हर कुत्ते का मालिक इस बात को मानता है कि कुत्तों में टिक्स की समस्या आम है। यह आपके कुत्ते के साथ-साथ आपमें भी खतरनाक संक्रमण फैला सकते हैं। सामान्य तौर पर टिक्स से होने वाले संक्रमण कुत्तों से इंसानों में पारित नहीं होते हैं। हालांकि, टिक्स निकालते समय यह कभी-कभी आपको भी प्रभावित कर सकते हैं।

टिक बोर्न इंफेक्शन परजीवियों के कारण होते हैं। यह परजीवी कुत्ते के रक्तप्रवाह में प्रवेश कर संक्रमण फैलाते हैं। ज्यादातर मामलों में, हफ्तेभर में संक्रमण के लक्षण दिखने लगते हैं, लेकिन कई बार टिक्स के काटने से कोई खतरा नहीं होता है। यह परजीवी रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसकी वजह से कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे एनीमिया, क्लॉटिंग डिसआर्डर।

इसके अलावा यह संक्रमण लिवर, किडनी और प्लीहा में भी फैल सकता है।

टिक बोर्न इंफेक्शन की वजह से कुत्तों में सुस्ती, खाने की इच्छा न करना, दस्त व उल्टी और खून बहने जैसी समस्या हो सकती है। इसलिए बीमारी का निदान जल्द से जल्द जरूरी है, क्योंकि उचित समय पर उपचार शुरू करने से बड़े खतरे से बचा जा सकता है। बीमारी का निदान करने के लिए 'स्पेशिएलाइज्ड एंटीबॉडी टेस्ट' और पीसीआर टेस्ट की जरूरत पड़ती है।

शुरू में सटीक निदान के लिए जरूरी प्रक्रियाओं की मदद नहीं ली जाती है, क्योंकि इसका परिणाम आने में समय लग सकता है। इसलिए पशुचिकित्सक सामान्य तौर पर एंटीबायोटिक देने की सलाह देते हैं, ताकि बीमारी को कुछ हद तक दबाया जा सके। इस मामले में आमतौर पर भारत में डॉक्सीसाइक्लिन नामक दवा का इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा को लगभग एक माह के लिए कुत्ते को दिया जाता है और यदि कोर्स पूरा होने के बाद भी लक्षण दिखाई देते हैं तो ऐसे में पशुचिकित्सक दवाइयों को जारी रखने की सलाह दे सकते हैं।

गंभीर मामलों में, सप्लीमेंट्री ट्रीटमेंट जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन और एंटी इंफ्लेमेटरी दवाइयों की जरूरत पड़ती है। लेकिन जिन मामलों में संक्रमण का पता जल्दी चल जाता है, उनमें निदान बेहतर तरीके से हो सकता है।

यदि आपके घर में एक से अधिक पालतू जानवर हैं तो ऐसे में टिक दूसरे कुत्तों को भी प्रभावित कर सकती है। जरूरत पड़ने पर पशुचिकित्सक आपको भी एंटीबायोटिक लेने की सलाह दे सकते हैं।

भारत में किए गए एक सर्वे (A survey of canine tick-borne diseases in India) के अनुसार, कम से कम छह प्रकार के ऐसे परजीवी हैं, जिन्हें प्रतिरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है :

  • रिकेट्सिया कोनोरी
  • बेबेसिया पैरासाइट
  • एर्लिचिया कैनिस
  • एनाप्लाज्मा पैरासाइट
  • हेपाटोजून कैनिस
  • बोरेलिया बर्गदोर्फेरी

भारत में इन परजीवियों को फैलाने वाले सबसे सामान्य टिक में ब्राउन डॉग टिक और आइक्सोडेस या 'डियर टिक' शामिल हैं।

