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मोतियाबिंद को कैटरैक्‍ट भी कहा जाता है। इसमें आंखों के लेंस में धुंधलापन होता है, जिससे देखने की क्षमता में कमी आती है। मोतियाबिन्द तब होता है जब आंखों में प्रोटीन के गुच्छे जमा हो जाते हैं जो लेंस को रेटिना को स्पष्ट चित्र भेजने से रोकते हैं।

जनसंख्या आधारित अध्ययन के मुताबिक, भारत में 60 वर्ष और उससे अधिक लोगों में से करीब 74% लोगों को मोतियाबिंद है या उनकी मोतियाबिंद सर्जरी हो चुकी है। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है और न्यूक्लियर मोतियाबिंद इसका सबसे सामान्य प्रकार है।

  1. मोतियाबिंद का ऑपरेशन क्या है - Cataract surgery kya hai
  2. मोतियाबिंद का ऑपरेशन कब करवाना चाहिए - Motiyabind ka operation kab kia jata hai?
  3. कैटरेक्ट सर्जरी से पहले की तैयारी - Cataract operation se pehle ki taiyari
  4. मोतियाबिंद का ऑपरेशन कैसे करते हैं - Motiyabind ka operation kaise hota hai
  5. मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद की सावधानियां - Motiyabind operation ke baad savdhaniya
  6. मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद जटिलताएं - Cataract surgery ke baad jatiltaye

मोतियाबिंद सर्जरी मोतियाबिंद का इलाज करने के लिए की जाती है। मोतियाबंद ऐसी स्थिति है जिसमें आंखों के लेंस धीरे-धीरे अपारदर्शी होने लगते हैं और व्यक्ति ठीक से देख नहीं पाता। मोतियाबिंद की सर्जरी के दौरान, अपारदर्शी हो रहे लेंस को हटाकर आर्टिफिशल लेंस लगा दिया जाता है।

मनुष्यों में आंखों के लेंस के पीछे एक रंगीन हिस्सा होता है जिसे आइरिस कहते हैं। इस लेंस के द्वारा लाइट रेटिना पर पड़ती है, जहां वस्तुओं की तस्वीर बनती है। इसके बाद तस्वीर को ऑप्टिक नर्व के जरिये मस्तिष्क तक ले जाया जाता है और आप देख पाते हैं। लेंस के अपारदर्शी हो जाने से लाइट रेटिना पर केंद्रित नहीं हो पाती है, जिससे देखने में समस्या होती है। 

मोतियाबिंद लेंस में पानी और प्रोटीन की कमी के कारण होता है जो कि इसके सबसे ज़रूरी तत्व है। 

यह आमतौर पर उम्र के बढ़ने के साथ होता है और धीरे-धीरे बढ़ता है। उम्र के साथ आंखों के लेंस का रंग भूरा और पीला हो जाता है। इस रंग के कारण लाइट आंखों के लेंस के पार नहीं जा पाती है जिसके कारण देखने में तकलीफ होती है। जैसे-जैसे मोतियाबिंद बढ़ता है व्यक्ति को रंगों की पहचान भी कम होती जाती है। उम्र के साथ आपके लेंस मोठे हो जाते हैं और अपनी पारदर्शिता खो देते हैं, जिससे पूरी कार्य प्रक्रिया प्रभावित होती है।

लेंस तीन परतों का बना हुआ होता है - आउटर कैप्सूल जिसके अंदर कोर्टेक्स होता है और इसके केंद्र में न्यूक्लियस होता है। मोतियाबिंद इन तीनों में से किसी भी परत में हो सकता है, इसीलिए इसका नाम तीनों के अनुसार अलग है। मोतियाबिंद तीन तरह का होता है -

  • पोस्टीरियर कैप्सूल कैटरेक्ट - जिस व्यक्ति को यह मोतियाबिंद होता है, उसे दिन के समय कुछ दिखाई नहीं देता है और पढ़ने में तकलीफ होती है।
  • कोर्टिकल कैटरेक्ट - व्यक्ति को दिन में ठीक महसूस होता है और रात को पढ़ने में और गाडी चलाने में समस्या होती है।
  • न्युक्लियर कैटरेक्ट - जो लोग इस स्थिति से ग्रस्त होते हैं उन्हें सूर्यास्त के बाद काम करने में, लोगों को पहचानने में और नंबर प्लेट पढ़ने में तकलीफ होती है।

