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नेफ्रोस्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें किडनी में छेद करके कैथेटर लगा दिया जाता है। इस सर्जरी की मदद से किडनी से पेशाब को सीधा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। त्वचा में चीरा लगाकर कैथेटर अंदर डाला जाता है इसे- नेफ्रोटोमी कहते हैं। लेकिन अक्सर लोग नेफ्रोस्टोमी और नेफ्रोटोमी को एक ही समझ लेते हैं और इन दोनों टर्म का इस्तेमाल करते हैं। नेफ्रोस्टोमी को आम भाषा में किडनी में कैथेटर लगाने की सर्जरी भी कहा जाता है।

यदि पेशाब को किडनी से मूत्राशय तक लेकर जाने वाली नली (मूत्रवाहिनी/Ureter) में रुकावट हो गई है, तो आपको नेफ्रोस्टोमी की आवश्यकता पड़ सकती है। इस सर्जरी से पहले आपको कम से कम 6 घंटे के लिए खाली पेट रहना पड़ता है। सर्जरी करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि आप सर्जरी करवाने के लिए पूरी तरह से फिट हैं या नहीं। यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट करने पड़ सकते हैं।

सर्जरी के दौरान आपको गहरी नींद लाने वाली और सर्जरी वाले स्थान को सुन्न करने वाली दवाएं दी जाती हैं जिसे सिडेटिव्स और एनेस्थीसिया कहते हैं। सर्जरी के बाद आपको कैथेटर ट्यूब और सर्जरी वाले स्थान को साफ रखने की सलाह दी जाती है। नेफ्रोस्टोमी की मदद से किडनी यानी गुर्दों में होने वाली क्षति को रोका जाता है और गुर्दे की कार्य प्रक्रिया में सुधार किया जाता है।

(और पढ़ें - गुर्दे की बीमारी के लक्षण)

  1. नेफ्रोस्टोमी क्या है - What is Nephrostomy in Hindi
  2. नेफ्रोस्टोमी क्यों की जाती है - Why is Nephrostomy done in Hindi
  3. नेफ्रोस्टोमी से पहले की तैयारी - Preparations before Nephrostomy in Hindi
  4. नेफ्रोस्टोमी कैसे की जाती है - How is Nephrostomy done in Hindi
  5. नेफ्रोस्टोमी के बाद देखभाल - Care after Nephrostomy surgery in Hindi
  6. नेफ्रोस्टोमी से होने वाली जटिलताएं - Nephrostomy complications in Hindi

नेफ्रोस्टोमी एक सर्जरी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से कमर या शरीर के एक तरफ की त्वचा से होते हुए किडनी में छिद्र किया जाता है। इस छिद्र में एक पतली प्लास्टिक ट्यूब लगाई जाती है, जिसे कैथेटर कहा जाता है। कैथेटर की मदद से पेशाब को किडनी से सीधा शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। कैथेटर लगाने के लिए छिद्र करने की प्रक्रिया को नेफ्रोटोमी भी कहा जाता है। इस आर्टिकल में हम इस प्रक्रिया के लिए नेफ्रोस्टोमी शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं और उसी बारे में आपको बता रहे हैं।

(और पढ़ें- किडनी को स्वस्थ रखने के तरीके)

नेफ्रोस्टोमी आमतौर पर तब की जाती है, जब आपकी मूत्रवाहिनी किसी कारण से अवरुद्ध हो जाती है। मूत्रवाहिनी में दो नलिकाएं होती हैं, जो पेशाब को गुर्दे से मूत्राशय तक पंहुचाती हैं। मूत्राशय शरीर का वह हिस्सा है, जहां पेशाब को अंतिम बार जमा किया जाता है और उसके बाद शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि मूत्रवाहिनी अवरुद्ध हो जाती हैं, तो पेशाब किडनी में ही जमा होने लगता है और परिणामस्वरूप गुर्दे खराब हो जाते हैं।

