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सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी को सुप्राप्युबिक कैथेटर इन्सर्जन या वेसिकोस्टोमी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें पेट के निचले हिस्से में छिद्र करके मूत्राशय में कैथेटर ट्यूब लगाई जाती है। इस सर्जरी का मुख्य कार्य पेशाब को मूत्राशय से बाहर निकालना है। ऐसा आमतौर पर तब होता है, जब किसी कारण से पेशाब मूत्राशय में ही जमा हो रहा होता है और आप मूत्रमार्ग से उसे शरीर से बाहर नहीं निकाल पाते हैं।

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी करने से पहले मरीज के कुछ विशेष टेस्ट किए जाते हैं जिनसे पता लगाया जाता है कि कहीं सर्जरी से कोई समस्या होने का खतरा तो नहीं है। सर्जरी के दौरान मरीज को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है, जिसकी मदद से सर्जरी वाली जगह को सुन्न कर दिया जाता है। सर्जरी के बाद डॉक्टर आपको कुछ समय बाद फिर से जांच करने के लिए अस्पताल बुलाया जाएगा। दोबारा बुला कर डॉक्टर या तो कैथेटर ट्यूब को बदलते हैं या फिर निकाल देते हैं, जो पूरी तरह से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

(और पढ़ें - ब्लैडर इंफेक्शन के लक्षण)

  1. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी क्या है - What is Suprapubic cystostomy in Hindi
  2. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी क्यों की जाती है - Why is Suprapubic cystostomy done in Hindi
  3. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी से पहले की तैयारी - Before Suprapubic cystostomy in Hindi
  4. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी कैसे की जाती है - During Suprapubic cystostomy in Hindi
  5. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी के बाद - After Suprapubic cystostomy in Hindi
  6. सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी की जटिलताएं - Complications of Suprapubic cystostomy in Hindi
सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी के डॉक्टर

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी एक सर्जिकल प्रोसीजर है, जिसमें पेट के रास्ते मूत्राशय में एक छोटा सा छिद्र किया जाता है। इस छिद्र में एक विशेष ट्यूब लगाई जाती है, जिसे कैथेटर कहा जाता है। कैथेटर की मदद से पेशाब मूत्राशय से सीधा शरीर से बाहर निकल जाता है।

जब आप किसी समस्या के कारण पेशाब करने में असमर्थ हो जाते हैं, तो यह सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी नाम की सर्जरी पेशाब को शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है।

किडनी पेशाब बनाती है, जो मूत्रवाहिनियों (Ureters) की मदद से मूत्राशय तक पहुंचती है। मूत्राशय (ब्लैडर) पेट के निचले हिस्से में मौजूद तिकोनी आकृति का थैली नुमा अंग होता है, जिसमें पेशाब जमा होती है।

कैथीटर ट्यूब को ब्लैडर के अंदर इसलिए डाला जाता है, ताकि पेशाब मूत्रमार्ग से निकलने की बजाय ट्यूब से निकलकर शरीर से बाहर आ जाए। इस प्रक्रिया को वेसिकोस्टोमी या सुप्राप्यूबिक कैथेटेर इन्सर्जन भी कहा जाता है।

(और पढ़ें - किडनी के रोगों का इलाज)

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यदि मरीज पेशाब नहीं कर पा रहे हैं या पेशाब करते समय अपने मूत्राशय को खाली नहीं कर पा रहे हैं और दवाओं व अन्य इलाज प्रक्रियाओं से इसे ठीक नहीं किया जा सकता तो सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी सर्जरी की जा सकती है। मूत्राशय को खाली न कर पाने की स्थिति को यूरिनरी रिटेंशन कहा जाता है, जिसके लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-

  • पेट के निचले हिस्से में दर्द होना
  • पेशाब में दर्द व जलन
  • पेशाब करते समय धार धीमी होना
  • बार बार पेशाब आना (थोड़ी-थोड़ी मात्रा में)
  • पेशाब करने के तुरंत बाद फिर से पेशाब करने का मन करना
  • पेशाब शुरू करने के दौरान दर्द या तकलीफ महसूस होना

