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रिकंस्‍ट्रक्‍टिव फुट सर्जरी एक ऐसी सर्जरी है जिसमें पैर से जुड़ी स्थितियों का इलाज, पैर की संरचना को ठीक करने और इन स्थितियों से होने वाली असहजता को दूर किया जाता है। पैर की संरचना थोड़ी जटिल होती है क्‍योंकि इसमें कई हड्डियां, मांसपेशियां, लिगामेंट और टेंडन होते हैं। ट्रामा, जन्‍म विकारों और इंफेक्‍शन की वजह से पैर की संरचना खराब हो सकती है। इसकी वजह से दर्द और सूजन जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं।

फुट डिफेक्‍ट यानि पैर से जुड़े विकार कई तरीकों से ठीक हो सकते हैं जिसमें टेंडन रिपेयर, ऑस्टियोटोमी, बोन ग्राफ्टिंग और फ्यूजन और सॉफ्ट टिश्‍यू रिपेयर शामिल हैं।

ये सर्जरियां मरीज को जनरल या लोकल एनेस्‍थीसिया देने के बाद की जा सकती है। ऑपरेशन के बाद मरीज को कुछ दिनों अस्‍पताल में रूकना पड़ सकता है या उसी दिन छुट्टी मिल सकती है।

सर्जरी के बाद पैर को सहारा देने के लिए प्‍लास्‍टर लगा सकते हैं। पैर के ठीक होने तक मरीज थोड़ा-बहुत चल सकता है या उसे अपने शरीर का भार उठा पाने में दिक्‍कत हो सकती है या चलने के लिए बैसाखी की जरूरत पड़ सकती है।

ऑपरेशन के बाद पैर को ठीक से काम करने में फिजियोथेरेपी की मदद भी ली जा सकती है। सर्जरी के बाद रिकवरी के लिए दर्द और सूजन को कंट्रोल करना जरूरी है। ऑपरेशन के दो हफ्ते बाद अस्‍पताल जाकर टांके खुलवाने होते हैा। इसके बाद दूसरा फॉलो-अप छह हफ्ते बाद होता है जिसमें रिकवरी देखी जाती है।

  1. फुट रिकंस्ट्रक्शन क्या है - What is Foot reconstruction in Hindi
  2. फुट रिकंस्ट्रक्शन क्यों की जाती है - Why Foot reconstruction is done in Hindi
  3. फुट रिकंस्ट्रक्शन कब नहीं करवानी चाहिए - When Foot reconstruction is not done in Hindi
  4. फुट रिकंस्ट्रक्शन से पहले की तैयारी - Preparations before Foot reconstruction in Hindi
  5. फुट रिकंस्ट्रक्शन कैसे की जाती है - How Foot reconstruction is done in Hindi
  6. फुट रिकंस्ट्रक्शन के बाद देखभाल - Foot reconstruction after care in Hindi
  7. फुट रिकंस्ट्रक्शन की जटिलताएं - Foot reconstruction Complications in Hindi
फुट रिकंस्ट्रक्शन के डॉक्टर

पैर को संतुलन, इसकी सक्रियता लौटाने और पैर से जुड़े विकारों और विकृतियों से जुड़े दर्द को ठीक करने के लिए पैर के अलग-अलग हिस्‍सों पर की जाने वाली कई सर्जरियों के समूह को रिकंस्‍ट्रक्‍टिव फुट सर्जरी कहते हैं।

क्रमिक रूप से पैर की हड्डियां एड़ी से लेकर पैर की उंगलियों तक टेलस, कैलसेनियस, टारसल्‍स, मेटाटारसल्‍स, फैलेंजेस और सिसेमोइड्स होती हैं। टेलस और कैलसेनियस हील और एड़ी को बनाते हैं। पैर के बीच के हिस्‍से में टारसल्‍स होते हैं जो फुट आर्क बनाते हैं। पैर की बॉल में सिसेमोइड्स होते हैं और मेटाटारसल्‍स फोरफुट बनाती है और पैर की उंगलियों में फैलेंजेस होती हैं।

