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मलाशय में कैंसर के इलाज के लिए ममध्यगुदा उच्छेद (मेसोरेक्टल एक्सीजन) नामक सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी में मलाशय (बड़ी आंत के अंतिम हिस्‍से) के प्रभावित हिस्‍से को हटाया जाता है और बाकी के मलाशय को आंत से जोड़ दिया जाता है।

ओपन या लेप्रोस्‍कोपी तरीके से इस सर्जरी को किया जा सकता है। आमतौर पर इसमें चार घंटे लगते हैं। सर्जरी से पहले स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति जानने के लिए कुछ टेस्‍ट करवाए जाते हैं। सर्जरी से पहले या बाद में किसी तरह की जटिलता से बचने के लिए डॉक्‍टर कुछ दवा बंद करने के लिए कहेंगे।

ऑपरेशन के बाद मरीज को तीन से छह दिन तक अस्‍पताल में ही रूकना पड़ता है। सर्जरी की वजह से मल में कुछ बदलाव आ सकता है लेकिन समय के साथ सब ठीक होता रहेगा।

रिकवरी के दौरान कोई कठिन काम करने से बचें। अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के बाद टांके खुलवाने के लिए एक से तीन हफ्ते बाद फॉलो-अ के लिए आना होता है।

  1. मेसोरेक्टल एक्सीजन क्या है - What is Mesorectal excision in Hindi
  2. मेसोरेक्टल एक्सीजन क्यों की जाती है - Why Mesorectal excision is done in Hindi
  3. मध्यगुदा उच्छेद कब नहीं करवानी चाहिए - When Mesorectal excision is not done in Hindi
  4. मेसोरेक्टल एक्सीजन से पहले की तैयारी - Preparations before Mesorectal excision in Hindi
  5. मध्यगुदा उच्छेद कैसे की जाती है - How Mesorectal excision is done in Hindi
  6. मेसोरेक्टल एक्सीजन के बाद देखभाल - Mesorectal excision after care in Hindi
  7. मध्यगुदा उच्छेद की जटिलताएं - Mesorectal excision Complications in Hindi
मध्यगुदा उच्छेद के डॉक्टर

मलाशय में कैंसर के इलाज के लिए मेसोरेक्‍टल एक्‍सीजन प्रक्रिया की सलाह दी जाती है।

मलाशय, पाचन तंत्र का एक हिस्‍सा होता है। जब खाने से पोषक तत्‍वों को छोती आंत सोखती है, तो अपशिष्‍ट पदार्थ बड़ी आंत के जरिए निकल जाता है। यहां कुछ पानी इससे सोख लिया जाता है।

बचा हुआ हिस्‍सा गुदा से निकलने तक मलाशय (बड़ी आंत का आखिरी हिस्‍सा) में रहता है।

मेसोरेक्‍टल एक्‍सीजन में मलाशय के प्रभावित हिस्‍से को निकालने के साथ आसपास की लिम्‍फ ग्रंथियों और रक्‍त वाहिकाओं को भी निकाला जाता है।

इसके बाद आंत को दोबारा स्‍टैपल या टांकों की मदद से बचे हुए मलाशय से जोड़ दिया जाता है। इस जोड़ को एनसटोमोसिस कहते हैं। ठीक होने के बाद रोज मल आता है। मलाशय धीरे-धीरे ठीक होता है इसलिए कुछ समय के लिए स्‍टोमा बनाया जा सकता है। मल को बाहर निकालने के लिए पेट में एक ओपनिंग की जाती है जिसे स्‍टोमा कहते हैं। इसके ऊपर एक पाउच लगाया जाता है जिसे इलिओस्‍टोमी कहते हैं।

इससे मल निकलने का रास्‍ता बदल जाता है और मलाशय को ठीक होने का समय मिल जाता है। आमतौर पर सर्जरी के कुछ महीनों में इलिओस्‍टोमी हट जाती है और स्‍टोमा बंद हो जाता है।

जब आंत और मलाशय को जोड़ना मुश्किल या असंभव हो, तो ऐसे में स्‍टोमा को परमानेंट लगाना पड़ सकता है या फिर मल पर नियंत्रण न रख पाने की स्थिति में भी ऐसा किया जा सकता है।

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निम्‍न स्थितियों में इस सर्जरी की सलाह दी जा सकती है :