मोतियाबिंद की सर्जरी दो तरह की होती है - इंट्राकैप्स्यूलर और एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन। कौन सी सर्जरी की जानी है यह इस बात पर निर्भर करता है कि कैप्सूल का बाहरी भाग निकाला जाना है या नहीं। इंट्राकैप्स्यूलर में पूरे लेंस को आउटर कैप्सूल के साथ निकाला जाता है वहीं एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन में केवल लेंस को ही निकाला जाता है। फेकोमलसीफिकेशन (Phacoemulsification) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन किया जाता है। इसमें न्यूक्लियस को तोड़ा जाता है और मशीन द्वारा निकाल दिया जाता है। इस सर्जरी में कम जटिलताएं हैं और इसमें छोटा चीरा लगाया जाता है साथ ही इसमें व्यक्ति जल्दी रिकवर कर लेता है। 

कुछ स्थितियां जिनसे मोतियाबिंद हो सकता है निम्न हैं -

ऐसा जरूरी नहीं है कि मोतियाबिंद होने पर सर्जरी ही करवानी पड़ती है। हो सकता है कि इस बीमारी से ग्रस्‍त होने पर आपको नजर में कोई बदलाव भी महसूस न हो। इसके कुछ मरीजों को नेत्र विशेषज्ञ द्वारा बताया गया चश्‍मा लगाने, मैग्‍नीफाइंग लैंस के इस्‍तेमाल या पर्याप्‍त रोशनी से ही साफ दिखने लगता है।

अगर मोतियाबिंद बढ़ने लगे तो इसकी वजह से ज्‍यादा लक्षण दिखाई देने लग सकते हैं। आंखों में धुंधलापन आ सकता है या डबल विजन (मोतियाबिंद आंख से एक ही चीज दो दिखाई देना) की समस्या हो सकती है। इन समस्‍याओं की वजह से पढ़ने, कंप्‍यूटर पर काम करने या ऐसा कोई भी काम करने में दिक्‍कत आती है, जिसके लिए आंखों का तेज होना जरूरी है।

जब अन्‍य किसी नेत्र से संब‍ंधित समस्‍या के इलाज में मोतियाबिंद रुकावट पैदा करने लगे तो इस स्थिति में मोतियाबिंद ऑपरेशन की सलाह दी जा सकती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी अन्‍य आंखों से संबंधित समस्‍या के इलाज या जांच के लिए नेत्र विशेषज्ञ को मोतियाबिंद की वजह से आंखों के पीछे के हिस्‍से को देखने में दिक्‍कत आ रही हो तो सर्जरी करनी पड़ सकती है। ऐसा उम्र से संबंधित मैक्युलर डीजेनेरेशन (मैक्युला के क्षतिग्रस्त होने के कारण होने वाली एक सामान्य आंख की बीमारी) या डायबिटिक रेटिनोपैथी (डायबिटीज के कारण होने वाला एक आंख संबंधी रोग) में हो सकता है।

अधिकतर मामलों में मोतियाबिंद सर्जरी करने से पहले इसके अन्‍य विकल्‍पों पर विचार किया जाता है। अगर अब भी आपकी आंखों की रोशनी ठीक है तो आपको कई सालों तक कैटरेक्‍ट सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

जिन लोगों को मोतियाबिंद की वजह से अपना काम करने, गाड़ी चलाने, पढ़ने, टीवी देखने, खाना पकाने, सीढ़ी चढ़ने, दवा लेने में दिक्‍कत हो रही हो, उन्‍हें कैटरेक्‍ट ऑपरेशन करवाने की जरूरत पड़ सकती है। अगर आप अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो गए हैं तो भी आपको ऑपरेशन करवाना चाहिए।

कैटरेक्‍ट ऑपरेशन से पहले नेत्र विशेषज्ञ आंखों की जांच करते हैं। इस दौरान आंखों और नेत्र दृष्टि की अलग-अलग तरह से जांच की जाती है। इस जांच के दौरान ऑपरेशन से जुड़ी कुछ बातों का पता चलता है, जैसे कि -

