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भूमिका

सिम्पैथेक्टोमी या संवेदी तंत्रिकोच्छेदन एक सर्जरी है जिसमें संवेदी तंत्रिका तंत्र (सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम) से जुड़ी नसों को काटा या हटाया जाता है। हाइपरहाइड्रोसिस (बहुत ज्यादा पसीना आना) जैसी बीमारी के इलाज के तौर पर इस सर्जरी को अंजाम दिया जाता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति के हाथ, पैर और कांख से बहुत ज्यादा पसीना आता है। यह स्वेटिंग इतनी ज्यादा होती है कि कपड़े तक गीले हो जाते हैं और उनमें से भी पसीना रिसने लगता है।

इसके अलावा सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम (एसएनएस) से जुड़ी अन्य समस्याओं, जैसे रेनॉड रोग (ठंडे तापमान के प्रति संवेदनशील होना), फेशियल ब्लशिंग और क्रोनिक पेन का कारण बनने वाली अन्य समस्याओं के निदान के लिए भी सिम्पैथेक्टोमी कराने की सलाह दी जाती है।

इस सर्जरी से पहले मरीज को कुछ परीक्षणों से गुजरना होता है, यह पता लगाने के लिए कि ऑपरेशन के लिए उसका शरीर कितना फिट है। सिम्पैथेक्टोमी की प्रक्रिया करीब एक से दो घंटे चलती है। इसके लिए मरीज को एनेस्थीसिया के जरिये सुन्न किया जाता है। सर्जरी के बाद ज्यादा पसीना आना सिम्पैथेक्टोमी का संभावित कॉम्प्लिकेशन माना जाता है।

  1. सिम्पैथेक्टोमी क्या है - What is Sympathectomy in Hindi
  2. सिम्पैथेक्टोमी क्यों की जाती है - Why Sympathectomy is done in Hindi
  3. सिम्पैथेक्टोमी से पहले की तैयारी - Preparations before Sympathectomy in Hindi
  4. सिम्पैथेक्टोमी कैसे की जाती है - How is Sympathectomy done in Hindi
  5. सिम्पैथेक्टोमी के बाद देखभाल - After Sympathectomy in Hindi
  6. सिम्पैथेक्टोमी की जटिलताएं - Sympathectomy Complications in Hindi

सिम्पैथेक्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम की कुछ नसों को काटा या कसा जाता है।

सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम हमारे ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम का एक हिस्सा होता है, जो हमारे अंदरूनी अंगों (पेट और हृदय) के संचालन को नियंत्रित करने का काम करता है। तनाव में हमारे शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया के लिए एसएनएस को जिम्मेदार माना जाता है। हम जब भी तनाव में होते हैं, तो एसएनएस हमारी हृदय गति को बढ़ा देता है और शरीर में ऊर्जा और पसीना पैदा करता है।

आमतौर पर हाइपरहाइड्रोसिस नाम की बीमारी के इलाज के रूप में सिम्पैथेक्टोमी की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

घबराहट की स्थिति में या एक्सरसाइज करते हुए हर किसी को पसीना आता है। लेकिन हाइपरहाइड्रोसिस में पसीना किसी विशेष कारण के बिना ही बहुत ज्यादा आता है। यह कंडीशन तब पैदा होती है, जब शरीर की संवेदी तंत्रिकाएं कुछ विशेष अंगों में होने वाली स्वेटिंग को नियंत्रित नहीं कर पातीं। ऐसे में हाइपरहाइड्रोसिस बीमारी से पीड़ित के दैनिक जीवन से जुड़े कार्य प्रभावित होते हैं, जैसे ड्राइविंग, लेखन, चीज़ों को पकड़ना आदि। वह सामाजिक व पेशेवर गतिविधियों को ठीक से नहीं निभा पाता। परिणामस्वरूप, पीड़ित लज्जित महसूस करने लगता है।

डॉक्टर ऐसे लोगों को पसीना रोकने वाली दवाएं देते हैं या उन्हें इलेक्ट्रोलिसिस नामक प्रोसीजर करवाने की सलाह दी जाती है। हालांकि गंभीर मामलों में उपचार के ये तरीके अक्सर काम नहीं करते और अत्यधिक पसीना आना नहीं रुकता। अगर हाइपरहाइड्रोसिस की कंडीशन लगातार बनी रहे और इसे मैनेज करना मुश्किल हो जाए, तब डॉक्टर सिम्पैथेक्टोमी सर्जरी कराने की सलाह देते हैं।

