सप्तपर्णी का पौधा
सप्तपर्णी को आयुर्वेद में उन औषधियों में से एक माना जाता है जो कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ को समाहित किए हुए है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसमें दिसंबर से मार्च के दौरान छोटे-छोटे हरे और सफेद रंग के फूल लगते हैं जिनसे एक बेहद तेज और विशिष्ट सुगंध आती है। भारत में हिमालय के क्षेत्रों और उसके आसपास के हिस्सों में यह पौधा ज्यादातर उगता है। पौधे की छाल ग्रे रंग की होती है। 

य​ह एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा, तीनों में कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है। दुर्बलता को दूर करने से लेकर खुले घावों को ठीक करने और नपुंसकता से पीलिया तक कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज में सप्तपर्णी को प्रभावी औषधि के रूप में माना जाता है। वैसे तो पौधे के ज्यादातर हिस्से औषधीय गुणों से युक्त होते हैं लेकिन इसकी छाल को मलेरिया को ठीक करने के लिए सदियों से प्रयोग में लाया जाता रहा है। सप्तपर्णी, जहां एक ओर कई बीमारियों के इलाज के लिए प्रभावी होता है वहीं इस पौधे में फर्टिलिटी को कम करने की भी क्षमता होती है लिहाजा विशेषज्ञों का मानना है कि इसका किसी भी रूप में इस्तेमाल करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श ले लेना बेहतर होगा।

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सप्तपर्णी से जुड़ी जानकारियां

  • वानस्पतिक नाम: अल्स्टोनिया स्कोलैरिस
  • परिवार: अपोसिनैसीयाए
  • अन्य नाम: डेविल्स ट्री, स्कॉलर ट्री, डीटा बार्क, ब्लैकबोर्ड ट्री
  • संस्कृत नाम: सप्तपर्णा, सप्तचद, छत्रपर्ण
  • प्रयोग में लाए जाने वाले हिस्से: पत्तियां, फूल, लेटेक्स, छाल
  • भौगोलिक वितरण: सप्तपर्णी मूल रूप से दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला पौधा है। भारत में यह उप-हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से यमुना नदी के पूर्वी हिस्सों में पाया जाता है। इसके अलावा यह दक्षिणी चीन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के देश और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में भी उगता है।
  • दिलचस्प तथ्य: इस पौधे के फूलों से रात के समय एक विशेष प्रकार की तेज खुशबू आती है, ऐसे में दुनिया के कुछ हिस्सों में इस पौधे को अशुभ और शैतान के निवास के रूप में भी जाना जाता है।
  1. सप्तपर्णी के फायदे - Health Benefits of Saptaparni in Hindi
  2. सप्तपर्णी के लाभ - Benefits of Saptaparni in Hindi
  3. सप्तपर्णी के अन्य फायदे - Other Benefits of Saptaparni in Hindi
  4. सप्तपर्णी के नुकसान - Side effects of Saptaparni in Hindi
सप्तपर्णी के फायदे और नुकसान के डॉक्टर

अल्स्टोनिया स्कोलैरिस, यानी सप्तपर्णी का स्वाद भले ही कड़वा और कसैला होता है लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में त्वचा की बीमारियों से लेकर दस्त और सांप के काटने के उपचार के लिए भी सप्तपर्णी को प्रयोग में लाया जाता है। पौधे की छाल का उपयोग मलेरिया के उपचार के लिए क्वीनीन (quinine) के विकल्प के रूप में किया जाता है।

आइए सप्तपर्णी से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी अन्य लाभ के बारे में जानते हैं।

सप्तपर्णी के फायदे घाव भरने के लिए - Saptaparni for Healing Wounds in Hindi

सप्तपर्णी (अल्स्टोनिया) का पौधा घावों के उपचार में अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। पशुओं पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि अल्स्टोनिया पत्तियों का मेथनॉल अर्क खुले घावों को तेजी से भरने में मदद कर सकता है। पशुओं पर ही किए गए एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्स्टोनिया का अर्क त्वचा के उपचार और घावों के बाद त्वचा को दोबारा से ठीक करने में भी सहायक हो सकता है।

(और पढ़ें- घाव भरने के उपाय)

'डेर फार्माशिया लेट्रे' नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, अल्स्टोनिया की पत्तियों और छाल के मेथनॉल अर्क और कुछ अन्य पौधों की पत्तियों का उपयोग भी घावों को तेजी से भरने में सहायक हो सकता है। यहां ध्यान दें, चूंकि खुले घावों पर अलस्टोनिया के प्रभाव और सुरक्षा को साबित करने के लिए फिलहाल कोई नैदानिक अध्ययन नहीं है, इसलिए किसी भी तरह के घाव पर अलस्टोनिया को प्रयोग करने से पहले किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर कर लें।