ये (दो या इससे ज्‍यादा) हड्डियां जोड़ बनाने के लिए मिलती हैं। जोड़ की हर एक हड्डी के सिरे में कार्टिलेज होता है और इसके आसपास फ्लूइड से भरा कैप्‍सूल होता है। कार्टिलेज और फ्लूइड चलने पर घर्षण को कम करते हैं।

पैर की हड्डियां लिगामेंट के जरिए एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं जो हड्डियों को आर्क बनाने के लिए पोजीशन में रखता है। पैर के लिगामेंट में प्‍लांटर फेशिया, प्‍लांटर कैलकेनिओनेविकुलर लिगामेंट और कैलकेनिओक्‍यूबॉइड लिगामेंट होते हैं। प्‍लांटर फेशिया पैर की निचली तरफ हील से लेकर पैर की उंगलियों तक होता है। चलते और संतुलन बनाते समय इसमें खिंचाव आता है।

प्‍लांटर कैलकेनिओनेविकुलर लिगामेंट तलवे में होता है और टेलस हेड को सपोर्ट करता है जबकि कैलकेनिओक्‍यूबॉइड लिगामेंट टारसल्‍स से कैलकेनियस तक जुड़ा होता है और पैर के आर्क को सपोर्ट करता है।

पैर की मांसपेशियां इसे शेप देती हैं और मूवमेंट में मदद करती हैं। पैर की महत्‍वपूर्ण मांसपेशियों में टिबिएलिस एंटीरियर, टिबिएलिस पोस्‍टीरियर, टिबिएलिस पेरोनियल, फ्लेक्‍सोर्स और एक्‍सटेंसोसर्स होते हैं।

फ्लेक्‍सोर्स और एक्‍सटेंसोर्स चलने पर पैर की उंगलियों को मूव करने में मदद करते हैं। टिबिएलिस एंटीरियर पैर को उठाने, टिबिएलिस पोस्‍टीरियर आर्क पर होती हैं और टिबिएलिस पेरोनियल एड़ी के बाहरी हिस्‍से की मूवमेंट में मदद करती हैं।

पैर में एचिलिस टेंडन पिंडली और हील को जोड़ती है। ये सबसे अहम टेंडन है और चढ़ने, कूदने, भागने और उंगलियों पर खड़े होने में मदद करता है। टेंडन संयोजी ऊतक होते हैं जो हड्डियों और मांसपेशियों को जोड़ते हैं।

अलग-अलग बीमारियों या स्थितियों जैसे कि ट्रामा या जन्‍मजात विकारों की वजह से पैर में विकृति आ सकती है। ऐसे मामलों में फुट रिकंस्‍ट्रक्‍टिव सर्जरी की सलाह दी जा सकती है।

किस तरह का विकार है, उसके आधार पर यह चुना जाता है कि किस प्रकार का फुट रिकंस्‍ट्रक्‍टशन करना चाहिए। इसके कुछ विकार हैं :

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निम्‍न स्थितियों में रिकंस्‍ट्रक्टिव फुट सर्जरी की सलाह दी जाती है :

  • एडल्‍ट एक्‍वायर्ड फ्लैटफुट डिफॉर्मिटी
  • डायबिटीक फुट जैसे कि गोखरू, चारकोट फुट और हैमरटोज
  • हैलक्‍स वेलगस
  • हैलक्‍स लिमिटस
  • फुट आर्क बनाने वाले या एड़ी और पैर के जोड़ों में आर्थराइटिस 
  • क्‍लॉ और मैलेट टोज
  • प्‍लांटर फेशिआइटिस
  • बोन स्‍पर्स
  • हेगलुंड डिफॉर्मिटी
  • अकिलिस टेंडन में कोई समस्‍या
  • जन्‍मजात विकार जैसे कि क्‍लबफुट
  • पैर के मध्‍य हिस्‍से को निकालने के बाद क्‍लबफुट होना

पैर से जुड़े विकारों के सामान्‍य लक्षण हैं दर्द और चलने में दिक्‍कत होना। इसकी वजह से संतुलन बनाने में भी दिक्‍कत हो सकती है।

हो सकता है कि डोनर के न होने पर टेंडन ट्रांस्‍फर सर्जरी नहीं हो पाए। इसमें कुछ एहतियात के साथ सर्जरी की जा सकती है, जैसे कि :

निम्‍न स्थितियों में एंकल रिप्‍लेसमेंट सर्जरी के लिए मना किया जा सकता है :

  • इंफेक्‍शन
  • टेलस के ऊतकों का नष्‍ट होना
  • चारकोट फुट
  • न्‍यूरोमस्‍कुलर डिजीज
  • मेटल एलर्जी

नीचे बताई गई स्थितियों में बोन ग्राफ्टिंग के लिए मना किया जा सकता है :

आर्टेरियल ऑक्‍क्लूसिव डिजीज में हेलक्‍स वेल्‍गस के इलाज के लिए सर्जरी नहीं की जाती है।

इस सर्जरी के लिए कुछ इस तरह तैयारी की जाती है।

  • मरीज से डॉक्‍टर कुछ सवाल पूछते हैं, जैसे कि :
    • मेडिकल हिस्‍ट्री
    • कोई एलर्जी तो नहीं है
    • डॉक्‍टर की सलाह के बिना कोई दवा या जड़ी बूटी ले रहे हैं या कोई और दवा ले रहे हैं।
  • डॉक्‍टर कुछ टेस्‍ट करवाते हैं :
  • हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी या गर्भ निरोधक ले रही महिलाओं को सर्जरी से कुछ हफ्ते पहले इन्‍हें बंद कर देना चाहिए।
  • सर्जरी से एक हफ्ते पहले कोई भी ट्रीटमेंट लेना बंद करना हो सकता है और डॉक्‍टर के पूछने के बाद ही इसे शुरू करवा सकते हैं।
  • अगर पैर में कोई फंगल इंफेक्‍शन है, तो सर्जरी से पहले इसका इलाज करवाएं।
  • ऑपरेशन से पहलेे सिगरेट पीना बंद कर दें।
  • सर्जरी से एक रात पहले कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है।
  • ऑपरेशन के लिए मरीज से अनुमति के लिए एक फॉर्म साइन करवाया जाता है।
  • ऑपरेशन के बाद घर ले जाने के लिए कोई दोस्‍त या परिवार का सदस्‍य होना चाहिए।

अस्‍पताल पहुंचने के बाद मरीज को हॉस्‍पीटल गाउन पहनाई जाती है और सर्जरी के दौरान जरूरी तरल पदार्थ और दवाएं देने के लिए हाथ या बांह में ड्रिप लगाई जाती है। इसके बाद मरीज को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जाता है और उसका ब्‍लड प्रेशर और हार्ट रेट मॉनिटर किया जाएगा।

सर्जरी के प्रकार के हिसाब से मरीज को जनरल (बेहोश करने के लिए) या लोकल एनेस्‍थीसिया (ऑपरेशन वाली जगह को सुन्‍न करने के लिए) दिया जाता है। एनेस्‍थीसिया का असर शुरू होने के बाद डॉक्‍टर उस जगह पर कट लगाते हैं, जहां की सर्जरी होनी। फुट रिकंस्‍ट्रक्‍शन सर्जरी में अलग-अलग प्रक्रियाएं निम्‍न तरीके से की जाती हैं :

