एसजीपीटी टेस्ट खून में जीपीटी (GPT) की मात्रा को मापता है। जीपीटी (Glutamate Pyruvate Transaminase) पदार्थ एक प्रकार का एंजाइम (Enzyme) होता है, जो छोटी-छोटी मात्रा में शरीर के कई ऊतकों में पाया जाता है लेकिन अधिकतर मात्रा में यह लिवर में जमा होता है। जिन कोशिकाओं में यह जीपीटी जमा होता है, अगर वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो यह एंजाइम खून में शामिल हो जाता है। इस एंजाइम को अलैनिन ट्रांसमिनेज (Alanine transaminase) या एएलटी (ALT) भी कहा जाता है।

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  1. एसजीपीटी टेस्ट क्या होता है? - What is SGPT Test in Hindi?
  2. एसजीपीटी टेस्ट क्यों किया जाता है - What is the purpose of SGPT Test in Hindi
  3. एसजीपीटी टेस्ट से पहले - Before SGPT Test in Hindi
  4. एसजीपीटी टेस्ट के दौरान - During SGPT Test in Hindi
  5. एसजीपीटी टेस्ट के बाद - After SGPT Test in Hindi
  6. एसजीपीटी टेस्ट के क्या जोखिम होते हैं - What are the risks of SGPT Test in Hindi
  7. एसजीपीटी टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल वैल्यू - SGPT Test Result and Normal Value in Hindi
  8. एसजीपीटी टेस्ट कब करवाना चाहिए - When to get tested with SGPT Test in Hindi

एसजीपीटी टेस्ट क्या होता है?

एसजीपीटी टेस्ट का उपयोग खून में अलैनिन एमिनोट्रांस्फरेज की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट को अलैनिन ट्रांसमिनेज (ALT) या सिरम ग्लूटामेट पाइरूवेट ट्रासनामिनाज (Serum Glutamate Pyruvate Trasnaminase) के नाम से भी जाना जाता है। एएलटी टेस्ट कुछ रोगों का परीक्षण करने में काफी उपयोगी होता है। एसजीपीटी टेस्ट आमतौर पर लिवर क्षति से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। एसजीपीटी टेस्ट, लिवर फंक्शन के टेस्ट में से एक होता है और इसका इस्तेमाल अंदरूनी अंगों और ऊतकों संबंधी समस्याओं की जांच करने के लिए भी किया जाता है।

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एसजीपीटी टेस्ट किस लिए किया जाता है?

एएलटी टेस्ट लिवर के रोगों का परीक्षण करता है, खासकर सिरोसिस और हेपेटाइटिस के मामले में  जो शराब, ड्रग्स या वायरस के कारण होते हैं। एसजीपीटी टेस्ट लिवर में क्षति का भी पता लगाता है और यह भी विश्लेषण करता है कि खून विकार या लिवर रोग के कारण पीलिया क्यों हुआ है?

एसजीपीटी  टेस्ट का इस्तेमाल कोलेस्ट्रोल कम करने वाली दवाओं और अन्य दवाएं जो लिवर को प्रभावित करती हैं आदि के प्रभावों पर नजर रखने के लिए भी किया जाता है।

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जिन लोगों में लिवर रोग विकसित होने के जोखिम बढ़ जाते हैं, उनमें एएलटी टेस्ट को अकेले या आवश्यकता पड़ने पर अन्य टेस्टों के साथ भी किया जा सकता है। इसमें कुछ उदाहरण शामिल हैं:-

  • जो व्यक्ति पहले कभी संभावित या ज्ञात रूप से हेपेटाइटिस वायरस के संपर्क में आए हों, (और पढ़ें - हेपेटाइटिस बी का इलाज)
  • जो लोग अधिक शराब पीते हैं (और पढ़ें - शराब की लत छुड़ाने के घरेलू उपाय)
  • जिस व्यक्ति के परिवार में पहले से कभी लिवर संबंधी रोग हुआ हो।
  • जो लोग ड्रग्स लेते हैं, जो कभी-कभी लिवर को भी नुकसान पहुंचा देता है।
  • जो लोग मोटापे से पीड़ित हैं या जिनको डायबिटीज है।  

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एसजीपीटी टेस्ट से पहले क्या किया जाता है?

