फटिग पैनल क्या है?
थकान खुद कोई रोग नहीं होता, बल्कि यह एक लक्षण होता है। इसमें व्यक्ति को लगातार थकान महसूस होती है। हालांकि, लगातार थकान रहना किसी सामान्य थकावट या कमजोरी महसूस होने की स्थिति से गंभीर होती है। रोजाना पर्याप्त नींद लेने, उचित व्यायाम करने व पोषक तत्व लेने पर भी अगर आपको थकावट महसूस होती है, तो इस स्थिति को थकान कहा जाता है।
बहुत से व्यस्क इस स्थिति को कभी न कभी महसूस करते हैं। थकान शारीरिक या मानसिक या फिर दोनों तरह से हो सकती है। यह किसी मेडिकल स्थिति के कारण है या फिर जीवनशैली से संबंधित समस्याओं व मानसिक रूप से ठीक न होने के कारण हो सकता है।
फटिग पैनल टेस्ट में निम्न टेस्ट आते हैं -
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कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) - यदि डॉक्टर को थकान, कमजोरी या नील जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो वे इस टेस्ट को करने की सलाह दे सकते हैं। सीबीसी इन लक्षणों को पैदा करने वाली स्थिति का पता लगा सकता है। इसमें निम्न टेस्ट आते हैं -
- वाइट ब्लड सेल (डब्ल्यूबीसी) काउंट - डब्ल्यूबीसी आपके शरीर को बैक्टीरिया, वायरस व अन्य सूक्ष्मजीवों से बचाता है। जब आपको कोई संक्रमण होता है तो डब्ल्यूबीसी की संख्या बढ़ जाती है। इसीलिए डब्ल्यूबीसी काउंट आपको संक्रमण के बारे में पता लगाने में मदद करता है। कैंसर के मरीजों के मामले में, यह टेस्ट इस बात का पता लगाने में भी मदद करता है कि आपका शरीर कैंसर के ट्रीटमेंट पर किस तरह से प्रतिक्रिया कर रहा है।
- डब्ल्यूबीसी काउंट (डिफ्रेंशियल) - शरीर में भिन्न प्रकार की सफ़ेद रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं जैसे न्यूट्रोफिल्स, इओसिनोफिल्स, बासोफिल्स, मोनोसाइट्स और लिम्फोसाइट्स। प्रत्येक सफेद रक्त कोशिका शरीर की रक्षा करने में मदद करती है। डब्ल्यूबीसी में किसी भी प्रकार की कमी या अधिकता कुछ विशेष स्थितियों की और संकेत होता है। उदाहरण के तौर पर इओसिनोफिल्स के अधिक स्तर से एलर्जी की समस्या होती है। डिफ्रेंशियल डब्ल्यूबीसी काउंट अपरिपक्व न्यूट्रोफिल्स की जांच करने में भी मदद करता है, जिसे बैंड न्युट्रोफिल कहा जाता है।
- रेड ब्लड सेल काउंट (आरबीसी) - आरबीसी फेफड़ों से शरीर के भिन्न अंगों में ऑक्सीजन पहुंचाता है और फेफड़ों तक कार्बनडाइऑक्सइड को वापस ले जाता है। यदि आपके शरीर में आरबीसी के स्तर बहुत अधिक है तो वे एक साथ इकट्ठे होकर सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं को ब्लॉक कर सकते हैं। यदि आपके आरबीसी के स्तर बहुत कम हैं तो इसका मतलब है कि आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है।
- हेमेटोक्रिट (एचसीटी) - यह टेस्ट रक्त में आरबीसी के घनत्व की जांच करता है। यह रक्त में आरबीसी के प्रतिशत की जांच की तरह किया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि एचसीटी की वैल्यू 42 है, तो आरबीसी रक्त में 42 प्रतिशत है।
- हीमोग्लोबिन (एचजीबी) - आरबीसी में हीमोग्लोबिन भी मौजूद होता है। यह ऑक्सीजन को ले जाता है और संचारित करता है। आरबीसी में लाल रंग एचजीबी के कारण आता है। एचजीबी शरीर के ऑक्सीजन संचारित करने की योग्यता का पता लगाता है। एचसीटी के साथ यह टेस्ट एनीमिया और पॉलिसिथिमिया का भी पता लगाता है, क्योंकि इन दोनों ही स्थितियों में थकान एक लक्षण होता है।
- आरबीसी इंडिसेस - आरबीसी इंडिसेस वे वैल्यू हैं जो सीबीसी में मौजूद अन्य टेस्टों के परिणामों को लिखने के लिए प्रयोग की जाती है। तीन आरबीसी इंडिसेस होते हैं - मीन कर्पुसकुलर वॉल्यूम (एमसीवी, आरबीसी का आकार), मीन कर्पुसकुलर हीमोग्लोबिन (एमसीवी, सामान्य आरबीसी में एचजीबी की मात्रा) और मीन कर्पुसकुलर हीमोग्लोबिन कंसंट्रेशन (एमसीएचसी, सामान्य आरबीसी में एचजीबी की मात्रा)। ये इंडिसेस एनीमिया के विभिन्न प्रकारों का पता लगा सकते हैं।
