बवासीर यानि पाइल्स एक ऐसी स्थिति है जिसमें गुदा का अंदरूनी, बाहरी और मलाशय का निचला हिस्सा सूज जाता है. लेकिन कई बार यह बीमारी खतरनाक भी साबित हो सकती है. इसके कारण ना सिर्फ तेज दर्द महसूस होता है बल्कि मल त्याग के दौरान कठिनाई और रक्तस्राव जैसी समस्याएं भी हो सकती है. हालांकि बवासीर से जुड़ा एक मिथक है, जिसमें यह माना जाता है कि पाइल्स कैंसर का कारण बन सकता है. आज हम इस लेख में आपको बताएंगे कि क्या बवासीर सचमुच कैंसर का कारण बन सकता है या नहीं?
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क्या होता है बवासीर के दौरान
आमतौर पर पाइल्स के कारण गुदा के अंदर और बाहर के हिस्से और नसों में सूजन आ जाती है. साथ ही मलाशय के आसपास गांठ जैसा महसूस होता है. इसके अलावा खुजली, मल त्याग के वक्त म्यूकस आना, असहनीय दर्द और मल त्याग के दौरान खून आने जैसी समस्याएं होती हैं. हालांकि बवासीर के कारण जब मल त्याग के दौरान रक्तस्राव होता है तो लोग कई बार यह समझ बैठते हैं कि कहीं उन्हें बवासीर के कारण कैंसर तो नहीं हो गया है क्योंकि कोलोरेक्टल कैंसर और बवासीर, दोनों ही स्थितियों में लगभग एक-समान लक्षण देखने को मिलते हैं. इन दोनों ही बीमारियों में मलाशय से रक्तस्राव की समस्या हो सकती है.
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इस बारे में एक्सपर्ट्स और शोधकर्ता मानते हैं कि यह धारणा पूरी तरह से गलत है. दरअसल, बवासीर के कारण असहज महसूस हो सकता है लेकिन यह कैंसर का कारण नहीं बनता. लेकिन अगर आपको बवासीर के साथ-साथ अन्य बीमारियां जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में पॉलिप्स है, तो यह कैंसर का कारण बन सकती हैं. सिर्फ पाइल्स इकलौता कारण है, यह कहना पूरी तरह से गलत है.
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बवासीर और कैंसर को लेकर क्यों है कन्फ्यूजन
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आमतौर पर देखा गया है कि जब भी मलाशय और गुदा से रक्तस्राव होता है तो उसका ठीक से निदान किए बिना ही बवासीर की समस्या मान लिया जाता है. ये स्थितियां आमतौर बवासीर और कैंसर के बीच भ्रम पैदा करती हैं. जॉर्जिया मेडिकल कॉलेज के एकअसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ माइकल फेल्ज़ का कहना है कि अधिकांश डॉक्टर्स गुदा मेलेनोमा कैंसर के बारे में बहुत ज्यादा जागरूक नहीं होते, नतीजन वे उसे बवासीर समझकर इलाज करने लगते हैं क्योंकि बवासीर और एनल मेलेनामा कैंसर दोनों के शुरूआती लक्षण एक जैसे होते हैं. ऐसे में कैंसर घातक रूप ले लेता है, इसके परिणामस्वरूप समय पर इलाज ना मिलने से मरीज की मृत्यु तक हो सकती है.
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मरीज भी हैं जिम्मेदार
डॉ माइकल बताते हैं कि अधिकत्तर मरीज शर्मिंदा होने और कई अन्य कारणों से लंबे समय तक मलाशय से ब्लड आने की समस्या का देर से इलाज करवाने के लिए उपस्थित होते हैं. ऐसी स्थिति में ठीक से निदान नहीं हो पाता. जब तक ये पहचान होती है कि मरीज को बवासीर ना होकर कैंसर है, तब तक कैंसर व्यापक रूप ले लेता है. नतीजन, मरीज को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं.
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बहुत दुर्लभ हैं ये कैंसर
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के वरिष्ठ चिकित्सा सलाहकार, डॉ. लामर मैकगिनिस का कहना है कि गुदा मेलेनोमा कैंसर और मलाशय का त्वचा कैंसर दोनों ही बहुत दुर्लभ हैं. आमतौर पर एडवांस स्टेज में ही इसका निदान होता है क्योंकि गुदा क्षेत्र और रेक्टल कैनाल में बहुत सारी समस्याएं होती हैं. ऐसे में रोगी की नियमित रूप से और पूरी तरह से जांच करने के बजाय सिर्फ लक्षणों का या फिर बवासीर का इलाज किया जाता है जिससे कैंसर एडवांस स्टेेज तक पहुंत जाता है.
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बवासीर की बीमारी में गुदा और गुदा की नसों में सूजन आ जाती है, यह स्थिति बेहद ही दर्दनाक होती है. हालांकि युवाओं में यह समस्या बहुद ही आम है. ज्यादातर लोगों को 30 साल की उम्र तक पाइल्स की बीमारी नहीं होती. लेकिन 50 की उम्र तक आते-आते करीब 50 प्रतिशत लोग इस गंभीर बीमारी का शिकार हो जाते हैं. शोधकर्ता यह दावा करते हैं कि अभी तक इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि सिर्फ पाइल्स के कारण कैंसर हो सकता है.
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