कुछ समस्याएं हैं, जो यूरिन रिटेंशन का कारण बन सकती हैं-

कुछ अन्य समस्याएं भी हैं, जिनके कारण सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी सर्जरी करवाने की आवश्यकता पड़ सकती हैं, इनमें निम्न को शामिल किया जाता है-

  • यदि किसी कारण से मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा) में कैथेटर नहीं लग पा रहा है।
  • यदि आप कैथेटर का रखरखाव अच्छे से नहीं कर पा रहे हैं, (मूत्रमार्ग में लगने वाले कैथेटर का अधिक रखरखाव करना पड़ता है)
  • यदि पहले मूत्रमार्ग में लगाए गए कैथेटर से आपको समस्या हुई थी
  • अगर किसी कारण से लंबे समय क कैथीटर लगा कर रखना है
  • अगर आपको मूत्रमार्ग में क्षति होने का डर है

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी किसे नहीं करवानी चाहिए?

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी निम्न समस्याओं से ग्रस्त लोगों की नहीं की जाती है-

  • मूत्राशय में कैंसर
  • मूत्राशय विकृत होना (जन्म से ही असामान्य आकृति)
  • मूत्राशय अपनी जगह पर स्थित न होना
  • कॉग्युलोपैथी (यह एक ब्लीडिंग डिसऑर्डर है, जिसमें रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है।)
  • पेल्विस में कैंसर
  • पहले कभी पेल्विस या पेट के निचले हिस्से में सर्जरी हुई हो

(और पढ़ें - पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज क्या है)

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी सर्जरी से पहले कुछ तैयारियों की आवश्यकता पड़ सकती है, जिनमें निम्न शामिल हैं-

नैदानिक परीक्षण- सर्जरी से पहले आपका शारीरिक परीक्षण किया जाता है और साथ ही कुछ अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं-ब्लड टेस्टयूरिन टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट

दवाएं- यदि आप किसी भी प्रकार के हर्बल उत्पाद, सप्लीमेंट या फिर कोई भी दवा ले रहे हैं, तो डॉक्टर को इनके बारे में बता दें। डॉक्टर आपको सर्जरी से एक हफ्ते पहले ही कुछ दवाएं छोड़ने की सलाह दे सकते है। उदाहरण के लिए यदि आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं, तो उन्हें छोड़ने की सलाह दी जाएगी जैसे एस्पिरिन व वार्फेरिन आदि।

खाली पेट रहना- डॉक्टर आपको सर्जरी से पहले 8 घंटों तक कुछ भी खाने या पीने से मना कर सकते हैं। हालांकि, यदि आप कमजोर हैं और खाए बिना रह नहीं पा रहे हैं, तो डॉक्टर आपको कुछ विशेष आहार दे सकते हैं। कई बार डॉक्टर सर्जरी से पहले पानी व अन्य साफ तरल पेय पदार्थ पीने की सलाह दे सकते हैं।

जीवनशैली- यदि आप धूम्रपान करते हैं या शराब पीते हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें। डॉक्टर इन्हें छोड़ने की सलाह दे सकते हैं, क्योंकि धूम्रपान व शराब सर्जरी के बाद स्वस्थ होने की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। यदि आप हृदय के लिए पेसमेकर या डेफीब्रीलेटर आदि उपकरण का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो भी इस बारे में डॉक्टर को बता दें। 

ड्राइविंग- सर्जरी के लिए जाने से पहले आप साथ में अपने किसी सगे-संबंधी या मित्र को ले आएं, जो सर्जरी के बाद आपको घर ले जाने में मदद करेंगे।

आपको एक सहमति पत्र दिया जाएगा जिसपर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दे देते हैं। हालांकि, सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे एक बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिए।

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सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी के दौरान निम्न प्रक्रियाएं की जाती हैं-

