एएफपी ब्लड टेस्ट क्या है?

अल्फा-फीटोप्रोटीन को एएफपी भी कहा जाता है, जो मनुष्य के शरीर में पाया जाने वाला एक विशेष प्रोटीन होता है। यह वयस्क या भ्रूण के लिवर में संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। एएफपी ब्लड टेस्ट को अल्फा-फीटोप्रोटीन टेस्ट भी कहा जाता है।

वयस्कों के रक्त में एएफपी का स्तर बहुत ही कम होता है, जिसकी उपस्थिति का आमतौर पर पता नहीं चल पाता है। हालांकि, कुछ विशेष प्रकार के ट्यूमर होने पर रक्त में एएफपी का स्तर बढ़ने लगता है। इसीलिए, किसी वयस्क व्यक्ति के रक्त में एएफपी का स्तर बढ़ना ट्यूमर विकसित होने का संकेत देता है। एएफपी का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि ट्यूमर किस स्टेज पर है। इसी प्रकार से, एएफपी को एक ट्यूमर मार्कर के रूप में भी काम करता है।

चूंकि, एएफपी लिवर में दोबारा विकसित होने वाली कोशिकाओं द्वारा बनाया जाता है, कुछ समय बीतने पर रक्त के स्तर में बदलाव होना लिवर संबंधी रोगों का संकेत दे सकता है।

भ्रूण के शरीर द्वारा बनाया गया एएफपी मां के रक्त में मिलता रहता है। दूसरी तिमाही में आते-आते इसका स्तर बढ़ जाता है और दूसरी तिमाही के अंत तक अधिकतम स्तर पर पहुंच जाता है। जैसा कि वयस्कों में एएफपी के स्तर का पता नहीं चल पाता है, इसलिए मां के रक्त में एएफपी की जांच कर लेनी चाहिए। मां के शरीर में एएफपी की जांच करने से भ्रूण में बढ़े हुए एएफपी से होने वाली समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।

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  1. एएफपी ब्लड टेस्ट किसलिए किया जाता है - AFP test kisliye kiya jata hai
  2. एएफपी ब्लड टेस्ट से पहले - AFP Blood test se pahle
  3. एएफपी ब्लड टेस्ट के दौरान - AFP Test ke dauran
  4. एएफपी ब्लड टेस्ट के क्या जोखिम होते हैं - AFP Test ke kya jokhim
  5. एएफपी टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Alpha Fetoprotein Test Result and Normal Range in Hindi

डॉक्टर कुछ विशेष स्थितियों में ही एएफपी ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

एएफपी ब्लड टेस्ट को गर्भवती महिलाओं की दूसरी तिमाही में भी किया जा सकता है, जिसमें यह एक सामान्य परीक्षण के रूप में किया जाता है। यह टेस्ट खासतौर पर उन महिलाओं में किया जाता है, जो 35 साल या उससे अधिक उम्र होने पर गर्भधारण करती हैं।

एएफपी ब्लड टेस्ट को अन्य टेस्टों के रिजल्ट कि पुष्टि करने के लिए भी किया जा सकता है। ऐसा आमतौर पर तब किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को कुछ लक्षण महसूस हो रहे हों और संबंधित टेस्टों से समस्या का पता न लग पाए। एएफपी ब्लड टेस्ट की मदद से निम्न समस्याओं का परीक्षण करने में भी मदद मिल सकती है -

  • बच्चों में मेटाबोलिक विकार
  • लंबे समय से हेपेटाइटिस या पीलिया
  • लिवर में ट्यूमर होना
  • वृषण कैंसर या ट्यूमर की शुरुआती स्टेज
  • शिशुओं या छोटे बच्चों को ट्यूमर
  • भ्रूण का शारीरिक विकास संबंधी दोष जैसे स्पाइना बाइफिडा
  • भ्रूण में डाउन सिंड्रोम का पता लगना
  • भ्रूण में क्रोमोसोम संबंधी असामान्यताएं
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, पेट या अंडाशय में ट्यूमर

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अल्फा-फीटोप्रोटीन टेस्ट की प्रक्रिया एक सामान्य ब्लड टेस्ट के समान ही होती है और इसके लिए कोई विशेष तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, यदि आप किसी प्रकार की दवा, सप्लीमेंट या फिर कोई हर्बल उत्पाद ले रहे हैं, तो टेस्ट से पहले ही डॉक्टर से इस बारे में बता दें।

इसके अलावा यदि आप धूम्रपान या शराब का सेवन करते हैं, तो भी डॉक्टर को इस बारे में बता दें। यदि आप गर्भवती हैं या पहले आपको जुड़वा बच्चे हुए हैं, तो इस बारे में भी डॉक्टर को पता होना आवश्यक होता है। किसी प्रकार की बीमारी या संक्रमण आदि के बारे में भी डॉक्टर को बता देना चाहिए। हालांकि, डॉक्टर से अनुमति लिए बिना किसी दवा को लेना बंद न करें और न ही उसकी खुराक में कोई भी बदलाव करें।