एएलटी टेस्ट से पहले किसी विशेष तैयारी करने की जरूरत नहीं होती। कुछ दवाइयां, हर्बल उत्पाद, सप्लीमेंट और अन्य ऐसे कारक हैं, जो एएलटी के रिजल्ट को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए अगर आप कुछ ऐसे उत्पाद या दवा का सेवन करते हैं, तो टेस्ट के लिए खून देने से पहले डॉक्टर को इस बारे में जरूर बता दें। कुछ ऐसे कारण भी हैं जो एसजीपीटी टेस्ट रिजल्ट को प्रभावित कर सकते हैं:

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एसजीपीटी टेस्ट के दौरान क्या किया जाता है?

टेस्ट के दौरान डॉक्टर या नर्स आम तौर पर मरीज की नस से खून का सैंपल निकालते हैं। शिशुओं में से खून का सैंपल लेने के लिए उनकी ऐड़ी में एक छोटी सुई से छेद करके खून का सैंपल निकाला जाता है। अगर खून का सैंपल नस से निकाला जाना है तो जिस जगह सुई लगाई जाती है उसको पहले एंटीसेप्टिक से साफ किया जाता है। उसके बाद बाजू के उपरी हिस्से पर एक इलास्टिक बैंड या पट्टी बांध दी जाती है, जिससे नसों में खून का बहाव बंद हो जाता है और नसें खून से भरकर फुलने लगती है। इसके बाद नस में सुई लगाई जाती है और खून निकाला जाता है। खून के सैंपल को सुई से जुड़े सिरिंज या शीशी में इकट्ठा किया जाता है।

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एसजीपीटी टेस्ट के बाद क्या किया जाता है?

टेस्ट में खून लेने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सुई को नस से निकाल लिया जाता है और हाथ पर बांधी गई इलास्टिक बैंड या पट्टी को भी हटा दिया जाता है। सुई निकालने के तुरंत बाद ही उस जगह पर रूई का टुकड़ा रख दिया जाता है ताकि खून बहने से रोकथाम की जा सके। खून निकालने की इस प्रक्रिया में कुछ ही मिनटों का समय लगता है।

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एसजीपीटी टेस्ट में क्या जोखिम हो सकते हैं?

एएलटी टेस्ट को एक सुरक्षित प्रक्रिया माना गया है। हालांकि, जिस जगह पर खून निकालने के लिए सुई लगाई जाती है, वहां पर हल्का नीला निशान पड़ सकता है। सुई निकालने के बाद कुछ मिनट तक उस जगह पर दबाव रखने से निशान पड़ने के जोखिम को कम किया जा सकता है। हालांकि, ज्यादातर टेस्टों की तरह इसमें भी खून निकालने के कारण निम्न समस्याए हो सकती हैं:

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  • बेहोशी या सिर घूमना, (और पढ़ें - चक्कर का इलाज)
  • हेमेटोमेटा (त्वचा के नीचे खून जमा होना, जिससे गांठ या नीला पड़ सकता है),
  • खून निकालने के लिए नस ना मिलने के कारण सुई से कई जगह पर छेद करना,
  • जहां पर सुई लगी थी उस जगह संक्रमण होना इत्यादि।

एसजीपीटी टेस्ट का रिजल्ट और नॉर्मल वैल्यू

सामान्य रिजल्ट –

खून में एएलएटी की नॉर्मल वैल्यू 7 से 55 यूनिट प्रति लीटर के बीच होता है। एएलटी के मान की सीमा कुछ कारकों द्वारा भी प्रभावित की हो सकती है, उम्र व लिंग इनमें मुख्य कारक हैं। इस संदर्भ में डॉक्टर के साथ अपने विशिष्ट रिजल्ट पर चर्चा करना आवश्यक होता है।

असामान्य रिजल्ट –

एसजीपीटी टेस्ट रिजल्ट का सामान्य से ज्यादा मान लिवर में क्षति होने का संकेत देता है। एएलटी का स्तर बढ़ना निम्न का संकेत भी दे सकता है:

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  • हेपेटाइटिस, यह लिवर में सूजन व लालिमा संबंधी समस्या पैदा करता है। (और पढ़ें - फैटी लिवर का उपचार)
  • सिरोसिस, इससे लिवर में गंभीर खरोंच व निशान बनने लग जाते हैं।
  • लिवर के ऊतक नष्ट होना
  • लिवर में कैंसर या ट्यूमर
  • लिवर में खून के बहाव में कमी
  • हेमोक्रोमैटोसिस (Hemochromatosis), यह एक विकार होता है, जिसमें शरीर में लोहा बनने लगता है।
  • मोनोन्यूक्लिओसिस (Mononucleosis), यह एक प्रकार का संक्रमण होता है, जो आमतौर पर एपस्टीन बार वायरस (Epstein-Barr virus) के कारण होता है।
  • अग्नाशयशोथ (Pancreatitis), इसमें अग्नाशय में सूजन आने लग जाती है। (और पढ़े - अग्नाशय कैंसर के लक्षण)
  • पित्त नली में रुकावट
  • सीसा विषाक्तता (Lead poisoning),
  • कंजेस्टिव हार्ट फेलियर,
  • ज़ोरदार व्यायाम

एएलटी के सामान्य से कम स्तर के रिजल्ट ज्यादातर स्वस्थ लिवर का संकेत देते हैं। हालांकि, अध्ययनों में पाया गया है कि एएलटी का सामान्य से कम स्तर का रिजल्ट दीर्घकालिक मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ा होता है। अगर आप निम्न स्तर को लेकर चिंतित हैं, तो अपने रिजल्ट के बारे में विशेष रूप से डॉक्टर से बात करें।

अगर टेस्ट का रिजल्ट लिवर में क्षति या किसी रोग का संकेत दे रहा है तो उसके अंतर्निहित कारणों को सुनिश्चित करने और उसके उपचार का बेहतर तरीका जानने के लिए अन्य टेस्टों की आवश्यकता पड़ सकती है।

जब रिपोर्ट में एसजीपीटी सामान्य से उच्च स्तर पर मिलता है, तो ज्यादातर मामलों में यह लिवर में क्षति का ही संकेत देता है। यह एक फुल लिवर फंक्शन टेस्ट करवाने और साथ ही साथ लिवर में क्षति की सीमा को मापने के लिए पेट के अल्ट्रासाउंड करवाने का वारंट देता है। सर्जरी के बाद भी मरीजों में एसजीपीटी का उच्च स्तर देखा जाता है। गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट द्वारा ये सबसे अच्छे तरीके से समझाए जाते हैं और अगर इसका स्तर बहुत अधिक बढ़ जाए तो यह हेपेटाइटिस भी हो सकता है। अन्य स्वास्थ्य मापदंडों और पिछले स्वास्थ्य की निगरानी रखने के लिए एक उचित मेडिकल चेक-अप भी आवश्यक होता है। पीलिया की जांच करने के लिए शारीरिक परीक्षण किया जाता है। ज्यादातर मरीज जिनमें एसजीपीटी का स्तर उच्च हो जाता है, आमतौर पर वे लिवर एंजाइम का स्तर थोड़ा बढ़ जाने की समस्या से पीड़ित होते हैं। लिवर एंजाइम का स्तर थोड़ा बढ़ जाना सामान्य तौर पर फैटी लिवर का संकेत देता है, यह एक सामान्य शारीरिक स्थिति होती है जिसमें उपचार की आवश्यकता नहीं होती।

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एसजीपीटी टेस्ट कब करवाना चाहिए?

1) जब किसी व्यक्ति में लिवर में क्षति होने के लक्षण व संकेत महसूस होने लगें, जैसे:-

2) जो लोग लंबे समय से शराब पीते हैं और लिवर खराब होने के जोखिम पर हैं। (और पढ़ें - शराब पीने के फायदे और नुकसान)

3) वायरल हेपेटाइटिस से ग्रसित लोग। (और पढ़ें - हेपेटाइटिस ए के लक्षण)

4) जो लोग हेपाटॉक्सिक (Hepatotoxic) ड्रग लेते हैं (लिवर में विषाक्त पदार्थ)।

5) उन लोगों में जो मोटापे या डायबिटीज से पीड़ित हैं। (और पढ़ें - मोटापा कैसे घटाएं और डायबिटीज का इलाज)

6) उन लोगों में जो लिवर के रोगों का उपचार करवा रहे हैं, इनमें एसजीपीटी टेस्ट का इस्तेमाल उपचार की प्रभावशीलता पर नजर रखने के लिए किया जाता है।

संदर्भ

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