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सप्तपर्णी के फायदे एंटीमाइक्रोबियल प्रभाव के लिए - Antimicrobial effects of Saptaparni in Hindi

अब तक हुए अध्ययनों में पाया गया है कि अल्स्टोनिया, बायोलॉजिकल एक्टिव कंपाउंड से समृद्ध होते हैं जो इसकी रोगाणुरोधी क्षमता को बढ़ाता है। सप्तपर्णी पौधे के विभिन्न हिस्सों को बैक्टीरिया की एक विस्तृत श्रृंखला के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। यह ग्राम-पॉजिटिव (जो ग्राम स्टेन टेस्ट में नीले रंग के दिखते हैं) और ग्राम-नेगेटिव (ग्राम स्टेन टेस्ट में लाल रंग के निशान छोड़ते हैं) दोनों प्रकार के बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी साबित होते हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि यह ई.कोली (दस्त और पेचिश का कारण बनता है), क्लेबसिएला निमोनिया (निमोनिया और घावों के संक्रमण का कारण बनता है) और मेथिसिलिन रेसिस्टेंस स्टैफिलोकोकस ऑरियस (एमआरएसए) जैसे बैक्टीरिया के खिलाफ असरकारक साबित हो सकता है।

भारत में किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि अल्स्टोनिया स्कोलैरिस की छाल बैक्टीरिया की एक विस्तृत श्रृंखला के खिलाफ प्रभावी है। इसमें स्यूडोमोनस एरूजिनोसा (त्वचा, फेफड़े और मूत्र पथ के संक्रमण का कारण) और बैसिलस सेरेस (भोजन विषाक्तता का कारण बनता है) जैसे बैक्टीरिया शामिल हैं। इसके अलावा इसे एस्परगिलस फ्लेवस (त्वचा और घाव के संक्रमण का कारण) और यीस्ट कैंडिडा अल्बिकन्स जैसे फंगस के खिलाफ भी प्रभावी औषधी माना गया है। 

‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ करंट फ़ार्मास्यूटिकल रिसर्च’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ए.स्कोलैरिस की जड़ और छाल के अर्क में प्रभावी रोगाणुरोधी गुण देखे गए जो फूल, फल और पत्तियों के अर्क से अधिक है।

सप्तपर्णी के फायदे मलेरिया की बीमारी में - Antimalarial effects of Saptaparni in Hindi

विशेषज्ञों का मानना है कि सप्तपर्णी की छाल में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो इसे एंटीमलेरियल प्रभाव देते हैं। ऐसे में यह एंटीमलेरिया की दवा क्वीनीन का विकल्प हो सकता है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि सप्तपर्णी की एंटीप्लाज्मोडियल गतिविधि मलेरिया परजीवी प्लाजमोडियम के खिलाफ प्रभावी साबित हो सकती है।

चूहों पर की गई इन विवो स्टडी में शोधकर्ताओं ने पाया कि सप्तपर्णी की छाल पैरासाइटिक लोड को कम करने और जीवित रहने की संभावना को भी बढ़ाने में मदद करती है। इसके अलावा तमिलनाडु में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि सप्तपर्णी पौधे की पत्ती और छाल के अर्क में प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम (मनुष्यों को संक्रमित करने वाले सबसे घातक मलेरिया परजीवी) के खिलाफ प्रभावी गुण मौजूद होते हैं। हालांकि इस पौधे का एंटीमलेरिया प्रभाव थोड़ा विवादास्पद है। उदाहरण के लिए चंडीगढ़ में किए गए एक अध्ययन में प्लास्मोडियम के खिलाफ सप्तपर्णी का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला।

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‘जर्नल ऑफ एथनोफॉर्माकोलॉजी’ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि इस पौधे में मौजूद सक्रिय यौगिक प्लासमोडियम के खिलाफ प्रभावी नहीं होते हैं। ऐसे में मलेरिया के उपचार के लिए सप्तपर्णी के उपयोग से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।

उपरोक्त फायदों के अलावा भी सप्तपर्णी के कई अन्य लाभ हैं जिसकी वजह से दुनियाभर के कई हिस्सों में इसे प्रयोग में लाया जाता रहा है। आइए ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में जानते हैं।

सप्तपर्णी के लाभ दस्त को ठीक करने में - Saptaparni helps manage Diarrhea in Hindi