  • ऑस्टियोटोमी :
    • पैर के प्रभावित हिस्‍से में हड्डियों को काटते हैं और डैमेज को ठीक करने के लिए उसे शेप देते हैं।
    • इसके बाद वो हड्डियों को मिलने के लिए उस हिस्‍से में बोन ग्राफ्ट करते हैं या पैर के बाहरी हिस्‍से की लंबाई को बढ़ाते हैं।
    • रिकवरी के दौरान सपोर्ट के लिए सर्जन प्‍लेट्स या स्‍क्रू लगा सकते हैं।
    • पैर के मध्‍य हिस्‍से और हील वाले हिस्‍से के लिए ज्‍यादातर ऑस्टियोटोमी की जाती है।
  • टेंडन ट्रांस्‍फर :
    • सर्जन डैमेज हुए टेंडन को हटाएंगे और उसकी जगह पैर के अलग हिस्‍से से बनाए टेंडन को लगा देंगे।
    • अगर टेंडन का एक हिस्‍सा ही डैमेज हो तो सर्जन सिर्फ उस खराब हिस्‍से को ही निकालेंगे।
    • यह सर्जरी फ्लैटफुट में खराब हुई आर्क को बनाने में मदद करती है।
  • बोन फ्यूजन :
    • सर्जन प्रभावित हड्डियों के आसपास के सभी कार्टिलेज निकाल देंगे और उसकी जगह बोन ग्राफ्ट लगाएंगे। इससे छोटी हड्डियों को मिलकर एक बड़ी हड्डी बनाने में मदद मिलती है और जोड़ का दर्द दूर होता है।
    • सपोर्ट के लिए स्‍क्रू, पिन या प्‍लेट लगाई जाएंगी।
  • ट्रिपल आरथ्रोडेसिस : यह हिंडफुट में मौजूद तीन जोड़ों की एक बोन फ्यूजन सर्जरी है जिससे एक हड्डी बनाई जाती है। यह ब्रोन ग्राफ्ट या उपकरणों से की जाती है।
  • इंप्‍लांट : सर्जन एक छोटा सबटालर इंप्‍लांट हिंडफुट की तरफ लगाएंगे जिससे एड़ी की हड्डियों में मूवमेंट न हो। ये इंप्‍लांट फुट आर्क को भी सपोर्ट करेगा। अगर टेलस बोन हिल गई हो तो यह सर्जरी की जाती है।
  • रिमूवल ऑफ बोनी प्रॉमिनेंस : इसमें तलवे की ओर बढ़ रही हड्डी को निकाला जाता है। इसमें आसपास की हड्डियां ठीक से लगी नहीं होती है इसलिए बढ़ी हुई हड्डी को निकालना संभव नहीं होता है क्‍योंकि हड्डियां किसी और नई जगह से बढ़ना शुरू कर सकती है। इसलिए सर्जन को हड्डियों को रिपोजीशन करना पड़ता है और उन्‍हें मिलाकर इस विकार को ठीक करना पड़ता है।
  • इंटरनल फिक्‍सेशन : इसमें पैर की हड्डियों को दोबारा अरेंज किया जाता है। स्‍क्रू और प्‍लेटों से इन्‍हें ठीक किया जाता है। स्‍क्रू और प्‍लेटों को कुछ महीनों में हटा दिया जाता है।
  • लेटरल कॉलम लेंथनिंग :
    • सर्जन पैर के बाहरी सिरे पर कैलकेनियस बोन पर कट लगाएंगे।
    • इसके बाद ऑर्गन डोनर से मेटल या बोन को कट से अंदर डालेंगे। इसे उपकरणों की मदद से फिक्‍स कर दिया जाएगा।
    • इस प्रक्रिया से पैर की विकृति को ठीक करने के लिए हड्डी की लंबाई को बढ़ाया जाता है।
  • एंकल रिप्‍लेसमेंट : इसमें शिन बोन के क्षतिग्रस्‍त सिरों को प्‍लास्टिक या मेटल से बने सिंथेटिक सिरों से बदल दिया जाता है।
  • आरथ्रोप्‍लास्‍टी : पैर की उंगलियों के जोड़ों के बीच लचीनापन लाने के लिए आर्थ्रोप्‍लास्‍टी  के साथ डैमेज फ्लेंज जोड़ों को निकाला जाता है।

सर्जरी के बाद घाव पर पट्टी कर दी जाती है। अब मरीज को उसके कमरे में ले जाया जाता है और पैर को ऊपर उठाकर रखा जाता है।

दर्द कम करने के लिए नर्स कुछ दवा देती हैं। मरीज को उसी दिन छुट्टी मिल सकती है या कुछ दिन रुकना पड़ सकता है।

(और पढ़ें - पैरों में दर्द)

घर पर मरीज को निम्‍न तरह से देखभाल की जरूरत होती है :