  • आपको दूर या पास का धुंधला दिखाई दे रहा है
  • आपके लिए सर्जरी के नुकसान और लाभ क्‍या हैं
  • सर्जरी के बाद आपको चश्‍मे की जरूरत पड़ेगी या नहीं
  • पूरी तरह से ठीक होने में आपको कितना समय लगेगा

अगर आप मोनोविजन (दूरी के लिए एक आंख और पढ़ने के लिए दूसरी आंख का इस्‍तेमाल करना) से ग्रस्‍त हैं तो सर्जरी के बाद भी आपको इसी तरह से देखने के लिए कहा जा सकता है। इसका मतलब है कि आपको पास की चीजें देखने के लिए एक आंख में लैंस लगाया जाएगा और दूर की चीजों को देखने के लिए दूसरी आंख में अलग लैंस लगेगा।

ऑपरेशन से एक या दो हफ्ते पहले डॉक्‍टर आंख का साइज और शेप जानने के लिए कुछ टेस्‍ट करेंगे। इस तरह वो आपके लिए सही आर्टिफिशियल लैंस चुन पाएंगे।

सर्जरी से 12 घंटे पहले कुछ भी खाने या पीने के लिए मना किया जाता है। अगर कोई ऐसी दवा ले रहे हैं, जिससे सर्जरी के दौरान ब्‍लीडिंग होने का खतरा बढ़ सकता है तो डॉक्‍टर कुछ समय के लिए उन्‍हें लेने से मना कर सकते हैं। प्रोस्‍टेट संबंधी समस्‍या के लिए कोई दवा ले रहे हें तो डॉक्‍टर को जरूर बताएं, क्‍योंकि ये दवाएं कैटरेक्‍ट सर्जरी में परेशानी पैदा कर सकती हैं।

(और पढ़ें - मोतियाबिंद के घरेलू उपाय)

मोतियाबिंद के ऑपरेशन से पहले एक या दो दिन के लिए एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्‍स डालने के लिए कहा जा सकता है।

ऑपरेशन रूम में डॉक्टर आपकी आंखों में आई ड्राप डालेंगे, जिससे आपके प्यूपिल अलग हो जाएंगे या हिलने लगेंगे। इससे डॉक्टर को लेंस देखने में मदद मिलेगी और डॉक्टर स्थिति को जांच पाएंगे। आई ड्राप को असर करने में एक घंटा लग सकता है। 

मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए व्यक्ति को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में जनरल एनेस्थीसिया भी दिया जा सकता, ताकि व्यक्ति सर्जरी के दौरान सो जाए। 

डॉक्टर व्यक्ति की आंख में लोकल एनेस्थीसिया डालेंगे। आपको टोपिकल एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं। ज्यादातर लोग सर्जरी के दौरान जगे हुए होते हैं और लाइट की गति को देख पाते हैं। हालांकि, उन्हें यह दिखाई नहीं देता है कि डॉक्टर क्या कर रहे हैं। 

कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन अधिकतर एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन द्वारा किया जाता है। इंट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन तकनीक का अब प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके परिणाम अच्छे नहीं आते और इसमें ऑपरेशन के बाद भी जटिलताएं हो सकती हैं।

एक्स्ट्राकैप्स्यूलर एक्सट्रैक्शन

  • सर्जन आपकी आंख कॉर्निया 10 से 14 मिमी का एक चीरा लगाया जाता है और आपकी लेंस के तत्वों को एक बार में निकाल दिया जाता है  
  • इसके बाद लेंस कैप्सूल को पीछे लगाया जाता है, ताकि वह इंट्राओक्युलर लेंस को पकड़ सके 
  • इसके बाद सर्जन एक मजबूत लेंस को चीरे में लगाएंगे जो कि या तो कैप्सूल में होगा या तो आइरिस के पीछे होगा 

फेकोमलसीफिकेशन (Phacoemulsification)

फेकोमलसीफिकेशन को तेज और ज्यादा सटीक प्रक्रिया माना जाता है। यह अधिक समय तक चलते हैं साथ ही इसमें जटिलताएं कम होती हैं। अन्य तार्किकों की तुलना में इस तकनीक में चीरा भी कम लगाया जाता है। 

