एंटी-जीबीएम (ग्लोमेरुलर बेसमेंट मेम्ब्रेन) एंटीबॉडीज टेस्ट क्या है?
एंटी-जीबीएम एंटीबॉडीज टेस्ट ग्लोमेरुलर बेसमेंट मेम्ब्रेन के प्रति बने एंटीबॉडीज की जांच करने के लिए किया जाता है।
एंटीबॉडीज विशेष प्रोटीन होते हैं, जो कोशिकाओं द्वारा बाहरी पदार्थों जैसे बैक्टीरिया, वायरस या अन्य किसी विषाक्त पदार्थ के प्रति बनाए जाते हैं। हालांकि कभी-कभी हमारा शरीर गलती से स्वयं के ऊतकों और स्वस्थ अंगों के प्रति एंटीबॉडीज बना देता है, जिसे ऑटोइम्यून रोग कहा जाता है।
जीबीएम एक परत होती है, जो ग्लोमेरुली में मौजूद रक्त वाहिकाओं की दीवार पर बनी होती है। ग्लोमेरुली किडनी के फिल्टर होते हैं जो कि रक्त से अपशिष्ट पदार्थ हटाते हैं और रक्त कोशिकाओं व प्रोटीन को ठीक प्रकार से बनाए रखते हैं।
एंटी-जीबीएम एंटीबॉडीज ग्लोमेरुली को नष्ट कर देती है जिसके कारण प्रोटीन और रक्त कोशिकाएं यूरिन में निकल जाते हैं। इन एंटीबॉडीज द्वारा हुई क्षति से किडनी की कार्य प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।
कभी-कभी एंटी-जीबीएम एंटीबॉडीज आपके फेफड़ों में मौजूद वायु कोषों की अंदरुनी पतली दीवारों की रक्त वाहिकाओं को भी क्षति पहुंचाने लगते हैं, जिसके कारण ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड की आवाजाही प्रभावित होती है। इन रक्त वाहिकाओं में चोट लगने के कारण वायु कोषों में रक्त स्त्राव होता है जिसके कारण सांस लेने में तकलीफ होती है। जब ये एंटीबॉडीज केवल किडनी को प्रभावित करते हैं तो इसे एंटी-जीबीएम ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस कहते हैं। जब ये किडनी व फेफड़ों दोनों को प्रभावित करते हैं तो इसे गुडपास्चर सिंड्रोम कहते हैं। ये बीमारियां काफी दुर्लभ हैं और एक मिलियन में एक से भी कम व्यक्तियों को होती है। यह 15-35 वर्ष के पुरुषों और पचास से कम उम्र की महिलाओं को समान रूप से ही प्रभावित करती हैं।
आमतौर पर रक्त वाहिकाओं के अंदर मौजूद कोशिकाओं की परत इन एंटीबॉडीज से बेसमेंट मेम्ब्रेन की रक्षा करती है। हालांकि, धूम्रपान, संक्रमण, केमिकल या धातु की धूल के साथ संपर्क से इन कोशिकाओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है, जिससे एंटीबॉडीज बेसमेंट मेम्ब्रेन को अंदर तक नुकसान पहुंचाते हैं।