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एस्केरोटॉमी आपातकालीन स्थितियों में किया जाने वाला एक सर्जिकल प्रोसीजर है। आमतौर पर इसे तब किया जाता है, जब किसी घटना के कारण त्वचा का कोई बड़ा हिस्सा या त्वचा गहराई तक जल जाती है। यदि त्वचा गहराई तक जल जाती है, तो वह सूख जाती है और उसका लचीलापन भी पूरी तरह से खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में त्वचा की ऊपरी परत (चमड़ी) के नीचे की वसा की परत में मौजूद तरल पदार्थ आसपास के ऊतकों की खाली जगह में चली जाती है, जिससे शरीर की रक्त परिसंचरण (ब्लड सर्कुलेशन) और श्वसन प्रक्रियाएं प्रभावित हो जाती है। एस्केरोटॉमी सर्जरी के दौरान जली हुई त्वचा पर चीरा लगाते हैं, जिससे दबाव कम हो जाता है और परिसंचरण व श्वसन संबंधी समस्याएं होने लगती हैं। त्वचा का बड़ा हिस्सा जल जाना या त्वचा गहराई तक जलना एक घातक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के प्रभावित अंग को काटना पड़ सकता है और यहां तक कि उसकी मृत्यु भी हो सकती है। समय पर एस्केरोटॉमी सर्जरी करके मरीज के जीवन व उसके अंग को बचाया जा सकता है। सर्जरी के बाद घाव की गहनता से देखभाल और मरीज को पर्याप्त पोषक तत्व देने की महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं चलाई जाती हैं। त्वचा की रूपरेखा और शरीर की कार्यक्षमता में सुधार करने के लिए एस्केरोटॉमी के बाद कुछ अन्य सर्जरी भी की जा सकती हैं, जैसे फासीओटॉमी, स्किन ग्राफ्टिंग सर्जरी व अन्य कई प्रकार की कॉस्मेटिक सर्जरी आदि। सर्जरी के बाद आपको कुछ हफ्तों से महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ सकता है, जो निर्भर करता है कि त्वचा कितनी गंभीर रूप से जली है।

(और पढ़ें - जलने पर क्या लगाएं)

  1. एस्केरोटॉमी क्या है - What is Escharotomy in Hindi
  2. एस्केरोटॉमी किसलिए की जाती है - Why is Escharotomy done in Hindi
  3. एस्केरोटॉमी से पहले - Before Escharotomy in Hindi
  4. एस्केरोटॉमी के दौरान - During Escharotomy in Hindi
  5. एस्केरोटॉमी के बाद - After Escharotomy in Hindi
  6. एस्केरोटॉमी की जटिलताएं - Complications of Escharotomy in Hindi

एस्केरोटॉमी सर्जरी किसे कहते हैं?

एस्केरोटॉमी एक इमरजेंसी सर्जरी है, जो त्वचा के गंभीर रूप से जलने के बाद की जाती है। एस्केरोटॉमी सर्जरी की मदद से प्रभावित त्वचा में रक्त परिसंचरण फिर से शुरू किया जाता है और मांसपेशियों व त्वचा की कार्य प्रक्रिया को दुरुस्त किया जाता है।

मानव त्वचा में तीन परतें होती हैं, जिन्हें एपिडर्मिस (सबसे ऊपरी), डर्मिस (मध्यम) और सबक्यूटेनियस फैट (सबसे गहरी) के नाम से जाना जाता है। डर्मिस यानी बीच वाली परत में तंत्रिकाएं, रक्त वाहिकाएं, पसीने की ग्रंथियां और बालों के कूप होते हैं। वहीं नीचे वाली परत (सबक्यूटेनियस फैट लेयर) में वसा कोशिकाएं होती हैं, जो एक दबाव व धक्के को अवशोषित करके कुशन (गद्दे) के रूप में कार्य करती हैं। इन दोनों परतों में कोलेजन नामक एक प्रोटीन पाया जाता है, जो त्वचा को शक्ति प्रदान करता है और उसके लचीलेपन को बनाए रखता है। जब यह त्वचा आग या अत्यधिक उच्च तापमान के संपर्क में आती है, तो कोलेजन क्षतिग्रस्त हो जाता है और कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।