  • प्रक्रिया के दौरान सर्जन 2 से 4 मिमी का एक चीरा कॉर्निया के किनारे पर लगाएंगे 
  • इसके बाद आंख के चैम्बर के सामने इलास्टिक का एक पदार्थ लगाया जाएगा ताकि आंखों में जगह बनी रहे और ऑपरेशन करना सुरक्षित रहे 
  • इसके बाद डॉक्टर एक गोल घेरा बनाएंगे और आंख के कैप्सूल में छेद को खुला रखेंगे 
  • अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर आपके कोर्टेक्स और न्यूक्लियस के टुकड़े करेंगे और पहले लगाए गए चीरे से उसे बाहर निकालेंगे 
  • इसके बाद एक्स्ट्राकैप्सूलर कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन प्रक्रिया की तरह लेंस को लगा दिया जाएगा। एक बार लेंस खाली हो जाए उसके बाद डॉक्टर उसमें और अधिक विस्को इलास्टिक डालेंगे जब तक कि नया लेंस अपने स्थान तक न आ जाए 
  • यदि एक बड़ा लेंस लगाया जाना है तो डॉक्टर बड़ा चीरा लगाएंगे 
  • छोटा चीरा खुद ही भर जाता है और इसके लिए टांके की जरूरत नहीं होती है। एक बार यह प्रक्रिया हो जाने के बाद डॉक्टर विसकोइलास्टिक पदार्थ को निकाल देंगे। चीरे के किनारों की जांच होगी ताकि यह देखा जा सके की आंख में से पानी भी बाहर नहीं निकलेगा 
  • कॉर्निया और आइरिस के बीच वाले स्थान में कुछ मात्रा में एन्टीबॉटिक दवा डाली जाएगी, ताकि संक्रमण से बचा जा सकें

छोटे चीरे के दो बड़े फायदे हैं -

  • कॉर्निया के आकार में कम बदलाव, आंख के केन्द्रीकरण में कम बदलाव। इससे व्यक्ति को सर्जरी के बाद अधिक अच्छी दृष्टि मिलती है 
  • सर्जरी को एक बंद वातावरण में किया जाता है, जिससे इंट्राओक्युलर दबाव कम होता है 

इंट्राकैप्सूलर कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन 

  • डॉक्टर आपकी आंख में एक चीरा लगाएंगे और पूरे लेंस को निकाल देंगे। इसमें कैप्सूल, न्यूक्लियस और कोर्टेक्स तीनों को निकाल दिया जाता है 
  • इस प्रक्रिया के लिए बड़ा चीरा लगाया जाता है, जिससे आंखों में से द्रव की कमी होने का अधिक खतरा होता है। साथ ही ऑपरेशन के बाद होने वाली जटिलताएं भी अधिक होती हैं 
  • ऐसा नहीं है कि इस प्रक्रिया में लेंस को एक इम्प्लांट के साथ बदला ही जाएगा। ऐसे मामलों में जहां इंट्राओक्युलर लेंस नहीं लगाया जा रहा वहां ग्लास का प्रयोग किया जा सकता है 
  • यह प्रक्रिया ट्रॉमा के मामलों में हुए मोतियाबिंद को निकालने के लिए की जा सकती है 

मोतियाबिंद सर्जरी में लगभग आधे घंटे का समय लगता है और सर्जरी के बाद निम्न चीज़ें हो सकती हैं -

  • डॉक्टर आपकी आंखों के ऊपर एक आई ग्लास और शील्ड लगाएंगे, ताकि आपकी आंख को सुरक्षित रखा जा सके 
  • आपको सर्जरी के बाद रिकवरी रूम में आधे घंटे के लिए आराम करने को कहा जाएगा। इसके बाद आप घर जा सकते हैं

सर्जरी के बाद मरीज को कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे कि -