पारंपरिक रूप से दस्त और पेचिश के इलाज के लिए भी सप्तपर्णी को प्रयोग में लाया जाता है। पशुओं पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि अल्स्टोनिया पौधे का मेथनॉलिक अर्क न केवल दस्त से राहत देता है, साथ ही शरीर पर इसका एंटीनोसिसेप्टिव यानी दर्द की संवेदना को भी कम करने वाला असर भी होता है। चूहों पर किए गए एक अन्य अध्ययन में अल्स्टोनिया छाल का इथेनॉलिक अर्क शौच की आवृत्ति को कम करने में प्रभावी पाया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि पौधे में पाए जाने वाले सैपोनिन, टैनिन और कुछ अल्कलॉइड जैसे यौगिक पौधे को इस प्रकार के गुण प्रदान करते हैं।

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फाइटोथेरेपी रिसर्च नाम के जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, सप्तपर्णी पौधे का अर्क कैल्शियम चैनल को ब्लॉक करके डायरिया को रोकने में मदद करता है। वैसे तो कई अध्ययनों में सप्तपर्णी के दस्त के उपचार में प्रभावी होने की बात सामने आयी है लेकिन यह इंसानों में कितना प्रभावी है, इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

सप्तपर्णी के लाभ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में - Saptaparni stimulates Immune System in Hindi

अल्स्टोनिया यानी सप्तपर्णी को एक ऐसी प्रभावी जड़ी बूटी के रूप में माना जाता है जो इम्यून सिस्टम को ठीक करने में मदद करती है। चूहों पर किए गए एक अध्ययन में विशेषज्ञों ने पाया कि पौधे का जलीय अर्क प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करने और एलर्जिक प्रतिक्रियाओं को कम करने में काफी प्रभावी हो सकता है।

मध्य प्रदेश में किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि सप्तपर्णी पौधे की छाल ह्यूमोरल (हार्मोन से संबंधित) और सेल-मीडिएटेड (कोशिका संबंधी) प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों को उत्तेजित करने में प्रभावी हो सकता है। ये दोनों ही हमारे प्राप्त किए गए इम्यून सिस्टम के दो अहम हिस्से हैं। शरीर में एक इम्यून सिस्टम जन्मजात होता है जबकी दूसरा अक्वायर्ड या प्राप्त किया हुआ जो नए रोगाणुओं को सामना करते हुए धीरे-धीरे विकसित होता है।

सप्तपर्णी के लाभ लिवर के लिए - Saptaparni effects on Liver in Hindi

कई अध्ययनों में देखा गया है कि सप्तपर्णी लिवर रोगों के उपचार में काफी फायदेमंद हो सकता है। पशुओं पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि इस पौधे में हेपैटोप्रोटेक्टिव गुण होते हैं। भारत में किए एक अध्ययन में पाया गया कि अल्स्टोनिया पौधे का इथेनॉलिक अर्क लिवर डैमेज को कम करने और किसी तरह की बीमारी के बाद लिवर को दोबारा ठीक करने में काफी प्रभावी हो सकता है।

ताइवान में किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि अल्स्टोनिया का हेपैटोप्रोटेक्टिव प्रभाव बुप्लुरम चाइनीज के ही समान है। यह एक चीनी जड़ी बूटी है जिसे लिवर संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है।

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इसके अलावा ‘वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजिकल रिसर्च’ में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्स्टोनिया छाल के जलीय अर्क चूहों में होने वाले एथनॉल और पैरासिटामोल-इंड्यूस्ड लिवर डैमेज को कम करने में प्रभावी था। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह सभी अध्ययन पशुओं पर किए गए हैं ऐसे में मनुष्यों में इसके प्रभावों को जानने के लिए अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है।

सप्तपर्णी के लाभ कैंसर की रोकथाम के लिए - Anti-Cancer effects of Saptaparni in Hindi

कई अध्ययनों से अल्स्टोनिया अर्क के एंटीकैंसर प्रभावों के प्रमाण मिलते हैं। कर्नाटक में किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्स्टोनिया अर्क को जब बेर्बेरिन हाइड्रोक्लोराइड नामक दवा के साथ दिया गया तो शुरुआती चरणों में ही ट्यूमर के विकास को रोकने में मदद मिली। हालांकि ट्यूमर के विकास के बाद के चरणों में इसे प्रभावी नहीं माना गया है।

