एलएसी टेस्ट आमतौर पर पीटीटी के स्तर की जांच के साथ या पीटीटी की जांच के बाद किया जाता है। सामान्य पीटीटी का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर में एलएसी नहीं है, जबकि प्रोलोंग्ड या लंबे समय से पीटीटी मौजूद होने का मतलब है कि एलएसी की जांच करने की जरूरत है।
सामान्य परिणाम -
टेस्ट में एलएसी न मिलने का मतलब है कि रिजल्ट सामान्य है। इसका मतलब है कि पीटीटी के बढ़े हुए स्तर ऑटोएंटीबॉडीज के कारण नहीं है, इसका कारण कुछ और हो सकता है जैसे कोआगुलेशन फैक्टर की कमी।
एलएसी टेस्ट को आमतौर पर केवल एक ही बार नहीं किया जाता और ना ही एक बार करने से एलएसी रोग की पुष्टि हो पाती है। इसको हर बारह हफ्तों के अंतराल में कई बार किया जाता है और यदि टेस्ट के परिणाम दो से अधिक बार पॉजिटिव आते हैं तो इसका मतलब होता है कि व्यक्ति को एलएसी है।
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असामान्य परिणाम -
एलएसी की उपस्थिति इस बात की तरफ संकेत करती है कि परिणाम असामान्य हैं। जिसका मतलब है कि डीवीटी, वीटीई या वेनस थ्रोम्बोएम्बोलिस्म के जो संकेत और लक्षण दिखाई दे रहे हैं वे एलएसी के कारण ही हैं।
प्रोलोंग्ड पीटीटी के मामलों में एलएसी के परीक्षण की पुष्टि के लिए अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं। इस टेस्ट में कम्पलीट ब्लड काउंट भी शामिल है जो कि लो प्लेटलेट लेवल (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया) के बारे में बताता है, ऐसा एलएसी में देखा जाता है। इसके साथ कोएगुलेशन फैक्टर असे (फाइब्रिनोजन की तरह) कोएगुलशन फैक्टर डेफिशिएंसी को अलग करने के लिए किया जाता है जो कि पीटीटी और थ्रोम्बिन टाइम के स्तर को बढ़ा सकता है। पीटीटी के स्तर हेपरिन थेरेपी के द्वारा भी बढ़ सकते हैं। कोएगुलेशन फैक्टर असे इस कारण को अलग करने में मदद करता है।
एलएसी के परिणाम कुछ विशेष मामलों में गलत तरह से भी पॉजिटिव आ सकते हैं, जैसे यदि किसी व्यक्ति ने हेपरिन थेरेपी करवाई है तो परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। ये उन लोगों में भी पॉजिटिव आ सकते हैं, जिन्हें ऑटोइम्यून डिजीज, एचआईवी संक्रमण, कुछ विशेष प्रकार के कैंसर हों। इसके अलावा पेनिसिलिन, हाइड्रालेजाइन, क्विनिडाइन और फेनोथिजाइन जैसी दवाओं के कारण भी टेस्ट के रिजल्ट गलत तरह से पॉजिटिव आ सकते हैं।
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