कैंसर एक घातक बीमारी है और इसको सबसे ज्यादा घातक बनाती है इसका शुरुआत में पता नहीं चलना। शुरू में कैंसर के लक्षण नहीं दिखाई देते। कई लोगों में तो अंतिम चरण में पहुंच जाने के बाद लक्षण नजर आते हैं। इस स्टेज में दवा की बजाय दुआ करने का सुझाव डॉक्टर भी देते हैं। डॉक्टरों ने एक ऐसा टेस्ट विकसित किया है, जो आसानी से कैंसर का पता लगा लेगा।
दरअसल क्यू.यू.टी बायोमेडिकल वैज्ञानिकों ने एक स्लाइवा टेस्ट (लार का परीक्षण) विकसित किया है, जो ऐसे व्यक्तियों में गले के कैंसर का पता लगा सकता है, जिनमें न ही तो कोई लक्षण थे और न ही उनमें कैंसर का नैदानिक संकेत मिला था।
माना जाता है कि दुनिया में सबसे पहले नॉन-इन्वेसिव टेस्ट के माध्यम से किसी संक्रमित स्वस्थ व्यक्ति के लार के नमूने में एचपीवी-डीएनए पाया गया था। एचपीवी एक यौन संचारित संक्रमण है, जो सबसे ज्यादा यौन सक्रिय पुरुष और महिलाओं को उनके जीवनकाल में किसी भी समय हो सकता है। युवाओं में इस संक्रमण के लगातार बढ़ने के कारण कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यदि 'ह्यूमन पेपिलोमा वायरस' (एचपीवी) संक्रमण लगातार बना रहता है, तो यह ऑरोफरीन्जियल कैंसर का प्रमुख कारण बन सकता है।
क्यू.यू.टी फैकल्टी ऑफ हेल्थ के एसोसिएट प्रोफेसर 'चेमिंडी पन्यडीरा' ने डॉक्टर 'कै टैंग' के साथ मिलकर स्लाइवा टेस्ट को विकसित किया था। चेमिंडी ने कहा कि स्लाइवा टेस्ट के अनुक्रम (एक तरह से कई स्लाइवा टेस्ट) से उस व्यक्ति में कैंसर के शुरुआती चरणों की पहचान की जा सकती है, जिसमें लक्षण दिखाई न दे रहे हों।
"इस स्लाइवा टेस्ट के जरिए इस बात का पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति के टॉन्सिल (गले के पीछे स्थित नरम ऊतकों का जोड़ा) में 2 मिमी का कैंसर है और फिर इसे लोकल सर्जरी के जरिए हटाया जा सकता है।
एचपीवी का ज्यादा ज्यादा खतरा विकसित देशों में
विकसित देशों में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस के कारण गले में कैंसर का खतरा ज्यादा है और दुर्भाग्य से, इसका शुरुआती चरणों में पता नहीं चल पाता है, इसलिए रोगियों को जटिल (मुश्किल) और अत्यधिक प्रभावशाली उपचार की आवश्यकता होती है।
अमेरिका में पहले जहां सबसे आम कैंसर के रूप में सर्वाइकल कैंसर को जाना जाता था, वहीं अब एचपीवी के कारण होने वाला कैंसर सबसे आम कैंसर का रूप ले चुका है, लेकिन ऑरोफरीन्जियल कैंसर के लिए किसी तरह का स्क्रीनिंग टेस्ट उपलब्ध नहीं है।
छह सौ से ज्यादा स्वस्थ व्यक्तियों पर किया गया शोध
प्रोफेसर पन्यडीरा के अनुसार, छह सौ से ज्यादा स्वस्थ व्यक्तियों पर एचपीवी से जुड़ा एक शोध किया गया था।
इस शोध में शामिल सभी व्यक्तियों ने अपने लार का सैंपल दिया था।
इस टेस्ट के दौरान लार के सैंपल में एचपीवी-16 डीएनए की उपस्थिति बार-बार मिली, जिसके बाद शोधकर्ताओं को संदेह हुआ कि यदि यह विशेष डीएनए लगातार लार में बना हुआ है तो केंसर का कारण बन सकता है।
शोध में शामिल व्यक्तियों में से एक में एचपीवी-16 लगातार 36 महीनों तक पॉजिटिव पाया गया। यह टेस्ट 6, 12 और 36 महीने तक नियमित रूप से किया गया।
"रोगी के बाएं टॉन्सिल में 2 मिमी 'स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा' (कैंसर) पाया गया, जिसका इलाज टॉन्सिल्लेक्टोमी (एक तरह की सर्जरी) के जरिए किया गया। इस सर्जरी के बाद, मरीज की लार में एचपीवी-16 डीएनए नहीं पाया गया।"
स्लाइवा स्क्रीनिंग टेस्ट का आया सफल परिणाम
प्रोफेसर पन्यडीरा ने जानकारी दी कि यह गले के कैंसर (जिसमें लक्षण नहीं दिख रहे थे) का ऐसा मामला था, जिसकी पहली बार स्लाइवा स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए पुष्टि की गई थी। इस शोध की पुष्टि करने के लिए बड़े स्तर पर अध्ययन की आवश्यकता थी, जो कि सफल रही।
एचपीवी-डीएनए के इस पैटर्न (स्लाइवा टेस्ट करने का तरीका) की उपस्थिति का पूरी तरह से मूल्यांकन किया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रारंभिक या शुरुआती जांच के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि अब हमारे पास ऑरोफरीन्जियल कैंसर के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट उपलब्ध है और इस परीक्षण को मान्यता देने के लिए कुछ और महत्वपूर्ण अध्ययन करने की आवश्यकता है।