आधुनिक समय में एक बार फिर से आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हो रहा है। इसकी मुख्य वजह आधुनिक शोधकर्ताओं द्वारा प्राकृतिक उपचारों के फायदों को लेकर लगातार किए जा रहे शोध हैं। हाल के समय में वैज्ञानिकों का जिन औषधीय पौधों ने सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है उन्ही में से एक है - नागरमोथा का पौधा या 'साइप्रस रोटंडस' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार का खरपतवारनुमा पौधा होता है जो दुनिया के कई हिस्सों में पाया जाता है। अलग-अलग हिस्सों में इसे विभिन्न नामों (पर्पल नटसेज, नटग्रास और जावाग्रास) से जाना जाता है। आयुर्वेद में इस पौधे का जिक्र कई सारी बीमारियों जैसे पेट और आंत संबंधी समस्याओं, दर्द से राहत दिलाने और सूजन को कम करने के लिए किया जाता रहा है। कुछ जानकारों का मानना है कि नागरमोथा का तेल लगाने से बालों के विकास को भी बढ़ावा मिलता है।
आयुर्वेद शास्त्र में इस औषधि के तमाम प्रकार के लाभ का जिक्र मिलता है। हालांकि, इनके आधुनिक विज्ञान के परीक्षण की आवश्यकता है। आइए नागरमोथा औषधि के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नागरमोथा के बारे में सामान्य जानकारी
वैज्ञानिक नाम : साइप्रस रोटंडस
फैमिली : साइपरेसी
संस्कृत नाम : भद्रमुस्त, ग्रंथी, कच्छडा, मुस्ता, मुस्तको, सुगंधी-ग्रन्थिला
सामान्य नाम : नागरमोथा, गिंबल (मराठी), कोरई (तमिल), तुंगगड़ी (तेलुगु)
प्रयोग में लाए जाने वाले हिस्से : राइजोम (तने), कंद, फूल
मूल : भारत
भौगोलिक वितरण : उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय या शीतोष्ण जलवायु वाले देशों में यह बहुतायत में पाया जाता है
जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि यह पौधा खरपतवार नुमा दिखाई देता है, जिसकी ऊंचाई 7-40 सेमी के करीब की होती है। इसकी जड़ें रेशेदार होती हैं और यह मुख्य रूप से राइजोम (मोडिफाइड स्टेम) द्वारा प्रजनन करती है। नागरमोथा के फूल फाइटोकेमिकल्स का उत्पादन करते हैं जो प्राकृतिक रूप से कीटनाशकों के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। आइए नागरमोथा के स्वास्थ्य संबंधी लाभ और इससे होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जानते हैं।