इस प्रक्रिया के अलग-अलग नाम है। मसलन एंडोस्कोपिक थोरैसिक सिम्पैथेक्टोमी, सर्विकल सिम्पैथेक्टोमी या एंडोस्कोपिक लंबर सिम्पैथेक्टोमी। किस मरीज के लिए कौन सा प्रोसीजर अपनाया जाएगा, यह इस पर निर्भर करता है कि उसके शरीर के किस हिस्से की तंत्रिका का इलाज किया जाना है। मस्तिष्क जब अलग-अलग तंत्रिकाओं के जरिये अंगों को सिग्नल भेजता है तो उनमें पसीना आने लगता है। सिम्पैथेक्टोमी के बाद मस्तिष्क से शरीर के अंगों तक पहुंचने वाले ऐसे सिग्नल ब्लॉक हो जाते हैं, जिससे स्वेटिंग कंट्रोल होती है। इसके अलावा फेशियल ब्लशिंग और क्रोनिक पेन की वजह बनने वाली अन्य कंडीशन्स के उपचार में भी सिम्पैथेक्टोमी की जा सकती है।

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ऐसे व्यक्ति को सिम्पैथेक्टोमी सर्जरी कराने की सलाह दी जा सकती है जिसे:

  • चेहरे, हाथ, कांख (या बगल) और पैरों से बहुत ज्यादा पसीना आता हो
  • फेशियल ब्लशिंग की समस्या हो
  • ऐसी शारीरिक समस्याओं से ग्रस्त हो, जो क्रोनिक पेन का कारण बनती हैं
  • रेनॉड रोग से पीड़ित हो, जिसमें व्यक्ति ठंडे तापमान के प्रति संवेदनशील होता है

सिम्पैथेक्टोमी सर्जरी से पहले निम्नलिखित स्टेप्स के तहत इसकी तैयारी की जाती है:

  • मरीज को एक कनसेंट फॉर्म पर हस्ताक्षर करना होता है, जिससे डॉक्टर को सर्जरी करने का अप्रूवल मिल जाता है।
  • ऑपरेशन की एक रात पहले से मरीज को खाना-पीना बंद करना होता है।
  • डॉक्टर मरीज की शारीरिक जांच करते हैं, जिसमें ब्लड और डायग्नॉस्टिक परीक्षण शामिल होते हैं। यह आश्वस्त करने के लिए मरीज सर्जरी के लिए पूरी तरह फिट है, उसकी मेडिकल हिस्ट्री भी देखी जाती है।
  • मरीज को यह सुनिश्चित करना होगा कि सर्जरी के बाद उसे घर ले जाने वाला कोई हो और रात भर उसके साथ रुके।
  • अगर मरीज धूम्रपान करता है तो सर्जरी से कम से कम चार हफ्ते पहले इसे छोड़ना होगा ताकि समय पर रिकवरी सुनिश्चित हो सके।
  • स्मोकिंग बंद नहीं करने पर डॉक्टर सर्जरी को कैंसल कर सकते हैं।
  • मरीज को अपने स्वास्थ्य सेवादाता यानी हेल्थकेयर प्रोवाइडर को सभी वर्तमान दवाओं (प्रिस्क्राइब और नॉन प्रिस्क्राइब दोनों) के बारे में बताना चाहिए। अगर वह कोई सप्लीमेंट लेता है तो उसकी जानकारी भी देनी चाहिए।
  • मरीज को कुछ दवाओं, जैसे रक्त को पतला करने वाली दवाएं (मसलन कौमेडिन और प्लेविक्स), को बंद करना पड़ सकता है, हालांकि स्वयं ही कोई मेडिकेशन लेना बंद नहीं करना चाहिए।
  • सर्जरी से एक हफ्ता पहले मरीज को किसी प्रकार की नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी मेडिसन (जैसे इबूप्रोफिन, मॉट्रिन, एलिव या एस्पिरिन) लेना बंद कर देना चाहिए।
  • अगर मरीज विशेष प्रकार की दवाओं, लैटेक्स, आयोडीन, टेप, कॉन्ट्रास्ट डाई और एनेस्थेटिक एजेंट्स के प्रति सेंसिटिव या एलर्जिक हो तो यह जानकारी हेल्थ प्रोवाइडर को देनी चाहिए।
  • अगर मरीज गर्भवती हो या गर्भवती होने का संदेह हो तो इसकी जानकारी भी डॉक्टर को दें।