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भारत में किए गए एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अल्स्टोनिया के ऐल्कलॉइड फ्रैक्शन को कीमोथेरेपी दवा जैसे साइक्लोफॉस्फामाइड की तुलना में अधिक प्रभावी पाया। इन विवो और इन विट्रो, दोनों ही प्रकार के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि अल्स्टोनिया अर्क म्यूटेशन की संख्या को कम करके कैंसर के विकास को रोकता है।

‘जर्नल मॉल्यूक्यूल’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अल्स्टोनिया के पौधे में मौजूद ऐल्कलॉइड्स और ट्राइटरपेंस में एपोप्टोटिक और इम्यूनोरेगुलेटरी गुण होते हैं जो नॉन स्मॉल सेल लंग कैंसर की रोकथाम और उपचार में सहायक हो सकते हैं।

ऊपर बताए गए फायदों के अलावा सप्तपर्णी निमनलिखित स्थितियों में भी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद औषधि मानी जाती है-

  • सप्तपर्णी का उपयोग पारंपरिक तौर से पुराने दस्त, पेट दर्द, सांप काटने के उपचार, दांतों के दर्द और पेचिश के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इस पौधे की पत्तियों का उपयोग बेरीबेरी (विटामिन बी 1 की कमी के कारण होने वाली बीमारी) के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों, तने की छाल और जड़ की छाल का मेथनॉल अर्क तपेदिक का कारण बनने वाले माइकोबैक्टीरियल ट्यूबरकोलोसिस बैक्टीरिया के विकास को रोक सकता है।
  • कोरिया में किए गए इन विट्रो अध्ययन से पता चला कि सप्तपर्णी की छाल का अर्क टॉपिकल रेटिनॉइड्स के एंटीएजिंग प्रभाव को कम करने के साथ इसके ​कारण होने वाली त्वचा की जलन को कम करने में प्रभावी है। टॉपिकल रेटिनॉइड्स वह दवाएं हैं जो त्वचा में कोलेजन के उत्पादन को बढ़ाती हैं और झुर्रियों को कम करने में मदद करती हैं। हालांकि कभी-कभी इनकी वजह से सूजन, स्केलिंग और एरिथेमा (त्वचा की लालिमा) जैसे दुष्प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं।
  • अलस्टोनिया के अर्क को एंटी-टूसिव (खांसी से राहत देने वाला), एक्सपेक्टोरेंट (बलगम को बाहर निकालने वाला) और एंटी अस्थमा युक्त प्रभावों वाला माना जाता है। इन विवो (पशुओं) पर किए गए अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्स्टोनिया के पौधों में मौजूद पिक्रीनिन नामक एल्केलॉइड इसे एंटी-अस्थमा और एंटी-टूसिव गुण प्रदान करता है।
  • जानवरों पर किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि सप्तपर्णी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एनैल्जेसिक (दर्द से राहत देने वाले) दोनों गुण मौजदू होते हैं।
  • सप्तपर्णी के छाल से बना काढ़ा उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने में भी इस पौधे को उपयोगी माना गया है।
  • अल्स्टोनिया के पौधे के दूधिया रस का उपयोग पारंपरिक रूप से अल्सर को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। इन विवो अध्ययन में पाया गया कि सप्तपर्णी की पत्तियों का इथेनॉलिक अर्क पेट के अल्सर को ठीक करने में भी प्रभावी है।
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सप्तपर्णी के पौधे का उपयोग जितना फायदेमंद है, वहीं इसके कुछ दुष्प्रभाव भी देखने को मिले हैं। ऐसे ही कुछ दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • इस पौधे का पराग एलर्जी का कारण बन सकता है और इस पौधे का रस उत्तेजक पदार्थ के रूप में जाना जाता है।
  • इन विवो (पशु मॉडल) अध्ययनों के दौरान विशेषज्ञों को इस पौधे के अर्क में मौजूद कुछ यौगिकों में एंटीफर्टिलिटी प्रभाव भी दिखा। इसलिए इसके किसी भी प्रकार के इस्तेमाल से पहले डॉक्टर सलाह लेना आवश्यक है।
  • चूहों पर किए गए अध्ययन में सप्तपर्णी के टेराटोजेनिक प्रभाव (जन्मजात दोष को बढ़ावा देने) देखने को मिले। हालांकि नैदानिक अध्ययनों में इस प्रभाव का परीक्षण नहीं किया गया है लेकिन गर्भवती महिलाओं को इसके उपयोग से बचने की सलाह दी जाती है।
  • यदि आप किसी क्रॉनिक बीमारी के शिकार हैं या किसी प्रकार की दवा का सेवन कर रहे हैं तो सप्तपर्णी को लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।

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