  • मलाशय कैंसर के पहले स्‍टेज के कुछ चरणों पर (मलाशय की सिर्फ अंदरूनी परतों में कैंसर होना)
  • स्‍टेज 2 और 3 (मलाशय की साी परतों में कैंसर फैलना) का रेक्टल यानि मलाशय कैंसर जो मलाशय के ऊपरी हिस्‍से में हो।

मलाशय कैंसर के कुछ लक्षण हैं :

यदि कैंसर पेल्विस या एनल स्पिंचटर (मल को निकालने की क्रिया को कंट्रोल करने वाली मांसपेशियां) में आसपास के ऊतकों तक फैल गया है तो इस सर्जरी को नहीं किया जा सकता है।

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सर्जरी से पहले निम्‍न तरीके से तैयारी की जाती है :

  • डॉक्‍टर कुछ जानकारी मांगते हैं, जैसे कि :
    • मरीज की मेडिकल हिस्‍ट्री
    • कोई एलर्जी है या पेसमेकर जैसा कोई मेडिकल डिवाइस लगा है।
    • जो भी दवा, सप्‍लीमेंट, विटामिन या डॉक्‍टर के पर्चे के बिना मिलने वाली दवा ले रहे हैं।
  • डॉक्‍टर निम्‍न टेस्‍ट करवाएंगे :
  • सर्जरी की डेट तय होने के बाद शराब और तंबाकू छोड़ने के लिए कहा जाएगा। इसके अलावा कुछ दवाएं जैसे कि नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं, विटामिन ई और सप्‍लीमेंट बंद करने होंगे।
  • सर्जरी से एक रात पहले कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है।
  • ऑपरेशन के बाद घर ले जाने के लिए कोई दोस्‍त या परिवार का सदस्‍य हो।
  • सर्जरी की अनुमति के लिए मरीज से एक फॉर्म साइन करवाया जाता है।

अस्‍पताल में भर्ती होने के बाद सबसे पहले मल साफ करने के लिए एनिमा दिया जाएगा। इसके बाद मरीज को हास्‍पीटल गाउन पहनाकर उसे ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जाएगा।

यहां मरीज को ऑपरेशन टेबल पर लिटाया जाएगा और टांगों में खून के प्रवाह को बढ़ाने के लिए कंप्रेशन पहनाए जाएंगे। पेशाब निकालने के लिए मूत्राशय में कैथेटर लगाया जाएगा।

सर्जरी के दौरान हार्ट रेट, ऑक्‍सीजन लेवल और ब्‍लड प्रेशर चेक करने के लिए शरीर से अलग-अलग डिवाइस अटैच किए जाएंगे।

ऑपरेशन के लिए जरूरी दवाइयां और तरल पदार्थ चढ़ाने के लिए हाथ या बांह में ड्रिप लगाई जाएगी।

इसके बाद मरीज को बेहोश करने के लिए जनरल एनेस्‍थीसिया दिया जाएगा और ओपन या लेप्रोस्‍कोपी तरीके से सर्जरी की जाएगी।

ओपन सर्जरी इस तरह की जाती है :

  • सर्जन नाभि से लेकर प्‍यूबिक हिस्‍से तक एक कट लगाते हैं।
  • इसके बाद प्रजनन अंगों की रक्‍त वाहिकाओं, आंत, मूत्र नली, नसों को हाथ से सरकाते हैं।
  • फिर सर्जन मलाशय तक खून पहुंचाने वाली रक्‍त वाहिकाओं को काट देंगे।
  • अब ट्यूमर तक पहुंचने और उसे हटाने के लिए मलाशय पर एक कट लगाएंगे। सर्जन कैंसरकारी ऊतकों के आसपास के मेसेंटेरिक ऊतक भी निकाल देंगे।
  • इसके बाद मलाशय और आंत को टांकों या स्‍टैपल से जोड़ देंगे। खुली जगह यानि कट से ही सभी अंगों को उनकी जगह पर लाकर पेट को बंद कर देंगे।
  • जरूरत पड़ी तो अस्‍थायी रूप से इलिओस्‍टोमी भी की जा सकती है।

लेप्रोस्‍कोपी सर्जरी में पेट पर बड़े कट की जगह दो से तीन छोटे कट लगाए जाते हैं। सर्जन सर्जरी के लिए नाभि में लगे कट में कैमरा डालते हैं और बाकी के कट से उपकरण डालते हैं।

