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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग एक सर्जिकल प्रोसीजर है, जिसे आर्टिक्युलर कार्टिेलेज क्षतिग्रस्त होने पर उसका इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आर्टिक्युलर कार्टिलेज आमतौर पर चोट लगने या अन्य किसी टूट-फूट के कारण क्षतिग्रस्त हो सकता है। आर्टिक्युलर कार्टिलेज एक विशेष ऊतक है, तो कुछ हड्डियों के अंत में मौजूद होता है। जब जोड़ हिलते हैं, तो आर्टिक्युलर दोनों हड्डियों के बीच घर्षण को कम करता है। हालांकि, इन ऊतकों में ठीक होने की क्षमता कम होती है। जब कोई आर्टिक्युलर कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो आपको प्रभावित जोड़ हिलाते समय दर्द होने लगता है। कार्टिलेज में क्षति की जांच करने के लिए डॉक्टर विभिन्न प्रकार के टेस्ट करते हैं जैसे एक्स रे और एमआरआई आदि।

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सर्जरी के दौरान सर्जन क्षतिग्रस्त कार्टिलेज को निकाल देते हैं और शरीर के किसी अन्य हिस्से से कार्टिलेज लेकर उसके साथ बदल देते हैं। आमतौर पर शरीर के किसी ऐसे हिस्से से कार्टिलेज लिया जाता है, जिस पर शरीर का वजन न पड़ रहा हो। लगाने की प्रक्रिया को ग्राफ्टिंग कहा जाता है। यह सर्जरी आमतौर पर जनरल एनेस्थीसिया या स्पाइनल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाकर की जाती है और इसे पूरा होने में लगभग एक से दो घंटे का समय लग सकता है। सर्जरी के बाद आपको फिजिकल थेरेपी करने की सलाह दी जाती है, जिससे सर्जरी के घाव जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

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  1. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग क्या है - What is Osteochondral Grafting in Hindi
  2. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग किसलिए की जाती है - Why is Osteochondral Grafting done in Hindi
  3. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग से पहले - Before Osteochondral Grafting in Hindi
  4. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग के दौरान - During Osteochondral Grafting in Hindi
  5. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग के बाद - After Osteochondral Grafting in Hindi
  6. ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग की जटिलताएं - Complications of Osteochondral Grafting in Hindi

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग किसे कहते हैं?

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग एक सर्जरी प्रोसीजर है, जिसकी मदद से आर्टिक्युलरी कार्टिलेज में होने वाली क्षति को ठीक किया जाता है। यह मुख्य रूप से घुटने के लिए की जाती है, लेकिन शरीर के अन्य जोड़ों पर भी किया जा सकता है।

आर्टिक्युलर कार्टिलेज 2 से 4 एमएम मोटी एक विशेष परत है, जो साइनोवियल जॉइंट में मौजूद हड्डियों के सिरों को ढकती है। इसमें लसीला वाहिकाएं, रक्त वाहिकाएं और नसें नहीं होती है और क्षतिग्रस्त होने पर इसके ठीक होने की क्षमता भी बहुत कम होती है। एक स्वस्थ कार्टिलेज जोड़ में मौजूद दो हड्डियों के बीच घर्षण को कम करता है, जिसकी सतह चिकनी रहती है और हिलने-ढुलने में आसानी रहती है। यदि इस कार्टिलेज में कोई क्षति हो जाती है, तो इसकी सतह खुरदरी हो जाती है और हड्डियों के हिलने-ढुलने में समस्याएं होने लगती हैं।

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग का इस्तेमाल उन कार्टिलेज का इलाज करने के लिए किया जाता है, जो हड्डियों के सिरे को कवर करते हैं। कार्टिलेज के ठीक होने की क्षमता कम होती है, इसलिए इसे डोनर ग्राफ्ट के साथ बदला जाता है। डोनर ग्राफ्ट को शरीर के किसी अन्य हिस्से से लिया जाता है, जिसे “ऑटोग्राफ्ट” कहा जाता है और यदि ग्राफ्ट को डोनर के ऊतकों से लिया गया है तो उसे एलोग्राफ्ट कहा जाता है।

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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग क्यों की जाती है?