नेफ्रोस्टोमी की मदद से किडनी में अतिरिक्त रूप से जमा हुऐ द्रव (पेशाब) को निकाल कर उसमें क्षति होने से बचाव किया जा सकता है। कैथेटर ट्यूब का एक सिरा किडनी और दूसरा सिरा थैली में लगा होता है, जिसमें सारा पेशाब जमा होता है। जब मूत्रवाहिनी में होने वाली रुकावट को ठीक कर दिया जाता है, तो कैथेटर को निकाला जा सकता है।

(और पढ़ें - गुर्दे खराब होने का कारण)

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मूत्रवाहिनी में रुकावट हो जाने के कारण किडनी में पेशाब जमा होने लगना ही नेफ्रोस्टोमी करवाने की सबसे मुख्य वजह है। मूत्रवाहिनी में निम्नलिखित कारणों से अवरोध हो सकता है-

  • बिनाइन (बिना कैंसर वाला) प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया- इस स्थिति में प्रोस्टेट का आकार सामान्य से बड़ा हो जाता है। प्रोस्टेट ग्रंथि पुरुषों के शरीर में मौजूद प्रजनन अंग होता है, जो वीर्य बनाता है जिसमें शुक्राणु होते हैं।
  • यूरेट्रल स्टोन- जब गुर्दे में पथरी पेशाब के बहाव के साथ किडनी से निकल कर मूत्रवाहिनी को अवरुद्ध कर देती है, तो इस स्थिति में पेशाब किडनी में जमा होने लग जाता है।
  • खून का थक्का जमना या रक्तवाहिकाओं से संबंधित बीमारियां
  • यूरेट्रोपेल्विक जंक्शन ऑब्स्ट्रक्शन- यह एक प्रकार की जन्मजात समस्या है जिसमें मूत्रवाहिनी का वह सिरा अवरुद्ध होता है, जो गुर्दे से जुड़ा होता है।
  • संक्रमण - मूत्रवाहिनी या किडनी में संक्रमण होने पर भी पेशाब में रुकावट हो सकती है और असाधारण रूप से पेशाब जमा होने लगता है।
  • जठरांत्र पथ से जुड़े रोग - इनमें क्रोन रोग, अपेंडिक्स में सूजन और डाइवर्टिक्युलाइटिस आदि शामिल है।
  • पेट में ट्यूमर, स्कार टीशू या सिस्ट की मौजूदगी।

मूत्रवाहिनी में रुकावट होने पर निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं -

नेफ्रोस्टोमी किसे करवानी चाहिए और किसे नहीं?

नेफ्रोस्टोमी प्रक्रिया को आमतौर पर सभी लोगों में किया जा सकता है। हालांकि, यदि आपको मूत्र पथ में संक्रमण की बीमारी है, तो जब तक उसका इलाज न हो यह सर्जरी नहीं की जा सकती है।

नेफ्रोस्टोमी सर्जरी करने से पहले निम्न तैयारियां करने की आवश्यकता है-

नैदानिक परीक्षण- सर्जरी से पहले कुछ परीक्षण किए जाते हैं, जिनसे यह पता लगाया जाता है कि आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या तो नहीं है या आपके लिए यह सर्जरी उचित है या नहीं

फास्टिंग - सर्जरी से पहले डॉक्टर आपको कुछ भी न खाने या पीने की सलाह देते हैं। कुछ डॉक्टर सर्जरी शुरू होने से 6 घंटे पहले तक जबकि अन्य सर्जरी से पहली रात को ही खाना खाने की अनुमति देते हैं।

दवाएं - यदि आप किसी भी प्रकार की दवा, सप्लीमेंट या हर्बल उत्पाद ले रहे हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें। यदि आपको कोई बीमारी है या आपको किसी भी चीज से एलर्जी है, तो उस बारे में भी डॉक्टर को अवश्य बता दें।

सर्जरी से पहले डॉक्टर आपसे आपके स्वास्थ्य संबंधी कुछ सवाल पूछ सकते हैं, जो निम्न के बारे में होते हैं -

