एएटी (अल्फा-1 ऐंटीट्रिप्सिन) टेस्ट क्या है?

एएटी लिवर द्वारा बनाया जाने वाला एक प्रोटीन है। यह न्युट्रोफिल इलास्टेस एंजाइम से फेफड़े क्षतिग्रस्त होने की रक्षा करता है। न्युट्रोफिल इलास्टेस फेफड़ों की मृत और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पचाता है और हानिकारक बैक्टीरिया से फेफड़ों की रक्षा करता है। हालांकि यदि इसकी जांच नहीं की जाती तो ये फेफड़ों की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगता है। हालांकि कुछ लोगों में अनुवांशिक तौर से इस एंजाइम की कमी होती है और ऐसे लोगों में लिवर व फेफड़ों संबंधी बीमारियां होने का खतरा होता है। 

एएटी टेस्ट को एएटी डेफिशियेंसी टेस्ट भी कहा जाता है, यह एक ब्लड टेस्ट है जो कि शरीर में एएटी के जमाव को मापता है। यह फेफड़ों के रोग, प्रोटीन-लूजिंग डिसऑर्डर की पहचान करने में मदद करता है। यह वयस्कों और बच्चों में लिवर सिरोसिस का परीक्षण करने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है।

  1. एएटी टेस्ट क्यों किया जाता है - AAT Test Kyu Kiya Jata Hai
  2. एएटी टेस्ट से पहले - AAT Test Se Pahle
  3. एएटी टेस्ट के दौरान - AAT Test Ke Dauran
  4. एएटी टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - AAT Test Result and Normal Range

एएटी टेस्ट किसलिए किया जाता है?

एएटी की कमी से बच्चों और वयस्कों में लिवर व फेफड़ों संबंधी विकार हो जाते हैं। इस टेस्ट की सलाह डॉक्टर उन लोगों को देते हैं, जिनके परिवार के करीबी लोगों को लिवर या फेफड़ों संबंधी विकार हैं या जिन्हें एएटी की कमी हो सकती है। एएटी टेस्ट की सलाह उन मरीजों को भी दी जाती है जिनमें निम्न संकेत या लक्षण दिखाई देते हैं:

  • वातस्फीति, फेफड़ों का एक रोग जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है
  • लंबे समय से घरघराहट होना
  • अच्छे से इलाज करने के बाद भी अस्थमा नियंत्रित ना होना
  • बार-बार श्वसन पथ में संक्रमण होना 
  • खड़े होने पर हृदय की धड़कन बढ़ना
  • थोड़ा सा व्यायाम करने के बाद भी सांस फूलना 
  • उल्टी में खून आना
  • बच्चों में लिवर संबंधी समस्याएं होना
  • बिना किसी कारण के वजन घटना
  • बच्चों की आंखें व त्वचा पीली पड़ जाना
  • पेट, पैर और टांगों में सूजन होना
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एएटी टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

इस टेस्ट के लिए किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती। डॉक्टर आपको टेस्ट का उद्देश्य और प्रक्रिया समझा देंगे। आमतौर पर टेस्ट से पहले मरीज को भूखे रहने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, हाइपरलिपिडेमिया (रक्त में वसा का अधिक स्तर) की स्थिति में टेस्ट से पहले दस घंटे के लिए भूखे रहने के लिए कहा जा सकता है।                                                                                                                                                                    

एएटी टेस्ट कैसे किया जाता है?

  • एक अनुभवी डॉक्टर आपकी बांह को प्रॉविडोन-आयोडीन से साफ करेंगे और बांह को हल्का सा कसने के लिए एक इलास्टिक बैंड बांधेंगे। इसके बाद बांह की नस में सुई लगाकर सात मिली तक खून के सैंपल ले लिए जाएंगे। 
  • टेस्ट के बाद आपको इंजेक्शन लगी जगह पर हल्का-सा दर्द या घाव हो सकता है। हालांकि ये ज्यादा समय तक नहीं रहता। 
  • ब्लड लेने के बाद, डॉक्टर इलास्टिक बैंड हटा देंगे और इंजेक्शन लगी जगह पर हल्का-सा दबाव लगा कर वहां पट्टी लगा देंगे। इससे रक्त स्त्राव रुक जाएगा और संक्रमण नहीं होगा। 
  • ब्लड सैंपल पर लेबल लगाकर उसे आगे की जांच के लिए लैब में भेज दिया जाएगा।
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एएटी टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

सामान्य परिणाम:
रक्त में एएटी का 100-200 mg/dL (18.4-36.8 μmol/L) स्तर सामान्य माना जाता है। हालांकि, टेस्ट के तरीकों के अनुसार हर लैब के सामान्य स्तर अलग-अलग हो सकते हैं। 

असामान्य परिणाम:
जब अल्फा-1 ऐंटीट्रिप्सिन के सीरम के स्तर 70 mg/dL (<12.9 μmol/L) हो, तो एएटी के परिणामों को असामान्य माना जाता है। इतने कम स्तर का मतलब होता है कि व्यक्ति में फेफड़ों संबंधी शुरुआती बीमारियां होने का खतरा है। कुछ मरीजों में, एएटी का स्तर 125mg/dL (<23 μmol/L) से कम होता है। ऐसे लोगों में फेफड़ों संबंधी विकार जैसे वातस्फीति होने का अधिक खतरा होता है। हालांकि डॉक्टर ऐसे लोगों को जेनेटिक टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं। 

एएटी के असामान्य परिणाम निम्न स्थितियों में आते हैं:

 सूजन व जलन संबंधी कई स्थितियों में एएटी अधिक मात्रा में स्त्रावित होने लगता है जिससे इसके स्तर बढ़ जाते हैं। एस्ट्रोजन, स्टेरॉयड और ओरल कंट्रासेप्टिव जैसी दवाओं से भी एएटी के स्तर बढ़ सकते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थितियां भी हैं, जो एएटी के स्तर को बढ़ा देती है:

  • सिस्टमिक लुपस एरीथेमॅटोसस 
  • कैंसर 
  • गर्भावस्था, जेस्टेशन (गर्भधारण करने की आखिरी अवस्थाओं में) 
  • तनाव

यदि इस टेस्ट के परिणाम किसी गंभीर स्थिति की तरफ संकेत करते हैं तो डॉक्टर आगे टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं। आपसे धूम्रपान न करने व धूल और रसायनों के संपर्क में न आने के लिए कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये फेफड़ों की बीमारी को बढ़ा सकते हैं।

परीक्षण के रिजल्ट के आधार पर ही डॉक्टर आपका उचित इलाज कर पाएंगे और आपको उचित अनुवांशिक सलाह दे पाएंगे।

संदर्भ

  1. Wilson DD. McGraw-Hill’s Manual of Laboratory and Diagnostic Tests. 2008. The McGraw-Hill Companies, Inc. Pp: 22-23.
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  3. Marshall WJ, Lapsley M, Day AP, Ayling RM. Clinical Biochemistry: Metabolic and Clinical Aspects. 3rd ed. 2014. Churchill Livingstone, Elsevier Ltd. Pp: 384, 446, 494.
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