अल्बर्ट स्टेन एक क्लासिक माइक्रोबायोलॉजिकल स्टेनिंग तकनीक है जिसका इस्तेमाल डिप्थीरिया के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया कॉरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया का पता लगाने के लिए किया जाता है।
यह एक संक्रामक बीमारी है जिससे एक्यूट रेस्पिरेट्री ऑब्सट्रक्शन, एक्यूट सिस्टेमिक टॉक्सिसिटी, माओकार्डिटिस और मृत्यु तक हो सकती है। कई साल पहले विश्व स्तर पर उष्णकटिबंधीय देशों में डिप्थीरिया मौत के सबसे प्रमुख कारणों में से एक था।
भारत के कुछ क्षेत्रों में डिप्थीरिया था। हालांकि, अब इस बीमारी का टीका आने से इसे कंट्रोल कर लिया गया है। पिछले 10 सालों में डिप्थीरिया के कुछ ही मामले सामने आए हैं।
डिप्थीरिया पैथोजीन का पता नेसोफेरेंजाइल स्राव में चल सकता है। इसलिए इस बीमारी का निदान अल्बर्ट स्टेन के इस्तेमाल से इन स्रावों के स्मियर के स्टेनिंग से और अन्य माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्टों के जरिए हो सकता है।
डिप्थीरिया के प्रमुख लक्षण में गले में खराश और गले में ग्रे रंग की परत बनना, कुछ मामलों में स्किन पर अल्सर हो सकते हैं।
सी.डिप्थीरिया का इस्तेमाल अल्बर्ट स्टेनिंग में होता है जो कि मेटाक्रोमैटिक ग्रैनूल से बनता है। इसमें साइटोप्लाज्मि, आरएनए और पॉलीफास्फेट होते हैं। अल्बर्ट स्टेन एक अलग तरह का स्टेन है जो एसिडिक डाई टोलूईडाइन ब्लू का उपयोग कर बैक्टीरियल प्रोटोप्लाज्म ब्लू और ग्रैनूल वायलेट रेड से स्टेन करता है। इस तरह सी.डिप्थीरिया के होने की पुष्टि होती है।