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  1. कुत्तों में एर्लिचियोसिस टिक इंफेक्शन का लक्षण क्या हैं - Kutton me Ehrlichiosis infection ke sanket kya hain
  2. कुत्तों को टिक्स से दूर कैसे रखें - Kutton me tics ki roktham kaise karen
  3. कुत्तों पर से टिक्स को कैसे हटाएं - Ticks kaise hataye
  4. घर से टिक्स कैसे साफ करें - Ghar se tick kaise bhagaye
  5. कुत्तों में लाइम रोग का इलाज - Kutton me Lyme rog ka ilaj kaise hota hai
  6. कुत्तों में लाइम रोग का निदान - Kutton me Lyme rog ka nidan kaise hota hai
  7. कुत्तों में लाइम रोग के लक्षण - Kutton me Lyme rog ke sanket kya hain
  8. कुत्तों में लाइम रोग क्या है - Kutton me Lyme rog kya hai
  9. कुत्तों में एर्लिचियोसिस का उपचार - Kutton me Ehrlichiosis infection ka upchar kaise hota hai
  10. कुत्तों के एर्लिचियोसिस का निदान - Kutton me Ehrlichiosis infection ka nidan kaise hota hai
  11. कुत्तों में चित्तीदार बुखार या इंडियन टिक टाइफस क्या है - Kutton me chittidar bukhar kya hai
  12. कुत्तों में एर्लिचियोसिस टिक इंफेक्शन क्या है - Kutton me Ehrlichiosis infection kya hai
  13. कुत्तों में बेबेसिया संक्रमण का उपचार कैसे करें - Kutton me Babesiosis infection ka upchar kaise karen
  14. कुत्तों में बेबेसियोसिस या बेबेसिया इंफेक्शन का निदान कैसे करें - Kutton me Babesiosis infection ka nidan kaise karen
  15. कुत्तों में बेबेसियोसिस या बेबेसिया इंफेक्शन के लक्षण क्या हैं - Kutton me Babesiosis infection ke sanket kya hain
  16. कुत्तों में बेबेसियोसिस या बेबेसिया इंफेक्शन क्या है - Kutton me Babesiosis infection kya hai
  17. कुत्तों में चित्तीदार बुखार का इलाज कैसे होता है - Kutton me chittidar bukhar ka ilaj kaise hota hai
  18. कुत्तों में चित्तीदार बुखार का निदान कैसे करें - Kutton me chittidar bukhar ka parikshan kaise karen
  19. कुत्तों में चित्तीदार बुखार के लक्षण क्या हैं - Kutton me chittidar bukhar ke sanket kya hain

एक्यूट फेज

इस चरण में परजीवी अपनी जगह बनाने के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसकी वजह से प्लेटलेट्स कम होने लगती हैं :

  • कुत्तों में बुखार
  • कुत्तों में सुस्ती
  • कुत्तों में भूख की कमी
  • लिम्फ नोड्स और प्लीहा में सूजन

यह याद रखना जरूरी है कि यदि बीमारी की पहचान एक्यूट स्टेज पर कर ली जाती है, तो रोग को अगले चरण में बढ़ने से रोका जा सकता है।

सबक्लिनिकल फेज

एक्यूट फेज के दो से चार हफ्ते के बाद वाले चरण को सबक्लिनिकल फेज कहते हैं। इसमें बाहरी लक्षण कम हो जाते हैं। इसमें संक्रमण प्लीहा तक पहुंच जाता है और महीनों या वर्षों तक वहीं रह सकता है। बीमारी के इस चरण को खतरनाक माना जाता है, क्योंकि बाहरी लक्षण न दिखने की वजह से कुत्ते के मालिकों को ऐसा लगता है कि समस्या कम हो चुकी है और पशु चिकित्सक के पास जाना जरूरी नहीं समझते हैं। इस प्वॉइंट पर बीमारी का एकमात्र संकेत है :

  • ब्लड रिपोर्ट का असामान्य आना, जिसमें सफेद रक्त कोशिकाएं बढ़ी हुई होती हैं।

कुछ कुत्ते अनिश्चित काल तक इस स्थिति में रह सकते हैं और हो सकता है उन्हें इस दौरान कोई परेशानी महसूस न हो। हालांकि, कुछ में यह स्थिति क्रोनिक (पुरानी या लंबे समय तक प्रभावित करने वाली) होने लगती है।

क्रोनिक फेज

इस फेज में सटीक निदान नहीं हो पाता है और लक्षण दोबारा से दिखाई दे सकते हैं। इसके संकेतों में शामिल हैं :