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एएफपी ब्लड टेस्ट के दौरान सबसे पहले आपकी बांह के उस हिस्से को एंटिसेप्टिक से साफ किया जाएगा, जहां पर सुई लगाकर रक्त का सैंपल लेना है। बांह के ऊपरी हिस्से पर पट्टी बांध दी जाती है, ताकि नसों में रक्त का बहाव रुक जाए और नसें फुलने लग जाएं। नस में सुई लगाकर उचित मात्रा में रक्त का सैंपल निकाल लिया जाता है, जिसे सिरिंज या शीशी में भर लिया जाता है। सैंपल को लैब में जांच के लिए भेज दिया जाता है। सुई लगने के दौरान हल्का दर्द या चुभन महसूस हो सकती है, जो कुछ ही देर में ठीक हो जाती है।

कुछ लोगो को सुई वाले स्थान पर हल्का सा नील पड़ जाता है। हालांकि, यह भी कुछ दिन में ठीक हो जाता है।

यदि डॉक्टर को एएफपी ब्लड के परिणामों पर कुछ संदेह होता है, तो आपके पेशाब और एम्नियोटिक फ्लूइड में एएफपी की जांच करने पर विचार कर सकते हैं।

एएफपी ब्लड टेस्ट एक सामान्य ब्लड टेस्ट प्रक्रिया है, जिससे कोई गंभीर जोखिम या जटिलता नहीं होती है। हालांकि, सैंपल के लिए रक्त निकालने की प्रक्रिया से कुछ परेशानियां महसूस हो सकती हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • सुई वाले स्थान पर दर्द या चुभन महसूस होना
  • सुई वाले छिद्र से ब्लीडिंग
  • त्वचा के नीचे रक्त जमा हो जाना (नील पड़ना या हीमेटोमा)
  • छिद्र में संक्रमण हो जाना (दुर्लभ मामलों मे)
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सामान्य रिजल्ट

पुरुष और वे महिलाएं जो गर्भवती नहीं है, उनके रक्त में एएफपी नहीं होता है या बहुत ही कम होता है। इनके रक्त में एएफपी का स्तर 0 से 40 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर (ng/mL) के बीच होता है।

गर्भवती महिलाओं की दूसरी तिमाही के आसपास यानि 14 से 32 हफ्तों के बीच एएफपी का स्तर बढ़ जाता है। एएफपी ब्लड टेस्ट गर्भावस्था के 16वें सप्ताह के आसपास किया जाता है, जिसमें एएफपी का स्तर आमतौर पर 10 से 150 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर के बीच होता है। एएफपी का यह स्तर संकेत देता है कि बच्चा गर्भ में सामान्य रूप से बढ़ रहा है।

नवजात शिशु और लगभग 1 साल तक के बच्चों में एएफपी का स्तर अधिक रह सकता है। हालांकि, उसे भी सामान्य ही माना जाता है।

असामान्य रिजल्ट

यदि पुरुषों या जो महिलाएं गर्भवती नहीं है, उनके रक्त में एएफपी का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ गया है, तो वह निम्न के संकेत दे सकता है -

  • लिवर में ट्यूमर -
    यदि एएफपी ब्लड टेस्ट में स्तर 200 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर या उससे भी अधिक आता है और आपको लिवर सिरोसिस या हेपेटाइटिस भी है, तो यह लिवर में ट्यूमर होने का एक संकेत हो सकता है। यदि एएफपी का स्तर 500 से अधिक है और आपको लिवर सिरोसिस या हेपेटाइटिस भी नहीं है, तो भी यह लिवर में ट्यूमर का ही संकेत है।
     
  • वृषण या अंडाशय में ट्यूमर -
    यदि लिवर फंक्शन टेस्ट के रिजल्ट सामान्य हों, लेकिन रक्त में एएफपी का स्तर अधिक हो तो यह अंडाशय या वृषण में ट्यूमर होने का ही संकेत है।
     
  • लिवर ठीक से काम न करना -
    इस स्थिति की पुष्टि करने के लिए एएफपी ब्लड टेस्ट को लिवर फंक्शन टेस्ट के साथ किया जाना चाहिए।
     
  • पीडियाट्रिक ट्यूमर -
    यदि बच्चे उम्र की एक साल से अधिक होने पर भी उसके रक्त में एएफपी का स्तर अधिक रहता है, तो यह बच्चे के शरीर में ट्यूमर होने का संकेत हो सकता है।

इसके अलावा गर्भवती महिलाओं के रक्त में एएफपी का स्तर सामान्य से कम या ज्यादा होने पर निम्न संकेत देता है -

रक्त में एएफपी की अधिक मात्रा होने पर

  • गर्भ में जुड़वा बच्चे होना
  • भ्रूण की न्यूरल ट्यूब में दोष (उदाहरण के लिए अभिमस्तिष्कता, जिसमें भ्रूण के शरीर का मुख्य हिस्सा नहीं होता)
  • विकास संबंधी दोष (उदाहरण के लिए ओमफ़लसील जिसमें शिशु के पेट के अंदरूनी अंग पेट से बाहर होते हैं)
  • प्रसव संबंधी जटिलताएं होना

रक्त में एएफपी की कम मात्रा होने पर

  • डाउन सिंड्रोम (ट्रिसोमी 21)
  • एएफपी ब्लड टेस्ट के गलत पॉजिटिव रिजल्ट, जो आमतौर पर गर्भधारण की अवधि का गलत अनुमान लगाने पर या फिर महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज होने के कारण देखा जाता है। एएफपी ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट डॉक्टर द्वारा ही पढ़ी जानी चाहिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर अन्य टेस्ट भी किए जा सकें।

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संदर्भ

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