आयुर्वेद की दुनिया तमाम गुणकारी औषधियों से भरी हुई है. ऐसी ही एक औषधि है- शालपर्णी. कई सारे स्वास्थ्य लाभ के लिए उपयोग में लाई लाने वाली इस औषधि की जड़ें काफी उपयोगी मानी जाती हैं. इतना ही नहीं यह उन 10 जड़ी-बूटियों में से एक है जिसकी जड़ें दशमूल में इस्तेमाल की जाती हैं. दशमूल, 10 सूखी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बने काढ़े को कहा जाता है, इस काढ़े को स्वास्थ्य के लिए कई मायनों में लाभदायक माना जाता है.
शालपर्णी को डेस्मोडियम गैंगिटिकम के नाम से भी जाना जाता है. दो से चार फीट तक बढ़ने वाला यह पौधा भारत के कई हिस्सों में बहुतायत में पाया जाता है. शालपर्णी के फूल मटर के आकार के सफेद-बैंगनी रंग के होते हैं, जिनका उपयोग कई प्रकार की समस्याओं के उपचार में किया जाता है. यह फूल अगस्त और नवंबर के महीनों के बीच खिलते हैं. भारत के पश्चिमी घाटों से लेकर सिक्किम तक के ज्यादातर हिस्सों में शालपर्णी के फूल देखने को मिल सकते हैं. आइए इस गुणकारी औषधि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं.
- वैज्ञानिक नाम : डेस्मोडियम गैंगेटिकम
- सामान्य नाम : शालपर्णी
- संस्कृत नाम : अंशुमती, विदरिगंधा
- मूल : फबासी
- प्रयोग में लाए जाने वाले हिस्से : पौधे के ज्यादातर हिस्से, विशेष रूप से जड़
- मूल क्षेत्र और भौगोलिक स्थिति : उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, एशिया के अधिकांश (विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप) और ऑस्ट्रेलिया
- विशेषता : कफ और वात दोषों को शांत करने के लिए जाना जाता है.
शालपर्णी, स्वाद में कड़वा-मीठा और पत्तियां सामान्य होती हैं. डेस्मोडियम पौधे में इस तरह के गुणों का होना असामान्य माना जाता है. जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि यह औषधि कई प्रकार से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है, आइए इससे होने वाले ऐसे ही स्वास्थ्य संबंधी कुछ फायदों और इसके दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं.