ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त व्यक्तियों में हड्डियां उम्र के साथ धीरे-धीरे नाजुक और कमजोर हो जाती हैं और इसी वजह से उनके टूटने का जोखिम बढ़ जाता है। हालांकि, हड्डियों का घनत्व कम होना उम्र बढ़ने का एक सामान्य हिस्सा है। लेकिन जब ऐसा तेजी से होता है तो इस स्थिति को ऑस्टियोपोरोसिस के नाम से जाना जाता है।
महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा अधिक होता है, खासकर रजोनिवृत्ति के बाद शुरुआती कुछ वर्षों में यह खतरा और भी बढ़ जाता है।
इस स्थिति में जरूरी नहीं है कि लक्षण दिखाई दें हालांकि, ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों को हड्डियों में कमजोरी की वजह से दर्द होता है, जिससे फ्रैक्चर (हड्डी टूटने) के प्रति वे अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। हो सकता है कि इस समस्या से पीड़ित लोगों में कूबड़ मुद्रा विकसित हो जाए, क्योंकि ऐसे लोगों में शरीर की सही मुद्रा बनाए रखने की शक्ति कम हो जाती है।
ज्यादातर मामलों में, ऑस्टियोपोरोसिस का निदान तब किया जाता है जब व्यक्ति गिरता है या चोट लगती है, जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर, कूल्हे का फ्रैक्चर या कलाई का फ्रैक्चर हो जाता है।
धूम्रपान और शराब का अत्यधिक सेवन, लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाओं की खुराक लेना, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों की कमी, बॉडी मास इंडेक्स कम होना, कूल्हे का फ्रैक्चर या ऑस्टियोपोरोसिस से संबंधित फैमिली हिस्ट्री, हार्मोन और हड्डियों की मजबूती को प्रभावित करने वाली दवाओं जैसे कुछ कारक ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को बढ़ाती हैं। पारंपरिक रूप से, ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज प्रशासित दवाओं द्वारा किया जाता है, जो रोग के लक्षणों को प्रबंधित करने और हड्डियों की ताकत में सुधार करने में मदद करते हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस के लिए होम्योपैथिक उपचार में कैल्केरिया फॉस्फोरिका, कैल्केरिया आयोडेटा, एसाफोएटिडा, मेजेरियम, सिम्फाइटम ऑफिसिनेल, रूटा ग्रेवोलेंस, सिलिकिया टेरा, यूपेटोरियम परफोलिएटम, कैल्केरिया कार्बोनिका और फास्फोरस शामिल हैं। इन सभी उपायों का उद्देश्य हड्डियों में दर्द और हड्डियों की कमजोरी को रोकने के साथ-साथ मौजूदा स्थिति को ठीक करना है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक दवाओं के विपरीत, सभी होम्योपैथिक उपचार सभी तरह के रोगियों के अनुरूप नहीं होती है। एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक रोगी में बीमारी के लक्षणों के अलावा शारीरिक और मानसिक स्थिति की जांच करने के बाद ही उपाय का निर्धारिण करते हैं। यह दवाएं "लाइक क्योर लाइक" सिद्धांत के आधार पर दी जाती हैं। इस सिद्धांत का अर्थ है कि किसी स्वस्थ व्यक्ति द्वारा बड़ी मात्रा में किसी पदार्थ के लिए जाने पर जब लक्षण पैदा होते हैं तो उसी पदार्थ का उपयोग करके लक्षणों का इलाज किया जा सकता है।