  • पहले कभी मूत्राशय या किडनी संबंधी कोई रोग या समस्या होना
  • पहले कभी किडनी की सर्जरी हुई है
  • क्या आपको संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, जैसे बुखार या रात को पसीने आना
  • रक्त संबंधी कोई समस्या जैसे रक्त के थक्के जमना, रक्त पतला या गाढ़ा होना

जीवनशैली - यदि आप धूम्रपान या शराब का सेवन करते हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में अवश्य बता दें। डॉक्टर सर्जरी से कुछ समय पहले ही धूम्रपान व शराब छोड़ने का सुझाव दे सकते हैं।

डॉक्टर आपको सर्जरी वाले दिन अपने साथ किसी दोस्त या रिश्तेदार को लाने का सुझाव देते हैं, ताकि सर्जरी के बाद घर जाने में आपकी मदद कर सकें। अंत में आपको एक सहमति पत्र दिया जाता है, जिस पर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दे देते हैं। सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले सहमति पत्र को अच्छे से पढ़ व समझ लें।

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नेफ्रोस्टोमी को निम्न प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाता है-

  • सबसे पहले आपको ऑपरेशन रूम में ले जाया जाएगा।
  • उसके बाद आपकी बांह की नस में सुई लगाकर आईवी लाइन चालू की जाएगी, जिसकी मदद से आपको सर्जरी के दौरान आवश्यक द्रव व दवाएं दी जाती हैं।
  • इसके बाद आपको गहरी नींद लाने वाली दवा (एनेस्थीसिया) दी जाएगी और आपके सर्जरी वाले हिस्से को सुन्न करने के लिए भी इंजेक्शन लगाया जा सकता है।
  • आपको एक करवट पर या फिर पेट के बल लेटने को कहा जा सकता है, ताकि सर्जन को किडनी तक पहुंचने में आसानी हो।
  • जहां पर छिद्र करना है शरीर के उस हिस्से को एंटीसेप्टिक दवाओं से साफ कर देंगे, ताकि संक्रमण न हो।
  • इसके बाद सर्जन कैथेटर के लिए उचित जगह का चुनाव करेंगे और फिर उस हिस्से को सुन्न कर दिया जाएगा। उस भाग पर एक छोटा सा कट लगा दिया जाता है।
  • उसके बाद एक्स रे या अल्ट्रासाउंड तकनीक की मदद से सुई को छिद्र में डाला जाता है। शरीर में सुई की स्थिति की पुष्टि कंट्रास्ट डाई की मदद से की जाएगी।
  • जब यह सुनिश्चित कर लिया जाता है, कि सुई सही जगह पर लगी है तो सुई के अंदर से एक पतली तार डाली जाती है और फिर सुई को निकाल दिया जाता है।
  • अब तार के ऊपर से नेफ्रोस्टॉमी ट्यूब को डाला जाता है और फिर तार को भी निकाल लिया जाता है। ट्यूब को वहीं पर स्थिर कर दिया जाता है।
  • सर्जरी वाले स्थान पर सर्जन डाई का इंजेक्शन लगाते हैं, जिसकी मदद से यह सुनिश्चित किया जाता कि ट्यूब सही स्थान पर लगी है।
  • ट्यूब के सही से लगने के बाद उसके बाहरी सिरे से ड्रेनेज बैग को जोड़ दिया जाता है, जिसमें पेशाब को जमा किया जाता है।
  • नेफ्रोस्टोमी में कम से कम आधे घंटे का समय लगता है। हालांकि, व्यक्ति के स्वास्थ्य और अंदरूनी कारणों के अनुसार ज्यादा समय भी लग सकता है।
  • सर्जरी पूरी होने के बाद आपको रिकवरी रूम में शिफ्ट कर दिया जाएगा, जहां पर अगले 12 घंटों तक आपके बीपी व अन्य शारीरिक गतिविधियों को निगरानी में रखा जाएगा। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि पेशाब ट्यूब में आ रहा है या नहीं।