- रेड सेल डिस्ट्रीब्यूशन विड्थ (आरडीडब्ल्यू) - यह टेस्ट आपके रक्त में आरबीसी के आकार और आकृति का पता लगाता है।
- प्लेटलेट काउंट - प्लेटलेट सबसे छोटी लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो कि क्लॉटिंग में मदद करती हैं। यदि आपके प्लेटलेट काउंट कम हैं तो आपको अनियंत्रित रक्तस्त्राव हो सकता है। वहीं यदि आपके रक्त में प्लेटलेट की संख्या अधिक है, तो रक्त वाहिकाओं में क्लॉट जमने का अधिक खतरा है।
- मीन प्लेटलेट वॉल्यूम (एमपीवी) - एमपीवी आपके रक्त में मौजूद प्लेटलेट की औसत वैल्यू है। इसकी जांच प्लेटलेट काउंट के साथ कुछ विशेष बीमारियों का परीक्षण करने के लिए की जाती है। यदि प्लेटलेट काउंट नॉर्मल है तब भी एमपीवी असामान्य हो सकता है।
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एरिथ्रोसाइट सेडीमेंटेशन रेट (ईएसआर) - ईएसआर यह जांचता है कि एक घंटे में किसी टेस्ट ट्यूब की सतह में आरबीसी कितनी तेजी से जम जाते हैं। यदि अधिक आरबीसी सतह पर जम जाते हैं तो इसका मतलब है कि ईएसआर अधिक है।संक्रमण, कैंसर या ऑटोइम्यून विकार जैसी स्थितियों में शरीर विशेष प्रोटीन बनाता है जिससे ईएसआर के स्तर बढ़ जाते हैं।
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ब्लड शुगर (सामान्य) - ब्लड शुगर टेस्ट आपके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा की जांच करता है। रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट में यह जानने की जरूरत नहीं होती है कि आपका आखिरी भोजन किस समय हुआ था, यह टेस्ट दिन में कई बार किया जाता है। सामान्य लोगों में यह स्तर एक सामान रहता है। यदि ग्लूकोज के स्तर में कोई बदलाव आता है, तो इसका मतलब है कि व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या हो सकती है।
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क्रिएटिनिन - क्रिएटिनिन लेवल आमतौर पर किडनी की कार्य प्रक्रिया का पता लगाने के लिए जांचे जाते हैं। आपकी किडनी लगातार रक्त से अपशिष्ट पदार्थ निकालती रहती है, इसमें क्रिएटिनिन भी एक होता है। इससे डॉक्टर क्रिएटिनिन के स्तरों की एक मानक मात्रा के साथ तुलना करके किडनी की कार्यशीलता का पता लगा सकते हैं।
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कैल्शियम - यह टेस्ट आपके रक्त में टोटल कैल्शियम की मात्रा का पता लगाता है। कैल्शियम के शरीर में कई सारे कार्य होते हैं जैसे हड्डियों को मजबूत रखना और टूथ इनेमल को बनाना आदि। इसके अलावा मांसपेशियों के संकुचन के लिए, हृदय के ठीक तरह से कार्य करने के लिए, ब्लड क्लॉटिंग के लिए और नसों को सिग्नल देने के लिए भी यह जरूरी होता है। तो शरीर में कैल्शियम का स्तर पता लगाने से कई सारी स्थितियों के परीक्षण और निरीक्षण में मदद मिलती है।
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मैग्नीशियम - यह टेस्ट रक्त में मैग्नीशियम नामक खनिज के स्तरों का पता लगाता है। मैग्नीशियम आपकी हड्डियों और कोशिकाओं में पाया जाता है। इसके कई सारे कार्य होते हैं जैसे मांसपेशियों के संकुचन को नियमित रखना, हृदय के ठीक तरह से कार्य करने में मदद करना, ब्लड क्लॉटिंग प्रक्रिया को नियमित रखना, नसों को सिग्नल देना और यहां तक कि ब्लड शुगर और रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।
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सोडियम - यह एक ब्लड टेस्ट है जो कि रक्त में सोडियम के स्तरों की जांच करता है। सोडियम कोशिकाओं की सामान्य कार्य प्रक्रिया में मदद करता है। आपको सोडियम भोजन द्वारा मिलता है और किडनी द्वारा इसे निकाल दिया जाता है। यदि सोडियम आपके रक्त में जमा हो जाता है तो इससे उच्च रक्त चाप की स्थिति पैदा हो जाती है।
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पोटेशियम - यह टेस्ट रक्त में पोटेशियम के स्तरों की जांच करता है। पोटेशियम की अत्यधिक मात्रा स्वस्थ कोशिकाओं में पाई जाती है, वहीं कुछ मात्रा रक्त में भी मौजूद होती है। पोटेशियम के भिन्न कार्य होते हैं जैसे मांसपेशियों का संकुचन, तंत्रिका चालन, हृदय की कार्यशीलता और द्रव के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