  • कुत्तों में एनीमिया
  • कुत्तों में लगातार खून बहना
  • समन्वय में कमी, चलने और लंगड़ाने में कठिनाई
  • कुत्तों में आंख की समस्या जैसे कि यूवाइटिस
  • हाथ पैर में सूजन
  • तंत्रिका संबंधी समस्याएं जैसे दौरे और होश में न रहना
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यदि कुत्ता टिक्स से ग्रस्त है या उसमें संक्रमण होने का जोखिम अधिक है, तो कुछ समय के लिए टिक कॉलर का उपयोग किया जा सकता है। यदि आप टिक कॉलर का उपयोग करने का निर्णय लेते हैं, तो निम्नलिखित बातों पर विचार करें :

  • टिक कॉलर पहनाने के बाद घर की साफ सफाई करें।
  • यदि आपके घर में एक से अधिक पालतू जानवर हैं, और उनमें से किसी एक को टिक इंफेक्शन हो जाता है, तो उन सभी को टिक कॉलर पहनाएं, लेकिन जिसे टिक इंफेक्शन है उसे एंटीबायोटिक दें।
  • सुनिश्चित करें कि टिक कॉलर को गीला न होने दें, क्योंकि यह उसकी प्रभावशीलता को कम करता है।

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अपने कुत्ते पर समय-समय पर हाथ फेरते रहें, ता​कि टिक्स की उपस्थिति पता चल सके। इस दौरान बालों के अलावा यदि कुछ भी महसूस होता है तो हो सकता है कि वह टिक हो।

टिक को हटाने के लिए, इन्हें किसी सूक्ष्म उपकरण से पकड़ें और खींचें। सुनिश्चित करें खींचने के दौरान उसका सिर अंदर न रह जाए, ऐसे में सावधानीपूर्वक इस काम को करें। आप चाहें तो चिमटी का प्रयोग कर सकते हैं।

दस्ताने के बिना टिक को कभी न पकड़ें। इन टिक्स को मारने के लिए रबिंग अल्कोहल में टिक को गिराएं और फिर इसे टॉयलेट में फ्लश कर दें।

इलाज से बेहतर बीमारी की रोकथाम है। इसलिए कोशिश करें कि अपने घर और कुत्ते को टिक-फ्री रखें। 

यदि घर में लॉन है तो घास काटने वाली मशीन रखें और समय समय पर घास की छटनी करते रहें। क्योंकि यह टिक लंबी घास से कुत्तों पर कूद जाते हैं।

उन हिस्सों को वैक्यूम से साफ करें, जहां आपका कुत्ता अपना अधिकतर समय बिताता है। इसके अलावा उन स्थानों के बारे में भी अतिरिक्त सावधानी बरतें, जो अक्सर साफ नहीं होते हैं जैसे कि बेड के नीचे, फर्नीचर के पीछे आदि।

यदि आप नोटिस करते हैं कि आपके कुत्ते में टिक्स हैं, तो एक सुरक्षित लेकिन प्रभावी कीटनाशक का उपयोग करें।

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कुत्तों में ज्यादातर टिक-बोर्न इंफेक्शन के लिए डॉक्सीसाइक्लिन का उपयोग किया जाता है। इस दवा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यदि इस दवा को उपचार के शुरू से इस्तेमाल किया जा रहा है तो संक्रमित कुत्तों में तेजी से सुधार देखा जा सकता है और 24 घंटों के भीतर वे बेहतर महसूस करने लग जाते हैं। इसके अलावा, दवा से जोड़ों में दर्द भी दूर हो जाता है। कोर्स पूरा होने के बाद क्लिनिकल टेस्ट होगा। यदि रिपोर्ट्स निगेटिव आती है तो इसका मतलब कुत्ते स्वस्थ हैं।
हालांकि, कुछ मामलों में निगेटिव रिपोर्ट्स आने के बाद भी लाइम रोग दोबारा से ट्रिगर कर सकता है और पहले से अधिक आक्रामक हो सकता है, जिसमें किडनी व अन्य अंगों को नुकसान हो पहुंच सकता है।

