स्केलेरोथेपी बहुत कम चीर-फाड़ वाली सर्जरी होती है जो कि वेरिकोज वेंस या स्पाइडर वेंस के इलाज के लिए की जाती है।
इस प्रक्रिया से पहले कुछ ब्लड टेस्ट और रेडियोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं। स्केलेरोथेरेपी में आमतौर पर मरीज को दिन में अस्पताल में भर्ती कर के शाम को छुट्टी मिल जाती है। स्थिति की गंभीरता के आधार पर इस प्रक्रिया को कई बार किया जा सकता है। दोबारा यह प्रॉब्लम न हो, इससे बचने के लिए सर्जरी के बाद देखभाल करना अहम है।
- स्केलेरोथेरेपी क्या है - Sclerotherapy kya hoti hai
- स्केलेरोथेरेपी की जरूरत कब पड़ती है - Sclerotherapy kab karvai jati hai
- स्केलेरोथेरेपी सर्जरी किसे नहीं करवानी चाहिए - Sclerotherapy kab nahi karvani chahiye
- स्केलेरोथेरेपी सर्जरी से पहले की तैयारी - Sclerotherapy se pahle ki taiyari
- स्केलेरोथेरेपी सर्जरी कैसे की जाती है - Sclerotherapy karne ka tarika
- स्केलेरोथेरेपी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं - Sclerotherapy se jude risk aur complications
- स्केलेरोथेरेपी के बाद देखभाल कैसे की जाती है - Sclerotherapy ke baad dekhbhal kaise karni chahiye
- सारांश - Takeaway
स्केलेरोथेरेपी क्या है - Sclerotherapy kya hoti hai
नसें रक्त वाहिकाएं होती हैं जो हार्ट की ओर खून को ले जाने का काम करती हैं। इनमें वाल्व होते हैं जो खून को वापिस जाने से रोकते हैं और खून को रोक कर रखते हैं। टांगों में वेरिकोज वेंस होने पर नसें असामान्य रूप से चौड़ी हो जाती हैं। स्पाइडर वेंस छोटी होती हैं और साफ दिखती हैं। ये वेरिकोज वेंस को बढ़ने में मदद करती हैं और बहुत पतली होती हैं।
स्केलेरोथेरेपी एक थेरेपी है जिसमें स्केलेरोसिंग एजेंटों (कुछ खास मेडिकल लिक्विड) को नसों के अंदर डाला जाता है। ये एजेंट नसों को नष्ट कर के स्वस्थ नसों से खून के प्रवाह के रास्ते को बनाते हैं। नष्ट की गई नसें बाद में आसपास के ऊतकों द्वारा पुर्नअवशोषित हो जाती हैं और फिर गायब हो जाती हैं।
स्केलेरोथेरेपी की जरूरत कब पड़ती है - Sclerotherapy kab karvai jati hai
निम्न कॉस्मेटिक या मेडिकल कारणों से इस सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है :
- कॉस्मेटिक कारण : वेरिकोज वेंस और स्पाइडर वेंस की वजह से पैर भद्दे दिख सकते हैं। आमतौर पर इसके लक्षण नहीं होते लेकिन कोई ट्रामा लगने पर स्किन पर आसानी से नील दिख सकती है। इसलिए मरीज को इसका इलाज करवाने की जरूरत लगती है।
- मेडिकल कारण : एडवांस स्टेज पर वेरिकोज और स्पाइडर वेंस की वजह से दिक्कत करने वाले लक्षण दिख सकते हैं। यह लक्षण खून के धीमी गति से प्रवाहित होने की वजह से हो सकते हैं, खासतौर पर टांगों की नसों में। इसकी वजह से निम्न चीजें महसूस हो सकती हैं :
- टांगों में सूजन, जो लंबे समय तक खड़े रहने पर बढ़ जाए।
- टांगों में दर्द
- टांग की स्किन में बदलाव जिस पर खुजली भी हो।
- बीमारी के अंतिम स्टेजों पर अल्सर ठीक होना बंद कर देता है।
शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कि एड़ियों, तलवों, चेहरे या गुदा पर भी वेरिकोज और/या स्पाइडर वेंस हो सकता है।
स्केलेरोथेरेपी सर्जरी किसे नहीं करवानी चाहिए - Sclerotherapy kab nahi karvani chahiye
निम्न स्थितियों में स्केलेरोथेरेपी सर्जरी नहीं करवानी चाहिए :
- प्रेगनेंट और ब्रेस्टफीडिंग करवाने वाली महिलाओं को।
- जिस महिला ने तीन महीने पहले ही बच्चे को जन्म दिया हो।
- बेड रेस्ट पर रहने पर।
वहीं कुछ स्थितियां ऐसी हैं जिनमें सर्जरी तो कर सकते हैं लेकिन उनसे कुछ जोखिम भी जुड़े हुए हैं, जैसे कि :
- पहले से कोई बीमारी हो जैसे कि डायबिटीज, हार्मोनल असंतुलन, कार्डियक या खून से संबंधित स्थितियां
- पहले कोई खून का थक्का जमने का विकार रहा हो