आर्टिक्युलर कार्टिलेज में चोट लगने के कारण होने वाली क्षति का इलाज करने के लिए ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर किया जात है। यदि किसी बीमारी के कारण आर्टिक्युलर कार्टिलेज में लगातार क्षति हो रही है, तो उस स्थिति का इलाज करने के लिए भी ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग सर्जरी की जा सकती है।

ओस्टियोकॉन्ड्रल ऑटोग्राफ्टिंग उन लोगों के लिए की जाती है, जो उम्र में छोटे व शारीरिक रूप से एक्टिव हैं और साथ ही उनके आर्टिक्युलर कार्टिलेज की क्षति 4 cm2 से कम है। यह घुटने, टखने, कंधे, कूल्हे और कोहनी में मौजूद आर्टिक्युलर क्षति का इलाज करने के लिए किया जा सकता है।

ओस्टियोकॉन्ड्रल एलोग्राफ्टिंग के लिए आकार या आकृति को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है, इसे निम्न स्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है -

  • ओस्टियोआर्थराइटिस
  • ओस्टियोकोंड्राइटिस डिसेकन्स
  • रक्तस्राव कम होने के कारण हड्डियों के ऊतक नष्ट होना

आर्टिक्युलर कार्टिलेज में क्षति होने पर निम्न लक्षण हो सकते हैं -

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग किसे नहीं करवानी चाहिए?

कुछ स्थितियां हैं, जिनमें ओस्टियोकॉन्ड्रल सर्जरी नहीं की जाती है या फिर सर्जरी के दौरान विशेष ध्यान रखा जाता है -

  • हड्डियों के मेटाबॉलिज्म में बदलाव हो जाना (जो आमतौर पर शराब की लत, धूम्रपान या लंबे समय तक स्टेरॉयड लेने से होता है)
  • जोड़ों में सूजन व लालिमा संबंधी विकार
  • दो या अधिक जोड़ों में पहले से ही ओस्टियोआर्थराइटिस होना

निम्न स्थितियों में ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर करते समय विशेष ध्यान रखा जाता है -

  • जोड़ों में सूजन व लालिमा संबंधी कोई रोग होना
  • प्रभावित हिस्से में 8 cm2 या उससे बड़ा घाव 
  • गंभीर ओस्टियोआर्थराइटिस
  • शरीर से ऊतक ग्राफ्ट निकालने के लिए उचित डोनर जगह न मिलना

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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग से पहले क्या तैयारी की जाती है?

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर से पहले कुछ विशेष तैयारियां की जाती हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • डॉक्टर आपके प्रभावित जोड़ की करीब जांच करते हैं, जिसमें चोट, हिलने-ढुलने की कमी, जोड़ में द्रव जमा हो जाना और संरेखण की जांच की जाती है।
  • आपके स्वास्थ्य संबंधी पिछली सभी जानकारियां ली जाएंगी और साथ ही कुछ सवाल भी पूछे जा सकते हैं, जिनमें मुख्यत: हाल ही में प्रभावित जोड़ में लगी चोट या मोच आदि का पता लगाया जाता है।
  • प्रभावित जोड़ के कुछ मेडिकल स्कैन भी किए जा सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -
  • यदि आप कोई दवा, हर्बल उत्पाद, विटामिन, मिनरल या फिर कोई अन्य सप्लीमेंट लेते हैं तो इस बारे में डॉक्टर को बता दें। डॉक्टर इनमें से कुछ दवाओं को एक निश्चित समय के लिए बंद करवा सकते हैं जिनमें मुख्य रूप से रक्त पतला करने वाली दवाएं शामिल हैं जैसे एस्पिरिन, आइबुप्रोफेन और वारफेरिन आदि।
  • यदि आप सिगरेट या शराब पीते हैं, तो आपको सर्जरी से कुछ दिन पहले और बाद तक इनसे परहेज करने को कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सिगरेट व शराब से सर्जरी के बाद विभिन्न जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • सर्जरी वाले दिन आपको खाली पेट अस्पताल आने को कहा जाता है, जिसके लिए आपको सर्जरी से कम से कम आठ घंटे पहले कुछ भी खाने या पीने से मना किया जाता है।
  • ऑपरेशन वाले दिन अपने साथ किसी करीबी रिश्तेदार या मित्र को ले जाएं, जो सर्जरी से पहले और बाद के कार्यों में आपकी मदद करेंगे।
  • अस्पताल में आपको सबसे पहले सहमति पत्र दिया जाता है, जिसपर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दे देते हैं। हालांकि, सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे एक बार अच्छे से पढ़ लेना चाहिए।

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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग कैसे की जाती है?

