वैज्ञानिकों ने इम्यून सिस्टम की महत्वपूर्ण कोशिका डेन्ड्रिटिक (डीसी) की संख्या और प्रभाव को बढ़ाने वाले दो कॉम्पोनेंट की मदद से जानलेवा स्किन कैंसर मेलानोमा की वैक्सीन की क्षमता को दोगुना करने में कामयाबी हासिल की है। खबर के मुताबिक, अमेरिका के माउंट सिनाई स्थित आइकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के टिश कैंसर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट से आर्थिक सहायता प्राप्त कैंसर इम्यूनोथेरेपी ट्रायल्स नेटवर्क नामक प्रोग्राम के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर सीडीएक्स-1401 नाम की एंटी-स्किन कैंसर वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। यह टीका डेन्ड्रिटिक सेल्स को टार्गेट करने का काम करता है। वैज्ञानिकों ने मेलानोमा में पाए जाने वाले एक एंटीजन से इस वैक्सीन का निर्माण किया है। यह एंटीजन एक रोग प्रतिरोधक से बंधा होता है, जिससे इसके डेन्ड्रिटिक सेल्स को बांधने की संभावना बढ़ जाती है।
(और पढ़ें - कैंसर के खतरे को कम करने में एक्सरसाइज हमारी इम्यूनिटी की कैसे मदद कर सकती है: जानें अध्ययन)
मेडिकल पत्रिका नेचर कैंसर में एंटी-मेलानोमा वैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल के परिणाम प्रकाशित किए गए हैं। परीक्षण से जुड़े अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एफएलटी3एल (एफएमएस-लाइक टाइरोसिन काइनेस 3 लिगेंड) नामक एक छोटे से मॉलिक्यूल का इस्तेमाल कर शरीर में डेन्ड्रिटिक सेल्स की संख्या बढ़ाई जा सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि एफएलटी3एल की मदद से वैक्सीन मेलानोमा के खिलाफ शरीर को एंटीबॉडी और टी सेल्स का प्रॉडक्शन करने के लिए तैयार कर सकती है। इस कॉम्बिनेशन में एक और घटक या कॉम्पोनेंट पोली-आईसीएलसी (एक टीएलआर3 एगनिस्ट जो डीसी को एक्टिवेट करता है) को मिलाने से भी डेन्ड्रिटिक सेल्स की एंटीबॉडी और महत्वपूर्ण टी सेल्स को प्रमोट करने की क्षमता में और इजाफा होता है।
इस जानकारी के बारे में बात करते हुए टिश कैंसर इंस्टीट्यूट के इम्यूनोथेरेपी प्रोग्राम की निदेशक नीना भारद्वाज कहती हैं, 'यह ऐसा पहला रैंडमाइज्ड ट्रायल है, जिससे पता चलता है कि कैंसर वैक्सीन के इम्यून रेस्पॉन्स को एफएलटी3एल को मिलाकर बढ़ाया जा सकता है। ऐसा रेस्पॉन्स इसलिए पैदा हुआ, क्योंकि एफएलटी3एल ने डेन्ड्रिटिक सेल्स को मोबिलाइज कर दिया था, जो कैंसर इम्यूनिटी के मामले में गोल्डन स्टैंडर्ड माना जाता है। साथ ही, इस मॉलिक्यूल ने वैक्सीन की ओवरऑल इम्यूनोजेनिसिटी में भी सुधार किया है। हो सकता है इससे भविष्य में अन्य कैंसर वैक्सीनों की क्षमता को बढ़ाने से संबंधित अप्रोच में भी बदलाव देखने को मिले।'
(और पढ़ें - कैंसर मरीजों में इम्यूनोथेरेपी रेस्पॉन्स को बेहतर कर सकती है ब्लड प्रेशर की दवा प्रोप्रेनोलॉल: वैज्ञानिक)
कैसे किया गया अध्ययन?
वैज्ञानिकों ने तीसरे चरण के ओपन-लेबल, रैंडमाइज्ड ट्रायल के तहत दूसरी और तीसरी स्टेज के मेलानोमा के मरीजों पर वैक्सीन को आजमाया। इन सभी मरीजों का कैंसर सर्जरी की मदद से सफलतापूर्वक निकाल दिया गया था। ट्रायल में उन्हें टीका लगाने से पहले वैक्सीन में दोनों मॉलिक्यूल मिलाए गए थे। अध्ययन में वैक्सीन के परिणामों की तुलना के लिए आधे मरीजों को बिना मॉलिक्यूल कॉम्बिनेशन वाली वैक्सीन दी गई। बाकी मरीजों को टीका एफएलटी3एल और पोली-आईसीएलसी के साथ दिया गया। शोधकर्ताओं ने बताया, 'वैक्सीन (सीडीएक्स-1401 + पोली-आईसीएलसी) के लिए मरीजों को रैंडमाइज्ड तरीके से चुना गया था। वैज्ञानिकों का अनुमान था कि सीडीएक्स-301 के साथ वैक्सीन फॉर्मुलेशन से डीसी-मिडिएटिड एंटीजन प्रोसेसिंग और टी सेल्स के समक्ष उनकी (एंटीजन) उपस्थिति में बढ़ोतरी होगी। इस तरह स्किन कैंसर के खिलाफ ज्यादा प्रभावी इम्यून रेस्पॉन्स पैदा होंगे।'
नेचर कैंसर की रिपोर्ट में बताया गया है कि अध्ययन के परिणाम इस अनुमान के मुताबिक ही रहे। इसमें विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि वैक्सीन, एफएलटी3एल और पोली-आईसीएलसी के कॉकटेल ने कैंसर के खिलाफ टीके की क्षमता को लगभग दोगुना कर दिया था। शोधकर्ताओं ने चार महीनों के दौरान वैक्सीन के चार डोज देने के पश्चात मरीजों के ब्लड सैंपल में टी सेल्स डिटेक्ट कर उसकी जांच करने के बाद यह जानकारी दी है। उनकी मानें तो स्किन कैंसर के जिन मरीजों को केवल वैक्सीन लगाई गई थी, उनके मुकाबले कॉकटेल वैक्सीन वाले समूह के मरीजों में पैदा हुआ इम्यून रेस्पॉन्स काफी उच्च स्तर का था। यह भी पता चला है कि आखिरी डोज दिए जाने के 12 हफ्तों बाद जब प्रतिभागी मरीजों के ब्लड टेस्ट किए गए तो उनमें एंटीबॉडी (सीडी4, सीडी8 और टी सेल्स) की मौजूदगी तब भी पाई गई थी।
(और पढ़ें - जटिल कैंसर ट्यूमरों के खिलाफ प्लेरिक्साफोर बढ़ा सकती है इम्यूनोथेरेपी की क्षमता, अध्ययन में मिले महत्वपूर्ण परिणाम)