- जिन रोगियों को बाईपास सर्जरी की जरूरत हो, ऐसे मरीजों की नसों को तब तक नहीं छेड़ा जाता, जब तक कि नसें खुद बेकार न हो जाएं।
स्केलेरोथेरेपी सर्जरी से पहले की तैयारी - Sclerotherapy se pahle ki taiyari
वस्कुलर स्पेशलिस्ट या डर्माटोलॉजिस्ट द्वारा यह सर्जरी की जाती है। डॉक्टर मरीज को प्रक्रिया और इसके रिजल्ट के साथ-साथ जोखिमों के बारे में बताते हैं। मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री ली जाती है जिसमें उसके लक्षण, फैमिली हिस्ट्री, महिलाओं के मासिक चक्र की जानकारी, कोई दवा ले रहे हैं, पहले से या पहले कोई बीमारी रही हो। इसके साथ ही मरीज की शारीरिक जांच की जाती है जिससे पता चलता है कि बीमारी कितनी बढ़ चुकी है।
कुछ जांचें की जाती हैं, जैसे कि :
- नार्मल ब्लड टेस्ट
- कोएगुलेशन टेस्ट, कोएगुलोपैथी का पता लगाने के लिए
- रेडियोलॉजिकल टेस्ट जैसे कि नसों का अल्ट्रासाउंड, इसमें वेनस डॉपलर भी शामिल है।
पहले से किसी बीमारी की दवा ले रहे हैं, तो डॉक्टर उसे बंद या उसमें कोई बदलाव कर सकते हैं। इसमें खून का थक्का बनने से रोकने वाली और कुछ दर्द निवारक दवाएं शामिल हैं। मरीज को सर्जरी से पहले कुछ दिनों तक कोई भी क्रीम या लोशन लगाने से मना किया जाता है।
इस प्रक्रिया के लिए अस्पताल में सुबह भर्ती कर के शाम को छुट्टी दे दी जाती है। सर्जरी के बाद घर ले जाने के लिए किसी दोस्त या परिवार के सदस्य को बुला लें। कुछ मामलों में मरीज को रातभर रूकने के लिए कहा जा सकता है।
सर्जरी वाले दिन मरीज अपने सभी कागजों और रिपोर्टों के साथ अस्पताल आता है। ऑपरेशन से एक रात पहले उसे कुछ भी खाने-पीने से मना कर दिया जाता है। भर्ती होने के बाद उसे हॉस्पीटल गाउन पहनाई जाती है। जिस हिस्से सर्जरी करनी है, वहां से बाल हटाए जाते हैं। डॉक्टर मरीज का फाइनल रिव्यू करते हैं और फिर नर्स उसे ऑपरेशन थिएटर ले जाती है।
स्केलेरोथेरेपी सर्जरी कैसे की जाती है - Sclerotherapy karne ka tarika
मरीज को ऑपरेशन टेबल पर पीठ के बल लिटाया जाता है। हार्ट रेट, बीपी, ऑक्सीजन सैचुरेशन वगैरह चेक करने के लिए मॉनिटर को बॉडी से जोड़ दिया जाता है। अब कोई जरूरी दवा देने के लिए बांह में आई कैनुला लगाया जाता है। जिस जगह की सर्जरी करनी है, उसे साफ किया जाता है। मरीज को एनेस्थीसिया की जरूरत नहीं पड़ती है और वह प्रक्रिया के दौरान होश में रहता है।
इसके बाद डॉक्टर पतली सी सुई से नसों में स्केलेरोसिंग एजेंट डालते हैं। ये एजेंट विशेष केमिकल होते हैं जो नसों को नष्ट करने के लिए उनमें जलन पैदा करते हैं और स्वस्थ नसों को रक्त प्रवाह के लिए बाधित करते हैं। ये एजेंट तरल या फोम के रूप में हो सकते हैं।
सुई लगाने के दौरान मरीज को खासतौर पर बड़ी नसों में एक से दो मिनट के लिए ऐंठन वाला दर्द या हल्की-सी चुभन महसूस हो सकती है। इसके बाद सुई को निकाल कर डॉक्टर उस हिस्से को दबाते हैं और मालिश करते हैं ताकि एजेंट ठीक तरह से फैल जाएं और सुई लगने वाली नस में दोबारा खून न आ सके। इसके बाद डॉक्टर अगली नस पर यही तरीका अपनाते हैं। कितनी नसें खराब हैं और इनका साइज क्या है, इसके आधार पर तय होता है कि कितने इंजेक्शन लगाए जाने हैं। गहरी नसों में डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की मदद से यह जान सकते हैं कि नस में सुईं किस तरफ लगानी है।
सारे इंजेक्शन लगने के बाद उस जगह पर पट्टी कर दी जाती है ताकि नसों पर दबाव बना रहे। टांगों का इलाज करने पर जांघ समेत टांग पर इलास्टिक कंप्रेशन स्टॉकिंग पहनाया जाता है लेकिन ये इतना टाइट नहीं होना चाहिए कि पैर में दर्द होने लगे।
इस पूरी प्रक्रिया में 30 से 45 मिनट का समय लगता है और बीमारी को खत्म करने के लिए स्थिति की गंभीरता के आधार पर यह प्रक्रिया कई बार की जा सकती है।
