ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसा रोग है जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और हडि्डयों के ऊतक खराब होने लगते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि हड्डियों के निर्माण और पुन:अवशोषण की प्रक्रिया घट जाती है। विकासशील देशों में ऑस्टियोपोरोसिस को एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या के रूप में जाना जाता है। इन देशों में 12 प्रतिशत पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं अपने जीवन में कभी न कभी ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित होती हैं। 80 और इससे अधिक उम्र की महिलाओं में कूल्हे के फ्रैक्चर की शिकायत ज्यादा रहती है।
आयुर्वेद के अनुसार वात के स्तर का खराब होना अस्थि सुश्रिता या ऑस्टियोपोरोसिस का कारण है। आयुर्वेद में ऑस्टियोपोरोसिस को नियंत्रित करने के लिए दशमूल तेल और महानारायाण तेल से स्नेहन (तेल लगाने की विधि) की सलाह दी जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में शुंथि (सोंठ), अरंडी, रसोनम (लहसुन) और अन्य जड़ी बूटियों उपयोगी हैं। प्रवाल पिष्टी और योगासन से दर्द में राहत मिलती है और फ्रैक्चर का खतरा भी कम हो जाता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक चिकित्सक वृद्धावस्था की शुरुआत में ही ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए संतुलित आहार और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की सलाह देते हैं।