पहले आरएनए को डीएनए में कन्वर्ट किया जाता है और उसके बाद डीएनए की विस्तार से व्याख्या की जाती है। रियल टाइम आरटी-पीसीआर टेस्ट के नतीजे आने में करीब 5 से 6 घंटे का समय लगता है जबकि ट्रूनैट टेस्ट महज 1 घंटे में नतीजे दे सकता है इसलिए यह ज्यादा तेज है।

टेस्ट शुरू करने से पहले सैंपल में रीएजेंट मिक्स किया जाता है जो वायरस को निष्क्रिय बना देता है। ऐसा होने से टेस्ट करने वाले लैब टेक्नीशियन या स्टाफ कर्मचारी को इंफेक्शन होने का खतरा कम हो जाता है। मई 2020 में आईसीएमआर द्वारा जारी किए दिशा-निर्देशों के मुताबिक, कोविड-19 के लिए ट्रूनैट टेस्ट को 2 चरणों में करना है:

  • पहले चरण में सार्स-सीओवी-2 वायरस के ई जीन की खोज की जाती है। यह जीन कोड, वायरस के प्रोटीन के लिए एक आवरण की तरह का काम करता है। कोई भी सैंपल जो इस जीन के लिए नेगेटिव आता है उसे ही सही मायने में नेगेटिव माना जाता है।
  • इस टेस्ट से जिन सैंपल में पॉजिटिव रिजल्ट नहीं आते उन्हें फिर अगले चरण में आगे बढ़ाया जाता है जिसमें आरडीआरपी (आरएनए-डिपेंडेंट आरएनए पॉलिमर्स) जीन की खोज की जाती है। 

कोरोना वायरसों में आवरण वाला (एन्वलोप) प्रोटीन एक छोटा सा प्रोटीन है जो वायरस की सबसे बाहरी सतह वायरल एन्वलोप के निर्माण में शामिल होता है। यह वायरल रोगजनन और संक्रामकता में भी अहम रोल निभाता है। कई अध्ययनों में यह बात साबित हो चुकी है कि अगर कोरोना वायरसों के एन्वलोप को हटा दिया जाए तो इन वायरसों द्वारा इन्फ्लेमेशन पैदा करने और इंफेक्शन को स्थापित करने की क्षमता पर असर पड़ता है और उनकी क्षमता कम हो जाती है।

(और पढ़ें : कोविड-19 के इलाज में शरीर के इन्फ्लेमेशन की भूमिका)

आरएनए पॉलिमर्स एक तरह का एन्जाइम है जो स्वस्थ कोशिका में पहुंच जाने के बाद कोरोना वायरस को सैंकड़ों कॉपीज बनाने में मदद करता है। जिन लोगों का टेस्ट आरडीआरपी के लिए पॉजिटिव आता है उन्हें ही सही मायने में कोविड-19 पॉजिटिव माना जाता है।

(और पढ़ें - कोरोना के लिए टेस्ट)

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ट्रूनैट टेस्ट से पहले आपको किसी खास तरह की तैयारी करने की जरूरत नहीं होती जब तक कि आपके डॉक्टर आपको खासतौर पर कुछ खास करने का सुझाव न दें। हालांकि, इससे पहले कि आप ये टेस्ट करवाने जाएं हो सकता है कि आपके डॉक्टर आपसे यह पूछें कि आप किसी तरह की कोई दवा या सप्लिमेंट्स का सेवन कर रहे हैं या नहीं।

टीबी के लिए किए जाने वाले ट्रूनैट टेस्ट में थूक या बलगम का सैंपल लिया जाता है जबकि कोविड-19 के ट्रूनैट टेस्ट के लिए नेजोफैरिंजल और ओरोफैरिंजल स्वैब का इस्तेमाल किया जाता है। सैंपल को कैसे प्राप्त किया जाता है, यहां जानें :

बलगम या थूक का सैंपल
अपना सैंपल कलेक्ट करने के लिए आपको खास तरह का कंटेनर दिया जाता है। अस्पताल में मौजूद स्वस्थ लोगों को इंफेक्शन का संचार न हो इस खतरे से बचने के लिए बलगम का सैंपल या तो अस्पताल के किसी खास एरिया में लिया जाता है या फिर अस्पताल के बाहर। सैंपल कलेक्शन से पहले मरीज को कहा जाता है कि वे अपने मुंह को अच्छी तरह से पानी से धो लें या कुल्ला कर लें। ऐसा इसलिए ताकि कलेक्ट किया जाने वाला सैंपल, मुंह में मौजूद बैक्टीरिया या खाने के तत्व की वजह से किसी भी तरह से दूषित न हो जाए। टीबी टेस्टिंग के लिए बलगम का सैंपल कलेक्ट करते वक्त :