सर्जरी के लिए जब आप अस्पताल पहुंच जाते हैं, तो आपको मेडिकल टीम एक विशेष ड्रेस (हॉस्पिटल गाउन) देती है। आपको कुछ विशेष दवाएं और पहनने के लिए स्टॉकिंग्स दी जाती है जो रक्त के थक्के जमने से रोकती है। आपके हाथ या बांह की नस में सुई लगाकर इंट्रावेनस लाइन शुरू की जाती है। इस सर्जरी को जनरल या सपाइनल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाकर किया जाता है।

जब एनेस्थीसिया का असर शुरू हो जाता है, तो आपको ऑपरेशन थिएटर ले जाकर एक विशेष टेबल पर लिटा दिया जाता है और आपकी जांघ पर एक विशेष इलास्टिक बैंड लगा दिया जाता है और फिर इसके बाद निम्न प्रक्रियाएं शुरू की जाती हैं -

  • प्रभावित जोड़ के ऊपर की त्वचा में एक कट लगाकर छिद्र बनाया जाता है।
  • क्षतिग्रस्त कार्टिलेज का नाप लिया जाता है और फिर उसके प्रकार कट लगाकर प्रभावित हिस्से को निकाल दिया जाता है।
  • इसके बाद डोनर कार्टिलेज को तैयार किया जाता है, यदि यह ऑटोग्राफ्ट है तो इसे इसी प्रक्रिया से निकाला जाता है। एलोग्राफ्ट को टिशू डोनर से निकाला जाता है।
  • एलोग्राफ्ट को अच्छे से साफ किया जाता है, ताकि कोई भी कचरा या अवशेष यदि है तो साफ हो जाए। इसके बाद ग्राफ्ट को उसी आकृति में काटा जाता है, जिसमें उसे डालना है।
  • सर्जन इसके बाद ग्राफ्ट को प्रभावित जगह पर रखते हैं और किसी विशेष डिवाइस या उंगलियों के साथ उसे हल्के-हल्के दबाते हैं।
  • आवश्यकता पड़ने पर सर्जन ग्राफ्ट पर पिन व पेच भी लगा सकते हैं, जिससे उसे सुरक्षित व स्थिर किया जाता है।
  • ग्राफ्ट के लगने के बाद सर्जरी के कट को टांके लगाकर या स्टेपल के साथ बंद कर दिया जाता है। घाव को बंद करने के लिए लगाए गए टांके कुछ समय बाद त्वचा में ही अवशोषित हो जाते हैं। यदि अवशोषित होने वाले टांके नहीं लगाए गए हैं, तो 20 दिन बाद उन्हे निकलवाने के लिए फिर से अस्पताल जाना पड़ता है।

इस सर्जरी प्रोसीजर में एक से दो घंटे का समय लग सकता है और आपको सर्जरी के बाद लगभग तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। ग्राफ्टिंग प्रोसीजर के बाद आपको रिकवरी रूम में शिफ्ट कर दिया जाता है। इस दौरान नर्स आपको समय-समय पर दवाएं देती रहेंगी और साथ ही आपकी पट्टी की देखभाल की जाती है। जब तक आप रिकवरी रूम में रहते हैं, तब तक आपके शारीरिक संकेतों पर नजर रखी जाती है जैसे हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर और पल्स रेट आदि। आपको कुछ समय तक इंट्रावेनस से पोषक तत्व दिए जाते हैं और जब आप खाने-पीने लग जाते हैं तो तरल व नरम खाद्य पदार्थों से शुरुआत की जाती है।

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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर के बाद की देखभाल कैसे की जाती है?

