केसाई प्रोसीजर को हेपैटोपोर्टोएन्टेरोस्टॉमी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल बाइलरी एट्रेसिया का इलाज करने के लिए किया जाता है। बाइलरी एट्रेसिया एक दुर्लभ रोग है, जिसके कारण नवजात शिशुओं में पित्त नलिकाएं अवरुद्ध या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। क्षतिग्रस्त पित्त नलिकाएं पित्त (बाइल) को शरीर से बाहर निकलने से रोकती हैं और इसके परिणामस्वरूप लिवर खराब हो जाता है।
केसई प्रोसीजर में सर्जन पित्त नलिकाओं को हटा देते हैं और शिशु की आंत के एक भाग से पित्त नलिकाएं बनाते हैं। हालांकि, यदि बच्चे का लिवर क्षतिग्रस्त होकर विघटित हो रहा है, तो यह सर्जरी नहीं की जाती है।
बाइलरी एट्रेसिया के लक्षणों में मुख्य रूप से पीले रंग का मल आना, गहरे रंग का पेशाब आना और पीलिया आदि शामिल है। सर्जरी से पहले डॉक्टर बच्चे के कई अलग-अलग टेस्ट करते हैं, जिनमें कई नैदानिक व रेडियोलॉजिकल टेस्ट शामिल हैं। सर्जरी से पहले आपको एक सहमति पत्र दिया जाता है, जिसपर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति देते हैं।
केसाई प्रक्रिया होने के लगभग 10 दिन बाद आपके बच्चे को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। बच्चे को कई प्रकार की दवाएं दी जाती हैं, जैसे दर्दनिवारक दवा, एंटीबायोटिक, कोर्टिकोस्टेरॉयड और विटामिन सप्लीमेंट आदि। केसाई प्रोसीजर से बच्चे को कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनमें मुख्य रूप से कोलेन्जाइटिस, पॉर्टल हाइपरटेंशन और इन्टेस्टाइल ऑब्सट्रक्शन (आंत में अवरोध) आदि शामिल है।
डॉक्टर बच्चे को सर्जरी होने के दो से तीन हफ्तों बाद एक बार फिर दिखाने को कहते हैं। हालांकि, यदि आपके बच्चे को बुखार, पीलिया, पीले रंग का मल आना या फिर सर्जरी के घाव से द्रव निकलने जैसी समस्याएं होने लगें तो जल्द से जल्द डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए।
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