टॉर्च स्क्रीन टेस्ट से गर्भवती महिलाओं में संक्रमण की जांच की जाती है। यह संक्रमण गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को भी हो सकता है। शुरुआती समय में इस संक्रमण का पता चलने और सही उपचार से नवजात को संक्रमण से बचाया जा सकता है। 

टॉर्च टेस्ट (TORCH) को कई बार TORCHS भी कहा जाता है। यह पांच तरह के इन्फेक्शन्स के पहले अक्षर का संग्रह है। जो निम्नलिखित हैं:

जब महिलाएं गर्भधारण करने के बाद पहली बार डॉक्टर के पास जाती हैं तो डॉक्टर उन्हें इन टेस्ट्स में से कुछ टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इस तरह से डॉक्टर इन टेस्ट्स की मदद से यह पता कर लेते हैं कि गर्भवती महिला को किसी अन्य टेस्ट की जरूरत है या नहीं यानी इन टेस्ट से उन्हें अन्य तरह की समस्याओं के लक्षण दिख जाते हैं। ये बीमारियां मां के नाल से होते हुए, उसके बच्चे को भी हो सकती हैं। इस तरह से बच्चे को जन्मदोष होने की संभावना होती है।

इनमें निम्नलिखित बीमारियां शामिल हैं: 

  1. टॉर्च टेस्ट क्या होता है? - What is TORCH Panel Test in Hindi?
  2. टॉर्च टेस्ट क्यों किया जाता है? - What is the purpose of TORCH Panel Test?
  3. टॉर्च टेस्ट से पहले - Before TORCH Panel Test in Hindi
  4. टॉर्च टेस्ट के दौरान - During TORCH Panel Test in Hindi
  5. टॉर्च टेस्ट के क्या जोखिम हैं? - What are the risks associated with TORCH Panel Test in Hindi?
  6. टॉर्च टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब होता है? - What do the results of TORCH Panel Test mean in Hindi?

एंटीबॉडीज एक तरह के प्रोटीन्स होते हैं, जो हमारे शरीर के वायरस और बैक्टीरिया जैसे अनावश्यक और खराब पदार्थों को पहचानकर उन्हें नष्ट करते हैं। विशेष रुप से ये टेस्ट दो अलग प्रकार के एंटीबॉडीज आईजीजी यानी इम्यूनोग्लोबिन G और आईजीएम यानि इम्यूनोग्लोबुलिन M की स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल होते हैं।

  • आईजीजी एंटीबॉडीज उस समय हमारे शरीर में मौजूद होते हैं, जब किसी को पहले कभी किसी तरह का संक्रमण रहा हो लेकिन अब न हो।
  • आईजीएम एंटीबॉडीज किसी के शरीर में तब होते हैं, जब उस समय किसी तरह का संक्रमण हो। 

अगर गर्भ में पल रहे बच्चे तक संक्रमण पहुंच चुका है तो डॉक्टर इन एंटीबॉडीज का इस्तेमाल करके उस महिला के पहले की बीमारियों के लक्षणों के आधार पर इसका पता कर सकते हैं।

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हमारे शरीर में अगर एक बार कोई एंटीबॉडी किसी विशेष एंटीजन के लिए बन जाता है तो अगली बार जब कभी भी वह एंटीजन हमारे शरीर में एंटर करता है तो हमारे इम्यून सिस्टम को रिस्पॉन्स करना याद रहता है। इसलिए अगली बार हमारा शरीर उस एंटीजन के खिलाफ वही एंटीबॉडी बनाने लगता है। इस तरह से खून में किसी विशेष तरह के इम्यूनोग्लोबुलिन्स की जांच करके हमारे शरीर में किसी संक्रमण या दूसरी तरह की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।

(और पढ़ें - एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी टेस्ट क्या है)

इम्यूनोडिफिशिएंसी का पता करने के लिए भी डॉक्टर इम्युनोग्लोबुलिन टेस्ट पर भरोसा करते हैं। कोई भी व्यक्ति जन्म से ही इम्यूनोडिफीसिएंसी की समस्या से ग्रसित हो सकता है या फिर आगे चलकर उसे संक्रमण, बीमारियों, कुपोषण, जलने या अन्य तरह की दवाइयों के साइड इफेक्ट्स के कारण इम्यूनोडिफिसिएंसी की समस्या हो सकती है। अगर किसी बच्चे में बार-बार या फिर किसी तरह का असामान्य संक्रमण होता है तो डॉक्टर उस बच्चे में इम्यूनोडिफीसिएंसी की आशंका व्यक्त कर सकती है। इम्यूनोग्लोबुलिन के स्तर की जांच शरीर में जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस, लूपस औऱ सीलिएक रोग जैसी ऑटोइम्यून स्थितियों का पता लगाने के लिए भी की जाती है।

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अगर टेस्ट से पहले आपको किसी तरह की कोई तैयारी करनी होगी तो डॉक्टर आपको सुझाव देंगे। टेस्ट के दिन बेहतर होगा कि आप अपने बच्चे को ढीले और छोटी बांह के कपड़े पहनाएं। इससे खून की जांच के लिए सैंपल लेते समय डॉक्टर को आसानी होगी। 

