लकवा होने पर प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है। लकवा शरीर के किसी एक हिस्से या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। किसी चोट या बीमारी के नसों की सप्लाई को प्रभावित करने के कारण मांसपेशियों के कार्य में बाधा आती है। आयुर्वेद में लकवे को पक्षाघात कहा गया है। वात दोष बढ़ने या असंतुलित होने पर शरीर के एक हिस्से के अंगों के संवेदनात्मक (महसूस करने वाले) और मोटर (मूवमेंट करने वाले) कार्यों को नुकसान पहुंचता है जिसे अर्धांग वात कहा जाता है।
आयुर्वेद में पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए पंचकर्म थेरेपी में से स्नेहन (तेल लगाने की विधि), स्वेदन (पसीना लाने की विधि), बस्ती (एनिमा) और नास्य (नाक में औषधि डालने की विधि) का प्रयोग किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित एवं इसके इलाज में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में अश्वगंधा, बला और निर्गुण्डी एवं हर्बल मिश्रण जैसे कि योगराज गुग्गुल तथा दशमूलारिष्ट का इस्तेमाल किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए तीखे भोजन और धूम्रपान से दूर रह कर एवं आहार में अदरक, अंगूर, मूंग दाल और अनार को शामिल करने से मदद मिल सकती है।