मनोवैज्ञानिक परीक्षण कितने प्रकार के हो सकते हैं?
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की कई व्यापक श्रेणियां हैं:
आईक्यू टेस्ट (IQ test):
आईक्यू टेस्ट का इस्तेमाल बुद्धि क्षमता मापने के लिए किया जाता है, जबकि अचीवमेंट टेस्ट का इस्तेमाल क्षमता का उपयोग करने के विकास का स्तर मापने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के टेस्टों में, जिस व्यक्ति के टेस्ट किये जा रहे हैं उनको कुछ काम करने के लिए दिए जाते हैं। इन कामों पर व्यक्ति जो प्रतिक्रिया देते हैं, उन्हें निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार सावधानीपूर्वक वर्गीकृत किया जाता है। जब टेस्ट पूरा हो जाता है तो उसके रिजल्ट की औसत आंकड़ों के साथ तुलना की जाती है। यह तुलना आमतौर पर समान उम्र या ग्रेड लेवल के लोगों के साथ ही की जाती है।
रवैया परीक्षण (Attitude tests):
एट्टीट्यूड टेस्ट में किसी घटना, व्यक्ति या वस्तु के बारे में किसी व्यक्ति की भावनाओं का आंकलन किया जाता है। किसी ब्रांड या वस्तु के लिए किसी व्यक्ति की प्राथमिकता को निर्धारित करते के लिए मार्केटिंग में एट्टीट्यूड स्केल का उपयोग किया जाता है।
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रुचि परीक्षण (Interest tests):
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में किसी व्यक्ति की रुचि और उसकी पसंद (प्राथमिकता) का पता लगाया जाता है। इन टेस्टों का इस्तेमाल मुख्य रूप से करियर संबंधी परामर्श लेने के लिए किया जाता है। रुचि टेस्ट में रोजाना उपयोग की जाने वाली ऐसी चीजों को शामिल किया जाता है, जिन्हें वह व्यक्ति पसंद करता है। तर्क यह है कि अगर व्यक्ति दिए गए कार्य में उन लोगों के समान रूचि और प्राथमिकता दिखाता है जो इन कार्यों में सफल हो चुके हैं, तो ऐसे में टेस्ट लेने वाले व्यक्ति को इस कार्य से संतुष्टि मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
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योग्यता परीक्षण (Aptitude test):
योग्यता टेस्ट में विशिष्ट क्षमताओं को मापा जाता है, जैसे अवधारणात्मक, संख्यात्मक या स्थानिक योग्यता। कई बार इन टेस्टों को विशेष रूप से खास कार्य के लिए किया जाता है, लेकिन ऐसे कुछ टेस्ट भी उपलब्ध हैं जो सामान्य सीखने की क्षमता को मापते हैं।
न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट (Neuropsychological tests):
यह टेस्ट कुछ विशेष रूप से डिजाइन किए गए कार्यों से मिलकर बनता है, जिनका उपयोग साइकोलॉजिकल संबंधी फंक्शन्स की जांच करने के लिए किया जाता है। ये फंक्शन मस्तिष्क की किसी विशेष रचना या हिस्से से जुड़े होते हैं।
कुछ ऐसी बीमारी या चोटें होती हैं जो न्यूरोकॉग्निटिव फंक्शनिंग को प्रभावित कर देती हैं, ऐसी स्थितियों के बाद होने वाली क्षति की जांच करने के लिए न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट का उपयोग एक क्लिनिकल संदर्भ में किया जाता है। जब इस टेस्ट का रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इस दौरान इन परीक्षणों का मुख्य कार्य न्यूरोसाइकोलॉजिकल क्षमताओं की पहचान करना होता है।
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व्यक्तित्व टेस्ट (Personality test):
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में व्यक्तित्व का परीक्षण या तो “ऑब्जेक्टिव टेस्ट” रूप में या फिर “प्रोजेक्टिव टेस्ट” के रूप में किया जाता है:
- ऑब्जेक्टिव टेस्ट को “रेटिंग टेस्ट” भी कहा जाता है, इन टेस्टों की प्रतिबंधित प्रक्रिया होती है, जैसे सही और गलत जवाबों की पहचान करना और या पैमाने पर रेटिंग करना। ऑब्जेक्टिव पर्सनैलिटी टेस्ट को बिज़नेस के लिए भी डिजाइन किया जा सकता है, जिसकी मदद से प्रतिभावान कर्मचारियों का मूल्यांकन किया जाता है। (और पढ़ें - व्यक्तित्व विकास के टिप्स)
- प्रोजेक्टिव टेस्ट को “फ्री रिस्पांस टेस्ट” भी कहा जाता है। इस टेस्ट में किसी व्यक्ति की स्वतंत्र प्रतिक्रिया की जांच की जाती है, जैसे किसी असाधारण तस्वीर पर व्यक्ति की व्याख्या या प्रतिक्रिया। कुछ प्रोजेक्टिव टेस्टों का इस्तेमाल आजकल बेहद कम ही किया जाता है, क्योंकि इन टेस्टों में समय अधिक लगता है और इनकी वैधता और विश्वसनीयता भी विवादास्पद है। (और पढ़ें - व्यक्तित्व विकार के प्रकार)
सेक्सोलॉजिकल टेस्ट (Sexological test):
सेक्सोलॉजी (यौन-क्रियाओं की विद्या) के लिए किये जाने वाले टेस्ट काफी कम हैं। यौन संबंधी बीमारियों व अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए सेक्सोलॉजी टेस्ट एक अलग प्रकार का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन प्रदान करता है।
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