ऑपरेशन रूम में डॉक्टर आपकी आंखों में आई ड्राप डालेंगे, जिससे आपके प्यूपिल अलग हो जाएंगे या हिलने लगेंगे। इससे डॉक्टर को लेंस देखने में मदद मिलेगी और डॉक्टर स्थिति को जांच पाएंगे। आई ड्राप को असर करने में एक घंटा लग सकता है।
मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए व्यक्ति को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में जनरल एनेस्थीसिया भी दिया जा सकता, ताकि व्यक्ति सर्जरी के दौरान सो जाए।
डॉक्टर व्यक्ति की आंख में लोकल एनेस्थीसिया डालेंगे। आपको टोपिकल एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं। ज्यादातर लोग सर्जरी के दौरान जगे हुए होते हैं और लाइट की गति को देख पाते हैं। हालांकि, उन्हें यह दिखाई नहीं देता है कि डॉक्टर क्या कर रहे हैं।
कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन अधिकतर एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन द्वारा किया जाता है। इंट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन तकनीक का अब प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके परिणाम अच्छे नहीं आते और इसमें ऑपरेशन के बाद भी जटिलताएं हो सकती हैं।
एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन
- सर्जन आपकी आंख कॉर्निया 10 से 14 मिमी का एक चीरा लगाया जाता है और आपकी लेंस के तत्वों को एक बार में निकाल दिया जाता है
- इसके बाद लेंस कैप्सूल को पीछे लगाया जाता है, ताकि वह इंट्राओक्युलर लेंस को पकड़ सके
- इसके बाद सर्जन एक मजबूत लेंस को चीरे में लगाएंगे जो कि या तो कैप्सूल में होगा या तो आइरिस के पीछे होगा
फेकोमलसीफिकेशन (Phacoemulsification)
फेकोमलसीफिकेशन को तेज और ज्यादा सटीक प्रक्रिया माना जाता है। यह अधिक समय तक चलते हैं साथ ही इसमें जटिलताएं कम होती हैं। अन्य तार्किकों की तुलना में इस तकनीक में चीरा भी कम लगाया जाता है।
- प्रक्रिया के दौरान सर्जन 2 से 4 मिमी का एक चीरा कॉर्निया के किनारे पर लगाएंगे
- इसके बाद आंख के चैम्बर के सामने इलास्टिक का एक पदार्थ लगाया जाएगा ताकि आंखों में जगह बनी रहे और ऑपरेशन करना सुरक्षित रहे
- इसके बाद डॉक्टर एक गोल घेरा बनाएंगे और आंख के कैप्सूल में छेद को खुला रखेंगे
- अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर आपके कोर्टेक्स और न्यूक्लियस के टुकड़े करेंगे और पहले लगाए गए चीरे से उसे बाहर निकालेंगे
- इसके बाद एक्स्ट्राकैप्सूलर कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन प्रक्रिया की तरह लेंस को लगा दिया जाएगा। एक बार लेंस खाली हो जाए उसके बाद डॉक्टर उसमें और अधिक विस्को इलास्टिक डालेंगे जब तक कि नया लेंस अपने स्थान तक न आ जाए
- यदि एक बड़ा लेंस लगाया जाना है तो डॉक्टर बड़ा चीरा लगाएंगे
- छोटा चीरा खुद ही भर जाता है और इसके लिए टांके की जरूरत नहीं होती है। एक बार यह प्रक्रिया हो जाने के बाद डॉक्टर विसकोइलास्टिक पदार्थ को निकाल देंगे। चीरे के किनारों की जांच होगी ताकि यह देखा जा सके की आंख में से पानी भी बाहर नहीं निकलेगा
- कॉर्निया और आइरिस के बीच वाले स्थान में कुछ मात्रा में एन्टीबॉटिक दवा डाली जाएगी, ताकि संक्रमण से बचा जा सकें
छोटे चीरे के दो बड़े फायदे हैं -
- कॉर्निया के आकार में कम बदलाव, आंख के केन्द्रीकरण में कम बदलाव। इससे व्यक्ति को सर्जरी के बाद अधिक अच्छी दृष्टि मिलती है
- सर्जरी को एक बंद वातावरण में किया जाता है, जिससे इंट्राओक्युलर दबाव कम होता है
इंट्राकैप्सूलर कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन
- डॉक्टर आपकी आंख में एक चीरा लगाएंगे और पूरे लेंस को निकाल देंगे। इसमें कैप्सूल, न्यूक्लियस और कोर्टेक्स तीनों को निकाल दिया जाता है
- इस प्रक्रिया के लिए बड़ा चीरा लगाया जाता है, जिससे आंखों में से द्रव की कमी होने का अधिक खतरा होता है। साथ ही ऑपरेशन के बाद होने वाली जटिलताएं भी अधिक होती हैं
- ऐसा नहीं है कि इस प्रक्रिया में लेंस को एक इम्प्लांट के साथ बदला ही जाएगा। ऐसे मामलों में जहां इंट्राओक्युलर लेंस नहीं लगाया जा रहा वहां ग्लास का प्रयोग किया जा सकता है
- यह प्रक्रिया ट्रॉमा के मामलों में हुए मोतियाबिंद को निकालने के लिए की जा सकती है
मोतियाबिंद सर्जरी में लगभग आधे घंटे का समय लगता है और सर्जरी के बाद निम्न चीज़ें हो सकती हैं -
- डॉक्टर आपकी आंखों के ऊपर एक आई ग्लास और शील्ड लगाएंगे, ताकि आपकी आंख को सुरक्षित रखा जा सके
- आपको सर्जरी के बाद रिकवरी रूम में आधे घंटे के लिए आराम करने को कहा जाएगा। इसके बाद आप घर जा सकते हैं