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जांच के दौरान आपके हाथ की नस से खून का सैंपल लिया जाता है। शिशु के खून की जांच के लिए बच्चे की एड़ी में सूई की मदद से एक छोटा सा छेंद करके सैंपल लिया जाता है। अगर खून का सैंपल नस से लिया जाता है तो उसके लिए सबसे पहले तो हाथ में उस जगह पर किसी एंटीसेप्टिक लिक्विड से अच्छे से साफ कर दिया जाता है, जहां से खून का सैंपल लिया जाता है। इसके बाद हाथ में एक इलास्टिक बैंड बांध दी जाती है। इलास्टिक बैंड बांध देने से वहां की नसों में से खून का प्रवाह रुक जाता है। जिसके कारण वहां पर हाथ की नस फूल आती है। इससे नस में से खून का सैंपल लेना आसान हो जाता है। अब नस में सुई से खून का सैंपल ले लिया जाता है। इस सैंपल को किसी सीरिंज या फिर किसी शीशी में इकट्ठा कर लिया जाता है। 

खून का सैंपल ले लेने के बाद हाथ में बंधे इलास्टिक बैंड को खोल दिया जाता है। सैंपल ले लेने के बाद सुई को नस में से बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद उस जगह पर किसी रूई या फिर किसी बैंडेज से ढक देते हैं ताकि वहां से खून न बह सके। इस पूरी प्रक्रिया में कुछ मिनट मात्र लगते हैं। 

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इम्यूनोग्लोबिन टेस्ट में किसी तरह का कोई खतरा नहीं होता है। इस टेस्ट में बस खून का सैंपल लिया जाता है। फिलहाल अन्य तरह के ब्लड सैंपल टेस्ट की तरह इस टेस्ट में कुछ सामान्य खतरे हैं, जो निम्नलिखित हैं: 

  • मूर्छा आना या फिर सिर का हल्कापन महसूस करना। 
  • हेमाटोमा (स्किन के नीचे खून का जमा होना, जिसके कारण गांठ या हल्का सा घाव होना)
  • नस में कई जगहों पर सुई चुभोए जाने के कारण दर्द होना।

वैसे तो ब्लड टेस्ट में कोई खास दर्द नहीं होता है। फिर भी कुछ बच्चे सुई के नाम पर ही डर जाते हैं। इसलिए अपने बच्चे की जांच से लेकर अगर आपके मन में किसी तरह की कोई समस्या है तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लें। इसके लिए टेस्ट से पहले अपने बच्चे को आराम करने की सलाह दें क्योंकि तनाव वाली नसें सुई चुभने पर ज्यादा दर्द देती हैं। इसके अलावा जिस समय सुई चुभोए जाने के समय अपने बच्चे का ध्यान कहीं दूसरी जगह भटकाए रखें।

(और पढ़ें - सीआरपी ब्लड टेस्ट क्या है)

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आमतौर पर आईजीए, आईजीजी और आईजीएम टेस्ट के रिजल्ट एक साथ बताए जाते हैं। असामान्य रिजल्ट बताता है कि कुछ है जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित कर रहा है। ऐसी स्थिति में आपको कुछ अन्य जांचें करवानी पड़ सकती हैं।  इम्यूनोग्लोबुलिन्स टेस्ट से उपचार नहीं किया जाता है। इस टेस्ट से सामान्य तौर पर बीमारी या तकलीफ का पता लगाया जाता है। कई ऐसी स्थितियां हैं, जो इम्यूनोग्लोबुलिन्स के बढ़े होने या घटे होने से जुड़ी हुई हैं।

बढ़ा हुआ स्तर: 
पालीक्लोनल इम्यूनोग्लोबुलिन्स सामान्य तौर पर लिम्फोसाइट्स या प्लाज्मा सेल्स में मौजूद ब्लड सेल ट्यूमर्स में देखे जाते हैं। इन बीमारियों में, इम्यूनोग्लोबुलिन के एक क्लास में बढ़ोत्तरी और अन्य दो क्लासेज में घटोत्तरी देखी जाती है। हालांकि बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के पूरे इम्यूनोग्लोबुलिस का स्तर बढ़ा होता है। दरअसल वो इम्यूकॉम्प्रोमाइज्ड होते हैं क्योंकि ज्यादातर इम्यूग्लोबुलिन्स असामान्य होते हैं और ये इम्यून रिस्पॉन्स में काम नहीं करते हैं।

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घटा हुआ स्तर: 
इम्यूनोग्लोबुलिन्स स्तर घटे होने का सबसे सामान्य कारण वो स्थितियां हैं, जो शरीर में इम्यूनोग्लोबुलिन्स के बनने को प्रभावित करती हैं या फिर वो वजह होती हैं, जिनके कारण शरीर में प्रोटीन का क्षय होता है। इम्यूनोसप्रेसैन्ट्स, कॉर्टीकोस्टेरॉयड्स, फेनीटॉइन्स और कार्बमेजपाइन जैसी दवाइयों के कारण से भी इम्यूनोग्लोबुलिन्स में कमी होती है।

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टॉर्च टेस्ट से जुड़े सवाल और जवाब

सवाल लगभग 5 साल पहले

मैं कुछ समय से प्रेगनेंसी के लिए प्रयास कर रही हूं, लेकिन गर्भधारण नहीं कर पा रही हूं। मेरा एक बार गर्भपात हो चुका है। मैंने अपना टॉर्च टेस्ट करवाया था, रिपोर्ट में रूबेला आईजीजी 5.16 है। इसका क्या मतलब है?