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क्लोराइड - यह ब्लड टेस्ट रक्त में क्लोराइड की मात्रा का पता लगाता है। क्लोराइड कोशिकाओं में द्रव पहुंचाने और संचारित करने में मदद करता है। यदि आपके क्लोराइड के स्तर असंतुलित हैं तो आपको अस्वस्थ महसूस हो सकता है। यदि आपको उल्टी या दस्त हों तो आपके क्लोराइड के स्तर गिर सकते हैं, लेकिन अगर आपको डायबिटीज है तो वे बढ़ भी सकते हैं।
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सीरम ग्लूटामिक-पाइरुविक ट्रांसमिनेज (एसजीपीटी) - यह ब्लड टेस्ट लिवर की कार्य प्रक्रिया का पता लगाता है। यह एलानिन एमिनोट्रांस्फ़ेरेज के स्तरों का पता लगाता है। एलानिन एमिनोट्रांस्फ़ेरेज लिवर में पाया जाने वाला एक एंजाइम है, जो कि लिवर कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने पर रक्त में स्त्रावित हो जाता है। यदि एसजीपीटी के स्तर अधिक होते हैं, तो इसका मतलब ये है कि आपका लिवर क्षतिग्रस्त है।
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थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) - टीएसएच एक हार्मोन है, जो कि मस्तिष्क में मौजूद पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। यह हार्मोन हमारे गले के निचले हिस्से में मौजूद थायराइड ग्रंथि को टी3 और टी4 हार्मोन बनाने के लिए उत्तेजित करता है। यदि आपकी टीएसएच के स्तर बहुत अधिक हैं, तो आपकी थायराइड ग्रंथि बहुत अधिक काम कर रही है, जिसका मतलब है कि आपको हाइपरथायराइडिज्म हो सकता है। हालांकि, अगर आपके थायराइड के स्तर कम हैं तो इसका मतलब है कि आपकी थायराइड ग्रंथि पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं है, जिसके कारण हाइपोथायराइडिज्म हो सकता है।
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फोलिक एसिड (फोलेट या विटामिन बी-9 टेस्ट) - यह टेस्ट आरबीसी में या फिर रक्त के द्रविय भाग (सीरम) में विटामिन बी9 के स्तरों की जांच करने के लिए किया जाता है। फोलेट सिट्रस फलों और पालक जैसी सब्जियों में पाया जाता है। फोलेट डीएनए और कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है। यह कैंसर से बचाने में भी मदद करता है। यदि आपके फोलेट के स्तर कम हैं, तो इससे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया हो सकता है जिसमें आरबीसी का आकार बढ़ जाता है और उनकी संख्या कम होने लगती है। यदि गर्भावस्था के दौरान आपके फोलेट के स्तर कम हैं तो यह शिशु के मस्तिष्क या स्पाइन में विकार पैदा कर सकता है।
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यूरिन आर/एम (रूटीन और माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन) - इस टेस्ट की मदद से मूत्राशय पथ के संक्रमण, किडनी और लिवर की स्थितियों, डायबिटीज और कैंसर का परीक्षण किया जा सकता है। यह तीन तरह से जांचा जाता है -
- विज़ुअल स्क्रीनिंग - पेशाब का रंग और इसकी प्रकृति उसमें रक्त व पस की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करती है, जिससे विभिन्न स्थितियों के बारे में जांचा जा सकता है। कभी-कभी इसमें पथरी का भी पता लगाया जा सकता है। पेशाब से कैसी बदबू आती है, उससे भी कुछ रोगों के बारे में पता लग सकता है।
- केमिकल स्क्रीनिंग - इसमें एक डिप स्टिक का प्रयोग किया जाता है जो कि ग्लूकोज , प्रोटीन, पीएच, कीटोन, बिलीरुबिन और आरबीसी को जांचने का एक अच्छा तरीका है।
- माइक्रोस्कोपिक स्क्रीनिंग - यूरिन की जांच माइक्रोस्कोप में की जाती है। ऐसा पेशाब में यूरिन क्रिस्टल, कोशिकाओं, बलगम, यूरिनरी कास्ट, अन्य पदार्थ जैसे बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीवों की जांच करने के लिए किया जाता है।