  • मोतियाबिंद सर्जरी के कुछ घंटे बाद ही मरीज को घर भेज दिया जाता है।
  • अस्‍पताल से निकलने से पहले आपकी आंखों के ऊपर पैड और प्‍लास्टिक शील्‍ड लगाया जा सकता है। इसे आमतौर पर सर्जरी के एक दिन बाद हटाया जा सकता है।
  • ऑपरेशन के बाद आंखों से ठीक तरह से देखने में कुछ दिन लग सकते हैं।
  • कैटरेक्‍ट के ऑपरेशन के बाद आंखों से पानी आने, आंखों में कुछ चले जाने जैसा महसूस होने, धुंधला दिखने, दोहरी दृष्टि दोष (डबल विजन), आंख लाल होने की परेशानी हो सकती है।
  • आमतौर पर ये साइड इफेक्‍ट कुछ दिनों में ही चले जाते हैं, लेकिन पूरी तरह से रिकवर होने में 4 से 6 हफ्ते का समय लग सकता है।
  • सर्जरी के 6 हफ्ते बाद ही आप आंखों पर चश्‍मा लगा सकते हैं, तब तक आंखें पूरी तरह से ठीक हो चुकी होती हैं।
  • डॉक्‍टर के बताए अनुसार आई ड्रॉप्‍स का इस्‍तेमाल करें। एक सप्‍ताह तक रात में आई शील्‍ड का प्रयोग जरूर करें।
  • जरूरत पड़ने पर दर्द निवारक दवा लें।
  • बाल धोते समय, पढ़ते, टीवी देखने और कंप्‍यूटर पर काम करते समय आई शील्‍ड पहनें और चश्‍मा या आई शील्‍ड पहनकर ही घर से बाहर निकलें।
  • ऑपरेशन के बाद 4 से 6 सप्‍ताह तक स्‍विमिंग न करें।
  • आंखों को रगड़ें नहीं और किसी साबुन या शैंपू का इस्‍तेमाल भी आंखों पर न करें।
  • जब तक पूरा साफ दिखने नहीं लग जाता, तब तक गाड़ी चलाना शुरू न करें।
  • कोई कठिन व्‍यायाम या काम करने से बचें। चार सप्‍ताह तक आंखों पर मेकअप भी न करें।
  • अस्‍पताल से छुट्टी मिलने से पहले आपको कुछ आई ड्रॉप्‍स दी जाएंगीं, जिससे कि आंखों के इंफेक्‍शन से बचा जा सके। डॉक्‍टर आपको बताएंगे कि आपको कब और कैसे इनका इस्‍तेमाल करना है।
  • सर्जरी के बाद पहले दो हफ्ते तक आपको दिन में दो बार आंखों को साफ करना होगा क्‍योंकि आई ड्रॉप्‍स और हीलिंग प्रोसेस (रिकवर होने की प्रक्रिया) के कारण आंखों के आसपास चिपचिपापन हो सकता है।
  • आंखों को साफ करने के लिए पानी गर्म करें और फिर उसे ठंडा होने दें। अब हाथों को धोकर एक सूती कपड़ा उसमें डालकर भिगो लें। इस कपड़े से आंखों के आसपास के हिस्‍से को अच्‍छी तरह से साफ करें। ध्‍यान रहे कपड़ा या पानी आंखों के अंदर नहीं जाना चाहिए। आंखों को दबाएं नहीं।

(और पढ़ें - मोतियाबिंद का होम्योपैथिक इलाज)

मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद जटिलताएं कम ही आती हैं और अधिकतर का सफलतापूर्व‍क इलाज किया जा सकता है। कैटरेक्‍ट सर्जरी के जोखिम इस प्रकार हैं -

अगर आपको कोई अन्‍य नेत्र रोग या गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है तो आपमें कैटरेक्‍ट सर्जरी के बाद जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। कभी-कभी कैटरेक्‍ट ऑपरेशन आंखों की रोशनी में सुधार लाने में विफल हो जाता है, क्‍योंकि ग्‍लूकोमा या मैक्युलर डीजेनेरेशन जैसी अन्‍य स्थितियों की वजह से आंखों को पहले ही नुकसान पहुंच चुका होता है। बेहतर होगा कि मोतियाबिंद के ऑपरेशन से पहले आंखों से संबंधित अन्‍य किसी समस्‍या की जांच और इलाज करवा लिया जाए।

मोतियाबिंद सर्जरी के बाद कोई गंभीर जटिलता आने का खतरा बहुत कम रहता है। इसमें आने वाली सबसे सामान्‍य जटिलताओं को दवा या आगे होने वाली सर्जरी से ठीक किया जा सकता है। एक हजार लोगों में से सिर्फ एक व्‍यक्‍ति में ही इस ऑपरेशन के बाद आंख की रोशनी जाने का खतरा रहता है।

अस्वीकरण : उपरोक्त जानकारी पूरी तरह से शैक्षिक दृष्टिकोण से प्रदान की गई है और किसी भी तरह से योग्य चिकित्सक द्वारा चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है।

संदर्भ

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