कुछ विशेष स्थितियों या कारणों के चलते सिम्पैथेक्टोमी के अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते। ऐसे में मरीज को यह सर्जरी कराने की सलाह नहीं दी जाती है। ये स्थितियां या कारण इस प्रकार हैं:

  • बॉडी मास इंडेक्स >28 से ज्यादा वजन या मोटापा  झेल रहे लोगों को सिम्पैथेक्टोमी नहीं कराने की सलाह दी जाती क्योंकि उनमें गंभीर रूप से पसीना आने का खतरा होता है।
  • मानसिक रोग से जूझ रहे और उनका इलाज करवा रहे या न्यूरोलॉजिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी सिम्पैथेक्टोमी नहीं कराने को कहा जाता है, क्योंकि इन कंडीशन से जुड़ी दवाएं स्वेटिंग को और बढ़ा सकती हैं।
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एंडोस्कोपिक थोरैसिक सिम्पैथेक्टोमी को कम से कम खतरे वाला प्रोसीजर माना जाता है। इसे हाइपरहाइड्रोसिस के मामले में अच्छे परिणाम देने वाली सर्जरी बताया जाता है, जो प्रभावी होने के साथ सुरक्षित भी है। जानते हैं कि इस प्रक्रिया में क्या कुछ किया जाता है।

  • सर्जरी के लिए अस्पताल पहुंचने के बाद मरीज को जरूरी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं। उसे हॉस्पिटल गाउन पहनने को कहा जाएगा। ऑपरेशन की संपूर्ण प्रक्रिया पूरी होने में एक से दो घंटे लग सकते हैं और मरीज को उसी दिन घर जाने की अनुमति दी जा सकती है।
  • सर्जरी की शुरुआत मरीज को एनेस्थीसिया देने से होगी ताकि वो सुन्न हो जाए और ऑपरेशन के दौरान दर्द महसूस न करे।
  • इसके बाद एनेस्थीसिया विशेषज्ञ वायु मार्ग के जरिये मरीज के शरीर में मुंह से फेफड़ों तक एक ट्यूब डालेंगे। इससे उसे सर्जरी के दौरान सांस लेने में आसानी होगी।
  • फिर ऑपरेशन कर रहे डॉक्टर मरीज के सीने के किसी एक तरफ कांख के नीचे दो-तीन छोटे-छोटे कट लगाएंगे।
  • चेस्ट में नस के स्पष्ट रूप से दिखने के लिए फेफड़ों की हवा निकाली जाएगी।
  • इसके बाद सर्जन चेस्ट को एक तरफ कर देगा और उसमें एक छोटा वीडियो कैमरा लगा देगा। सीने के जिन हिस्सों में चीरा लगाया गया है, वहां अन्य सर्जिकल टूल्स डाले जाएंगे। कैमरे की मदद से सर्जन इन टूल्स को गाइड करेगा और प्रभावित नसों को विभाजित या खंडित कर देगा।
  • जिन नसों के कारण अधिक स्वेटिंग की समस्या होती है, उन्हें टूल्स के जरिये हटा दिया जाएगा। इन नसों के बंडलों को गैंगलियन्स कहते हैं।
  • यह प्रोसीजर पूरा होने के बाद सर्जन कैमरा और बाकी टूल्स को हटा लेगा।
  • फिर मरीज के फेफड़ों को फिर से सामान्य कर दिया जाएगा (यानी हवा के जरिये फुला दिया जाएगा) और त्वचा को घुलने वाले टांकों से बंद कर दिया जाएगा।
  • ऑपरेशन के बाद मरीज के फेफड़े ठीक प्रकार से काम करें, इसके लिए सर्जन सीने की किसी एक तरफ (चार एमएम) की ट्यूब छोड़ देगा, जो कुछ घंटों तक फेफड़ों को हवा देने में मदद करेगी।
  • इसके बाद मरीज को रिकवरी वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा। वहां उसकी निगरानी की जाएगी। इस दौरान मरीज का ब्लड प्रेशर, पल्स और ब्रीथिंग रेट स्थिर होने के बाद उसे अस्पताल के किसी कमरे या वार्ड में भेज दिया जाएगा।
  • सांस लेने में मदद करने के लिए लगाई गई ट्यूब्स को हटा लिया जाएगा और मरीज को अपने हाथों और पैरों पर गर्मी और सूखापन महसूस होगा।
  • आमतौर पर सिम्पैथेक्टोमी के बाद अधिकतर मरीजों को अगले दिन घर भेज दिया जाता है। लेकिन अगर कोई मरीज एनेस्थीसिया से बाहर निकलने में यानी जगने में समय ले रहा है तो उसे एक रात के लिए अस्पताल में रुकना पड़ सकता है।