इस प्रक्रिया में लगभग 4 घंटे का समय लगता है। ऑपरेशन के बाद मरीज को कमरे में ले जाया जाता है। मरीज को ऑक्‍सीजन मास्‍क लगाया जाएगा और दर्द निवारक दवाएं दी जाएंगी।

जितना जल्‍दी हो सके, उतना जल्‍दी कैथेटर निकाल लिया जाएगा। सर्जरी के बाद आप खा-पी सकते हैं। कमरे में आने के बाद आपको थोड़ा चलने-फिरने के लिए कहा जाएगा।

ऑपरेशन के तीन से छह दिन बाद छुट्टी मिल जाएगी। हालांकि, यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।

अस्‍पताल से छुट्टी लेकर घर आने के बाद इस तरह देखभाल करनी होती है :

  • मल त्‍याग : चूंकि, मलाशय का हिस्‍सा निकाल दिया गया है इसलिए सर्जरी के बाद मल त्‍याग की क्रिया अलग होगी। समय के साथ सुधार आता जाएगा। इसके लिए कुछ टिप्‍स आपकी मदद कर सकते हैं :
    • नरम चीजें जैसे कि केला, मैश कर के आलू, ओट्स और दही खाएं।
    • अपने खाने में फाइबर लें। आपको फाइबर सप्‍लीमेंट की जरूरत भी पड़ सकती है।
    • दस्‍त रोकने वाली दवाएं लेनी चाहिए।
    • गुदा वाले हिस्‍से में किसी भी तरह की जलन पैदा न हो। जरूरत पड़ने पर डायपर रैश क्रीम लगा सकते हैं।
  • काउंसलिंग : सर्जरी के बाद किसी से बात करने और अपनी मन की बात कहते की जरूरत लग रही है, तो आप काउंसलिंग की मदद ले सकते हैं।
  • दवा : दर्द को कम करने और रोजमर्रा के कामों में मदद के लिए दर्द निवारक दवाओं की जरूरत पड़ सकती है।
  • नहाना : आप रोज नहा सकते हैं और कम केमिकल वाले साबुन से घाव वाली जगह को धोएं। नहाने के बाद इस हिस्‍से को अच्‍छी तरह से सुखा लें। फॉलो-अप तक स्विमिंग, बाथ टब या हॉट बाथ टब लेने से बचें।
  • इलिओस्‍टोमी की देखभाल : अगर सर्जरी के बाद इलियोस्‍टोमी लगी है तो आपको आधा भरने पर आपको पाउच खाली करना होगा। देखें कि इसमें लगा पाउच कहीं से लीक तो नहीं हो रहा है और हर तीन से पांच दिन में इसे बदलतें रहें।
  • काम : सर्जरी के बाद छह हफ्तों तक भारी वजन न उठाएं, कठिन काम न करें, खेलें नहीं।
  • गाड़ी चलाना : सर्जरी के दो हफ्ते बाद दर्द पूरा खत्‍म हो सकता है। इसके बाद आप गाड़ी चला सकते हैं। दर्द की दवाई ले रहे हैं तो गाड़ी न चलाएं।
  • घाव की देखभाल : घाव वाली जगह पर ऑइंटमेंट और क्रीम न लगाएं। ऐसे कपड़े न पहनें जो ऑपरेशन वाली जगह पर प्रॉब्‍लम करे।

डॉक्‍टर को कब दिखाएं?

निम्‍न संकेत दिखने पर तुरंत डॉक्‍टर को दिखाएं :

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सर्जरी के कारण कुछ संभावित जटिलताएं आ सकती हैं :

डॉक्‍टर के पास फॉलो-अप के लिए कब जाएं?

टांके या स्‍टैपल निकालने के लिए अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के सात से 20 दिन के अंदर मरीज को फॉलो-अप के लिए जाना होता है। अगर टेंपररी इलिओस्‍टोमी लगी है तो इसे बंद करने के लिए कुछ महीनों में एक और सर्जरी की जाएगी।

नोट : ऊपर दी गई संपूर्ण जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह डॉक्‍टरी सलाह का विकल्‍प नहीं है।

Dr. Anil Gupta

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Dr. Kumar Gubbala

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संदर्भ

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