  • आपको पहनने के लिए एक विशेष ड्रेस दी जाएगी, जिसे ऑपरेशन गाउन या सर्जिकल गाउन कहा जाता है।
  • मेडिकल स्टाफ एक विशेष किटाणुशोधन घोल से आपके पेट व पेल्विस भाग को साफ करेंगे।
  • आपको एंटीबायोटिक दवाएं दी जाएंगी, जो खाने की टेबलेट या इंजेक्शन के रूप में दी जा सकती हैं।
  • सर्जरी के लिए जिस जगह पर चीरा लगाना है वहां पर लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाएगा। कई बार उस जगह पर पेन किलर जेली भी लगाई जा सकती है।
  • मूत्राशय का पता लगाने के लिए सर्जन सिस्टोस्कोप या अल्ट्रासाउंड तकनीक की मदद लेते हैं, जिनकी मदद से मूत्राशय के अंदर भी देखा जा सकता है। सुप्राप्युबिक कैथेटर लगाने के दौरान भी उन्हें इसी तकनीक की आवश्यकता पड़ती है।
  • जब मूत्राशय का पता लग जाता है, तो सर्जन उसमें एक विशेष द्रव भर देते हैं जिससे मूत्राशय की आकृति का अंदाजा मिल जाता है। इस दौरान आपको पेशाब करने की तीव्र इच्छा हो सकती है। यदि आपको इस दौरान दर्द महसूस होता है, तो आप डॉक्टर को इस बारे में बता सकते हैं।
  • इसके बाद सर्जन जननांगों के बालों के ठीक ऊपर पेट पर एक छोटा सा चीरा (छिद्र) लगाते हैं। इस छिद्र में से सुई को डाला जाता है और ध्यानपूर्वक ब्लैडर में डाल दिया जाता है।
  • कैथीटर डालने के लिए जिस जगह पर छिद्र करना है, उसे तैयार करने के लिए डॉक्टर एक विशेष तार या शीथ का उपयोग करेंगे।
  • तार या शीथ से मिले मार्गदर्शन की मदद से सर्जन कैथेटर डालते हैं और फिर टांकों की मदद से उसे स्थिर कर दिया जाता है। कैथीटर किस जगह पर लगाना है, उसकी पुष्टि एक सिस्टोस्कोप नामक एक लचीले उपकरण की मदद से की जाती है।
  • कैथेटर को सही जगह पर रखने के लिए एक विशेष गुब्बारे का इस्तेमाल किया जाता है।
  • अंत में, कैथेटर के छिद्र (स्टोमा) को ढकने के लिए रुई के टुकड़े या बैंडेज का इस्तेमाल करते हैं।

सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी को पूरा करने में 10 से 45 मिनट का समय लगता है।

सर्जरी के बाद आपको आमतौर पर कम से कम एक दिन तक अस्पताल में रहना पड़ता है। हालांकि, यदि आप स्वस्थ महसूस नहीं कर रहे हैं या डॉक्टर को कुछ जटिलताएं होने का संदेह है, तो वे आपको एक से अधिक दिनों के लिए भी अस्पताल में रख सकते हैं। मेडिकल स्टाफ आपको दर्द व सूजन आदि को कम करने वाली दवाए देंगे और साथ ही आपको खाने-पीने में भी मदद करेंगे। इस दौरान आपको कैथेटर का रखरखाव व इस्तेमाल करने के तरीके समझाए जाएंगे।

जब आप सुप्राप्युबिक सिस्टोस्टोमी सर्जरी के बाद जब मरीज घर आ जाता है तो उन्हें निम्न देखभाल करने की जरूरत होती है-

कैथेटर के पास की त्वचा की देखभाल

  • कैथेटर के आस-पास की त्वचा को गुनगुने पानी और साबुन के साथ नियमित रूप से धोना चाहिए। धोने के बाद कपड़े के साथ हल्के-हल्के दबाव के साथ सुखा लें।
  • डॉक्टर आपको सर्जरी के दो दिन बाद नहाने की अनुमति दे सकते हैं। हालांकि, नहाने के दौरान कुछ विशेष सावधानियां बरतने को कहा जा सकता है। 
  • जब तक डॉक्टर अनुमति न दें स्विमिंग पूल व बाथटब आदि का इस्तेमाल न करें।
  • कैथेटर के आसपास की त्वचा में किसी भी प्रकार की क्रीम, जेल, पाउडर या स्प्रे आदि का इस्तेमाल करने से पहले एक बार डॉक्टर से अवश्य पूछ लें।
  • डॉक्टर की अनुमति के अनुसार आप कैथेटर पर बैंडेज लगा सकते हैं।