यदि किसी रोग के कारण नेफ्रोस्टोमी की गई थी, तो रोग के ठीक होने के बाद ट्यूब को निकाला जा सकता है। हालांकि, रीढ़ की हड्डी में चोट लगने जैसी कुछ स्थितियां हैं, जिनमें लंबे समय तक नेफ्रोस्टोमी ट्यूब को रखना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर आपको नेफ्रोस्टोमी ट्यूब को इस्तेमाल करने से जुड़ी प्रक्रियाएं सिखा देंगे। सर्जरी होने के 24 घंटे बाद आपको अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है।

नेफ्रोस्टोमी सर्जरी होने के बाद कुछ विशेष देखभाल की जाती है-

घाव की देखभाल

  • घाव के आसपास की त्वचा को साफ रखें
  • संक्रमण से बचाव करने के लिए घाव के आसपास स्वच्छ पट्टी लगाएं
  • इस पट्टी को हफ्ते में 2 बार जरूर बदलें
  • पट्टी बदलने से पहले अपने हाथों को अच्छे से धो लें

नेफ्रोस्टोमी ट्यूब की देखभाल

  • पेशाब की थैली को गुर्दे के स्तर से नीचे रखें
  • थैली को भरने से पहले ही उसे खाली करते रहें
  • हफ्ते में एक बार थैली को अवश्य साफ करें। थैली को साफ करने के लिए डॉक्टर आपको बराबर मात्रा में पानी व सिरका के घोल का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। इस घोल से साफ कर लें और फिर सुखाकर उसका इस्तेमाल करें।

गतिविधि

  • जब तक ट्यूब न निकाली जाए तो आपको पानी में तैराकी आदि नहीं करनी चाहिए।
  • किसी भी प्रकार की कोई ऐसी गतिविधि न करें जिससे आपके शरीर या कैथेटेर पर दबाव पड़े
  • डॉक्टर आपको जिम न जाने की सलाह भी देते हैं, क्योंकि इससे भी नेफ्रोस्टोमी पर दबाव पड़ सकता है

दवाएं

  • दर्द आदि कम करने के लिए पेनकिलर दवाएं दी जा सकती हैं।
  • छिद्र के आसपास सूजन होने पर सूजन-रोधी दवाएं दी जा सकती हैं।
  • नेफ्रोस्टोमी के बाद यदि आपको कोई एलर्जी या अन्य लक्षण है, तो उसके अनुसार भी दवा दी जा सकती है।

नहाना

  • डॉक्टर आपको नेफ्रोस्टोमी सर्जरी के दो दिन बाद नहाने की अनुमति देते हैं। हालांकि, नहाने के दौरान घाव को प्लास्टिक या पॉलीथिन से ढकने की सलाह दी जाती है।
  • रोजाना कम से कम 2 लीटर पानी पिएं, इससे संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता है।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि आपको निम्न समस्या महसूस हो रही है, तो डॉक्टर को दिखा लें-

  • उल्टी आना
  • बुखार व ठंड लगना
  • कमर या पेट के एक हिस्से में दर्द होना जो कम नहीं हो रहा
  • ट्यूब के आसपास की त्वचा में लालिमा व दर्द होना
  • कैथेटर से पेशाब का रिसाव होना
  • थैली में पेशाब आना बंद हो जाना

इसके अलावा यदि आपको पेशाब से संबंधित निम्न लक्षण महसूस होने लगते हैं, तो भी डॉक्टर से इस बारे में बात करें -

  • पेशाब से बदबू आना
  • पेशाब में रक्त
  • झागदार पेशाब आना
  • पेशाब धुंधला होना
  • पेशाब का रंग असामान्य होना
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कुछ स्थितियां में नेफ्रोस्टोमी से निम्न जटिलताएं हो सकती हैं-

  • संक्रमण
  • ट्यूब अवरुद्ध हो जाना
  • ट्यूब का अपनी जगह से हिलना
  • अधिक रक्त आना
  • कॉन्ट्रास्ट डाई से एलर्जी होना
  • सुन्न करने वाली दवा या ऐनेस्थीसिया से एलर्जी होना

(और पढ़ें - एलर्जी के उपाय)

संदर्भ

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