चिकित्सक की छुरी यानी स्कैल्पल का इस्तेमाल किए बिना जो नसबंदी की जाती है (नो-स्कैल्पल वैसेक्टोमी एनएसवी) वह पुरुष गर्भनिरोध का सबसे असरदार और बेहद कम रिस्क वाला तरीका माना जाता है। साल 2017 में भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 21 नवंबर से 6 दिसंबर के बीच 15 दिनों के समय को पुरुष नसबंदी पखवाड़े से जुड़ी प्रक्रिया के लिए समर्पित करने का फैसला किया ताकि लोगों के बीच नसबंदी के बारे में जागरुकता फैलायी जा सके। इसका कारण ये है कि आज के आधुनिक समाज में भी नसबंदी से जुड़े कई मिथक और गलत धारणाएं मौजूद हैं।
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नसबंदी और पुरुषत्व, नसंबदी और दर्द और नसबंदी और कैंसर के खतरे जैसे कई मिथक हैं जो न सिर्फ पूरी तरह से निराधार हैं, बल्कि इनकी वजह से कई बार लोग अनचाही प्रेगनेंसी को रोकने के लिए गलत विकल्पों का चुनाव कर लेते हैं। उदाहरण के लिए- अधिकतर लोग कॉन्ट्रासेप्शन यानी गर्भनिरोध के दायित्व को- जिसमें सर्जरी के जरिए बंध्याकरण की प्रक्रिया शामिल है- महिलाओं पर ही डाल देते हैं और वह भी तब जब महिलाओं के लिए की जाने वाली यह प्रक्रिया न सिर्फ महंगी है बल्कि आक्रामक भी। इस आर्टिकल में हम आपको वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर पुरुष नसबंदी से जुड़े 7 मिथक और उनकी हकीकत के बारे में बता रहे हैं।