यदि त्वचा का ऊपरी हिस्सा ही जला है, तो भी इससे त्वचा की मध्यम परत क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे त्वचा लाल हो जाती है और दर्द भी होने लगता है। यदि त्वचा की बीच वाली परत भी थोड़ी बहुत जल गई है, तो उसमें लालिमा व दर्द के साथ त्वचा पर फफोले भी बन सकते हैं। यदि त्वचा गहराई तक जल गई है, तो इससे तीनों परतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में त्वचा अपना लचीलापन खो देती है और मोटी व सूखी हो जाती है, जिसे एस्कर कहा जाता है।

जलने के कारण त्वचा की सबसे निचली परत में मौजूद द्रव पदार्थ कोशिकाओं के बीच की खाली जगह में शिफ्ट हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऊतकों के बीच दबाव बढ़ जाता है। जैसा कि ऊपरी ऊतक जलने के कारण सूख गए हैं व उनका लचीलापन खत्म हो गया है, तो इसके परिणामस्वरूप रक्त वाहिकाओं पर दबाव पड़ने लगता है। जिस हिस्से की रक्तवाहिकाएं दबावग्रस्त हो जाती हैं, उस हिस्से को पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता है। यदि पेट या छाती का हिस्सा जला है, तो इससे श्वसन संबंधी समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं।

एस्केरोटॉमी सर्जरी से जली हुई त्वचा के अंदर दबाव को कम किया जाता है, जिससे रक्त परिसंचरण, श्वसन प्रक्रिया और अन्य शारीरिक कार्यों को फिर से शुरू करने में मदद मिलती है। यदि समय पर सर्जरी न की जाए तो इससे गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसे तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त होना, मांसपेशियां गलना, मेटाबॉलिक एसिडोसिस और हाइपरकैलीमिया आदि।

(और पढ़ें - केमिकल से जलने का प्राथमिक उपचार)

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एस्केरोटॉमी सर्जरी क्यों की जाती है?

जब किसी व्यक्ति की त्वचा का बड़ा हिस्सा जल जाता है या फिर त्वचा गहराई तक जल जाती है, तो एस्केरोटॉमी सर्जरी की जा सकती है। हालांकि, एस्केरोटॉमी को प्रमुख रूप से बांह, हाथ या छाती का एक बड़ा हिस्सा जलने पर किया जाता है -

बांह या हाथ जलने पर निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं -

यदि सीने का हिस्सा जल गया है, तो उससे निम्न लक्षण विकसित हो सकते हैं -

एस्केरोटॉमी सर्जरी किसे नहीं करवानी चाहिए?

यदि त्वचा गहराई तक जल गई है, तो इससे घातक स्थितियां पैदा हो सकती हैं। इसलिए ऐसे में बहुत ही कम मामले होते हैं, जिनमें एस्केरोटॉमी सर्जरी न करवाने की सलाह दी जाती है। यदि त्वचा की सिर्फ ऊपरी परत ही जली है और निचली परतों में नुकसान नहीं हुआ है तो ऐसी स्थिति में त्वचा बिना सर्जरी के ही ठीक हो सकती है, इसलिए एस्केरोटॉमी सर्जरी नहीं की जाती है। इसके अलावा यदि जलने के कारण मांसपेशियों की कार्य प्रक्रिया, रक्त परिसंचरण और श्वसन कार्य आदि प्रभावित नहीं हुए हैं, तो भी हो सकता है डॉक्टर एस्केरोटॉमी सर्जरी करना आवश्यक न समझें।

(और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन धीमा होने के कारण)

एस्केरोटॉमी सर्जरी से पहले क्या तैयारी की जाती है?