स्केलेरोथेरेपी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं - Sclerotherapy se jude risk aur complications
इस सर्जरी से संबंधित जोखिम बहुत कम हैं लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे कि :
- इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द, सूजन और लालिमा।
- सर्जरी के दौरान नस में खून के थक्के बनना। अगर ये थक्का बहुत बड़ा हा, तो बाद में इसे निकालने की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि इसकी वजह से डीप वेन थ्रोम्बोसिस का खतरा हो सकता है।
- एयर एंबोलिज्म
- नियोवस्कुलराइजेशन (इंजेक्शन वाली जगह पर नई रक्त वाहिका का विकास होना)। हालांकि, नस धीरे-धीरे गायब हो जाती है।
- इंजेक्शन लगी बड़ी नसों में गांठ दिख सकती है और कुछ महीनों तक ये सख्त महसूस हो सकती है।
- आसपास के ऊतकों में खून फैलने की वजह से स्किन बेरंग हो सकती है।
- स्केलेरोसिंग एजेंट के आसपास के ऊतक में फैलने की वजह से स्किन पर जलन होना।
- कभी-कभी स्केलेरोसिंग एजेंट से एलर्जी भी हो सकती है।
स्केलेरोथेरेपी के बाद देखभाल कैसे की जाती है - Sclerotherapy ke baad dekhbhal kaise karni chahiye
सर्जरी के बाद कुछ घंटों के लिए मरीज को ऑब्जर्वेशन रूम में रखा जाता है। दर्द के लिए दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं।
डॉक्टर डिस्चार्ज के पेपर तैयार करते हैं जिसमें निम्न सलाह दी जाती है :
- पहले से किसी बीमारी की दवा ले रहे हैं, तो उसे जारी रखना है या नहीं। कुछ दिनों तक खून के थक्के बनने से रोकने या दर्द की दवाओं को बंद या इनमें कुछ बदलाव किया जा सकता है।
- सर्जरी के बाद इंफेक्शन और दर्द से बचने के लिए एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवाएं।
- कम से कम दो हफ्तों तक लगातार टाइट कंप्रेशन स्टॉकिंग पहनें लेकिन नहाते और सोते समय उतार दें।
- इंजेक्शन वाली जगह को साबुन और पानी से साफ करें ताकि संक्रमण न हो।
- सॉना बाथ और स्विमिंग पूल में न जाएं।
- प्रभावित हिस्से की गर्म सिकाई करें या कुछ दिनों तक गर्म पानी से नहाएं।
- स्टाकिंग हटाने तक प्रभावित जगह पर क्रीम या लोशन न लगाएं।
- कोई मुश्किल काम जैसे कि रनिंग या वेट लिफ्टिंग कुछ हफ्तों तक न करें।
- प्रभावित हिस्से को देर तक सीधा धूप के संपर्क में न लाएं।
- सर्जरी के बाद मरीज रोजमर्रा के काम कर सकता है। जल्दी ठीक होने के लिए चलने-फिरने की सलाह दी जाएगी, इससे खून के थक्के भी नहीं बनेंगे।
निम्न लक्षण दिखने पर डॉक्टर को बताएं :
- ग्रोइन के हिस्से के आसपास लालिमा या सूजन
- अचानक पूरी टांग पर सूजन होना
- इंजेक्शन वाली जगह पर छोटे अल्सर होना
- इंजेक्शन वाली जगह पर इंफेक्शन के संकेत दिखना या बुखार होना
- पिंडलियों में छूने पर दर्द और तेज दर्द होना जो कि डीप वेन थ्रोम्बोसिस का संकेत हो सकता है।
सर्जरी के दो हफ्ते बाद पहला फॉलो-अप होता है जिसमें डॉक्टर इलाज की गई नसों को चेक करते हैं। समय बीतने पर नसें धीरे-धीरे खुद ही आसपास के ऊतकों में घुल जाती हैं। स्पाइडर नसों का पूरा रिजल्ट दिखने में 3 से 6 हफ्ते और वेरिकोज वेंस में 3 से 4 महीने लग सकते हैं।
सारांश - Takeaway
स्केलेरोथेरेपी एक असरकारी, कम चीरफाड़ वाली ट्रीटमेंट है जो वेरिकोज और स्पाइडर वेंस को ठीक करने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया में कम समय लगता है और कोई जटिलता भी नहीं आती है। हालांकि, बीमारी को पूरी तरह से ठीक करने के लिए यह प्रक्रिया कई बार करनी पड़ सकती है। लक्षणों से तो तुरंत आराम मिल जाता है लेकिन दिखने वाला रिजल्ट कुछ हफ्तों से महीनों में सामने आ सकता है।
सर्जरी की लागत
स्क्लेरोथेरेपी के डॉक्टर

Dr. Manju
कार्डियोलॉजी
10 वर्षों का अनुभव

Dr. Farhan Shikoh
कार्डियोलॉजी
11 वर्षों का अनुभव

Dr. Amit Singh
कार्डियोलॉजी
10 वर्षों का अनुभव