कैथेटर की देखभाल

  • आपको हर चार से छह घंटों के बाद कैथेटर को बदला होगा
  • कैथेटर को बदलने से पहले अपने हाथों को साबुन के साथ अच्छे से धो लें।
  • ड्रेनेज बैग को कम और स्टोमा से नीचे रखा जाएगा ताकि थैली से पैशाब वापस मूत्राशय में न जाए।
  • काम करने या अन्य किसी भी गतिविधि करने के दौरान ड्रेनेज बैग को हटाएँ नहीं उसे लगा कर ही रखें।
  • यदि ट्यूब से पेशाब नहीं निकल रहा है, तो ट्यूब में किसी गांठ आदि की जांच करें और उसके थोड़ा हिलाएं-ढुलाएं।
  • डॉक्टर की मदद से बिना कैथेटर को अपने आप निकालने की कोशिश न करें।
     

कैथेटर को बदलने के दौरान आपको निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है -

  • कैथेटर के उस सिरे को गीला या चिकना कर लें, जिसे पेट के अंदर जाना है।
  • किटाणुरहित घोल के साथ सर्जरी वाले स्थान को साफ करें।
  • सिंरिंज की मदद से गुब्बारे से हवा निकाल दें।
  • पुराने कैथेटर को ध्यानपूर्वक निकालें और ठीक उसी जगह पर नए कैथेटर को लगा दें। पेशाब के थैली में आने का इंतजार करें।
  • साफ किटाणुरहित पानी की मदद से गुब्बारे को फुला लें और ड्रेनेज बैग को कैथेटर से जोड़ें।
     

इसके अलावा कुछ अन्य देखभाल भी हैं, जो सुप्रापुबिक सिस्टोस्टॉमी में की जा सकती हैं -

  • डॉक्टर आपको कुछ प्रकार की दवाएं देंगे, जो आपके मूत्राशय को ठीक से काम करने में मदद करेंगी। इन दवाओं को ध्यानपूर्वक और समयानुसार लेते रहें।
  • आपको सर्जरी के बाद पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जरूरी है, इसलिए रोजाना कम से कम 8 से 12 गिलास पानी पिएं।
  • सर्जरी के बाद कम से कम दो हफ्तों तक कोई भी शारीरिक गतिविधि न करें।
     

कैथेटर को बदलने के लिए आपको निम्न की आवश्यकता पड़ सकती हैं -

  • कैथेटर पैक
  • लुब्रीकेटिंग जैली (चिकनाई के लिए)
  • स्टेराइल सोल्यूशन (हाथों व दस्तानों को साफ करने के लिए किटाणुनाशक घोल)
  • ड्रेनेज बैग
  • सिरिंज

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि आपको निम्न में से कोई भी समस्या महसूस हो रही है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लें -

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सुप्रापुबिक सिस्टोस्टॉमी से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?

सुप्रापुबिक सिस्टोस्टॉमी सर्जरी से कुछ जोखिम हो सकते हैं, जिनमें निम्न भी शामिल हैं -

  • एनेस्थीसिया दवा से एलर्जी या अन्य कोई तकलीफ होना
  • सर्जरी वाले स्थान पर संक्रमण होना या वहां से रक्तस्राव होना
  • सर्जरी के दौरान आंतें क्षतिग्रस्त हो जाना
  • शरीर में खून के थक्के बनने का विकार होना

(और पढ़ें - एलर्जी होने पर क्या होता है)

Dr. Purushottam Sah

Dr. Purushottam Sah

पुरुष चिकित्सा
40 वर्षों का अनुभव

Dr. Anurag Kumar

Dr. Anurag Kumar

पुरुष चिकित्सा
19 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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