मोटापा दुनियाभर के डॉक्टरों, मेडिकल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के लिए नई उभरती स्वास्थ्य चुनौती है। आमतौर पर इस बीमारी को हाइपरटेंशन, डायबिटीज और हृदय रोग से जोड़कर देखा जाता है। वहीं, इसके समाधान के लिए मोटे लोगों को अपनी जीवनशैली में सुधार करने के लिए कहा जाता है, जैसे खान-पान में बदलाव करना, फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाना और मोटापा बढ़ाने वाले व्यवहार (मसलन ज्यादा खाना) में सुधार करना। लेकिन ज्यादातर लोग इस प्रकार के समाधान नहीं अपना पाते। वे अपनी खराब खान-पान की आदतों में बदलाव नहीं करते या कर पाते, और न ही शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान दे पाते हैं। इसके चलते समाज उनके बढ़ते वजन के लिए उन्हें ही दोषी ठहराने लगता है। वह उनकी इच्छाशक्ति में कमी होने का आरोप लगाता है। लेकिन क्या ऐसे सभी लोगों में इच्छाशक्ति की कमी होती है या कोई और फैक्टर भी है जो उन्हें प्रभावित करता है? एक नया अध्ययन इस सवाल पर रोशनी डालने का काम करता है।
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दरअसल, मेडिकल पत्रिका प्लोस वन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति मोटापे का शिकार होता है और इससे लड़ने में असफल रहता है तो इसके लिए वह अकेला जिम्मेदार नहीं होता। इसमें उनके सामाजिक और व्यक्तिगत बैकग्राउंड की बड़ी भूमिका हो सकती है, विशेषकर बचपन में हुए शोषण या ट्रॉमा से गुजरने के कारण ऐसे लोग आगे चलकर मोटापे का शिकार होकर उससे उबरने में कामयाब नहीं हो पाते।
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जापान के कोबे यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने कहा है कि इस तरह ओबेसेजेनिक यानी मोटापा बढ़ाने वाला व्यवहार महिलाओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के तहत जानने की कोशिश की सामाजिक और परिवेश संबंधी फैक्टर महिलाओं और पुरुषों के मोटापे में किस प्रकार अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। इसके लिए उन्होंने कोबे शहर के 20 से 64 वर्ष की उम्र के 5,425 निवासियों का डेटा इस्तेमाल किया। ये आंकड़े किसी सामुदायिक स्तर पर किए गए प्रश्नावली आधारित सर्वेक्षण से जुड़े थे। इसमें कोबे शहर के इन निवासियों के व्यक्तिगत और सामाजिक बैकग्राउंड से संबंधित फैक्टर्स का विश्लेषण किया गया था, जैसे उनका विवाह हुआ है या नहीं, पारिवारिक ढांचा कैसा है, रोजगार, घर की आय कितनी है, किस प्रकार के आवास में वे रहते हैं, मौजूदा आर्थिक स्थितियां कैसी हैं, मौजूदा शिक्षा स्तर क्या है, स्कूल की अतिरिक्त गतिविधियां, 15 साल की उम्र में वे किस प्रकार के माहौल में रहे, बचपन के चुनौतीपूर्ण या खराब अनुभव (जैसे शोषण) क्या थे आदि।
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सर्वेक्षण के दौरान 27 प्रतिशत से ज्यादा पुरुषों और दस प्रतिशत से अधिक महिलाओं में मोटापे से ग्रस्त होने के खतरे का पता चला। इसके लिए घर की कम आय, कल्याणकारी योजनाओं में शामिल न होना, मौजूदा आर्थिक स्थितियों के कारण होने वाली परेशानियां, कम शिक्षा स्तर और बचपन से जुड़े बुरे अनुभव या शोषण प्रमुख रूप से जिम्मेदार पाए गए। महिला प्रतिभागियों में ये फैक्टर मुख्य रूप से उनके मोटापे के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं। इनमें से बचपन में कई प्रकार से हुआ शोषण उनके मोटे होने की सबसे मुख्य वजह पाया गया है। अजीब बात यह रही कि शोधकर्ताओं को पुरुषों के मोटापे के मामले में इस प्रकार के सामाजिक या परिवेश संबंधी फैक्टर्स की भूमिका के होने का पता नहीं चला।
इस आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि महिलाओं में मोटापे की समस्या का बचपन में होने वाले शोषण से मजबूत संबंध है और यह एक ऐसा कारण है, जो इस कंडीशन से जूझ रही महिलाओं के नियंत्रण में नहीं है। लिहाजा उनके मोटापे के इलाज में इस फैक्टर को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि बाल कल्याण से जुड़ी नीतियों और संस्थानों को इस बारे में अपडेट किया जाना चाहिए ताकि बच्चियों में इस भावी खतरे को कम करने में मदद मिल सके।
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