इस प्रक्रिया के अलावा दो अन्य प्रकार की सिम्पैथेक्टोमी भी की जाती हैं, जोकि इस प्रकार हैं:

सर्विकल सिम्पैथेक्टोमी

यह सर्जरी बाजू और हाथों पर होने वाली स्वेटिंग को कम करने में मदद करती है। इन अंगों से जुड़ी सिम्पैथेटिक नर्व गर्दन के नीचे और सीने के ऊपरी हिस्से से निकलती है। मेडिकल विशेषज्ञ कीहोल मेथड (लैपरोस्कोपिक) का इस्तेमाल करते हुए सर्विकल सिम्पैथेक्टोमी करते हैं। इसमें मरीज की पसलियों के बीच, कांख के ठीक नीचे दो चीरे लगाते हुए उनके जरिये एक कैमरा और अन्य सर्जरी यंत्र मरीज के शरीर में डाले जाते हैं। एक और लैपरोस्कोपिक इंस्ट्रमेंट को दूसरे कट के जरिये इन्सर्ट किया जाता है। इसके बाद लक्षित तंत्रिका को खंडित किया जाता है।

लंबर सिम्पैथेक्टोमी

यह सर्जरी पैरों में होने वाली स्वेटिंग को कम करने में मदद करती है। उनसे जुड़ी पसीने की ग्रंथि को जानी वाली तंत्रिकाएं पेट के पिछले हिस्से में स्थित होती हैं। इस हिस्से तक पहुंचना मुश्किल होता है, लिहाजा ओपन सर्जरी के तहत लंबर सिम्पैथेक्टोमी की जाती है। इसमें पेट की साइड में कट लगाए जाते हैं। एक ही समय में दोनों साइड कट लगाए जा सकते हैं। इस सर्जरी के लिए अधिकतर मरीजों को एक रात अस्पताल में गुजारनी पड़ती है। रिकवरी प्रोसेस में दो से चार हफ्तों का समय लग सकता है।

सर्जरी के बाद चीरे वाली जगह पर एक हफ्ते तक दर्द महसूस हो सकता है। यह आमतौर पर ठीक हो जाता है और मरीज डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं ले सकता है। वे ऑपरेशन के बाद अगले सात से दस दिन ओरल पेनकिलर ले सकते हैं। गहरी सांस लेते समय मरीज को सीने में दर्द महसूस हो सकता है।

हेल्थ प्रोवाइडर मरीज को उचित डाइट प्लान फॉलो करने को कह सकता है या सामान्य खान-पान ही जारी रखने को कहा जा सकता है। सिम्पैथेक्टोमी सर्जरी के बाद मरीज की गतिविधियों में कोई बड़े बदलाव नहीं किए जाते। इसलिए माना जाता है कि ऑपरेशन के एक हफ्ते के अंदर मरीज काम करने लायक हो जाना चाहिए।

सर्जरी के बाद मरीज को निम्नलिखित बातों का ख्याल रखना पड़ सकता है:

  • अगर मरीज के चीरे वाली जगह पर टेप लगा है तो उससे एक हफ्ते या तब तक छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, जब तक कि वह खुद ही न निकल जाए। अगर घाव से रिसाव हो रहा हो और उसे रोकने के लिए बैंडेज लगानी पड़े तो उसे हर रोज बदलना चाहिए।
  • चीरे को हमेशा धोएं और उसे सूखा व साफ रखें। ट्यूब को भीगने न दें और स्विमिंग करने से बचें।
  • घाव को गीला होने से बचाने के लिए बेहतर है कि नहाने के बजाय शॉवर किया जाए। लेकिन डॉक्टर से जरूर पूछें कि क्या ऑपरेशन के एक-दो दिन बाद शॉवर लेना ठीक है। या दो हफ्तों तक नहाने से बचें अथवा डॉक्टर की सलाह का इंतजार करें।
  • हीलिंग प्रोसेस के खत्म होने तक भारी वजन उठाने या ज्यादा एक्सरसाइज करने अथवा अधिक शारीरिक प्रयास वाली गतिविधियों को अनदेखा करना चाहिए। ऑपरेशन के बाद थोड़ा-थोड़ा वॉक करना शुरू करें। इससे ब्लड फ्लो में सुधार होता है और निमोनिया तथा कब्ज को रोकने में मदद मिलती है।
  • अपनी सभी गतिविधियों को धीरे-धीरे शुरू करें।
  • डॉक्टर दवाओं के संबंध में उचित निर्देश देंगे। उन्हीं का पालन करते हुए दवाएं या एंटीबायोटिक्स लें।

सिम्पैथेक्टोमी के फायदे

  • शरीर में कम से कम चीरे लगते हैं
  • दर्द कम होता है
  • अस्पताल में ज्यादा समय नहीं गुजारना पड़ता
  • तेज रिकवरी और सामान्य एक्टिविटी में जल्दी वापसी

डॉक्टर को कब दिखाएं?

इन परिस्थितियों में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें या अस्पताल जाएं:

  • अगर दर्द हो और पेनकिलर के बाद भी कम न हो
  • 100 डिग्री फारेनहाइट या उससे ज्यादा बुखार हो
  • संक्रमण से जुड़ा कोई भी लक्षण दिखे, दर्द का बढ़ना, लालिमा या सूजन, घाव की जगह से मवाद का रिसाव या लिम्फ नोड्स में सूजन
  • टांके ढीले पड़ जाएं या चीरा खुल जाए
  • चीरे वाली जगह से इतनी ब्लीडिंग हो कि बड़ी पट्टी भी गीली हो जाए
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सिम्पैथेक्टोमी के कुछ जोखिम भी बताए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं:

  • ब्लीडिंग
  • दर्द
  • संक्रमण
  • सर्जरी के दौरान हार्ट अटैक या स्ट्रोक आना
  • शरीर के दूसरे हिस्सों में ज्यादा पसीना आना
  • सांस से जुड़ी समस्याएं पैदा होना
  • फेफड़ों का कोलैप्स कर जाना (फेफड़ों का सिकुड़ना)
  • निमोनिया

इन जोखिमों के अलावा हेमोथोरैक्स (चेस्ट में खून इकट्ठा होना), न्यूमोथोरैक्स (चेस्ट में हवा इकट्ठा होना), तंत्रिकाओं या आर्टेरी को होने वाला नुकसान, हृदय गति धीमी होना (मंदनाड़ी) और हॉर्नर सिंड्रोम (एक नर्व इंजरी, जिससे पलकें लटक जाती हैं और चेहरे पर स्वेटिंग कम होने लगती है) भी सिम्पैथेक्टोमी के अन्य खतरों में गिने जाते हैं।

सर्जरी के बाद डॉक्टर मरीज का शेड्यूल तय करता है। इसके एक हफ्ते तक उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है। इस दौरान सर्जन चीरों की जांच करेगा और बाकी टांकों को हटा लेगा।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी केवल पाठकों को शिक्षित करने के लिहाज से उपलब्ध कराई गई है। यह किसी भी प्रकार से एक क्वालिफाइड डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली मेडिकल सलाह का विकल्प नहीं है।

संदर्भ

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