कोरोना वायरस को दुनिया में फैलने से रोकने के लिए चीन ने कई तरह के निर्यात पर रोक लगाई हुई है। लेकिन इस रोक ने भारत में अलग तरह की बहस छेड़ दी है। यहां दवाइयों की उपलब्धता और उनके दामों को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। किसी का अनुमान है कि चीन की तरफ से दवा उत्पादन से जुड़े 12 ड्रग्स या 'ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट' (एपीआई) के निर्यात पर रोक लगाए जाने से भारत में कई दवाइयों की उपलब्धता में कमी आ सकती है। वहीं, कुछ लोगों को डर है कि उपलब्धता की कमी के चलते दवाओं के दाम बढ़ न जाएं। ऐसे में सवाल उठता है कि ये अनुमान या आशंकाएं कितनी सही हैं।
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क्या है एपीआई?
सबसे पहले चर्चा करते हैं कि एपीआई है क्या। यह तो आप जानते ही हैं कि कोई भी उत्पाद कई चीजों को मिलाकर बनाया जाता है। इन चीजों को आम बोलचाल में सामग्री या कच्चा माल कहा जाता है। दवा उत्पादन के क्षेत्र में इस कच्चे माल या सामग्री को 'ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट' या एपीआई कहा जाता है।
दवाओं की उपलब्धता जानने के लिए पैनल का गठन?
कुछ दिन पहले मीडिया में आई कुछ रिपोर्टों में बताया गया था कि कोरोना वायरस संकट के चलते सरकार कुछ एपीआई या ड्रग्स फॉर्म्युलेशन के निर्यात पर रोक लगा सकती है। भारत में इन्हीं से दवाओं का उत्पादन होता है। रिपोर्टों में इन ड्रग्स या दवाओं की संख्या 12 बताई गई थी। इनमें एंटीबायोटिक और विटामिन दवाओं, जैसे क्लोरमफेनिकॉल, नियोमाइसिन, मेट्रोनिडाजोल, क्लिन्डामाइसिन, विटामिन बी1, बी2, बी6 के अलावा प्रोजेस्टेरोन नामक हार्मोन शामिल है।
इन ड्रग्स की संभावित कमी को लेकर चर्चा चल ही रही थी कि देश में कुछ प्रमुख दवाओं के दामों में 20 से 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखे जाने की खबरें सामने आईं। इनमें पैनकिलर पैरासिटामोल के अलावा एजिथ्रोमाइसिन और एमोक्सिसिलिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं। ऐसे में चीनी निर्यात पर लगी रोक से भारत में इन दवाओं के स्टॉक में कमी होगी या नहीं, यह जानने के लिए सरकार ने एक पैनल का गठन किया था।
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औषध विभाग ने 12 ड्रग्स के निर्यात पर रोक की सिफारिश की?
हालांकि पैनल की रिपोर्ट से पहले ही भारत के औषध विभाग ने विदेश व्यापार महानिदेशालय से इन 12 दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने की सिफारिश कर दी है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, विभाग ने कहा है कि भारत सरकार चीन से होने वाली एपीआई और अन्य ड्रग्स की आपूर्ति पर नजर बनाए हुए है। बयान में विभाग ने कहा कि हालात का आंकलन करने के बाद ही उसने अगले आदेश आने तक इन 12 दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने का सुझाव दिया है।
एपीआई के लिए चीन पर निर्भरता
भारत में दवा उत्पादन का कारोबार चीन पर काफी ज्यादा निर्भर है, क्योंकि जिस कच्चे माल यानी एपीआई से दवाएं बनाई जाती हैं, उसका 65 से 70 प्रतिशत हिस्सा चीन से ही आयात किया जाता है। इसकी वजह चीन की सस्ते से सस्ते दाम पर कच्चा माल उपलब्ध कराने की क्षमता है। इसीलिए भारत समेत दुनिया के कई देश दवा उत्पादन में लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भर हैं और चीनी निर्यात पर रोक के चलते ये सभी एक जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।
कई जानकारों का कहना है कि ऐसी स्थिति में केवल हालात सुधरने का इंतजार ही किया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि चीन में हालात वाकई में सुधरे हैं जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मान लिया है। पहले उसने कोरोना वायरस के नए मामलों में आई लगातार कमी पर सवाल उठाए थे, लेकिन अब उसने इस बात को स्वीकार करते हुए इसे कम समय में 'जबर्दस्त सुधार' बताया है।
भारतीय दवा कंपनियों के लिए अच्छा संकेत
डब्ल्यूएचओ का यह बयान भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहां भले ही कोरोना वायरस के नए मामले अब सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन दवा के संभावित संकट के लिहाज से इसे अच्छा संकेत माना जा सकता है। अगर चीन में कोरोना वायरस के नए मामले इसी रफ्तार से कम होते रहे तो इसी महीने के अंत से पहले वहां कोरोना वायरस के नए मरीजों का सामने आना पूरी तरह रुक सकता है। ऐसे में चीन से निर्यात पर लगी रोक को कुछ ही दिनों में हटाने की उम्मीद की जा सकती है, जबकि भारतीय दवा कंपनियों के पास अभी करीब 45 दिनों का स्टॉक उपलब्ध है।
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