आयुर्वेद की तमाम औषधियों का जिक्र पुराणों और कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। भृगु नाम के ऋषि ने ऐसी ही एक औषधि की खोज की थी, जिसे भारंगी नाम से जाना जाता है। सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे बाग फूल भी कहते हैं। आइए इस पौधे के बारे में कुछ सामान्य बातें जानते हैं। भारंगी का पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसकी उपज विशेष रूप से दोमट मिट्टी में होती है। भारंगी के फूल नीले-गुलाबी रंग के होते हैं और गर्मियों के मौसम में खिलते हैं। इन फूलों से हल्की खुशबू आती है और पौधे के अन्य हिस्सों की तरह यह भी काफी फायदेमंद होते हैं। बरसात के मौसम में इसके फल आते हैं।
वैसे तो भारंगी का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में किया जाता है। लेकिन श्वसन संबंधी समस्याओं के लिए पारंपरिक उपचार के तौर पर इसे काफी प्रभावी माना जाता है। इसकी जड़ों और पत्तियों में सैपोनिन, फ्लेवोनोइड और फिनोलिक्स जैसे तत्व पाए जाते हैं जो इस पौधे को अन्य कई बीमारियों के उपचार के लिए प्रभावी बनाते हैं। आइए भारंगी के बारे में कुछ सामान्य जानकारियों के साथ इसके उपयोग, खुराक और दुष्प्रभावों के बारे में जानते हैं।
भारंगी से संबंधित कुछ सामान्य जानकारियां -
- वानस्पतिक नाम : क्लेरोडेन्ड्रम सेराटम और रोथेका सेराटा
- सामान्य नाम : ग्लोरी बोवर, बाग फूल, ब्लीडिंग हार्ट, चेरुटेकु
- मूल : वर्बेनेसी
- संस्कृत नाम : भारंगी
- मूल क्षेत्र और भौगोलिक वितरण : दक्षिण-पूर्व एशिया (भारत और श्रीलंका), दक्षिण अफ्रीका, उष्णकटिबंधीय अमेरिका, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया
- प्रयोग में लाए जाने वाले भाग : जड़ें, पत्ते, छाल
- उपयोग : कफ और वात दोष को शांत करने के लिए जाना जाता है।