एमिनोलेवुलिनिक एसिड, पोर्फोबिलिनोजन और पॉरफाइरिया विशेष प्रकार के घटक होते हैं, जो हीम बनाने की प्रक्रिया के दौरान बनते हैं। हीम (Haem) लार रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक पिगमेंट है, जिसमें आयरन मौजूद होता है।
एमिनोलेवुलिनिक एसिड और पोर्फोबिलिनोजन प्रक्रिया के द्वारा बनने वाले शुरुआती उत्पाद होते हैं। उसके बाद ये उत्पाद अन्य एंजाइमों की मौजूदगी में पॉरफाइरिन में बदलने लगते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया को पूरा होने में आठ अलग-अलग एंजाइमों की आवश्यकता पड़ती है।
यदि इन आठ एंजाइमों में से किसी एक में कोई भी खराबी या कमी है, तो यह पूरी प्रक्रिया को प्रभावित कर देता है। ऐसा होने पर मध्यवर्ती पॉरफाइरिन जमा होने लगते हैं, जैसे यूरोपॉरफाइरिन व कोप्रोपॉरफाइरिन शारीरिक द्रवों व ऊतकों में जमा होने लगते हैं।
पॉरफाइरिन थोड़ी सी मात्रा में हमेशा खून में मौजूद होता है। हालांकि, यदि पॉरफाइरिन शरीर में बनने लगता है, तो ये पॉरफाइरिया नामक स्थिति पैदा कर देते हैं। पॉरफाइरिया रोग तंत्रिका प्रणाली और त्वचा पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
एएलए यूरिन टेस्ट की मदद से पेशाब में मध्यवर्ती पॉरफाइरिन के स्तर की जांच की जाती है, जैसे यूरोपॉरफाइरिन और कोप्रोपॉरफाइरिन आदि। इस टेस्ट का उपयोग पॉरफाइरिया रोग का परीक्षण करने और उसकी गंभीरता पर नजर रखने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए पेशाब में पॉरफाइरिन के प्रीकर्सर (पोर्फोबिलिनोजन, पीबीजी) का अत्यधिक स्तर (रोजाना 6 एमजी से अधिक) बार-बार होने वाले एक्यूट पॉरफाइरिया, वेरिएगेट पॉरफाइरिया और आनुवंशिक कोप्रोपॉरफाइरिया का संकेत देता है।
इस टेस्ट का उपयोग सीसा विषाक्तता और लिवर खराब होने संबंधी समस्याओं का परीक्षण करने के लिए भी किया जा सकता है। सीसा विषाक्तता से ग्रस्त ज्यादातर लोगों में एएलए का स्तर अधिक मिलता है। यदि एएलए का स्तर कम हो गया है, तो यह लिवर खराब होने के संकेत दे सकता है।
पॉरफाइरिया के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो एंजाइम संबंधी समस्याओं और शरीर में जमा हुऐ पॉरफाइरिन की मात्रा पर निर्भर करते हैं।