  • ऑपरेशन के बाद सूजन से बचने के लिए दो हफ्ते तक पैर के नीचे तकिया लगाकर उसे ऊपर उठाकर रखें।
  • डॉक्‍टर के बताए अनुसार पेन किलर लें। आमतौर पर आराम करने और पैर को ऊपर उठाकर रखने से दर्द कम हाे जाता है।
  • छह हफ्तों तक पट्टी ऊपर एक विशेष जूता पहनने के लिए दिया जाएगा। चलते समय पैर पर दबान न पड़े इसलिए बैसाखी की जरूरत पड़ सकती है।
  • छह हफ्ते से पहले गाड़ी न चलाएं।
  • सूजन से बचने के लिए ऑपरेशन वाली जगह की बर्फ से सिकाई करें। स्किन पर सीधा बर्फ न लगाएं।
  • हर समय पट्टी और प्‍लास्‍टर सूखा रहना चाहिए। अगर इसमें खून आता है तो इसे बदल दें।
  • डॉक्‍टर आपको बताएंगे कि आपका पैर शरीर के बोझ को उठा सकता है या नहीं। सर्जरी को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है।
  • किस तरह की सर्जरी हुई है, उसके हिसाब से वजन उठाने की सलाह दी जा सकती है, जैसे कि :
    • नॉन वेट बियरिंग (बिल्‍कुल भी वजन बर्दाश्‍त नहीं हो सकता)
    • टू टच वेट बियरिंग (पैर का अंगूठा हल्‍का सा वजन ले सकता है)
    • हील वेट बियरिंग (हील पर थोड़ा वजन आ सकता है)
    • पार्शियल वेट बियरिंग (पैर पर थोड़ा वजन ले सकते हैं)
  • फिजियोथेरेपिस्‍ट आपको कुछ एक्‍सरसाइज सिखा सकते हैं। कुछ महीनों बाद फिजियोथेरेपी की मदद से आप खेल तक पाएंगे। हालांकि, घाव ठीक होने के बाद ही आप स्विमिंग और वजन उठाने वाली कोई एक्टिविटी कर सकते हैं।
  • अगर आप बैठकर काम करते हैं, तो ऑपरेशन के दो हफ्ते बाद ही काम पर लौट सकते हैं लेकिन आपको पैर को ऊपर उठाकर रखना होगा। हालांकि, अगर आपका लेबर वर्क है तो आपको तीन महीने तक काम पर नहीं जाना है।

फुट रिकंस्‍ट्रक्टिव सर्जरी से दर्द कम होता है और चलने में मदद मिलती है। हालांकि, इससे पैर के एस्‍थेटिक हिस्‍सों को सुधारा नहीं जा सकता है।

डॉक्‍टर को कब दिखाएं?

निम्‍न स्थितियों में डॉक्‍टर को दिखाने की जरूरत पड़ सकती है :

  • पैर में सूजन
  • पैर की उंगलियों के सफेद या नीला पड़ने पर
  • पैर में दर्द या लालिमा बढ़ने पर
  • टांके वाली जगह से अधिक स्राव होना
  • बुखार
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इस सर्जरी से कुछ संभावित जोखिम भी जुड़े हुए हैं, जैसे कि :

  • इंफेक्‍शन
  • पैर की नस का डैमेज होना जिससे सुन्‍नता हो जाए
  • हड्डियों का न मिल पाना
  • सर्जिकल स्‍कार सेंसिटिविटी
  • लक्षणों का कम न होना
  • डीप वेन थ्रोम्‍बोसिस
  • रक्‍त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचने की वजह से पैर में रक्‍त प्रवाह ठीक से न होना।
  • ब्‍लीडिंग
  • कुछ दवाओं या एनेस्‍थीसिया से एलर्जी होना

फॉलो-अप के लिए डॉक्‍टर के पास कब जाएं?

ऑपरेशन के दो हफ्ते बाद डॉक्‍टर के पास टांके निकलवाने और प्‍लास्‍टर चढ़वाने जाना पड़ सकता है। छठे हफ्ते के फॉलो-अप में एक्‍स-रे से रिकवरी चेक की जाएगी और प्‍लास्‍टर निकाला जाएगा।

नोट :  ऊपर दी गई संपूर्ण जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह डॉक्‍टरी सलाह का विकल्‍प नहीं है।

Dr. Vikas Patel

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ओर्थोपेडिक्स
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Dr. Navroze Kapil

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Dr. Abhishek Chaturvedi

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Dr. G Sowrabh Kulkarni

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संदर्भ

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