एस्केरोटॉमी आपात स्थितियों में किया जाने वाला एक सर्जरी प्रोसीजर है, इसलिए इससे पहले आपको कोई विशेष तैयारी करने का समय नहीं होता है।

यदि त्वचा का कोई हिस्सा गंभीर रूप से जलने के बाद मरीज को अस्पताल में ले जाया गया है, तो सबसे पहले उसके हृदय व रक्त वाहिकाओं में रक्त के बहाव की जांच की जाती है। साथ ही साथ शरीर में इलेक्ट्रोलाइट व अन्य द्रवों के स्तर की भी करीब से जांच की जाती है। यदि डॉक्टर को लगता है कि रक्त परिसंचरण या श्वसन प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पा रही है, तो मरीज को जल्द से जल्द ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट कर दिया जाता है। सर्जरी से पहले एंटीबायोटिक दे दी जाती है, जो संक्रमण को रोकती है। साथ ही दर्द निवारक दवाएं भी दी जा सकती हैं, ताकि जलने के कारण हुए दर्द को कम किया जा सके।

(और पढ़ें - एंटीबायोटिक खाने के नुकसान)

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एस्केरोटॉमी सर्जरी कैसे की जाती है?

अस्पताल में सभी जरूरी टेस्ट करने के बाद जब मरीज को ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट कर दिया जाता है, तो वहां पर सर्जन उसे एक टेबल पर लिटाते हैं। इस दौरान बाहों को शरीर से दूर रखा जाता है और हथेलियों को ऊपर की तरफ रखा जाता है। 

एस्केरोटॉमी की सर्जिकल प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है -

  • मेडिकल स्टाफ सबसे पहले सर्जरी वाले हिस्से को पोविडोन-आयोडीन के घोल के साथ साफ करते हैं। एक स्वच्छ व किटाणु रहित कपड़े से घावों को ढक दिया जाता है, ताकि वह गंदा न हो।
  • सर्जरी के दौरान मरीज के जिस हिस्से पर चीरा लगाना है, उस पर से कपड़ा हटाया जाता है। जैसे-जैसे चीरा लगाते हुए आगे बढ़ा जाता है, उसी के अनुसार कपड़ा हटाया जाता है और पीछे से कपड़े को साथ ही साथ ढका भी जाता है। ऐसा आमतौर पर घाव को बाहरी वातावरण के संपर्क में आने से बचाने के लिए और शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए किया जाता है। इसके अलावा शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए कंबल व हीट लैंप का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
  • चीरा लगाने के लिए उससे पहले सर्जिकल मार्कर के साथ रेखाएं खींची जा सकती हैं। मार्कर से रेखाएं इसलिए बनाई जाती हैं, क्योंकि चीरे को प्रभावित त्वचा से लगभग एक इंच दूर स्वस्थ त्वचा में लगाया जा सके। यदि बांह या टांग जल गई है, तो रेखाएं प्रभावित अंग के दोनों तरफ लगाई जाती हैं, जबकि धड़ पर आयताकार या एक ढाल की आकृति वाली रेखाएं बनाई जाती हैं।
  • प्रभावित हिस्से में लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगा दिया जाता है, ताकि वह हिस्सा सुन्न हो जाए और चीरा लगाते समय मरीज को दर्द न हो।
  • सर्जन ब्लेड या इलेक्ट्रोक्यूटरी उपकरण की मदद से मार्कर की रेखा के ऊपर से चीरा लगाते हैं। इलेक्ट्रोक्यूटरी उपकरण में एक धातु की तार की मदद से एक निश्चित मात्रा में करंट छोड़ा जाता है, जो गर्मी पैदा करता है। यह चीरा त्वचा की निचली परत जितना गहरा होता है।
  • सर्जन चीरे के अंदर से अपनी उंगली भी घुमाते हैं, ताकि किसी भी ऐसे हिस्से की मौजूदगी का पता लगाया जा सके, जो रक्त परिसंचरण को प्रभावित कर सकता हो।
  • चीरा लगने के बाद मरीज के सांस लेने की क्षमता और रक्त परिसंचरण की जांच की जाएगी, जिससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि चीरे की मदद से दबाव कम हो चुका है।
  • यदि किसी चीरे से रक्तस्राव बंद नहीं हो रहा है, तो फिर उसे टांके लगाकर या डीप हीटिंग तकनीक की मदद से बंद कर दिया जाता है।
  • अंत में चीरे पर पट्टी कर दी जाती है।