सर्जरी के बाद जब अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है, तो आपको घर पर निम्न देखभाल रखने की सलाह दी जाती है -

  • सर्जरी के बाद कुछ दिन तक आपको दर्द रह सकता है, जिसके लिए डॉक्टर आपको दर्द निवारक दवाएं  देते हैं। इन दवाओं को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए।
  • डॉक्टर आपको कुछ विशेष फिजिकल थेरेपी सिखाते हैं, जो आपको सर्जरी के बाद आपके शरीर को फिर से सामान्य अवस्था में लाने और सर्जरी वाले जोड़ को फिर से मजबूत बनाने में मदद करती है।
  • यदि सर्जरी को टांग के  किसी जोड़ पर किया गया है, तो आपको कुछ हफ्तों तक टांग पर पूरा दबाव न देने की सलाह दी जाती है। आपको कुछ समय के लिए बैसाखी या छड़ी का इस्तेमाल करने को कहा जा सकता है।
  • सर्जरी के लगभग पांच दिन बाद घाव से पट्टी को उतार दिया  जाता है। यदि टांके या स्टेपल लगाए गए हैं तो नहाते समय  उन्हें किसी प्लास्टिक फिल्म या पोलिथिन से ढकने की सलाह दी जाती है। साथ ही आपको कुछ समय के लिए स्विमिंग पूल या बाथटब में नहाने से मना किया जा सकता है।
  • ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग के बाद लगभग तीन महीने तक सर्जरी वाले जोड़ में सूजन रह सकती है। इसके लिए आपको दिन में कई बार लगातार 15 से 20 मिनट तक बर्फ की सिकाई करने और प्रभावित जोड़ को छाती के  स्तर से  ऊपर रखने को कहा जाता है।
  • जब तक आपको डॉक्टर अनुमति न दें कोई भी भारी वस्तु न उठाएं और न ही कोई अधिक मेहनत वाला काम करें।
  • डॉक्टर की अनुमति के बिना ड्राइविंग न करें और न ही कोई अन्य मशीन ऑपरेट करें।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर के बाद यदि आपको निम्न में से कोई भी लक्षण होता है तो डॉक्टर से संपर्क करें -

  • दर्द कम न होना या लगातार बढ़ना
  • सूजन
  • बुखार
  • सर्जरी वाले हिस्से में सूजन व लालिमा
  • सर्जरी वाले हिस्से से द्रव स्राव होना
  • सर्जरी के बाद भी जोड़ के हिलने-ढुलने की क्षमता उतनी ही रहना या फिर पहले से भी कम हो जाना

(और पढ़ें - जोड़ों में अकड़न का कारण)

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ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग से क्या जोखिम हो सकते हैं?

ओस्टियोकॉन्ड्रल ग्राफ्टिंग प्रोसीजर से निम्न जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं -

  • ओस्टियोनेक्रोसिस या ग्राफ्ट टिश्यू नष्ट हो जाना
  • जहां से ग्राफ्ट लिया गया था (डोनर साइट), वहां पर पोस्ट ट्रॉमेटिक आर्थराइटिस होना
  • सर्जरी वाले हिस्से में क्षति होने के कारण ग्राफ्ट ठीक न हो पाना
  • रक्तस्राव
  • सर्जरी वाले जोड़ में अकड़न
  • नसों व रक्त वाहिकाओं में चोट लगना
  • संक्रमण
  • डीप वेन थ्रोम्बोसिस
  • सर्जरी वाला हिस्सा सुन्न रहना

ओस्टियोकॉन्ड्रल एलोग्राफ्टिंग से निम्न समस्याएं हो सकती हैं - 

  • ग्राफ्ट में ओस्टियोकॉन्ड्रल हो जाना
  • ग्राफ्ट के ठीक होने की गति धीमी होना
  • डोनर ग्राफ्ट में मौजूद कोई रोग फैल जाना
  • प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा ग्राफ्ट को स्वीकार न करना
  • संक्रमण

(और पढ़ें - बैक्टीरियल संक्रमण के लक्षण)

संदर्भ

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  2. Fox AJS, Bedi A, Rodeo SA. The basic science of articular cartilage: structure, composition, and function. Sports Health. 2009 Nov; 1(6):461–468. PMID: 23015907.
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  5. Pisanu G, et al. Large osteochondral allografts of the knee: surgical technique and indications. Joints. 2018 Mar 13;6(1):42–53. PMID: 29675506.
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