किसी भी तरह की टिक-बोर्न इंफेक्शन के निदान की प्रक्रिया काफी हद तक एक ही होती है। लाइम रोग के निदान के लिए पशुचिकित्सक कुत्ते का ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट और मल की जांच कर सकते हैं। इसके अलावा मालिक से उसके कुत्ते की मेडिकल हिस्ट्री के बारे पूछा जा सकता है। जरूरत के अनुसार वे एंटीबॉडी टेस्ट की भी जांच कर सकते हैं।

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  • जोड़ों में अकड़न
  • न्यूरोलॉजिकल और कार्डियक असामान्यताएं जैसे कि अवसाद, कुत्तों में दौरे, हृदय गति में वृद्धि और सांस की तकलीफ
  • कुत्तों में बुखार और घबराहट
  • भूख में कमी
  • परजीवी के काटने वाले स्थान पर सूजन
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इसे लाइम बोरेलिओसिस के रूप में भी जाना जाता है जो कि एक-एक टिक बोर्न डिजीज है। लाइम रोग बोरेलिया बर्गडोर्फेरी प्रजाति के एक बैक्टीरिया के कारण होता है। बोरेलिया बर्गडोर्फेरी 'डियर टिक' के जरिए फैलता है। इससे ग्रस्त जानवरों में लंगड़ापन, न्यूरोलॉजिकल और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह संक्रमण किडनी के लिए विशेष रूप से हानिकारक हो सकता है।

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आमतौर पर ई. कैनिस संक्रमण वाले कुत्तों को डॉक्सीसाइक्लिन दिया जाता है। ऐसे कुत्ते जो अभी शुरुआती चरण में हैं, उनमें ट्रीटमेंट का नतीजा जल्दी और अच्छा मिलता है। इन दवाइयों की खुराक 28 दिनों तक चलती है, जिसके बाद एक नैदानिक परीक्षण किया जाएगा। यदि परीक्षण से यह पता चलता है कि संक्रमण पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है, तो फिर भी आहार संबंधी परहेज जारी रहेगा। अधिक गंभीर मामलों में, ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ सकती है।

टिक से होने वाले अन्य संक्रमणों की तरह एर्लिचियोसिस के निदान के लिए ब्लड टेस्ट और यूरिनेलिसिस की मदद ली जाती है। कुत्ते की मेडिकल हिस्ट्री भी निदान में मदद कर सकती है। यदि आपके स्थानीय पशुचिकित्सा कार्यालय में पीसीआर और एंटीबॉडी टेस्ट की सुविधाएं हैं तो अच्छा होगा कि इन सुविधाओं का लाभ लिया जाए ताकि सटीक निदान में मदद मिल सके।

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स्पॉटेड फीवर एक टिक बोर्न इंफेक्शन है, जो कि रिकेट्सिया बैक्टीरिया खासकर, रिकेट्सिया रिकेट्सी, रिकेट्सिया फीलिस और रिकेट्सिया कोनोरी के कारण फैलता है। इसके सबसे सामान्य लक्षण में टिक द्वारा काटे जाने वाले हिस्से पर लालिमा या बैंगनी रंग के धब्बे पड़ना शामिल है। बता दें, भारत में सबसे ज्यादा रिकेट्सिया कोनोरी नामक बैक्टीरिया की वजह से कुत्तों में टाइफस टिक पाई जाती है।

चित्तीदार बुखार की तरह, एर्लिचियोसिस भी भूरे रंग के कुत्ते में पाए जाने वाले टिक के कारण होता है और यह परजीवी प्रजाति रिकेट्सियल फैमिली से संबंधित है। सबसे आम परजीवियों में ई. कैनिस शामिल है जो संक्रमण का कारण बनता है। भारत में लोकप्रिय कुत्तों की नस्लों की तुलना में जर्मन शेफर्ड ब्रीड के कुत्तों में एर्लिचियोसिस टिक संक्रमण का जोखिम ज्यादा होता है। यह इंफेक्शन विभिन्न चरणों के माध्यम से फैलता है : एक्यूट, सबक्लिनिकल और क्रोनिक।

ई. कैनिस लक्षण दिखाई देने से पहले कुत्ते के रक्तप्रवाह में दो सप्ताह तक रह सकता है। यह रक्त कोशिकाओं में रहता है और एनीमिया व ब्लड क्लॉटिंग का कारण बनता है। यह प्लीहा, लिवर, अस्थि मज्जा और लिम्फ नोड्स में भी पाया जा सकता है।

