फाइब्रिनोजन डिग्रेडेशन प्रोडक्ट (एफडीपी) टेस्ट क्या है?
फाइब्रिनोजन डिग्रेडेशन प्रोडक्ट (एफडीपी) टेस्ट एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है, जिसका प्रयोग उन पदार्थों की जांच करने के लिए किया जाता है जो थक्के (ब्लड क्लॉट) के खून में घुल जाने के बाद बच जाते हैं। यह टेस्ट रक्त के थक्के जमने से जुड़े विकारों की जांच करने के लिए किया जाता है।
फाइब्रिनोजन एक ग्लाइकोप्रोटीन है जो कि कोएग्युलेशन के कार्याों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब भी आपको चोट लगती है तो आपका शरीर फाइब्रिनोजन को अघुलनशील प्रोटीन फाइब्रिन में तोड़ता है। यह फाइब्रिन चोट की जगह पर एक जाल बना देते हैं, जिससे ब्लीडिंग बंद हो जाती है। जैसे-जैसे चोट लगी जगह ठीक होती है फाइब्रिन का जाल टूटने लगता है और यह प्रोटीन छोटे-छोटे टुकड़ों (फ्रेगमेंट) के रूप में रक्त में स्रावित होने लगता है। इन्हीं फ्रेगमेंट को फाइब्रिन डिग्रेडेशन प्रोडक्ट या एफडीपी कहा जाता है।
यदि रक्त में एफडीपी अधिक मात्रा में मौजूद होते हैं तो इससे रक्त का संतुलन बिगड़ जाता है और इससे हेमरेज हो सकता है। हेमरेज ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर का सबसे सामान्य प्रकार है। इसीलिए ब्लड क्लॉटिंग से जुड़े विशेष लक्षणों की पहचान करने के लिए डॉक्टर इस टेस्ट को करवाने की सलाह दे सकते हैं।
क्रॉस लिंक्ड फाइब्रिन प्रक्रिया के दौरान टूटने वाला फ्रेगमेंट जो सबसे मुख्य होता है, उसे डी-डाइमर कहा जाता है।
क्रॉस लिंक्ड फाइब्रिन के टूटने की प्रक्रिया के दौरान जो फ्रेगमेंट सबसे अधिक बनता है उसे डी-डिमर कहते हैं। रक्त में डी-डिमर का आकलन फाइब्रिनोलिसिस की प्रक्रिया के साथ बेहतर तरीके से संबंधित होता है। तो इस टेस्ट के साथ डॉक्टर आपको डी-डिमर के स्तरों की जांच करवाने के लिए अलग से टेस्ट कराने को भी कह सकते हैं।
(और पढ़ें: डी-डिमर टेस्ट क्या है)
एफडीपी टेस्ट को कभी-कभी फाइब्रिन स्प्लिट प्रोडक्ट्स या फाइब्रिन ब्रेकडाउन प्रोडक्ट्स भी कहा जाता है।