आयुर्वेद में दर्द को शूल के नाम से जाना जाता है। दर्द एक लक्षण के रूप में शरीर के किसी भी हिस्से जैसे कि गर्दन, कमर, पेल्विस, पेट, छाती, नसों, मांसपेशियों, जोड़ों, टांगों, पैरों, घुटनों और सिर को प्रभावित कर सकता है।
आयुर्वेद में पूरे शरीर को प्रभावित करने वाले दर्द को अंगमर्द कहा गया है। दर्द के सामान्य कारणों में अत्यधिक थकान, मोच और फ्रैक्चर शामिल है। ये किसी अंतर्निहित कारण जैसे कि गाउटी आर्थराइटिस, रूमेटाइड आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, साइटिका, डायबिटिक न्यूरोपैथी, ट्रायजेमिनल न्यूरालजिया (नसों में होने वाला दर्द), दाद और एड़ी के हड्डी बढ़ने से भी हो सकता है। किस वजह से दर्द हो रहा है, इसी आधार पर इसका इलाज निर्भर करता है।
दर्द के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार में स्नेहन (तेल लगाने की विधि), स्नेहन (पसीना लाने की विधि), नास्य (नाक से औषधि डालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्टी करवाने की विधि), विरेचन (दस्त की विधि), बस्ती (एनिमा) और रक्तमोक्षण की सलाह दी जाती है। दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी जड़ी बूटियों और औषधियों में अरंडी, गुडूची, बड़ी कटेरी, मेषशृंगी (गुड़मार), शल्लाकी, सिंहनाद गुग्गुल, योगराज गुग्गुल, दशमूल कषाय, बृहद वात चिंतामणि रस और लाक्षा गुग्गुल का नाम शामिल है।