अन्य प्रकार के टिक इंफेक्शन की तरह इसका निदान भी लक्षणों पर निर्भर करता है। पशुचिकित्सक परीक्षण के लिए ब्लड टेस्ट, एंटीबॉडी टेस्ट, यूरिनलिसिस और पीसीआर टेस्ट की मदद ले सकते हैं। हालांकि, टिक की वजह से होने वाले संक्रमणों के साथ समस्या यह है कि इसमें दिखने वाले लक्षण लगभग समान व अस्पष्ट होते हैं। ऐसे में यह पता कर पाना कठिन हो जाता है कि यह इंफेक्शन किस प्रकार के परजीवी के कारण हुआ है। संभव है कि आपका कुत्ता एक से अधिक प्रकार के संक्रमण से ग्रसित हो, क्योंकि एक टिक कई प्रकार के परजीवियों के वाहक के रूप में हो सकता है।

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कुत्तों में बेबेसियोसिस के इलाज के तौर पर सबसे अधिक 'इमीडोकार्ब' दवा का इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर कुछ प्रकार के परजीवियों के लिए इमिडोकार्ब की सिर्फ एक गोली पर्याप्त है, जबकि कुछ मामलों में एक से ज्यादा गोली की जरूरत पड़ सकती है। इसमें लगने वाला इंजेक्शन दर्दनाक होता है और इससे कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे लार टपकना, चेहरे पर सूजन, कंपकपाना और धड़कन बढ़ जाना।

सप्लीमेंटरी एंटीबायोटिक जैसे एजिथ्रोमाइसिन, क्विनिन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि बेबोसिस इंफेक्शन इंसानों को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए कभी-कभी क्लिंडामाइसिन नामक दवा का भी उपयोग किया जा सकता है।

कुछ मामलों में सप्लीमेंटरी ट्रीटमेंट जैसे कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन की भी आवश्यकता हो सकती है। यदि ऐसे मामलों में आगे कोई ​कठिनाई नहीं होती है, तो इसका मतलब है कि बीमारी का निदान सटीक हुआ है।

बेबेसिया के कुछ रूपों में खून के धब्बे दिखाई दे सकते हैं। इसके अलावा एंटीबॉडी टेस्टिंग (आईएफए और पीसीआर) के जरिये भी बीमारी का निदान किया जा सकता है। अक्सर ऐसा पाया गया है कि ब्लड टेस्ट में सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है ऐसे में पीसीआर की मदद ली जा सकती है। हालांकि, पशु चिकित्सक शारीरिक परीक्षा और मेडिकल हि​स्ट्री के जरिये भी बेबेसिया इंफेक्शन का पता लगा सकते हैं।

यदि आप एक क्षेत्र में रह रहे हैं, जहां इन टिक्स का जोखिम है या कुत्ते में जल्दी-जल्दी टिक इंफेक्शन की समस्या होती है, तो ऐसे में डॉक्टर इस स्थिति को आधार मानकार ट्रीटमेंट शुरू कर सकते हैं।

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चूंकि यह परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इस संक्रमण को फैलने से रोकती है। दुर्भाग्य से, इस प्रक्रिया में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं, जिससे 'इम्यून मेडिएटेड हेमोलिटिक एनीमिया' (एनीमिया का गंभीर रूप) हो जाता है। इसमें तेजी से लाल रक्त कोशिकाएं कम होने लगती हैं, जिसकी वजह से निम्नलिखित परेशानियां हो सकती हैं:

  • तेज बुखार, सुस्ती और कमजोरी
  • कुत्तों में पीलिया
  • गहरे रंग में मूत्र और मल होना
  • पेट फूलना

अधिक सूजन होने पर ब्लड प्लेटलेट्स गिर जाती हैं और थक्कों से संबंधित दिक्कतें होने लगती हैं। इसके अलावा, न्यूरोलॉजिकल लक्षण जैसे कि संतुलन की कमी और दौरे पड़ना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