सर्जरी के बाद जब तक आपके घाव बंद नहीं हो जाते हैं, तब तक आपके घावों की गहन देखभाल की जाती है और आपको न्यूट्रिशनल सपोर्ट पर रखा जाता है। इससे संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और घाव जल्दी ठीक होने लगते हैं।

यदि मरीज की टांग या बांह जली है, तो उसे हृदय के स्तर से ऊपर रखा जाता है। सर्जरी के बाद मरीज की नियमित जांच की जाती है, ताकि यदि किसी अन्य सर्जरी की जरूरत है, तो उसे समय रहते किया जा सके। अस्पताल में मरीज का व्यापक परीक्षण किया जाता है, जिसमें उसकी त्वचा, सांस लेने की क्षमता, शारीरिक गतिशीलता और त्वचा पर स्थायी निशानों (स्कार) की जांच की जा सके। इसके अलावा त्वचा की रूप-रेखा और कार्यक्षमता में सुधार करने के लिए रिकंस्ट्रक्टिव या प्लास्टिक सर्जरी की जा सकती है।

सर्जरी के बाद मरीज को कितने दिन अस्पताल में भर्ती रखा जाता है, यह इस पर निर्भर करता है कि त्वचा कितनी गंभीरता से जली है और मरीज को कितने समय तक गहन देखभाल की जरूरत है। सामान्य तौर पर एस्केरोटॉमी सर्जरी के बाद मरीज को कुछ हफ्तों से महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहना  पड़ सकता है। जब सर्जरी और जलने के घाव पूरी तरह ठीक हो जाते हैं या फिर थोड़े बहुत रह जाते हैं और आपका शरीर सामान्य रूप से काम करने लग जाता है, तो अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है।

(और पढ़ें - घाव के निशान मिटाने के उपाय)

एस्केरोटॉमी सर्जरी के बाद क्या देखभाल करनी चाहिए?

एस्केरोटॉमी सर्जरी के बाद जब आपको अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है, तो आपको घर पर निम्न बातों का ध्यान रखने की हिदायत दी जाती है -

  • सिर्फ डॉक्टर द्वारा बताई गई शारीरिक गतिविधियां ही करें
  • घावों को सूखा व स्वच्छ रखें और समय-समय पर पट्टी बदलवाते रहें (और पढ़ें - घाव की मरहम पट्टी कैसे करें)
  • मानसिक समस्याओं से निपटने के लिए मनोचिकित्सक से मिलें
  • डॉक्टर की अनुमति के बिना नहाएं नहीं, तब तक गीले कपड़े से शरीर को साफ कर सकते हैं।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

एस्केरोटॉमी सर्जरी के बाद जब आप घर आ जाते हैं और फिर आपको संक्रमण से संबंधित कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए। संक्रमण के लक्षणों में निम्न शामिल हैं -

  • सूजन
  • लालिमा
  • द्रव बहना
  • त्वचा लाल होना

(और पढ़ें - सूजन कम करने के उपाय)

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एस्केरोटॉमी सर्जरी से क्या जोखिम हो सकते हैं?

एस्केरोटॉमी सर्जरी के बाद निम्न जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं -

  • घाव में संक्रमण
  • अत्यधिक रक्तस्राव
  • अंदरूनी ऊतकों में बैक्टीरियल संक्रमण होना
  • अंदरूनी ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाना
  • त्वचा पर अप्रिय स्थायी निशान बन जाना
  • सेप्टिक शॉक

सर्जरी के दौरान गलती से कोई कनेक्टिव ऊतक कट जाना, जो शरीर के निचले अंगों को सहारा प्रदान करता है

(और पढ़ें - सेप्सिस का इलाज)

संदर्भ

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