पंजाब के ग्रामीण इलाकों में मोटापे से ग्रस्त बच्चों में नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिसीज (एनएएफएलडी) की समस्या देखने को मिल रही है। जाने-माने चिकित्सा संस्थान पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) ने अपने एक अध्ययन के हवाले से यह जानकारी दी है। यह अध्ययन पंजाब के संगरूर स्थित पीजीआईएमईआर सैटलाइट सेंटर की पेडियाट्रिक आउटपेशंट यूनिट में किया गया था। यहां मोटापे का शिकार बच्चों में एनएएफएलडी से जुड़े खतरों और मेटाबॉलिक प्रोफाइल का आंकलन किया गया था। इसके लिए स्टडी में पांच साल से 18 साल तक की उम्र के बच्चों को शामिल किया गया। ये वे बच्चे थे, जो पंजाब में कम से कम पिछले पांच सालों से रह रहे थे और जिनका बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई 27 किलोग्राम प्रति स्क्वायर मीटर था। सभी बच्चों से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन करने में 13 महीनों का समय लगा। खबर के मुताबिक, यह काम सितंबर 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच किया गया, जिसकी रिपोर्ट कुछ समय पहले सामने आई है।

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इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अध्ययन में शामिल बच्चों में से 62 प्रतिशत नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिसीज से पीड़ित हैं। इनमें 46 प्रतिशत में यह समस्या कम गंभीर है और 16 प्रतिशत बच्चों में मध्यम स्तर का फैटी इनफिल्ट्रेशन पाया गया है। राहत की बात यही है कि किसी भी बच्चे का फैटी लिवर गंभीर नहीं पाया गया है। हालांकि एलेनाइन ट्रांसमिनेस (किडनी और लिवर में पाया जाने वाला एक एंजाइम) सभी बच्चों में उल्लेखनीय रूप से ज्यादा पाया गया है। यह भी पता चला है कि 42 प्रतिशत बच्चों में मोटापा, 34 प्रतिशत में डायबिटीज और 38 प्रतिशत में हाइपरटेंशन की समस्या पारिवारिक रूप से चली आ रही है।

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अध्ययन में 20 प्रतिशत बच्चे हाइपरटेंशन से ग्रस्त पाए गए हैं, जबकि 22 प्रतिशत सबक्लिनिकल हाइपोथायरॉइडिज्म से जूझ रहे हैं। इस कंडीशन में थायराइड ग्लैंड पर्याप्त मात्रा में थायराइड हार्मोन नहीं बना पाती। इसके अलावा, 12 प्रतिशत फैटी लिवर मरीजों में हाइपरग्लाइकेमिया यानी शुगर की ज्यादा मात्रा पाई गई है।

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'प्रेवलेंस एंड रिस्क फैक्टर्स फॉर नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिसीज इन ओबेस चिल्ड्रेन इन रूरल पंजाब' नाम से किए गए इस अध्ययन को पीजीआईएमईआर के रेडियोडायग्नॉसिस डिपार्टेमेंट के डॉ. निशु गुप्ता और डॉ. गुंजन जिंदल, कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट की डॉ. अनुराधा नड्डा, बायोकेमिस्ट्री विभाग की डॉ. सलोनी बंसल और अस्पताल प्रशासन के दो अन्य डॉक्टर शैलन गाहुकर और अशोक कुमार ने अंजाम दिया है। इसके परिणामों को जर्नल ऑफ फैमिली एंड कम्युनिटी मेडिसिन नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित किया किया गया है। इन सभी विशेषज्ञों ने अध्ययन के निष्कर्ष में कहा है कि मोटापा झेल रहे पांच साल से 18 साल की उम्र के बीच के बच्चों में नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर के मामले बढ़े रहे हैं। ऐसे में बतौर सुझाव कहा गया है, 'पश्चिमि देशों में इस तरह का ट्रेंड देखने को मिल चुका है। शुरुआत में समस्या को डिटेक्ट करके दीर्घकालिक लिवर संबंधी रोग और मोटे बच्चों से जुड़ी बीमारियों को रोका जा सकता है।'

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क्या है फैटी लिवर?
लिवर हमारे शरीर का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है। यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि और दूसरा सबसे बड़ा अंग होता है। लिवर पित्त का निर्माण करता है, जिसे वसा यानी फैट को टूटने में मदद मिलती है। यह रक्त के डिटॉक्सिफिकेशन या साधारण भाषा में कहें तो खून की साफ-सफाई में मदद करता है। जानकार बताते हैं कि एक सामान्य लिवर में कुछ फैट जरूरत होता है। लेकिन कभी-कभी लिवर की कोशिकाओं में गैर-जरूरी फैट की मात्रा बढ़ जाती है। इस गंभीर रोग की स्थिति माना जाता है, जिसे सामान्यतः फैटी लिवर कहा जाता है। यह बीमारी के दो मुख्य प्रकार होते हैं- अल्कोहोलिक फैटी लिवर और नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, गलत खानपान के अलावा नियमित रूप से और अधिक मात्रा में शराब पीने से फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। मोटापा भी इस बीमारी का एक कारण हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को फैटी लिवर है तो उससे उसके बच्चों को भी इससे खतरा हो सकता है। यानी फैटी लिवर एक आनुवंशिक बीमारी भी हो सकती है।

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