बेबेसिया एक छोटा-सा परजीवी है, जो लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करता है। इस परजीवी से होने वाले संक्रमण को बबेसिओसिस रोग कहा जाता है। यह बीमारी टिक के काटने, टिक से संक्रमित कुत्तों के काटने और मादा कुत्तों से उनके पिल्ले में पारित होने या खून चढ़ने की वजह से होता है। बेबेसिया परजीवी के कई उपप्रकार जैसे बेबेसिया कैनिस वोगेली और बेबेसिया गिब्सन हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं।

बबेसिओसिस रोग से प्रभावित होने के एक से आठ सप्ताह के बाद से इस बीमारी के लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं। यदि इसका इलाज समय पर नहीं किया गया तो एनीमिया हो सकता है। हालांकि, भारत में बेबेसिया इंफेक्शन के अन्य सामान्य लक्षणों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया या प्लेटलेट्स की कमी शामिल है।

इलाज के तौर पर लगभग एक महीने तक एंटीबायोटिक दिया जाता है और दवाई के असर को जानने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। यदि आपके घर में एक से ज्यादा कुत्ते हैं, तो उनका भी परीक्षण किया जाना चाहिए, क्योंकि अन्य जानवरों को एक ही टिक प्रभावित कर सकता है।

(और पढ़ें - कुत्तों में पेट फूलना)

टिक बुखार के लिए एंटीबायोटिक्स उपचार से शुरुआत की जाती है। भारत में ज्यादातर डॉक्सीसाइक्लिन नामक दवाई का अधिक उपयोग किया जाता है। कुत्ते को लगभग एक माह तक इस दवा को देने की जरूरत होती है। इस अवधि के बाद, दवा के असर को जानने के लिए फिर से ब्लड टेस्ट किया जाएगा। जरूरत पड़ने पर सप्लीमेंट्री ट्रीटमेंट जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन की मदद ली जा सकती है।

जिन मामलों में विशेष जटिलता या कठिनाई नहीं आती है और उचित समय पर इलाज शुरू कर दिया जाता है, उनमें तेजी से सुधार देखने को मिलता है। हालांकि, अगर जटिलताएं हैं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। संक्रमण के बाद किडनी की बीमारी, लिवर की बीमारी और तंत्रिका संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

पशुचिकित्सक आपसे कुत्ते की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूछ सकते हैं, जिसमें डीवॉर्मिंग और टीके की जानकारी भी ली जाती है। लक्षण दिखने की शुरुआत से लेकर कुत्ते के व्यवहार में बदलाव तक सभी जानकारी देने की जरूरत पड़ सकती है। इससे डॉक्टर को संक्रमण की सटीक जानकारी पता लगाने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा वे ब्लड टेस्ट की भी मदद ले सकते हैं, जिसमें शामिल है :

  • सीबीसी : यह एंटीबॉडी उत्पादन की जानकारी देता है।
  • प्लेटलेट काउंट और क्लॉटिंग टेस्ट : यह खून और प्लेटलेट्स के स्तर का आकलन करने वाला टेस्ट है।
  • टिटर/टाइटर टेस्ट : निदान की पुष्टि के लिए, करीब दो सप्ताह बाद फिर से ब्लड टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट का मकसद परवीजी की उपस्थिति का पता लगाना है।

(और पढ़ें - कुत्तों में हुकवर्म संक्रमण)

कुत्ते में चित्तीदार बुखार के लक्षण उसकी गंभीरता और प्रकार पर निर्भर ​करता है। कुत्ते का सामान्य तापमान 101 और 102.5 डिग्री फॉरेनहाइट के बीच होता है। यदि आपके कुत्ते का तापमान इससे अधिक है, तो उसे पशु चिकित्सक के पास ले जाने की जरूरत है। कुत्ते में चित्तीदार बुखार के लक्षणों में शामिल हैं :

  • सुस्ती और भूख न लगना
  • खांसी
  • चलने में कठिनाई या लंगड़ापन
  • लिम्फ नोड्स का बढ़ना
  • पूरे शरीर में छोटे लाल या बैंगनी रंग के धब्बे हो जाना। इस स्थिति को स्पॉटेड फीवर यानी चित्तीदार बुखार कहा जाता है। 

गंभीर मामलों में, न्यूरोलॉजिकल लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।

(और पढ़ें - कुत्तों में कैनाइन पर्वो वायरस)

संदर्भ

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