पेरिफेरल न्यूरोपैथी के इलाज के लिए शोधकर्ताओं ने एक नया तरीका ढूंढ निकालने का दावा किया है। अध्ययनकर्ताओं को उम्मीद है कि इलाज की यह नई तकनीक इस बीमारी से जुड़े लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगी। स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका ‘मेडस्केप मेडकिल’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को 'कंबाइंड इलेक्ट्रोकेमिकल ट्रीटमेंट' (सीईटी) नाम दिया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसकी मदद से कोशिकाओं के विद्युतीय संकेतन (इलेक्ट्रिक सेल सिग्नलिंग) के साथ नसों में होने वाले दर्द को रोकने में मदद मिलती है। परिणामस्वरूप, परिफेरल न्यूरोपैथी की स्थिति में रोगियों को होने वाला दर्द कम हो जाता है।
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क्या है पेरिफेरल न्यूरोपैथी?
यह एक तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्या है। इसमें शरीर के अलग-अलग हिस्से सुन्न पड़ जाते हैं। साथ ही उनमें दर्द, सूजन, या मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होने लगती है। पेरिफेरल न्यूरोपैथी आमतौर पर हाथों या पैरों से शुरू होती है। समय के साथ यह समस्या ज्यादा बढ़ती जाती है।
कैसे की गई रिसर्च?
रिपोर्ट के मुताबिक, इस शोध में पांच से छह लोगों को शामिल किया गया था। इन सभी को पेरिफेरल न्यूरोपैथी की समस्या थी। रिपोर्ट की मानें तो इन लोगों ने पेरिफेरल न्यूरोपैथी के सौ प्रतिशत स्तर वाले दर्द को महसूस किया था। शोध के तहत अध्ययनकर्ताओं ने सभी को छह से 12 हफ्तों से अधिक समय के लिए सीईटी उपचार दिया। दावा किया गया है कि सीईटी से मिले इलाज के बाद इन मरीजों का दर्द 90 प्रतिशत तक कम हो गया। इतनी ही नहीं, शारीरिक गतिविधियों के लिहाज से इन लोगों में 74 प्रतिशत सुधार देखने को मिला।
विशेषज्ञों की राय
इस शोध में शामिल शोधकर्ता और न्यूरोलॉजिस्ट पीटर एम कारने का कहना है, ‘मैंने पेरिफेरल न्यूरोपैथी के मरीजों से कहा था कि इस बीमारी का तीन प्रकार से इलाज हो सकता है। पहला कि मरीज दवाइयों का सहारा लें। इससे समस्या के 35 से 40 प्रतिशत ही ठीक होने की संभावना थी। वहीं, तकलीफ कम होने की तुलना में दवाइयों के सेवन से साइड इफेक्ट्स का खतरा 60 प्रतिशत था। दूसरा विकल्प यह था कि मरीज इस दर्द के साथ ही जीना सीख लें। लेकिन तीसरे विकल्प में हमनें तंत्रिकाओं (नसोंं) में दोबारा होने वाले सुधार के लिए दवाओं को नहीं, बल्कि शारीरिक गतिविधियों को चुना। इससे दर्द भी कम हुआ और व्यक्ति में शारीरिक रूप से सुधार के बेहतर परिणाम मिले।'
इलाज में कैसे कारगर है यह तकनीक?
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने सीईटी में एक लोकल एनेस्थीसिया तकनीक का इस्तेमाल किया है। यह तकनीक डिस्टल लोअर एक्सट्रीमिटी यानी कूल्हों से लेकर पैरों तक के हिस्सों की पीड़ादायक तंत्रिका गतिविधियों को रोकने का काम करती है। वहीं, इलेक्ट्रिक सेल सिग्नलिंग ट्रीटमेंट (ईएसटी) को रक्त प्रवाह (ब्लड फ्लो) बढ़ाने के लिए लागू किया गया है।
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न्यूरोलॉजिस्ट पीटर एम कारने बताते हैं कि इलाज का यह तरीका वास्तव में पूरी तरह से अलग है। उनके मुताबिक, इसमें दवाओं का प्रयोग करने के बजाय भौतिक सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाता है। बता दें कि करीब पांच साल पहले डॉक्टर कारने 'पेनफुल पेरिफेरल न्यूरोपैथी' (पीपीएन) के रोगियों के इलाज के लिए क्वांटम प्रक्रिया के सिद्धांतों का इस्तेमाल करते थे। पीटर के अनुसार, ‘क्वांटम प्रक्रिया का सिद्धांत न केवल पीपीएन में होने वाले असहनीय दर्द के इलाज में दवाओं की तुलना में अधिक प्रभावी और ज्यादा सुरक्षित है, बल्कि इस प्रक्रिया की मदद से पेरिफेरल न्यूरोपैथी की वजह से नष्ट होने वाली नसों को पुनर्जीवित करने में भी सहायता मिलती है।’ शोधकर्ता कारने का कहना है कि इस अध्ययन के दौरान जिन लोगों को शामिल किया गया था, उनमें दर्द की तीव्रता अलग-अलग थी।
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न्यूरोपैथी के क्या लक्षण हैं?
आपके पेरिफेरल तंत्र में हर तंत्रिका का एक खास काम होता है, इसलिए लक्षण प्रभावित नसों के प्रकार पर निर्भर करते हैं। मगर कुछ लक्षण हैं जो बताते हैं कि आप इस समस्या से ग्रसित हो सकते हैं, जैसे-
- तंत्रिका प्रभावित होने पर मांसपेशियों में कमजोरी या लकवा
- पैर के पंजों या हाथों का सुन्न पड़ जाना
- तीव्र, चुभने वाला जलन भरा दर्द
- मूत्राशय, पाचन या आंत्र समस्या
- ब्लड प्रेशर में होना वाला बदलाव और हल्कापन महसूस होना