  • कुछ गहरी सांसें लें
  • मुंह पर एक टीशू पेपर रखें और गहराई से खांसें, आपको अपनी खांसी पेट तक महसूस होनी चाहिए
  • जैसे ही मुंह में बलगम आ जाए दिए गए कंटेनर में उसे थूक दें। लैब टेक्नीशियन आपको बताएंगे कि कितने बलम की जरूरत है
  • जब पर्याप्त सैंपल प्राप्त हो जाए तो कंटेनर के ढक्कन को टाइट से बंद कर दें और उसे लैब कर्मचारी को दे दें
  • इसके बाद लैब टेक्नीशियन, सैंपल वाले बलगम की स्पष्टता की जांच करते हैं। अगर टेक्नीशियन को लगता है कि दिया गया सैंपल दूषित है या सही नहीं है तो आपको दोबारा सैंपल देने की जरूरत हो सकती है

नेजोफैरिंजल स्वैब
नेजोफैरिंजल स्वैब को ऐसे इक्ट्ठा किया जाता है:

  • आपके डॉक्टर आपको नाक को झटक कर साफ करने को कहते हैं ताकि किसी भी तरह का अतिरिक्त म्यूकस को बाहर निकाला जा सके, उसके बाद वह आपको अपने सिर को पीछे की तरफ झुकाने के लिए कहते हैं।
  • इसके बाद डॉक्टर स्वैब स्टिक (पतली सी स्टिक जिसके टिप पर पोलियेस्टर या रेयॉन लगा होता है) को नाक के अंदर तब तक डालते हैं जब तक वह नाक के पीछे के हिस्से तक न पहुंच जाए और उसके बाद उसे वहीं पर कुछ सेकंड तक रहने देते हैं ताकि वह नाक में मौजूद स्त्राव को अच्छी तरह से सोख पाए। (इस वजह से मरीज को कुछ असहजता महसूस हो सकती है)
  • इसके बाद डॉक्टर धीरे-धीरे स्वैब को बाहर निकालते हैं, उसे एक छोटी सी शीशी में डालकर जांच के लिए लैब में भेज देते हैं।

ओरोफैरिंजल स्वैब
ओरोफैरिंजल स्वैब को मुंह के पीछे के हिस्से से लिया जाता है जिसे ओरोफैरिंग्स कहते हैं। स्वैब को वहां पर कुछ सेकंड तक घुमाया जाता है और उसके बाद उसे स्टर्लाइज की हुई शीशी में बंद करके टेस्टिंग के लिए भेज दिया जाता है।

(और पढ़ें : कोविड-19 के लिए विकसित किया गया सलाइवा टेस्ट, जानकार बता रहे स्वैब टेस्ट से बेहतर)

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नॉर्मल टेस्ट या सामान्य नतीजे
ट्रूनैट टेस्ट में नॉर्मल नतीजे आने का मतलब है कि टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव है जिसका मतलब है कि पैथोजेन या रोगाणु, सैंपल में मौजूद नहीं था।

असामान्य नतीजे
ट्रूनैट टेस्ट में असामान्य नतीजे पॉजिटिव आते हैं जिसका मतलब है कि दिए गए सैंपल में संदिग्ध रोगाणु मौजूद था। टीबी के मामले में ट्रूनैट टेस्ट यह भी बताता है कि मरीज को रिफामपिसिन-प्रतिरोध टीबी बैक्टीरिया है या नहीं। नतीजों के आधार पर डॉक्टर उचित इलाज का सुझाव देते हैं। 

(और पढ़ें : टीबी हो जाए तो क्या करना चाहिए)

(डिस्क्लेमर: मरीज के लक्षणों और शिकायतों के आधार पर सभी नतीजों को नैदानिक रूप से सहसम्बद्ध किया जाना चाहिए तभी पूर्ण रूप से और एक दम सही डायग्नोसिस प्राप्त किया जा सकता है। ऊपर दी गई जानकारी पूरी तरह से शैक्षणिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह जानकारी किसी भी तरह से किसी योग्यता प्राप्त डॉक्टर की चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं हो सकता।)

Dr Rahul Gam

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संदर्भ

  1. Long Chunqin, et al. Diagnosis of the Coronavirus disease (COVID-19): rRT-PCR or CT?. Eur J Radiol. 2020 May; 126:108961. PMID: 32229322.
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