Dr. Ram Saini MD, MBBS , सामान्य चिकित्सा

आपका रूबेला आईजीजी लेवल 5.16 नेगेटिव है, जिसका मतलब है कि आपके शरीर में इसके लिए एंटीबॉडी है। आप चिंता न करें और कंसीव नहीं कर पा रही हैं, तो गयनेकोलॉजिस्ट से सलाह लें। 

सवाल लगभग 5 साल पहले

मेरा जून महीने में गर्भपात हो गया था। हाल ही में, डॉक्टर ने मुझे टॉर्च टेस्ट करवाने के लिए बोला था, रिपोर्ट में सीएमवी, रूबेला और एचएसवी1 व 2 के लिए आईजीजी पॉजिटिव है, जबकि इन तीनों के लिए आईजीएम नेगेटिव है। क्या यह गंभीर है?

Dr. Ramraj Meena MBBS , सामान्य चिकित्सा

इसका मतलब है कि आपको पहले क्रोनिक (पुराना) संक्रमण था। आईजीजी इस बात को बताता है कि आपके शरीर में इन वायरस के लिए एंटीबॉडीज है। आप इसको लेकर अधिक चिंता न करें।

सवाल लगभग 5 साल पहले

मैं 22 साल की हूं। मेरी प्रेगनेंसी 5 महीने की थी, जब मैंने टॉर्च टेस्ट करवाया था और 6 महीने पर मेरा गर्भपात हो गया। अब एक साल के बाद मैं प्रेग्नेंट हुई हूं। मैं जानना चाहती हूं कि क्या इस बार भी मुझे प्रेगनेंसी में टॉर्च इन्फेक्शन हो सकता है?

Dr. K. M. Bhatt MBBS, PG Dip , कार्डियोलॉजी, पीडियाट्रिक, सामान्य शल्यचिकित्सा, सामान्य चिकित्सा, आकस्मिक चिकित्सा, भौतिक चिकित्सक

अगर आपने इसका पूरा कोर्स करवा लिया था, तो आपको इंफेक्शन होने का खतरा नहीं है, लेकिन अगर आपने इलाज का पूरा कोर्स नहीं लिया है, तो आपको इंफेक्शन दोबारा हो सकता है। आप अपना टॉर्च टेस्ट करवाएं और गयनेकोलॉजिस्ट से मिलकर सलाह लें।

 

सवाल लगभग 5 साल पहले

मुझे टॉर्च इंफेक्शन है। आईजीजी पॉजिटिव है और आईजीएम नेगेटिव है। अभी मैं प्रेग्नेंट नहीं हूं, लेकिन बच्चे के लिए प्लान कर रही हूं। मेरा 3 बार गर्भपात भी हो चुका है। मुझे क्या करना चाहिए? आईजीजी पॉजिटिव होने से शिशु पर क्या असर पड़ सकता है?

Dr. Rajeev Kumar Ranjan MBBS, MS , यूरोलॉजी, सामान्य शल्यचिकित्सा, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, प्रसूति एवं स्त्री रोग

आपका आईजीजी पॉजिटिव है, जिसका मतलब है कि अभी आपको इन्फेक्शन नहीं है, लेकिन आपका 3 बार गर्भपात भी हो चुका है। इसलिए आप प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले गयनेकोलॉजिस्ट से सलाह लें।

 

संदर्भ

  1. National Health Service [internet]. UK; TORCH screen
  2. Abeer A. abdelmonem, Hany A. Abdel-Hafeez. Prevalence of Antenatal TORCH’ Infections by Serological detection in Cases of Poor Obstetric Outcome . Journal of American Science. 2014;10(12): page 311—314.
  3. Avery's Diseases of the Newborn. 10th ed. Philadelphia, PA: Elsevier, 2018. Chapter 37, Viral infections of the fetus and newborn.
  4. Cherry JD, Harrison GJ, Kaplan SL, Steinbach WJ, Hotez PJ, Feigin and Cherry's Textbook of Pediatric Infectious Diseases. 8th ed. Philadelphia, PA: Elsevier, 2019. Chap 66, Approach to infections in the fetus and newborn.
  5. Wilson CB, Nizet V, Maldonado YA, Remington JS, Klein JO. Remington and Klein's Infectious Diseases of the Fetus and Newborn. 8th ed. Philadelphia, PA: Elsevier Saunders, 2016. Chap 1, Current concepts of infections of the fetus and newborn infant.
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