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Himalaya Pure Hand Sanitizer बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः स्किन इन्फेक्शन के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा Himalaya Pure Hand Sanitizer का उपयोग कुछ दूसरी समस्याओं के लिए भी किया जा सकता है। इनके बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी गयी है। Himalaya Pure Hand Sanitizer के मुख्य घटक हैं नगरामुस्ताका, नीम, उशिरा जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है। Himalaya Pure Hand Sanitizer की उचित खुराक मरीज की उम्र, लिंग और उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली समस्याओं पर निर्भर करती है। यह जानकारी विस्तार से खुराक वाले भाग में दी गई है।
नगरामुस्ताका |
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नीम |
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उशिरा |
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PURE HAND SANITIZER 50ML 50ml इन बिमारियों के इलाज में काम आती है -
मुख्य लाभ
अन्य लाभ
चिकित्सा साहित्य में Himalaya Pure Hand Sanitizer के दुष्प्रभावों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। हालांकि, Himalaya Pure Hand Sanitizer का इस्तेमाल करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह-मशविरा जरूर करें।
क्या PURE HAND SANITIZER 50ML 50ml का उपयोग गर्भवती महिला के लिए ठीक है?
Himalaya Pure Hand Sanitizer का गर्भवती महिलाओं पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
क्या PURE HAND SANITIZER 50ML 50ml का उपयोग स्तनपान करने वाली महिलाओं के लिए ठीक है?
स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए Himalaya Pure Hand Sanitizer पूरी तरह सुरक्षित है।
क्या PURE HAND SANITIZER 50ML 50ml का उपयोग बच्चों के लिए ठीक है?
बच्चों के लिए Himalaya Pure Hand Sanitizer लेना सुरक्षित माना जा सकता है।
क्या PURE HAND SANITIZER 50ML 50ml का उपयोग शराब का सेवन करने वालों के लिए सही है
Himalaya Pure Hand Sanitizer को शराब के साथ लेने से किसी तरह का हानिकारक प्रभाव नहीं होता है।
इस जानकारी के लेखक है -
BAMS, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डर्माटोलॉजी, मनोचिकित्सा, आयुर्वेद, सेक्सोलोजी, मधुमेह चिकित्सक
10 वर्षों का अनुभव
संदर्भ
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume 2. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1999: Page No - 131 - 135
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. Volume 3. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 2001: Page No 220 - 221