बेहतर परफॉर्मेंस और अपनी योग्यता दिखाने का मानसिक दबाव किस पर नहीं होता? आज एक पिता पर दबाव है, अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का। एक बेटे पर दबाव है परिवार की उम्मीदों का। छात्र पर दबाव है, योग्यता के मुताबिक अंक हासिल करने का, लेकिन ये मानसिक दबाव मौजूदा समय में एक बीमारी बनता जा रहा है और न केवल घर, स्कूल या कॉलेज में, बल्कि खेल के मैदान और खिलाड़ियों के जीवन में भी यही मानसिक दबाव अब एक बीमारी बन चुका है। ये दबाव महान खिलाड़ियों से तुलना के साथ बेहतर खेल दिखाने का है और अपनी योग्यता या काबीलियत को बरकरार रखने का भी है। शायद यह दबाव ही है, जिसके चलते कई युवा और योग्य खिलाड़ी खेल के मैदान में कम और आलोचनाओं के बाजार में ज्यादा दिखाई देते हैं। जिसमें भारतीय क्रिकेटर ऋषभ पंत, अंबाति रायुडु जैसे खिलाड़ी भी शामिल हैं।
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मानसिक दबाव का शिकार हुए क्रिकेटर
क्रिकेटरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले आजकल काफी सुर्खियों में हैं। हाल ही में दो बड़े किक्रेटरों ने मानसिक तनाव के चलते अपने खेल के मैदान को अलविदा कह दिया। इंग्लैंड की महिला क्रिकेटर साराह टेलर और ऑस्ट्रेलिया के ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल शामिल हैं। खबरों के मुताबिक सितंबर 2019 में खेल से मिले मानसिक तनाव के चलते साराह टेलर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया, तो मैक्सवेल खराब फॉर्म के चलते मैदान से बाहर हैं। मैक्सवेल ने क्रिकेट में अपनी एक खास छवि बनाई है और अब वह उस छवि से न्याय नहीं कर पा रहे हैं। इस बात का उनपर जबरदस्त मानसिक दबाव है। ये दो बड़े मामले खिलाड़ियों में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मानसिक तनाव को बताने के लिए काफी हैं, लेकिन क्रिकेट के मैदान से जुड़े ये केवल दो ही मामले नहीं हैं।
बड़े खिलाड़ियों को उठानी होगी आवाज
मैक्सवेल और टेलर जैसे खिलाड़ी मानसिक तनाव से जुड़े मामलों का ताजा उदाहरण हैं, जिन्होंने इस दबाव के चलते अपने क्रिकेट करियर पर विराम लगा दिया है। हालांकि, विराट कोहली, केन विलियमसन और स्टीव स्मिथ जैसे बड़े खिलाड़ियों को मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर आगे आकर बात करनी चाहिए। खेल के मैदान में प्रतियोगिता का स्तर लगातार बढ़ रहा है और क्रिकेट की तीनों प्रारूपों के अंदर खिलाड़ियों में फिट रहने की चुनौती भी। विशेषज्ञों को लगता है कि इस लिहाज से भविष्य में ऐसे मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है।
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कड़ी मेहनत के साथ टेंशन भी
भारत जैसे देश में, जहां क्रिकेट खिलाड़ियों की भरमार है, वहां एक किक्रेटर को 11 खिलाड़ियों की टीम में जगह बनाने के लिए कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। भारतीय टेस्ट टीम में मौजूद सलामी बल्लेबाज मयंक अग्रवाल भी ये मानते हैं कि भारतीय टीम में शामिल होना आसान नहीं है। क्योंकि, इसके लिए साधारण मेहनत काफी नहीं होती, बल्कि खिलाड़ी को टीम में जगह बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। मयंक जैसे ही कई क्रिकेटर हैं जो टीम में जगह बनाने के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं, जबकि दुर्भाग्य से आज भी कई खिलाड़ी क्रिकेट में ही अपना पूरा करियर खपा देते हैं।
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एक बार जब कोई खिलाड़ी टीम में चयनित हो जाता है, तो उसका पहला काम टीम में बने रहने का होता है कि कैसे वो दबाव के साथ लगातार अपनी परफॉर्मेंस को बनाए रखें। क्योंकि, यहां एक छोटी सी चोट खिलाड़ी के करियर को साल भर के लिए पीछे धकेल सकती है। इसलिए सवाल उठता है कि क्या कोई खिलाड़ी वास्तव में किसी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देगा, जिससे वो ग्रस्त है।
सोशल मीडिया से बढ़ा दबाव
सोशल मीडिया के इस दौर में, एक खिलाड़ी को मैदान के अंदर खेल से अपनी परफॉर्मेंस के साथ-साथ नकारात्मकता के एक बड़े दबाव से भी निपटने की चुनौती होती है। उन्हें सब कुछ सुनना पड़ता है, तो सवाल है कि वो इससे कैसे निपटेंगे।
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मानसिक स्वास्थ्य खराब होने के लक्षण
मेंटल हेल्थ खराब होने या तनाव होने पर आप कई तरीकों से प्रभावित हो सकते हैं। जैसे-
- मानसिक स्वास्थ्य के खराब होने पर एकाग्रता में कमी आती है।
- भावनात्मक प्रतिक्रियाएं अचानक से बढ़ जाती हैं।
- इस स्थिति में आप आसानी से विचलित या गुस्सा हो जाते हैं
- आप अपने आप को दूसरे लोगों से अलग कर लेते हैं।
- तनाव के कारण स्वास्थ्य विकार जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, सिरदर्द, सांस लेने की समस्या आदि होने लगती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
खेल विशेषज्ञ मनोज जोशी के मुताबिक खिलाड़ियों में मैदान के अंदर कई तरह के मानसिक तनाव होते हैं, जो उन्हें प्रताड़ित करते हैं। क्योंकि, नेशनल टीम में खेलने के अलावा खिलाड़ी पर लीग (जैसे- आईपीएल, एचआईएल) मैचों में खेलने का ज्यादा प्रेशर होता है।
लीग मैचों में खिलाड़ी को टीम के मालिक बड़े ऊंचे दामों में खरीदते हैं और मैदान के अंदर अच्छी परफॉर्मेंस ना होने पर कई बार खिलाड़ी को अपमानित तक होना पड़ता है, जो एक खिलाड़ी के लिए मेंटल टॉर्चर की स्थिति है।
इतना ही नहीं, मानसिक दबाव से खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस पर भी असर पड़ता है। जिसका उदाहरण आईपीएल में दिल्ली की टीम से खेलने वाले पवन नेगी हैं। जिन्हें टीम के मालिक ने 9 करोड़ में खरीदा, लेकिन उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। लिहाजा उन्हें टीम में भी आलोचना झेलनी पड़ी।
इसके अलावा ऋषभ पंत के खेल पर भी मानसिक दबाव का असर बखूबी देखा जाता है। क्योंकि उन्हें भारतीय टीम में धोनी के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है और धोनी की तरह खेलने का दबाव उनके खेल और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।